राग दरबारी उपन्यास में बद्री पहलवान का चरित्र चित्रण

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राग दरबारी उपन्यास में बद्री पहलवान का चरित्र चित्रण वैद्य जी के बाद उनके बड़े पुत्र बद्री पहलवान शिवपालगंज के पहलवान के गुरु अथवा उस्ताद विशाल शरीर

राग दरबारी उपन्यास में बद्री पहलवान का चरित्र चित्रण


श्रीलाल शुक्ल का उपन्यास राग दरबारी भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं को बड़ी ही बारीकी से चित्रित करता है। इनमें से एक महत्वपूर्ण पात्र हैं बद्री पहलवान। वैद्य जी के बाद उनके बड़े पुत्र बद्री पहलवान ही इस उपन्यास 'राग दरवारी के महत्त्वपूर्ण पात्र हैं। बद्री पहलवान एक स्वतंत्र और विशाल शरीर के स्वामी है। वे शिवपालगंज के पहलवान के गुरु अथवा उस्ताद थे। शिवपालगंज का वातावरण दुखभरा हो रहा था। लोग पहलवानी भूल रहे थे और अखाड़े बन्द हो रहे थे। ऐसे विषम समय में भी बद्री पहलवान का अखाड़ा चल रहा था।

उपन्यासकार श्रीलाल शुक्ल ने प्रतिकूल समय भी चलने वाले बद्री पहलवान के अखाड़े का वर्णन इन शब्दों में किया है-"जो भी हो, इस हफ्ते में अखाड़े खत्म हो रहे थे और गाँव में नौजवानों का शारीरिक विकास अब उनके मानसिक विकास के स्तर पर हो रहा था। इस दृष्टि से शिवपालगंज में एक अखाड़े का होना और उस पर कई लड़कों का नियमित रूप से आना एक महत्त्वपूर्ण तन्त्र है। कहने की जरूरत नहीं, यह बद्री पहलवान की वजह से था। वे कई सालों से अखाड़े पर पहुँचकर कसरत करते, अपने पट्ठों को कुश्ती लड़ाते और जब वे किसी को पटककर उसके शरीर के किसी भाग को घायल कर देते तो माना जाता कि वह अब पूरा पहलवान हो गया है। कई दिन कसरत करने और कुश्ती लड़ने किसी पठ्ठे का कराहते हुए घर लौटना इस बात का सबूत था कि वह अपने दीक्षान्त समारोह में डिग्री लेकर वापस आ रहा है।"
 
शिवपालगंज के एक मात्र अखाड़े के मालिक बद्री पहलवान के चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ हैं- 

अत्यधिक पुष्ट और स्वस्थ शरीर

बद्री पहलवान का शरीर अत्यधिक पुष्ट और स्वस्थ था। बद्री पहलवान एक रिक्शे पर बैठकर शहर से अपने गाँव शिवपालगंज आ रहे थे। रिक्शे वाले ने उनके स्वस्थ और बलिष्ठ शरीर को देखकर उन्हें कई बार ठाकुर साहब कहकर पुकारा था। अन्त में परेशान होकर बद्री पहलवान ने क्रोध-भरे स्वर में कहा- “अब घण्टे भर से यह ठाकुर साहब, ठाकुर साहेब' क्या लगा रखा है। जानता नहीं, मैं बाँमन हूँ।" इससे स्पष्ट है कि अपने स्वस्थ और बलिष्ठ शरीर के कारण बद्री पहलवान ठाकुर जैसे लगते थे।
 

बेला से सच्चा प्रेम

बद्री पहलवान अपने मकान की ऊपर वाली मंजिल पर बने कमरे में कसरत करते और रात को सोया करते थे। उनकी छत से मिली हुई छतों में एक छत गयादीन की थी, जो अग्रवाल वैश्य थे। उनकी युवती बेटी बेला से बद्री पहलवान को प्रेम हो गया था। प्रेम का आरम्भ बेला की ओर से हुआ था। बेला ने एक प्रेम-पत्र बद्री पहलवान को लिखकर फैंका था, जो उसके फुफेरे भाई रंगनाथ को मिला था। उस पत्र में न लिखने वाले या वाली का नाम था और न पाने वाले का, रंगनाथ ने वह पत्र पढ़कर अनुभव किया कि यह पत्र बेला नाम की लड़की ने रुप्पन बाबू को लिखा है। रंगनाथ ने वह पत्र बद्री पहलवान को दिखाया ! बद्री पहलवान समझ गये कि यह पत्र किसका है और किसको लिखा गया है। उन्होंने रंगनाथ को समझा दिया कि यह पत्र ग्राम सेविका से किसी लड़की ने लिखवाया है। रंगनाथ ने पत्र की बात रुप्पन बाबू को बतायी तो वे समझे कि पत्र उन्हें ही लिखा गया है। रुप्पन बाबू ने इस प्रेम-पत्र का उत्तर दिया और लिखने वाले के स्थान पर 'रु.' लिख दिया। यह प्रेम-पत्र बेला की विधवा बुआ को मिला और उसने गयादीन को दे दिया। बेला ने एक दूसरा पत्र लिखा जो बद्री पहलवान को न मिलकर रंगनाथ को ही मिला। इस प्रकार रुप्पन बाबू की बहुत बदनामी हुई।
 
