कुंडली में अस्त ग्रहों की आध्यात्मिक विवेचना

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अस्त ग्रह सदैव बुरे परिणाम नहीं देते। पत्रिका में अस्त के ग्रहों को पहचान कर उनसे संबंधित ज़रा सी सावधानियाँ बरती जाएँ तो वे भी अच्छे परिणाम देते हैं।

अस्त ग्रहों की आध्यात्मिक विवेचना


गुड़हल पुष्प के समान अरुणिमा वाले, महान तेज को धारण करने वाले, अंधकार का नाश करने वाले, सभी पापों को दूर करने वाले, महर्षि कश्यप के पुत्र सूर्यदेव को मेरा प्रणाम।

जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महद्युतिं।
तमोरिसर्व पापघ्नं प्रणतोस्मि दिवाकरं ।।

सभी ग्रहों को प्रकाश सूर्य से ही प्राप्त होता है। जब कोई ग्रह सूर्य से दूर होता है तो उस पर सूर्य का प्रकाश पड़ता है और वह दिखाई देता रहता है। अतः यदि कोई ग्रह सूर्य से सप्तम भाव में स्थित हो तो उसपर सूर्य का सीधा प्रकाश पड़ता है। तब वह पूरी तरह से प्रकाशित हो जाता है तथा अपने संपूर्ण फल देने में सक्षम होता है। इसके विपरीत यदि कोई ग्रह अंशात्मक रूप से सूर्य के करीब आ जाता है, तो वह सूर्य की तीव्र रश्मियों के कारण छुप सा जाता है और दिखाई नहीं देता, इसलिए जब भी कोई ग्रह सूर्य के करीब आ जाता है तो वह अस्त कहलाता  है।

भिन्न-भिन्न ग्रहों के अस्त होने अंश भी अलग-अलग होते हैं। जब चंद्रमा की सूर्य से अंशात्मक दूरी 12 अंश अथवा उससे कम होती है तो वह अस्त हो जाता है। इसी प्रकार मंगल के लिए यह दूरी अधिकतम 17 अंश, बुध के लिए अधिकतम 14 अंश ( यदि वक्री हो तो 12 अंश), गुरु के लिए अधिकतम 11 अंश, शुक्र के लिए अधिकतम 10 अंश (यदि वक्री हो तो 8 अंश तक) तथा शनि के लिए अधिकतम 16 अंश है। राहु और केतु दोनों छाया ग्रह हैं। भौतिक रूप से उनका कोई अस्तित्व नहीं है इसलिए राहु और केतु कभी भी अस्त नहीं होते। सामान्यतया कोई भी ग्रह सूर्य से यदि सात अंश या उससे कम दूरी पर होता है तो वह घोर अस्त माना जाता है। ग्रह सूर्य से जितना करीब होता है उतना ही अधिक अस्त माना जाता है।

अस्त ग्रहों की आध्यात्मिक विवेचना
पत्रिका में सूर्य के पास कई महत्वपूर्ण कारकत्व होते हैं जैसे अधिकार, शासन, आत्मविश्वास, स्वाभिमान, पिता, अहंकार, हड्डियाँ आदि। सूर्य आत्मा का भी कारक है जिसके बिना जीवन ही संभव नहीं। गीता में कहा गया है कि आत्मा अजर, अमर, अविकारी है। चूँकि आत्मा, सर्वव्यापी परमात्मा का ही एक अंश है, इसलिए यह सत्वगुणी है। यही कारण है कि सूर्य को सात्विक गुणों वाला ग्रह माना जाता है। इसके साथ ही सूर्य, शारीरिक स्वास्थ्य तथा प्रतिरोधक क्षमता का भी कारक होता है। सूर्य अनुशासन का भी कारक है इसलिए इसे क्रूर ग्रह जाता है लेकिन यह पापी ग्रह नहीं है। तभी तो सूर्यदेव को पिता का भी कारक माना जाता है क्योंकि पिता ही हमें अनुशासन सिखाते हैं। सूर्य के पास प्रकाश भी है तथा ऊष्मा भी है इसलिए जब कोई ग्रह सूर्य के अत्यधिक करीब आ जाता है तो सूर्य के तेज प्रकाश व जला देने वाली ऊष्मा के कारण अस्तित्व विहीन सा हो जाता है। लेकिन इसका कदापि यह अर्थ नहीं है कि ग्रह भचक्र की परिसीमा से बाहर ही चला गया। वह तो भचक्र में अपनी स्थिति मे ही होता है, बस सूर्य के तेज के आगे अदृश्य सा हो जाता है। सूर्य ग्रहों का राजा है। इसलिए यह भी कहा जा सकता है कि जब भी कोई ग्रह सूर्य के करीब आ जाता है तो वह पूरी तरह उसके अधीन हो जाता है।

