व्यक्तित्व विकास की दिशा का निर्धारण

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यदि लग्न पत्रिका तथा नवांश पत्रिका में लग्न एक ही हो तो उसे लग्न वर्गोत्तम कहा जाता है ऐसी स्थिति में जातक का शरीर और आत्मा एक दूसरे के साथ एकीकृत हो

व्यक्तित्व विकास की दिशा का निर्धारण 


निःसंदेह लग्न पत्रिका हमारे जीवन की जानकारियों को अपने अंदर समेटे होती है। लग्न पत्रिका ज्योतिष शास्त्र का आधारभूत चार्ट है। कुंडली के विभिन्न भागों का सूक्ष्मता से अध्ययन करने के लिए विभिन्न वर्ग चार्ट बनाए जाते हैं। नवांश भी उनमें से एक है।  नवांश कुंडली, जन्म कुंडली के बाद देखा जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण चार्ट है। यदि जन्म कुंडली को जातक का शरीर मान लें तो नवांश या नवमांश चार्ट लग्न कुंडली की आत्मा कहलाता है। यदि लग्न कुंडली में कोई ग्रह जातक को शुभ फल देने के लिए तत्पर दिखाई दे रहा हो तथा नवांश कुंडली में भी वह ग्रह शुभ स्थिति में हो तो उस ग्रह की शुभता की पुष्टि हो जाती है। लेकिन यदि लग्न पत्रिका में ग्रहों की कोई विशेष स्थिति अथवा कोई योग किसी शुभ फल की ओर इंगित कर रहा हो, लेकिन नवांश कुंडली में वे ग्रह अशुभ स्थिति में चले गए हों तो निश्चित रूप से जातक को वह फल इस जीवन में प्राप्त नहीं होगा। उदाहरण के लिए यदि किसी जातक की लग्न कुंडली में कोई राजयोग बन रहा हो लेकिन राजयोग बनाने वाले ग्रहों की स्थिति नवांश कुंडली में कमज़ोर हो गई हो, तो वह राजयोग जातक के जीवन में फलित नहीं होगा, अर्थात् वर्तमान जीवन में जातक को उस राजयोग का फल प्राप्त नहीं होगा। इसका कारण यह है कि शरीर से तो जातक उस राजयोग के शुभ फलों को प्राप्त करना चाहेगा, लेकिन उसकी आत्मा इस दिशा में कोई प्रयास नहीं करेगी, जिसके फल स्वरुप जातक को सफलता प्राप्त नहीं होगी। 

इसके विपरीत यदि कोई ग्रह लग्न पत्रिका में अशुभ स्थिति में है परंतु नवांश में उसकी स्थिति शुभ हो जाती है, तो हो सकता है कि वह ग्रह प्रारंभिक जीवन में जातक के लिए अशुभ हो, परंतु उम्र बढ़ाने के बाद अर्थात् लगभग पैंतीस-छत्तीस वर्ष के उपरांत वह ग्रह जातक को शुभ फल देने में समर्थ हो जाता है। उदाहरण के लिए यदि किसी जातक की D1 या लग्न पत्रिका में लग्नेश नीच का हो लेकिन नवांश पत्रिका अर्थात् D9 में वह उच्च का होकर स्थित हो, तो ऐसी स्थिति में संभव है की प्रारंभ में जातक का जन्म एक छोटे परिवार में हुआ हो, लेकिन धीरे-धीरे समय के साथ जातक के जीवन का उन्नयन अवश्य होता है और जातक सफलता की ऊंचाइयों को छूने में सक्षम हो जाता है। अन्य शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि जातक की आत्मा जातक का उन्नयन करने में सदा प्रयास करेगी। यदि कोई शुभ योग जातक की लग्न पत्रिका के साथ-साथ नवांश पत्रिका में भी दिखाई देती है तो वह शुभ फल जातक को निश्चित ही प्राप्त होते हैं। अतः जन्म कुंडली के साथ-साथ नवांश कुंडली को देखा जाना बहुत आवश्यक है क्योंकि नवांश कुंडली लग्न पत्रिका का अंदरुनी सामर्थ्य है।

जन्मपत्रिका का नवम भाव भाग्य भाव तथा धर्म भाव कहलाता है और नवांश कुंडली इसी नवम भाव का विस्तार होता है। जिसको हम D9 चार्ट कहते हैं। D9 चार्ट हमारे भाग्य तथा धर्म की विस्तृत विवेचना करता है। ब्रह्मा जी इस सृष्टि के रचयिता है तभी तो नवांश को देववाणी अथवा ब्रह्मा की वाणी भी कहा जाता है।