राग दरबारी उपन्यास में बद्री पहलवान का चरित्र चित्रण
बद्री पहलवान का बेला से अनुचित सम्बन्ध है, इसका पता तब चला, जब छोटे पहलवान ने जोगनाथ के मुकदमे में गवाही देते समय कहा था कि बेला बदचलन लड़की है और उसका जोगनाथ से सम्बन्ध है। बद्री पहलवान को जब इसका पता चला तो उन्होंने अखाड़े में छोटे पहलवान पर पाट-दांव का प्रयोग करते समय उन्हें पटक दिया। छोटे पहलवान बद्री पहलवान के चेले थे। उन्होंने जब नाराज होने का कारण पूछा तो उन्होंने छोटे पहलवान से कहा—“तुम खानदानी बाँगडू हो। तुम्हें कुछ दायें-बायें भी दीख पड़ता है ? यह बेला अब तुम्हारी अम्मा बनने जा रही है। अब चाहे उसे छिनाल कहो, चाहे कुछ और गाली तुम्हीं पर पड़ेगी। महीने भर के भीतर ही बेला का ब्याह होगा। बद्री पहलवान के साथ और तुम बजाना तुरही, कुछ समझ में आया बेटा।" बद्री पहलवान ने आदेश दिया कि छोटे पहलवान इसे अपने तक ही रखें, पर छोटे को बात नहीं पची और यह बात पूरे शिवपालगंज में फैल गयी। 

स्पष्टवादी और साहसी दूसरे लोग अनैतिक सम्बन्धों को छिपाते हैं। बद्री पहलवान ने बेला के प्रति अपने प्रेम को न छिपाकर स्वीकार किया। साथ ही उन्होंने बेला से विवाह करने का भी निश्चय कर लिया। छोटे पहलवान से उन्होंने जो कहा, वह उनके बेला से विवाह के लिए प्रस्तुत होने का प्रमाण है। बद्री पहलवान का अनुचित सम्बन्ध बेला से है, यह स्पष्ट होते ही रुप्पन बाबू के बदचलन होने की बात दब गयी। शहर में जब वैद्य जी ने रुप्पन बाबू का खन्ना मास्टर के घर आना-जाना अनुचित बताया तो रुप्पन बाबू नैं अपने पिता से कहा- “और बद्री दादा, गाँव भर में उनकी थड़ी-थुड़ी हो रही है। वे बेला को अपने घर बैठाले ले रहे हैं। उनसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती। उनके कैरेक्टर पर ।" वैद्यजी ने रुप्पन बाबू को चुप करने के लिए अमोघ बाण छोड़ा- "मैं इतना पुरातनवासी नहीं हूँ। गाँधीजी अन्तर्जातीय विवाहों के पक्ष में थे। मैं भी हूँ। बद्री और बेला का विवाह सब प्रकार से आदर्श माना जायेगा। पर पता नहीं, गयादीन की क्या प्रतिक्रिया हो ।"
 
बद्री पहलवान ने जिस जोरदारी से बेला से अपने विवाह की बात कही थी, उसी जोरदारी से अपने पिता को भी समझाया कि मैं चोरी-छिपे कुछ नहीं करूँगा, सभी काम कायदे से करूँगा। उन्होंने अपने पिता द्वारा लगाया गया आरोप नकारते हुए जो कुछ कहा, वह प्रसंग इस प्रकार है- वैद्यजी ने बेला वाली बात चलायी तो बद्री पहलवान बोले- "यह बात फिर कभी कर लेंगे।" इसे सुनकर वैद्यजी ने कहा- "फिर कब, जब मेरी नाक कटकर गिर जायेगी।” बद्री पहलवान ने भर्राये हुए गले से कहा- "नाक वाक वाली बात न करो। नाक है कहाँ? वह तो पण्डित अजुध्या परसाद के दिनों में ही कट गयी थी।"वैद्यजी ने कहा- "तुम अब नीचता पर उतरकर बात कर रहे हो।"बद्री पहलवान ने कहा-“तुम कर रहे हो। तुम कहते हो कि मैं बेला से फैसा हूँ। तुम हमारे बाप हो। तुमको कैसे समझाया जाय। फैसन-फँसाना चिड़िमार का काम है। तुम्हारे खानदान में तुम्हारे बाबा अजुध्या परसाद जैसे रघुबरा की महतारी से फँसे थे। इसे कहते है- फँसना, हाँ! नहीं तो क्या है। खैर अब यह बन्द करो।"