ज्योतिष शास्त्र कर्मफल के सिद्धांत पर आधारित है। जातक की जन्म पत्रिका में, उसके पूर्व जन्मों के कर्मों के आधार पर कुछ ग्रह अस्त हो जाते हैं। संभव है कि पूर्व जन्मों में जातक किसी ग्रह के कार्यकत्वों के संबंध में अहंकार रखता आया हो और उस अहंकार की समाप्ति हेतु ही, जातक को सीख देने के लिए, वह ग्रह इस जन्म में अस्त हो गया हो। सूर्य सात्विक गुणों वाला ग्रह है। अतः यदि कोई ग्रह सूर्य से अस्त हो जाता है, तो जातक को उस ग्रह से संबंधित कार्यकत्वों के संबंध में अपना अहंकार छोड़ देना चाहिए। साथ ही शार्टकट के रास्तों को छोड़कर, अनुशासन व सात्विक गुणों को अपनाकर पूरी मेहनत करना चाहिए। यदि जातक इन बातों को ध्यान में रखता है तो अस्त का ग्रह भी अच्छे परिणाम देने लग जाता है क्योंकि ऐसी स्थिति में सूर्य स्वयं उस अस्त ग्रह के परिणामों को देने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लेता है। यही कारण है कि कई बार पत्रिकाओं में अस्त के ग्रह भी चमत्कारी परिणाम देते हुए देखे जा सकते हैं। अर्थात् ऐसी स्थिति में जो भी ग्रह सूर्य के प्रभाव क्षेत्र में आ जाते हैं, अर्थात्  सूर्य से अस्त हो जाते हैं, उन सब का प्रभाव सूर्य ही देता है। कई विद्वान् ज्योतिषी के अनुसार जब कोई ग्रह 7 डिग्री के भीतर सूर्य से अस्त हो जाता है तो वह सूर्य के हृदय में समाहित माना जा सकता है। इन स्थितियों में अस्त का ग्रह सूर्य की रश्मियों को अवशोषित करके अत्यधिक प्रभावशाली बन जाता है तथा अपनी महादशा व अंतर्दशा में बहुत अच्छे परिणाम देते हुए देखा जा सकता है, क्योंकि सूर्य अस्त ग्रहों के परिणाम के देने में उसकी सहायता करने लगता है। सूर्य सर्वाधिक प्रकाशवान ग्रह है, यही कारण है कि जब वह अस्त ग्रहों की सहायता करने लगता है तो अस्त ग्रह के भी अच्छे परिणाम प्राप्त होने की संभावनाएँ भी बढ़ जाती हैं।