व्यक्तित्व विकास की दिशा का निर्धारण
मानव जीवन की परिस्थितियाँ निरंतर परिवर्तित होती रहती हैं। परिस्थितियों के अनुसार ढलते हुए, जैसे-जैसे जातक की उम्र बढ़ती है, उसके सोचने समझने का ढंग तथा उसके स्वभाव में भी बदलाव आता रहता है। यही कारण है कि अक्सर मनुष्य का स्वभाव और व्यक्तित्व प्रारंभिक जीवन में कुछ होता है तथा उम्र बढ़ने के बाद कुछ और हो जाता है। नवांश कुंडली के लग्न को देखकर यह जाना जा सकता है कि प्रारंभिक जीवन में जातक का व्यक्तित्व तथा स्वभाव प्रकार का होगा तथा उम्र बढ़ने के बाद उसका व्यक्तित्व तथा स्वभाव किस प्रकार परिवर्तित हो जाएगा। जन्म कुंडली का लग्न जातक के प्रारंभिक जीवन के (अर्थात् जन्म से लगभग पैंतीस-छत्तीस वर्ष तक) स्वभाव तथा व्यक्तित्व को दर्शाता है परंतु नवांश कुंडली का लग्न जातक की उम्र बढ़ने पर उसके स्वभाव तथा व्यक्तित्व की विशेषताओं को उजागर करने में सक्षम होती है। उदाहरण के लिए यदि जातक के लग्न में मेष राशि हो तो उसका लग्नेश मंगल होगा ऐसी स्थिति में जातक के स्वभाव तथा व्यक्तित्व में मेष राशि तथा मंगल के गुणों का समावेश होगा। परंतु यदि नवांश के लग्न में वृषभ राशि आ जाए तो उम्र बढ़ने के बाद जातक के स्वभाव तथा व्यक्तित्व में वृषभ राशि तथा शुक्र के गुण अधिक दिखा देने लगेंगे।

लग्न की राशि तथा नवांश में उदित होने वाली राशि की तुलना करके यह जाना जा सकता है कि प्रारंभिक जीवन में जातक का व्यक्तित्व कैसा था तथा उम्र बढ़ने के बाद जातक के व्यक्तित्व में किस प्रकार का परिवर्तन आ जाएगा। यदि किसी जातक के नवांश में मेष लग्न उदित हो रहा तो ऐसी स्थिति में जातक अपने प्रारंभिक जीवन में कैसा भी हो, उम्र बढ़ने के बाद  वह व्यक्ति जुझारू, पराक्रमी, आक्रामक तथा पहल करने वाला व्यक्ति बन जाएगा। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि परिस्थितियाँ या भाग्य के वशीभूत, जातक का स्वभाव और व्यक्तित्व स्वतः ही इस दिशा में परिवर्तित हो जाएगा।

यदि नवांश पत्रिका के लग्न में वृषभ राशि आ जाती है, तो समय गुजरने पर अर्थात् उम्र बढ़ने के बाद जातक के स्वभाव में वृषभ राशि के गुण परिलक्षित होने लगेंगे, अर्थात् जातक अपनी आर्थिक स्थिति तथा कुटुंब के लिए अधिक संवेदनशील हो जाएगा। वह थोड़ा आलसी लेकिन मेहनत से कार्य करने वाला, एकाग्रचित्त व्यक्ति बन जाएगा इसके अलावा वह अपनी वाणी को सुरुचिपूर्ण बनाने की दिशा में भी प्रयास करने लगेगा।

यदि नवांश पत्रिका के लग्न में मिथुन राशि हो तो उम्र बढ़ने पर जातक समाज से जुड़कर कार्य करने वाला, नेटवर्किंग, मीडिया और बातचीत (कम्युनिकेशन) में रुचि रखने वाला व्यक्ति बन जाएगा। इसके अलावा वह छोटी यात्राओं पर जाना भी पसंद करने लगेगा। हो सकता है कि प्रारंभिक जीवन में जातक का स्वभाव इसके बिलकुल उलट हो लेकिन समय के साथ जातक के स्वभाव में इस तरह के परिवर्तन हो सकते हैं।

यदि नवांश की पत्रिका में कर्क राशि लग्न में हो, तब उम्र बढ़ने के साथ जातक का स्वभाव भावुक हो जाएगा तथा वह अपनी माता से अधिक जुड़ाव महसूस करने लगेगा या माता से अधिक प्रभावित होने लगेगा। इसके अलावा उसे घर की सुख शांति अधिक महत्वपूर्ण लगने लगेगी। उसे सबकी देखभाल करना भी अच्छा लगने लगेगा। उसका झुकाव आध्यात्म की ओर भी हो सकता है, क्योंकि कर्क मोक्ष राशि है और उसका स्वामी चंद्रमा है और चंद्रमा माता का कारक है। माता सबकी सुख शांति और देखभाल में ही खुशी महसूस करती है इसलिए नवांश में कर्क लग्न होने पर उम्र बढ़ने के साथ, जातक के स्वभाव तथा व्यक्तित्व में इस प्रकार की विशेषताएं परिलक्षित होना स्वाभाविक है।

