आधुनिक हिंदी उपन्यास का स्वरूप और विकास

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आधुनिक हिंदी उपन्यास का स्वरूप और विकास सन् 1960 के बाद भारतीय समाज में जो मोह-भंग उत्पन्न हुआ और आपसी सम्बन्ध अर्थहीन हो गये इससे जीवन का प्राचीन गणि

आधुनिक हिंदी उपन्यास का स्वरूप और विकास

न् 1960 के बाद भारतीय समाज में जो मोह-भंग उत्पन्न हुआ और आपसी सम्बन्ध अर्थहीन हो गये इससे जीवन का प्राचीन गणित असत्य सिद्ध किया जाने लगा। इस दृष्टि से सृजनात्मक तनाव उत्पन्न हुआ। इस प्रकार के उपन्यासों में लक्ष्मीकान्त वर्मा के 'टेराकोटा' उपन्यास का नाम लिया जा सकता है। कृष्णा सोबती का उपन्यास 'सूरजमुखी अँधेरे को' तथा 'मित्रों मरजानी', उपेन्द्रनाथ 'अश्क' का उपन्यास 'शहर में घूमता आइना', भारत भूषण अग्रवाल का 'लौटती लहरों की बाँसुरी', राजेन्द्र यादव का 'अनदेखे अनजान फूल', मन्मथगुप्त का 'शहीद और शोहदे', फणीश्वरनाथ 'रेणु' के 'जुलूस' 'कितने चौराहे' 'कलंक मुक्ति', हिमांशु श्रीवास्तव का 'कथा सूर्य की नयी यात्रा', शैलेश मटियानी का 'किस्सा नर्मदा बेन गंगूबाई', रमेशचन्द शाह का 'गोबर गनेश' आदि इसी प्रकार के उपन्यास हैं।
 
डॉ. नगेन्द्र द्वारा सम्पादित 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' में डॉ. कृष्णदत्त पालीवाल ने इस समय सीमा में विरचित और प्रकाशित हिन्दी उपन्यासों के विषय में लिखा है- “हिन्दी के समकालीन उपन्यास साहित्य ने पिछले दिनों अपरिचित और अर्मूत व्यापक से बचकर भोगे हुए जीवन यथार्थ की निजी दुनियाँ के सीमित संसार को वास्तविकता और आधुनिकता के मुहावरे में सृजित किया है। इस दौर का अधिकांश लेखन व्यक्ति केन्द्रित रहा और रचनाकार व्यक्ति के माध्यम से समय और समाज की हालत को समझने लगा। इस प्रवृत्ति का सर्वाधिक मुखर विस्फोट, 'गोबर गनेश', 'किस्सा गुलाम', 'आपका बन्टी' जैसे उपन्यासों में हुआ है। व्यक्ति के माध्यम से कथाकार स्व और उसके आस-पास के परिवेश से उलझता है-उसका ध्यान राजनीतिक, आर्थिक स्थितियों पर जाता है, जिसने आज के ईमानदार व्यक्ति को भीतर से अकेला करके छील दिया है। उपन्यासों में सोचने, समझने, बहस करने वाले नर-नारियों की बौद्धिक विवेक व्यस्कता इधर काफी बढ़ी चढ़ी दृष्टिगत होती है। वे मात्र अपनी नियति को पहचानते हैं और राजनीति के तोताचश्म की उधेड़बुन में भी प्रवृत्त रहते हैं। उनकी इच्छा, आकांक्षा, विचारधारा, राजनीति, मित्रता, शत्रुता, धर्म, साहित्य आदि सभी के प्रति निश्चित राय रहती है। 'किस्सा गुलाम' का कुन्दन आरम्भ में एक विरोधी के रूप में उभरता है। देश से बाहर जाकर विदेश में आदिम जातियों का अध्ययन करता है, विदेशी लड़की से ही विवाह कर लेता है। किन्तु स्वदेश लौटने पर कुन्दन धीरे-धीरे विद्रोही की छवि खो देता है। अन्त में वह अपनी परम्पराओं, इतिहास की अनिवार्य स्थितियों, संस्कारों की भारतीय गतियों का गुलाम बन जाता है। एक बृहत्तर 'गुलाम' का कुन्दन उस युवा भारतीय मानस का प्रतीक है, जो बौद्धिक रूप से जागरूक होता हुआ भी देश, धर्म, जाति आदि के संस्कारों से मुक्त नहीं हो पाता है। संस्कारों की जड़ें हमारे आदिम अवचेतन मन में इतनी गहरी गड़ी होती हैं कि उनसे चाहकर भी मुक्त हो पाना कठिन होता है और हम गुलाम बने रह जाते हैं।"
 
