हमारी सामाजिक रूढ़ियां विषय पर हिंदी निबंध

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हमारी सामाजिक रूढ़ियां विषय पर हिंदी निबंध समाज एक जटिल संरचना है जिसमें विभिन्न प्रकार के लोग रहते हैं। इन लोगों के बीच रिश्ते, मान्यताएं और व्यवहार

हमारी सामाजिक रूढ़ियां विषय पर हिंदी निबंध


माज एक जटिल संरचना है जिसमें विभिन्न प्रकार के लोग रहते हैं। इन लोगों के बीच रिश्ते, मान्यताएं और व्यवहार समय के साथ विकसित होते हैं। इन विकासक्रम में कुछ ऐसी मान्यताएं और व्यवहार भी पैदा होते हैं जिन्हें हम सामाजिक रूढ़ियां कहते हैं। ये रूढ़ियां किसी समाज की पहचान होती हैं, लेकिन कई बार ये रूढ़ियां ही समाज के विकास में बाधक बन जाती हैं।

भारतीय समाज में अनेक ऐसी सामाजिक रूढ़ियाँ हैं । जिनका अन्धानुकरण करता हुआ मनुष्य पीढ़ी-दर-पीढ़ी उन पर विश्वास करता जाता है। इनका कोई मूल साहित्य नहीं फिर भी समाज में ये कुरीतियाँ गेहूँ के खेत में बथुए की तरह फैली हुई है। अशिक्षित ही नहीं अपितु शिक्षित वर्ग भी इन जादू-टोने की मानसिकता में बुरी तरह बद्ध है। सामाजिक विकास के लिए ये कुरीतियाँ बाधक हैं। समाज में प्रचलित कुछ अन्धविश्वास निम्नलिखित हैं -
  • वशीकरण - एक दूसरे को वश में करने के लिए तान्त्रिक वशीकरण की क्रिया करते हैं। लोगों का विश्वास है कि इस क्रिया द्वारा जिसे चाहे वश में किया जा सकता है। 
  • सिद्धि मन्त्र - समाज में भूत-प्रेत, रोग-शोक उतारने के अनेक मन्त्र प्रचलित है। ओझा आदि अर्द्ध रात्रि में शमशान भूमि में या पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर ऐसे मन्त्र सिद्ध करने की बात बताते हैं जिनसे जो चाहे प्राप्त कर सकते है।
  • भूत-प्रेत सिद्धि भूत - प्रेत योनियों को अपने वश में करके वांछित फल पाया जा सकता है। रातो-रात अरबपति खरबपति हुआ जा सकता है। ऐसी भ्रान्तियाँ फैलाने वाले भी जादू-टोने ही है। चौकी रखना, सात गाँठ का धागा खिलाना, मारण विधि आदि ऐसे जादू-टोने हैं जिनको सुनकर ही कमजोर व्यक्ति घबरा जाता है और इनका सहारा लेकर जीविका चलाने वालों के चंगुल में बुरी तरह से फँस जाता है।
  • शगुन - अपशगुनों की शृंखला में बिल्ली द्वारा रास्ता काटना ऐसा अपशगुन माना जाता है कि यदि आप कहीं जा रहे हैं और बिल्ली रास्ता काट गयी तो आपका कार्य नहीं बनेगा, जीवन को भी खतरा हो सकता है। बाँझ स्त्री का सामने पड़ना, विधवा का रास्ता काटना, तेली, काँणा, उल्लू का बोलना, साँप आदि का सामने आना। दाएँ-बाएँ गधा या सूअर का आना, सूखी डाल पर कौए का बैठे देखना अपशकुन माना जाता है। भरत जिस समय ननिहाल से चले तो अनेक अपशगुन हुए। 

हमारी सामाजिक रूढ़ियां विषय पर हिंदी निबंध
बाए काकपा दाएँ खर- सूअर" कहकर स्पष्ट किया है कि कौआ, गधे और सूअर आते समय भरत के रास्ते में पड़े थे जो अपशगुन बता रहे थे।शगुनों की श्रृंखला भी बहुत बड़ी है। जब राम सीता स्वयंवर में गये तब कहा- होहिं शकुन शुभ सुन्दर नाना ।इनके अन्तर्गत वाम अंग का फड़कना, पानी का भरा हुआ घड़ा लेकर किसी कन्या या सुहागिन स्त्री का मिलना, नेवले के दर्शन, दही या दूध का बर्तन सामने दिखायी देना, हरी डाली पे तोते आदि पक्षी का दिखायी देना, दवा की शीशी फैल जाना, मुर्दे का सामने पड़ना आदि शुभ-शगुन माने जाते हैं। इनका मूल कारण है अशिक्षा, अन्धानुकरण, अज्ञान, स्वार्थ भावना की प्रधानता, भूत-प्रेतादि से सम्बन्धित साहित्य का समाज में प्रचलन, धैर्य व ज्ञान का अभाव । 

ये अन्धविश्वास समाज में अनादिकाल से चले आ रहे हैं। सभ्यता के विकास के साथ-साथ इनका भी विकास ही हुआ है, कमी नहीं आयी है। किसी अपशकुन को देखकर लोग अपना कार्य छोड़ देते हैं और बाद में पश्चाताप करते हैं। ऐसी अनेक पुस्तकें समाज में प्रचलित हैं जो मनुष्य के चमत्कारी मस्तिष्क को प्रभावित कर अन्धानुकरण करने वाला बना देती है। मनुष्य में धैर्य का अभाव, शारीरिक और मानसिक कमजोरी इस प्रवृत्ति को और अधिक बढ़ा देती है। आज का शिक्षित समाज इन बातों पर कम ध्यान देता है। इन रूढ़ियों और इन कुरीतियों को दूर करने के लिए जनसाधारण में शिक्षा का प्रसार-प्रचार आवश्यक है। जीवन में धैर्य के साथ सबके कल्याण की भावना होनी चाहिए, क्योंकि स्वार्थ ही अनेकानेक अनीतिपूर्ण कार्य करवाता है। चोरी छिपे बिक रही भ्रान्ति उत्पन्न करने वाली पुस्तकों पर रोक लगा देनी चाहिए तथा ऐसे व्यक्तियों को दण्डित किया जाना चाहिए, क्योंकि रोचक एवं आकर्षक रूप से छपी इन पुस्तकों को पढ़कर कमजोर मन, मस्तिष्क वाले व्यक्ति गुमराह हो जाते हैं और अपने साथ ही अपने परिवार और समाज के लिए सिरदर्द बन जाते हैं। शगुन-अपशगुन समाज को हानि पहुँचाते हैं। किन्तु जादू-टोना समाज के विकास में कोढ़ है। इनमें फँसकर व्यक्ति शरीर एवं मन से ही नहीं अपितु धन से भी बर्बाद हो जाता है। जादू-टोना करने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध भी सख्त कदम उठाने चाहिए। यदि हम अन्धविश्वास फैलाने वाले कारणों को दूर करने का प्रयास करें तो निश्चित ही धीरे-धीरे इनका प्रभाव कम हो जायेगा।

इस प्रकार सामाजिक रूढ़ियां एक जटिल समस्या हैं। इनसे निपटने के लिए समाज के सभी वर्गों का सहयोग आवश्यक है। हमें अपनी सोच को बदलना होगा और रूढ़ियों को चुनौती देनी होगी। एक समतावादी और न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के लिए हमें रूढ़ियों को खत्म करना ही होगा।

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