यदि चंद्रमा अस्त हो तो वह अमावस्या कहलाता है। ऐसी स्थिति में हो सकता है कि जातक ने पूर्व जन्मों में भावनात्मक रूप से अहंकार किया हो अथवा किसी को भावनात्मक चोट पहुंचाई हो और इसीलिए इस जन्म में जातक का जन्म अमावस्या में हुआ हो। इस स्थिति में जातक अक्सर अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाता है, जबकि वह मन ही मन ऐसा करना चाहता है लेकिन अहंकार वश नहीं करता। यदि जातक अपनी इच्छा शक्ति का उपयोग करके, अपने मन को सद्गुणों से अनुशासित करते हुए, अपने हृदय में विनम्रता को स्थान देकर, अहंकार से दूर चला जाए तो चंद्र और सूर्य का मिलन जातक के मन और आत्मा को एकीकृत कर देता है और तब वह भावनात्मक रूप से आनंद की अनुभूति भी कर पाता है। अन्य शब्दों में यह कहा जा सकता है कि ऐसी स्थिति में जातक का मन, आत्मा की दिव्य प्रकाश से आलोकित हो जाता है और अत्यधिक सुखद परिणाम की प्राप्ति संभव हो जाती है।

यदि पत्रिका में मंगल अस्त हो तो ऐसी स्थिति में संभव है कि जातक ने अपने पूर्व जन्मों में अपने साहस अथवा शक्ति अथवा भूमि इत्यादि के लिए शार्टकट का मार्ग अपनाया हो अथवा इनका अहंकार किया हो, इसीलिए इस जन्म में मंगल अस्त हो गया हो। ऐसी स्थिति में जातक के पास साहस और शक्ति तो होती है लेकिन उजागर नहीं हो पाती अर्थात् छुपी हुई होती है तथा जातक के हृदय में साहस व शक्ति को लेकर प्रबल महत्वाकांक्षाएं होती हैं। ऐसी स्थिति में यदि जातक अपने अहंकार का त्याग करके, सात्विक राह पर चलकर अपने साहस और शक्ति का उपयोग सही दिशा में करे तो सूर्य उसका सदैव साथ देता है तथा उसकी महत्वाकांक्षाएँ अवश्य ही पूर्ण होती हैं।

बुध, सूर्य से अधिकतम 28 डिग्री के अंतर पर ही हो सकता है, इसलिए पत्रिकाओं में बुध व सूर्य की युति होना स्वाभाविक सी बात है। इसे बुध-आदित्य योग कहा जाता है। इस स्थिति में यदि बुध, सूर्य से अस्त होता है तो बुध-आदित्य योग अत्यधिक प्रभावशाली माना जाता है। सूर्य और बुध के अंशों में जितना कम अंतर होता है, बुध आदित्य योग उतने ही अच्छे परिणाम देता है। तभी तो कहते हैं कि बुध को अस्त का दोष नहीं लगता। ऐसे व्यक्ति अक्सर आत्मविश्वासी तथा विलक्षण बुद्धि के स्वामी देखे गए हैं। लेकिन ऐसी स्थिति में जातक को सदैव एक बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि उसे अपनी बुद्धि, अपनी शिक्षा अथवा वाणी का अहंकार न हो। यदि जातक सात्विक गुणों को अपनाकर अपनी बुद्धि तथा वाणी का उपयोग सही दिशा में करेगा तो सूर्य सदैव उसका साथ देगा।

इसी प्रकार यदि गुरु अस्त हो जाए तो जातक के मन में ज्ञान प्राप्ति को लेकर प्रबल इच्छाएँ होती हैं तथा वह ज्ञान प्राप्ति के लिए अत्यधिक संवेदनशील हो जाता है। वह यह मानता है कि ज्ञान ही उसकी पहचान है। हो सकता है की पूर्व जन्मों में जातक ने ज्ञान प्राप्ति की दिशा में कोई शॉर्टकट अपनाया हो अथवा अपने ज्ञान का अहंकार किया हो। अतः इस जन्म में जातक को ज्ञान प्राप्ति की दिशा में अपने अहंकार को त्याग कर, विनम्रतापूर्वक सात्विक गुणों को अपनाकर परिश्रम के साथ उचित राह पर चलना चाहिए, तभी सूर्य उसका साथ देगा और जातक ज्ञान प्राप्ति की अपनी महत्वाकांक्षाओं को अवश्य पूरा कर पाएगा।