यदि नवांश के लग्न में सिंह राशि का उदय हो रहा हो तो जीवन के दूसरे चरण में जातक का झुकाव अधिकार प्राप्ति तथा शक्ति प्रदर्शन की ओर होने लगता है। जातक लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र भी बनने लगता है। जातक को अपनी तारीफ सुनना बेहद पसंद होने लगता है तथा उसके स्वभाव में अनुशासन प्रियता और कठोरता भी आने लगती है, भले ही जीवन के प्रथम चरण में उसका स्वभाव कितना भी उलट क्यों न हो। काल पुरुष की कुंडली में पांचवा भाव पूर्व अर्जित पुण्यों का भी भाव माना जाता है, इसलिए यदि नवांश में सिंह राशि उदित होती है तो यह माना जा सकता है कि जातक के जीवन के दूसरे चरण में जातक के पूर्व पुण्यों के फल जाग्रत् हो जाते हैं, अर्थात् उसके जीवन में अच्छे परिणाम प्राप्त होने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।

यदि नवांश लग्न में कन्या राशि उदित हो तो उम्र बढ़ने के साथ-साथ हो सकता है कि जातक का स्वभाव अधिक आलोचनात्मक हो जाए और वह दूसरों में कमियाँ ढूँढने लगे। यह भी संभव है कि जीवन के दूसरे चरण में जातक अत्यधिक सेवाभावी बन जाए और सामाजिक और पारिवारिक कार्यों में अपनी सेवा प्रदान करने के लिए तत्पर रहने लगे। कन्या लग्न, काल पुरुष की पत्रिका में छठवें भाव में आती है, इसलिए संभव है कि उम्र बढ़ने के साथ जातक का सामना रोगों से होने लगे।

यदि नवांश लग्न में तुला राशि उदित हो रही हो तो उम्र बढ़ाने के साथ-साथ जातक का व्यक्तित्व बेहद संतुलित हो जाता है भले ही प्रथम चरण में जातक का व्यक्तित्व कैसा भी रहा हो। जातक अपनी वाणी को संतुलित रखना भी सीखने लगता है। हो सकता है कि जातक अपने व्यापार को बढ़ाने की दिशा में कार्यरत होने लगे। समय के साथ वह कला प्रेमी भी बन जाता है।

यदि नवांश में वृश्चिक राशि लग्न में उदय हो रही हो तो उम्र की दूसरे चरण में जातक एकांत प्रिय थोड़ा कम बोलने वाला तथा बातों को गुप्त रखने वाला व्यक्ति बन सकता है। यह भी संभव है की जातक का झुकाव ज्योतिष, आध्यात्म, साधना, अथवा गुप्त विधाओं की तरफ होने लगे।

यदि नवांश में धनु लग्न का उदय हो रहा हो तो जातक उम्र बढ़ाने के साथ उसके व्यक्तित्व में भाग्यवादिता, आध्यात्मिकता या धार्मिकता का समावेश हो सकता है। जातक तीर्थयात्राओं में रुचि लेने लगता है।

यदि नवांश में मकर राशि उदित हो रही हो तो समय के साथ जातक मेहनती, कर्मठ, धैर्यवान व्यक्ति बन सकता है। वह कर्मों के द्वारा अपनी पहचान बनाने का प्रयास करने लगता है।

यदि नवांश में कुंभ राशि उदित हो रही हो तो उम्र बढ़ने के साथ जातक क्रांतिकारी तथा तार्किक विचारों वाला सामाजिक कार्यों को करने वाला तथा प्रबल इच्छा शक्ति रखने वाला व्यक्ति बन सकता है।

यदि नवांश के लग्न में मीन राशि उदित हो रही हो तो जातक चिंतामुक्त होकर जीवन जीने वाला, एक मस्तमौला व्यक्ति बन सकता है। वह देश-विदेश घूमने में रुचि लेने लगता है। उसे मंदिरों तथा तीर्थ स्थानों में जाने में सुख की प्राप्ति होने लगती है। जातक स्वयं को ईश्वर के आगे समर्पित करके आध्यात्मिक विचारधारा रखकर जीवन का आनंद लेने वाला व्यक्ति बन जाता है।

यदि लग्न पत्रिका तथा नवांश पत्रिका में लग्न  एक ही हो तो उसे लग्न वर्गोत्तम कहा जाता है ऐसी स्थिति में जातक का शरीर और आत्मा एक दूसरे के साथ एकीकृत होते हैं अर्थात् दोनों में कोई मतभेद नहीं होता। इसलिए यह स्थिति अच्छी मानी जाती है क्योंकि ऐसा जातक सफल और दीर्घायु होता है।

इस प्रकार नवांश पत्रिका की लग्न को देखकर जातक के जीवन के दूसरे चरण में, जातक के व्यक्तित्व में होने वाले परिवर्तनों को देखा जा सकता है।



- डॉ. सुकृति घोष
प्राध्यापक, भौतिक शास्त्र
शा. के. आर. जी. कॉलेज
ग्वालियर, मध्यप्रदेश

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