आधुनिक मीडिया विज्ञापन पर ही निर्भर है

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आधुनिक मीडिया विज्ञापन पर ही निर्भर है आधुनिक मीडिया और विज्ञापनों के बीच का संबंध जटिल और बहुआयामी है। यह निर्भरता मीडिया उद्योग को चलाने में मदद कर

आधुनिक मीडिया विज्ञापन पर ही निर्भर है


धुनिक मीडिया और विज्ञापनों के बीच का संबंध जटिल और बहुआयामी है। यह निर्भरता मीडिया उद्योग को चलाने में मदद करती है, लेकिन साथ ही यह कुछ चुनौतियां भी पैदा करती है। भविष्य में मीडिया और विज्ञापनों के बीच का संबंध कैसे विकसित होगा, यह देखना दिलचस्प होगा।

विज्ञापन का अर्थ और स्वरूप

'विज्ञापन' शब्द से तात्पर्य है 'किसी तथ्य या बात की विशेष जानकारी अथवा सूचना देना' लैटिन शब्द 'Advertere' का अर्थ 'मस्तिष्क का केन्द्रीभूत होना है' जिससे 'Advertisement' का उद्देश्य परिलक्षित है. इस प्रकार आज के युग का दर्पण बन चुका विज्ञापन अर्थात् 'Advertisement' सही मायने में युगांतकारी समक्षमताएं एवं सम्भावनाएं रखता है. आज विज्ञापन हमारे जीवन की दिनचर्या का ही एक अंग बन गया है. व्यवसाय के उत्तरोत्तर विकास, वस्तु की माँग को बाजार में बनाए रखने, नई वस्तु का परिचय जन- मानस तक प्रचलित करने, विक्रय में वृद्धि करने तथा अपने प्रतिष्ठान की प्रतिष्ठा कायम रखने आदि कुछ प्रमुख उद्देश्यों को लेकर विज्ञापन किए जाते हैं. विज्ञापन की सामर्थ्य केवल यहाँ तक ही केन्द्रित या सीमित नहीं है, अपितु यह संचार शक्ति के सशक्त माध्यमों द्वारा क्रांति ला सकने की सम्भावनाएं एवं सामर्थ्य रखती है. 

सरकार की विकासोन्मुख योजनाओं का असरदार क्रियान्वयन चाहे वे साक्षरता के लिए हों या परिवार नियोजन के लिए, पोलियो-कुष्ठ उन्मूलन के लिए हों या महिला सशक्तीकरण के लिए, बेरोजगारी से निपटने के लिए हों अथवा कृषि एवं विज्ञान से सम्बन्धित हों, विज्ञापन रूपी रामबाण द्वारा ये त्वरित फलगामी होती है. इस प्रकार विज्ञापन जहाँ 'हम दो हमारे दो' कहता है वही 'हमारा बजाज' भी कहता है. व्यावसायिक हितों से लेकर सामाजिक- जनसेवा एवं देशहित तक विज्ञापन का क्षेत्र अतिव्यापक एवं अतिविस्तृत है।दूसरी ओर, विज्ञापन संचार माध्यमों अर्थात् उन माध्यमों जिनके द्वारा वह प्रस्तुत किया जाता है, के लिए संजीवनी का काम करता है. संचार माध्यमों की आय का प्रमुख स्रोत विज्ञापन ही होता है. 

आधुनिक मीडिया विज्ञापन पर ही निर्भर है
आधुनिक मीडिया का दारोमदार वस्तुतः विज्ञापन पर ही निर्भर है. प्रिंट मीडिया अथवा न्यूज पेपर्स के विषय में इस तथ्य को इस प्रकार समझा जा सकता है कि भारत में प्रेस एवं अखबारों के विकास के लिए गठित द्वितीय प्रेस आयोग इस विषय में कहता है "पाठक अखबार की जो कीमत देता है वह दो रूपों में होती है. उसका एक भाग तो पत्र में प्रकाशित समाचारों आदि के लिए तथा दूसरा भाग पत्र में विज्ञापित की गई वस्तुओं के लिए होता है. इन विज्ञापित तथ्यों से उसे विभिन्न प्रकार की जानकारी उपलब्ध होती है." आयोग ने समाचारों और विज्ञापनों के मध्य भी निश्चित अनुपात रखने का सुझाव दिया. यह अनुपात बड़े समाचार-पत्रों के लिए 60 : 40, मध्यम के लिए 50 : 50 तथा छोटे स्तर के अखबारों के लिए 40 : 60 रखा गया है. इससे यह बात तो स्पष्ट हो ही जाती है कि विज्ञापन उन सभी के लिए ही महत्वपूर्ण होता है, जो इन्हें देता है जिसके द्वारा प्रसारित होता है एवं जिनके लिए दिया जाता है. 

