पुरानी और नई कहानी में अंतर और महत्व

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पुरानी और नई कहानी में अंतर और महत्व कथा साहित्य का ध्येय केवल मनोरंजन नहीं होता। वह हमारे लिए शिक्षक का भी काम करता है। कथा साहित्य द्वारा प्रदान की

प्राचीन एवं नवीन कहानी का अन्तर एवं महत्व

मारी आज की कहानी प्राचीन कहानियों से कई बातों में भिन्न है। उसका स्वरूप बिल्कुल बदल गया है। भाव और कला दोनों ही दृष्टियों से उसने नया रूप धारण कर लिया है। प्रसिद्ध अंग्रेजी समीक्षक प्रो० आर०के० लागू ने इस सम्बन्ध में लिखा है-
 
"एक शब्द में पुराना कहानी लेखक छोटी कहानी की कला के उन सिद्धान्तों से सर्वथा अनभिज्ञ था, जो उसका शासन करते हैं। उसने चाहे अपना काम अद्भुत सफलता के साथ पूरा किया हो, किन्तु वह इसे अपनी कला के रूप और शिल्प-पक्ष की चिन्ता बिना किये ही करता था। इन पुरानी कहानियों की मनोरंजक विषय-वस्तु, उनसे अनायास प्रकट होने वाले विनोद और सबसे बढ़कर उनमें छिपी हुई ज्ञान और अनुभव की शिक्षा के साथ-साथ हम उनसे आनन्द उठाते हैं। आधुनिक कहानीकार अपनी कला का पूर्णतः जानकार है। वह जानबूझकर किसी भावात्मक, बौद्धिक, अथवा हास्योत्पादक प्रभाव की योजना बनाता है और उसकी उपलब्धि के लिए अपनी सम्पूर्ण शक्ति एवं सामर्थ्य लगा देता है।"

ऊपर की पंक्तियों से स्पष्ट है कि प्राचीन कहानीकार का मुख्य उद्देश्य अपनी कहानियों द्वारा मनोरंजन करना तथा अपने ज्ञान और अनुभव की शिक्षा देना रहता था। वह कथा के रूप, शिल्प की ओर ध्यान नहीं देता था। आज के कहानीकार में हमें यह बात देखने को नहीं मिलती है। प्राचीन कहानीकार इस बात की चिन्ता करता था कि उसने क्या कहा, न कि इस बात की कि कैसे कहा ? आधुनिक कहानीकार इन दोनों ही बातों की चिन्ता करता है।
 
प्राचीन कहानियों की शैली स्थूल, इतिवृत्तात्मक और वर्णनात्मक होती थी। उनमें सीधे-सादे ढंग से कहानियों के कथानक को प्रारम्भ किया जाता था। जैसे-एक राजा था, उसकी सौ रानियाँ थीं। आधुनिक कहानियों का कथानक नाटकीय, वातावरण- चित्रण, पात्रात्मक, आत्मचरितात्मक आदि अनेक रूपों में रखा जाता है।
 
प्राचीन कहानियों में अस्वाभाविक और अलौकिक घटनाओं का समावेश अधिक रहता था। जैसे किसी मनुष्य का आँखों में अंजन लगाकर अदृश्य हो जाना। काठ के घोड़े पर चढ़कर उड़ना, परन्तु इसके विपरीत आज की कहानियों में जिन घटनाओं का चित्रण किया जाता है, वे बिल्कुल स्वाभाविक एवं हमारे जाने पहिचाने संसार की होती हैं।
 
पुरानी कहानियों के पात्रों में देवी-देवताओं, राजा-रानियों, सेठ साहूकारों की प्रमुखता रहती थी। उनमें जन-साधारण का चरित्र-चित्रण नहीं किया जाता था। इस प्रकार प्राचीन कहानी का क्षेत्र बड़ा सीमित था। आज की कहानी में सभी प्रकार के पात्रों का चरित्र-चित्रण होता है। उसके लिए 'गंगू तेली' का भी उतना ही महत्व है, जितना 'राजा भोज' का । किसान, मजदूर, वकील, डाक्टर, सभी आज की कहानी के पात्र हैं। इस प्रकार आज की कहानी का क्षेत्र अधिक व्यापक बन गया है।
 