वैद्य जी ने जब अदालत में छोटे पहलवान द्वारा कही गयी बात का संकेत किया तो बद्री पहलवान ने कहा- “बस बात बन्द और एक बात मैं कह लूँ, तब मेरी भी बात बन्द । मैं बाबा अजुध्यापरसाद की चाल नहीं चल सकता । जो कुछ करूँगा कायदे से करूँगा। इधर-उधर की खिचिर- खिचिर मुझे पसन्द नहीं है।”
 
इतना ही नहीं रूप्पन बाबू ने बीच में पंच बनकर बोलना चाहा और राजनीति करनी चाही तो उन्होंने रुप्पन बाबू की गर्दन पकड़कर दूर फेंक दिया। 

अपने स्वार्थ के लिए नम्र

बद्री पहलवान अपने पिता वैद्य जी से चाहे जितना बढ़-बढ़कर बोलते रहे हों, पर उन्होंने गयादीन पर कोई दबाव नहीं डाला। उन्होंने पत्र के समय नम्र बनते हुए अपने से कहा- "बाबू! गयादीन जी से भी बात कर लेते। वैद्यजी को झुकना पड़ा और उन्होंने अन्तर्जातीय विवाह की चर्चा चलाने के बाद स्पष्ट कहा कि आपकी लड़की बेला से मेरा पुत्र बद्री पहलवान शादी करना चाहते है।”
 
वैद्यजी ने यह भी कहा कि मैं बद्री को राजनीति में ला रहा हूँ। तुम्हारी पुत्री की भी अच्छी नौकरी लगवा दूँगा। गयादीन जी ने यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया तो वैद्य जी यह कहकर चले आये, क्षमा करना, मुझे गलत सूचना मिली थी।

राजनीति में सफलता

रुप्पन बाबू जब खन्ना मास्टर का पक्ष लेकर वैद्यजी के विरोधी हो गये तो उन्होंने कोऑपरेटिव सोसाइटी के प्रधान का पद बद्री को ही दिया। छोटे पहलवान के प्रस्ताव पर बद्री कोऑपरेटिव के प्रधान पद पर बैठ गये थे।
 

हर बात की समस्या का इलाज मारपीट

बद्री पहलवान सभी जगह मारपीट अर्थात् शक्ति प्रयोग को ही समस्या का सरल हल समझते और मानते थे। वैद्य जी ने कोऑपरेटिव इन्स्पेक्टर की ईमानदारी पर चिन्ता करते हुए कहा कि वह युधिष्ठिर का बाप बना हुआ है। उन्होंने डिप्टी डाइरेक्टर ऑफ एजूकेशन द्वारा उनके कॉलेज के प्रेसीडेण्ट के चुनाव की रिपोर्ट स्वीकार न करके जाँच की बात कही है।
 
बद्री पहलवान ने वैद्य जी की समस्याएँ सुनकर कहा-"ये झगड़े तो दस मिनट में खत्म हो जायेंगे, कोऑपरेटिव इन्स्पेक्टर को दस जूते मार दिये जायें, ठीक हो जायेगा । डिप्टी डाइरेक्टर न माने और जाँच करने आवे तो उनका भी किसी से भरत-मिलाप करा देंगे। खन्ना मास्टर के लिए हुकुम कर देंगे कि वे और उनकी पार्टी के लोग कल से कॉलेज के अन्दर न जायें, सब को बराबर गैरहाजिर बताकर पन्द्रह दिन बाद निकाल बाहर कर देंगे।"
 
इस प्रकार स्पष्ट है कि बद्री पहलवान स्पष्ट वक्ता, साहसी और सभी जगह शक्ति का प्रयोग करने वाले हैं। वे एक अक्खड़ और स्पष्टवादी नेता हैं। वे जब बोलते हैं, तो किसी का लिहाज नहीं करते। वह भारतीय समाज के उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है जो शक्ति और प्रभाव का दुरुपयोग करता है। लेखक ने बद्री पहलवान के माध्यम से भारतीय समाज के कुछ कमजोरियों पर व्यंग्य किया है।

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