उपभोक्तावाद के इस दौर में निर्माता, विक्रेता और क्रेता के लिए विज्ञापन एक आधार प्रस्तुत करता है, इससे उत्पाद की माँग से लेकर उत्पाद की खपत तक जहाँ निर्माता या विक्रेता के लिए यह अनुकूल परिस्थितियाँ बनाने में सहायक हो जाता है, वही क्रेता या खरीददार के लिए उसकी आवश्यकतानुरूप उत्पाद के चयन हेतु विविधता एवं एक दृष्टिकोण उपलब्ध कराता है.

उपर्युक्त प्रक्रिया में उत्पाद, निर्माता, विक्रेता, क्रेता और विज्ञापन के अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण घटक वह माध्यम है जिसके द्वारा विज्ञापित कोई विषयवस्तु अनभिज्ञ व्यक्तियों को प्रभावित कर उन्हें क्रेता वर्ग में शामिल कर देती है. टेलीविजन, रेडियो, समाचार-पत्र पत्रिकाएं आदि आधारभूत एवं उपयोगी माध्यम कहे जाते हैं. सूचना संप्रेषण के ये स्रोत वस्तुतः विज्ञापन आधारित अर्थव्यवस्था पर निर्भर रहते हैं. मनोरंजन आधारित इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जोकि हमें मनोरंजन के विविध रंग प्रदान करता है, तो उसके एवज में विज्ञापन भी हमारे सम्मुख परोस देता है. यह एक प्रकार से मनोरंजन के बदले लिया जाने वाला अप्रत्यक्ष शुल्क ही हुआ.

विज्ञापन एक कला है

निश्चित ही विज्ञापन एक कला है. लक्षित उद्देश्य की प्राप्ति इसका एकमात्र उद्देश्य होता है. विज्ञापन आज के व्यावसायिकतावादी दौर में इतना महत्व रखता है कि बड़ी से छोटी हर स्तर की व्यावसायिक संस्था अपने बजट का एक बड़ा हिस्सा सदैव विज्ञापन के लिए व्यय करती है. विज्ञापन लाभ पर आधारित एक अपरिहार्य अनिवार्यता बन चुका है. आम व्यक्ति के लिए भी विज्ञापन उसकी दैनिकचर्या का एक सलाहकारी एवं सहायक अंग बना हुआ है. रोजमर्रा की उपयोग की वस्तुओं के अलावा ये सारी आवश्यकताएं जो जीवन में जरूरी हो सकती हैं विज्ञापनों द्वारा हमारे स्मृति कोष में अप-डेट करके रख दी जाती हैं. साबुन, तेल और टूथपेस्ट से लेकर जीवन-साथी के चयन की उपलब्धता भी विज्ञापन द्वारा सहज रूप से की जा रही है. 

विज्ञापन एक 'संदेश' होता है जिसे एक प्रभावशाली ढंग से संप्रेषित या प्रचारित किया जाता है, यदि यह संदेश जागरूकता या किसी प्रकार की शिक्षा पर आधारित होता है, तो व्यापक एवं असरदार तरीके से यह जागरूकता लाने में भी सक्षम होता है. विज्ञापन का अर्थ इस प्रकार 'विशेष' का 'ज्ञापन' करना होता है, विज्ञापित होने वाला संदेश यदि विशिष्टता लिए हो, तो उसका असर भी उसी प्रकार होता है. एक विशेष संदेश 'क्रान्ति' ला सकने की सामर्थ्य रखता है. गांधीजी द्वारा एक संदेश विज्ञापित किया गया था कि 'अंग्रेजो भारत छोड़ो' संदेश ने 'भारत छोड़ो आन्दोलन' खड़ा कर दिया और इस क्रान्ति ने अंग्रेजों को भारत से खदेड़ डाला. 'रोटी और कमल' (सांकेतिक रूप में) क्या कोई क्रान्ति ला सकते हैं? यदि कहा जाए कि हाँ ला सकते हैं, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए, क्योंकि 1857 की स्वाधीनता की लड़ाई 'स्वतंत्रता संग्राम' में रोटी और कमल ने एक असरदार विज्ञापन के रूप में काम किया था. गाँव से लेकर नगर तक और किसान से लेकर राजा तक सभी इस तरह रोटी और कमल को एक-दूसरे तक पहुँचा कर संग्राम हेतु प्रसार-प्रचार करते हुए एक बड़ा आधार तैयार कर पाने में सफल हुए थे.
 