प्राचीन एवं नवीन कहानी का अन्तर एवं महत्व
प्राचीन कहानी के पात्रों का अपना कोई स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं होता था। वें कहानी- कार के हाथ की कठपुतली मात्र होते थे। कहानीकार अपने मन से जैसा चाहता था, उन्हें वैसा रूप दे देता था। इसलिए पात्रों का चरित्र बडा अस्वाभाविक और अलौकिक होता था। प्राचीन कहानियों में हमें ऐसे पात्र मिलते हैं जो पहाड़ लाँघ जाते थे एवं आग से नहीं जलते थे। आज की कहानी के पात्र ऐसे नहीं होते। वे अपना स्वतन्त्र व्यक्तित्व रखते उनके द्वारा किये गये कार्य स्वाभाविक और लौकिक होते हैं। आधुनिक कहानीकार द्वारा उनका चरित्र-चित्रण भी बड़े स्वाभाविक और सजीव ढंग से किया जाता है। 

प्राचीन कहानी में केवल वीरता और प्रेम की भावना की प्रधानता रहती थी, परन्तु आधुनिक कहानियों में प्रेम और वीरता की भावना के अतिरिक्त अन्य भावनाओं का भी समावेश हुआ है। इस प्रकार विषय-वस्तु की दृष्टि से आज की कहानी का क्षेत्र पर्याप्त व्यापक बन गया है।
 
प्राचीन और आधुनिक कहानी में एक महत्वपूर्ण अन्तर यह भी है कि पुरानी कहानी में रोचकता और मनोरंजकता के लिए अलौकिक एवं अतिमानुषिक शक्तियों का सहारा लिया जाता था। उसमें उड़न खटोला, उड़न घोड़ा, जादुई छड़ी, जादुई मणि की और आकस्मिक घटनाओं की योजना की जाती थी। इसके विपरीत आधुनिक कहानी में मनोविज्ञान और मनोविश्लेषण का सहारा लिया जाता है। विशेष वातावरण के बीच पात्रों के चरित्र का विश्लेषण इस ढंग से होता है कि उसे पढ़कर पाठक का मन रस विभोर हो जाता है।
 

कहानी साहित्य का महत्व

कथा एवं कहानी कहने और सुनने की प्रवृत्ति उतनी ही प्राचीन है, जितना की स्वयं मानव का जीवन । मनुष्य वास्तव में बड़ा कौतूहल प्रिय प्राणी है। संसार के बीच घटने वाली घटनाओं को जानने की जिज्ञासा उसके हृदय में सदैव बनी रहती है। नई बातों को सुनने और जानने में उसे बड़ा आनन्द आता है। मार्ग में चलते हुए, जहाँ भी उसे कोई नया दृश्य दिखलाई देता है, वहीं उसके पैर अनायास रुक जाते हैं। यही कारण है कि नाना प्रकार की घटनाओं, दृश्यों, चित्रों और पात्रों का वर्णन करने वाली कथा, कहानियों के लिए मानव मन में सदा से ही बड़ा आकर्षण रहा है अर्द्धकथानक के रचयिता प्रसिद्ध जैन कवि बनारसीदास तो दुकान का सारा कारोबार छोड़कर, घर बैठे 'मधुमालती' और 'मृगावती' नामक पुस्तकों को पढ़ा करते थे - 
 
अब घर में बैठे रहहिं, जाहिं न हाट बजार । 
मधुमालती, मृगावती, पोथी दोई उचार।।
 
यह बात केवल बनारसीदास जी के लिए ही नहीं, प्रत्येक सहृदय पाठक के लिए सत्य है। आज का औसत पाठक साहित्य की अन्य सब विधाओं में से कथा साहित्य में ही अधिक रूचि रखता है। इसलिए आज के साहित्य के क्षेत्र में लोक-प्रियता और व्यापकता की दृष्टि से कथा साहित्य ही सबसे महत्वपूर्ण अंग है। डा० रामकुमार वर्मा के शब्दों में-"हिन्दी कहानी साहित्य अन्य साहित्यांगों की अपेक्षा अधिक गतिशील है। मासिक और साप्ताहिक पत्र-पत्रिकाओं के नियमित प्रकाशन ने इस साहित्य के विकास में बहुत अधिक योग दिया है। फलस्वरूप कहानी साहित्य में सर्वाधिक प्रयोग हुए हैं और कहानी किसी निर्झरिणी की गतिशीलता लेकर विविध दिशाओं में प्रवाहित हुई है।
 
कथा साहित्य की इस लोकप्रियता के मूल में उसकी उपयोगिता छिपी है। आज कहानी साहित्य के क्षेत्र में जन-साधारण के मनोरंजन और रसानुभूति का सबसे प्रबल साधन है। सफर में, दुकान में या अपने कमरे में कथा-साहित्य को सामने रखकर नाटक या सिनेमाओं का आनन्द प्राप्त किया जा सकता है।