डॉ. गणपति चन्द्रगुप्त ने अपने 'हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास' के दिखण्ड में हिन्दी उपन्यास की नवीनतम प्राप्ति के शीर्षक से लिखा है कि सन् 1960 के पश्चात् हिन्दी ने अनेक नवीन प्रवृत्ति का विकास किया। इस विकास को मुख्य रूप से चार भागों में विभाजित किया जा सकता है। वे भाग निम्नलिखित हैं-
  • व्यक्ति चेतना से अनुप्राणित उपन्यास। 
  • समाज चेतना से अनुप्राणित उपन्यास । 
  • राजनीतिक चेतना से अनुप्राणित उपन्यास। 
  • सांस्कृतिक चेतना से अनुप्राणित उपन्यास ।
 
इन चारों प्रकार के उपन्यासों के शैली-शिल्प अथवा रचना प्रक्रिया का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है- 

व्यक्ति चेतना से अनुप्राणित उपन्यास

आधुनिक हिंदी उपन्यास का स्वरूप और विकास
इस वर्ग में प्रमुख रूप से इस प्रकार के उपन्यास लेखकों की रचनाएँ रखी जा सकतीं हैं, जिन्होंने व्यक्ति के अंडा, दर्प, हर्ष, गर्व, वासनाओं, कुण्ठाओं, आकांक्षाओं आदि का विवरण एवं चित्रण परिवार, समाज, एवं संस्कृति के परम्परागत आयामों की उपेक्षा करते हुए किया है। उन्होंने यौन दुःखी व्यक्तियों के जीवन को अपने समक्ष रखा है। इन उपन्यासकारों का प्रयत्न यौन समस्याओं के प्रस्तुतीकरण एवं उनके निवारण तक सीमित रहा है। इस प्रकार की रचना प्रवृत्ति किसी प्रकार का शुभ और कल्याणकारी संकेत न देकर यौन विकृति का प्रचार करने वाली बन गयी है। यथार्थ एवं नवीनता के नाम पर इन उपन्यासों में नंगापन अधिक है।
 
इन उपन्यासकारों ने उन्मुक्त भोगवाद एवं उच्छृंखल यौनाचार को मार्ग में जो बाधक परम्परागत नैतिक मूल्य, सामाजिक आदर्श एवं सांस्कृतिक आदर्श बाधा उपस्थित करते हैं। इसी कारण व्यक्ति चेतना से अनुप्राणित उपन्यासकारों ने इन सभी का बहिष्कार किया। इस वर्ग के प्रमुख उपन्यासकार मोहन राकेश, निर्मल वर्मा, शरद देवड़ा, राजकमल चौधरी, महेन्द्र भल्ला श्रीप्रकाश वर्मा, प्रमोद सिन्हा, गिरिराज किशोर आदि के उपन्यास विशेष प्रसिद्ध हैं। निर्मल वर्मा ने अपने 'वो दिन' 'लाल टीन की छत' एक चिथड़ा सुख, आदि उपन्यासों में परिवार सम्बन्धी जीवन की निष्फलता तथा व्यक्ति की विवशता का वर्णन तथा कथित आधुनिक बोध के आधार पर किया है। इसी तरह शरद देवड़ा ने 'टूटती इकाइयाँ में', राजकमल चौधरी ने 'मछली मरी हुई में', महेन्द्र भल्ला ने 'एक पति के नोट्स' में तथा श्रीकान्त वर्मा ने 'दूसरी बार' में काम-सम्बन्धों तथा यौनाचार का उन्मुक्त वर्णन किया है। गिरिराज किशोर ने 'मात्राएँ' में, प्रमोद सिन्हा ने 'उनका शहर' में, मणि मधुकर ने 'सफेद मेमने' में इसी परम्परा को आगे बढ़ाया है। इस वर्ग की महिला उपन्यासकारों में कृष्ण सोबती ने 'मित्रों मर जानी' में तथा उषा प्रियंवदा ने 'रुकोगी नहीं राधिका' में विदेशी समाज की काम-विकृतियों का चित्रण किया है। इस वर्ग के उपन्यासकारों की दृष्टि काम-जीवन तक ही सीमित होकर रह गयी है।
 