विज्ञापन एक प्रकार से संचार स्रोतों (सूचना-मनोरंजन आधारित) का महत्वपूर्ण अंग बन गया है. मुख्य स्रोत टेलीविजन है जिस पर प्रसारित होने वाले प्रत्येक मनोरंजन कार्यक्रम के निर्माण की लागत एवं लाभ मूलतः उसे प्राप्त होने वाले विज्ञापनों के फलस्वरूप मिलने वाली राशि (स्पाँसरशिप) से ही पूरा होता है. इस नजरिए से विज्ञापन मूल रूप में मनोरंजन का आधार बन चुका है. रेडियो, टेलीविजन अथवा समाचार-पत्र चूँकि मनोरंजन के अलावा सूचना एवं शिक्षा भी प्रस्तुत करते हैं, तो विज्ञापन के ही कारण सूचना, शिक्षा और मनोरंजन की प्राप्ति जनसामान्य को होती है.

विज्ञापन आज उद्योग बन चुका है

विज्ञापन स्वतः आज एक उद्योग बन चुका है. राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक विज्ञापन कम्पनियाँ एवं एजेन्सियाँ करोड़ों का लेन-देन कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर इससे बड़ी संख्या में रोजगार की उपलब्धता भी हो रही है.. एजेसियों में से एक लिंटास इण्डिया लिमिटेड का वर्ष 2000-01 में व्यवसाय 1500 करोड़ रुपए रहा है. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार दूरदर्शन को विज्ञापनों के प्रसारण से 1400 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त हुआ है. इस प्रकार विज्ञापन स्वतः एक विस्तृत बन चुका है. वस्तुतः विज्ञापन अपने दायरे से परे एक बहुआयामी तथ्य है. हर नजरिए से यह विविधता लिए हुए है एवं सार्थक ही दिखाई दे रहा है.

उपभोक्तावादी युग में विज्ञापन

विज्ञापनों का असर व्यापक एवं प्रभावपूर्ण होता है अतः इसका गलत प्रयोग न हो पाए. इस दृष्टिकोण से विज्ञापनों को सरकारी नियंत्रण में रखा गया है. इसके लिए सरकार ने एक 'आचार संहिता' (Code of Conduct for Advertisement) का प्रावधान कर रखा है जिसके तहत नियंत्रणकारी संस्था 'एडवरटाइजिंग स्टैंडर्डस कौंसिल ऑफ इण्डिया' विज्ञापनों के लिए आदर्श मापदण्ड निर्धारित करती है. इसका उद्देश्य यह है कि आम जनता को प्रभावित कर देने वाले विज्ञापनों से व्यावसायिक हित के चलते गुमराह न किया जा सके, क्योंकि एक सशक्त विज्ञापन गजब की प्रभावित कर देने वाली क्षमता रखता है इसके गलत प्रयोग से परिणाम भी उसी प्रकार हो सकते हैं. अतः सरकारों का इस प्रणाली पर नियंत्रण-निरीक्षण आवश्यक है. इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि विज्ञापनों का आज के व्यावसायिक एवं उपभोक्तावादी युग में अत्यधिक महत्व हो गया है.
 
व्यंग्कार ब्रिट के शब्दों में-"बिना विज्ञापन व्यापार करना किसी खूबसूरत लड़की को अंधेरे में आँख मारना है. तुम तो जानते हो कि उस समय तुम क्या कर रहे हो, पर दूसरा कोई नहीं जानता." यकीनन आज के दौर का विज्ञापन व्यावसायिकतावादी एवं उपभोक्तावादी पहियों के बीच की कड़ी है ।

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