कथा साहित्य के अध्ययन की सबसे बड़ी उपयोगिता हमारे ज्ञान की वृद्धि है। कहानी साहित्य देश और समाज के उसमें रहने वाले मानव समुदाय के जीवन के यथार्थ चित्र हमारे सामने रखता है। इसलिए कथा-साहित्य के अध्ययन से हम अपने देश के. सामाजिक, राजनैतिक, एवं आर्थिक जीवन का तथा लोगों के रहन-सहन, आचार-विचार का वास्तविक ज्ञान प्राप्त करते हैं। यदि हम नगरों के रहने वाले हैं, ग्राम्य जीवन का हमें अनुभव नहीं है तो ग्रामीण जीवन से सम्बन्धित कथा-साहित्य हमें उस जीवन का अनुभव करा सकता है। प्रेमचन्द जी का कथा-साहित्य इस दृष्टि से बड़ा उपयोगी है। डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी के शब्दों में "अगर आप उत्तर भारत की समस्त जनता के आचार-विचार, भाषा-भाव, रहन-सहन, आशा-आकांक्षा, दुख-सुख और सूझ-बूझ जानना चाहते हैं तो प्रेमचंद से उत्तम परिचायक आपको नहीं मिल सकता। झोंपड़ियों से लेकर महलों तक, खोमचे वालों से लेकर बैंकों तक, गाँव से लेकर धारासभाओं तक आपको इतने कौशलपूर्वक और प्रमाणिक भाव से कोई नहीं ले जा सकता।" हमास ऐतिहासिक कथा-साहित्य हमारे देश के प्राचीन सांस्कृतिक, सामाजिक, एवं राजनैतिक जीवन का परिचय देता है। इतिहास तो घटनाओं का वर्णनमात्र होता है।राष्ट्र की सूक्ष्म सांस्कृतिक चेतना देश में रहने वाले मनुष्यों के भाव स्पन्दन, उनकी आशा-आकाँक्षा उसमें व्यक्त नहीं होती। इनका ज्ञान तो हमारा ऐतिहासिक कथा-साहित्य ही कराता हैं यही नहीं, हम विदेशी कथा-साहित्य द्वारा उस देश के जीवन से भी परिचय प्राप्त कर सकते हैं। हमें उन देशों के भ्रमण की आवश्यकता नहीं। घर बैठे ही कथा के माध्यम से उस देश के वास्तविक जीवन का स्वरूप हमारे नेत्रों के सामने नाचने लगेगा ।
 
हमारे व्यावहारिक ज्ञान की वृद्धि में भी कथा-साहित्य का अध्ययन बड़ा उपयोगी है। कथा-साहित्य के पात्र हमारी ही भाँति हँसने-रोने वाले, सुख-दुख का अनुभव करने वाले तथा चारित्रिक गुण-दोष लिए रहते हैं। घटना व्यापारों में वे अपने जीवन को जिस प्रकार ढालते हैं, कभी नीचे गिरते हैं, कभी ऊपर उठते हैं, जीवन की विभिन्न परिस्थितियों के बीच उनकी जो मानसिक अवस्था होती है, ये सब बातें हमें कथा-साहित्य के रूप में अनुभव की विशाल सम्पदा प्रदान करती हैं। इससे हमारी व्यवहार-कुशलता बढ़ती है, हमें भले और बुरे मार्ग की पहिचान होती है। कहानी के बुरे पात्र हमें बुराई से बचने की प्रेरणा देते हैं। कहानी के भले पात्र हमें जीवन को ऊँचा उठाने की प्रेरणा देते हैं। 

सत्य तो यह है कि कथा साहित्य का ध्येय केवल मनोरंजन नहीं होता। वह हमारे लिए शिक्षक का भी काम करता है। कथा साहित्य द्वारा प्रदान की जाने वाली यह शिक्षा उपदेशकों या नीतिकारों की भाँति शुष्क नहीं होती, अपितु कांता के मधुर वचनों की भाँति बड़ी मर्मस्पर्शी और रसमयी होती है। इसलिए कथा-साहित्य जिन विचारों एवं समस्याओं को हमारे सामने रखता है, उनमें हमारे हृदय और मस्तिष्क को झकझोर देने की अपूर्व शक्ति होती है। इस रूप में कथा-साहित्य हमारे जीवन को नया दृष्टि-बोध कराता है। वह हमारे जीवन का चित्र ही प्रस्तुत नहीं करता, हमारे जीवन का पथ-प्रदर्शन भी करता है।

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