पति-पत्नी तथा प्रेमी-प्रेमिका के आपसी संबंधों को शुक्र से देखा जाता है। यदि पत्रिका में शुक्र अस्त हो जाए तो जातक संबंधों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हो जाता है, क्योंकि वह उन संबंधों में अपनी पहचान तलाश करता है। आपसी संबंधों को लेकर जातक की महत्वाकांक्षाएँ भी काफी बड़ी होती हैं। इसके अतिरिक्त जातक अपने प्रेम संबंधों को स्वाभिमान की भावना से भी तोलता है क्योंकि सूर्य पहचान और स्वाभिमान का प्रतीक है। तभी शुरू होती हैं आपसी अहंकार की लड़ाई, क्योंकि जहाँ अभिमान हो वहाँ प्रेम नहीं ठहरता । प्रेम तो स्व को भूलने का नाम है। हो सकता है पूर्व जन्मों में जातक प्रेम संबंधों में अहंकार को महत्व देता आया हो अथवा उसने प्रेम संबंधों में ईमानदारी न बरती हो, तभी इस जन्म में उसकी जन्म पत्रिका में शुक्र अस्त हो गया हो। इस स्थिति में यदि जातक प्रेम संबंधों में अहंकार को भुलाकर नैतिक व सात्विक गुणों का समावेश करे तो उसके संबंध कभी नहीं बिखरेंगे और यही अस्त शुक्र की सीख होगी।

यदि शनि अस्त हो तो जातक अपने करियर को लेकर अत्यधिक संवेदनशील होता है।जब शनि, सूर्य के अत्यधिक करीब होता है तो जातक यह महसूस करता है कि करियर से ही उसकी पहचान है साथ ही वह अपने करियर में काफी ऊंचाइयों पर जाने की इच्छा भी रखता है। सूर्य के साथ होने के कारण ऐसी स्थिति में जातक अपने करियर के विषय में कभी-कभी अत्यधिक अहंकारी भी हो जाता है। संभव है कि जातक पूर्व जन्मों में भी करियर को लेकर अहंकार की भावना रखता आया हो या उसने कोई शॉर्टकट अपनाया हो और इसीलिए इस जन्म में शनि अस्त हो गया हो। ऐसी स्थिति में यदि जातक अपने अहंकार का त्याग कर, सात्विक और नैतिक गुणों को अपनाकर कड़ी मेहनत की राह पर चले तो सूर्य भी उसका साथ देगा और तभी वह सफलता की ऊंचाइयों को छूने में सक्षम होगा और यही अस्त शनि की सीख भी होगी।

उपरोक्त विवेचना अस्त के ग्रहों की एक सामान्य विवेचना है। अस्त के ग्रहों की संपूर्ण विवेचना के लिए यह देखना अत्यधिक आवश्यक है कि सूर्य किस भाव का स्वामी है, अस्त का ग्रह किन भावों का स्वामी है तथा ग्रह किस भाव में अस्त हुआ है। यदि पत्रिका में सूर्य त्रिषडाय अथवा दुःख स्थान का स्वामी हो तब अस्त के ग्रह अच्छे परिणाम नहीं दे पाते हैं। अतः अस्त के ग्रह की संपूर्ण विवेचना के लिए पूरी पत्रिका की बारीकी से जांच किया जाना आवश्यक है।

अस्त ग्रह सदैव बुरे परिणाम नहीं देते। पत्रिका में अस्त के ग्रहों को पहचान कर उनसे संबंधित ज़रा सी सावधानियाँ बरती जाएँ तो वे भी अच्छे परिणाम देते हैं। अनेक पत्रिकाओं में अस्त ग्रह होने के बावजूद भी जातक सफलता की ऊँचाइयों को छूने में सक्षम होते हैं। जातक अपनी इच्छाशक्ति का उपयोग करके अस्त ग्रहों से सुखद परिणाम प्राप्त कर सकते हैं और यही तो ज्योतिष शास्त्र का सबसे बड़ा लाभ है।



- डॉ. सुकृति घोष
प्राध्यापक, भौतिक शास्त्र ,शा. के. आर. जी. कॉलेज
ग्वालियर, मध्यप्रदेश

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