समाज चेतना से अनुप्राणित उपन्यास

इस वर्ग के उपन्यासकारों ने भारत को स्वतन्त्रता प्राप्त होने के बाद की स्थितियों के अंकन से बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के अन्तिम भाग तक के जनजीवन का वर्णन किया है। श्रीलाल शुक्ल ने अपने उपन्यास 'राग दरबारी' में ग्रामीण जीवन का वर्णन करते हुए गाँव में विभिन्न वर्गों की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक परिस्थितियों के साथ ग्राम पंचायतों की दलबन्दी, गुटबन्दी तथा चुनावों में जीत के हथकण्डों, सरकारी अधिकारियों तथा राजनीतिक कार्यकर्ताओं में फैले भ्रष्टाचार पर व्यंग्य पूर्ण शैली में प्रकाश डाला है। डॉ. रामदास मिश्र ने अपने उपन्यास 'जल टूटता हुआ' तथा जगदीशचन्द ने 'धरती धन न अपना', 'कभी न छोड़े खेत', 'मुट्ठी भर कांकर' आदि में गाँव के जीवन तथा किसानों की विभिन्न स्थितियों का चित्रण किया है। छोटे कस्बों में रहने वाले निम्न मध्यमवर्गीय लोगों के जीवन की सामाजिक एवं आर्थिक स्थितियों एवं प्रवृत्तियों का सूक्ष्म चित्रण किया है। विवेकी राय के उपन्यास 'लोक ऋण' में भी बिहार और उत्तर प्रदेश के पिछड़े क्षेत्रों की ग्रामीण जनता के जीवन का अंकन किया है। इस वर्ग के कुछ उपन्यासकारों ने कलकत्ता और बम्बई जैसे विशाल नगरों के जीवन को भी अपनी रचना का आधार बनाया।
 

राजनीतिक चेतना से अनुप्राणित उपन्यास

इस वर्ग के उपन्यासों में प्रमुखता बद्री उज्जमा के दो उपन्यासों-'एक चूहे की मौत' तथा 'छठा तन्त्र' के अतिरिक्त राही मासूम रजा के उपन्यास 'कटरा की आरजू', शंकर पुणताम्बेकर के उपन्यास 'एक मन्त्री स्वर्ग लोक में', शिवसागर मिश्र के 'जनमेजय बचा' में आधुनिक शासन तन्त्र के अत्याचारों को पूर्ण रूप से साकार किया गया है। 'छठा तन्त्र' उपन्यास में भी आधुनिक नेताओं के शोषण, भ्रष्टाचार, मिथ्या आचरण आदि का व्यंग्यात्मक शैली में उद्घाटन किया गया है। राही मासूम रजा ने भी राजनीतिक भ्रष्टाचार को स्पष्ट आकार दिया है। शंकर पुणताम्बेकर और शिवसागर मिश्र ने अपने उपन्यासों में आधुनिक प्रजातन्त्र की विद्रपताओं का एवं नेताओं के पाखण्डों का व्यंग्यात्मक शैली में उद्घाटन किया है। डॉ. शशि भूषण सिंहल ने अपने उपन्यास 'जानी अनजानी राहें' में भारतीय राजनीतिक वातावरण का चित्रण करते हुए आधुनिक राजनीति की विषमताओं का उद्घाटन किया है। इनके अतिरिक्त शान्ताकुमार ने 'अपने कैदी' 'अधूरे सफर की पूरी कहानी' में अपने राजनीतिक जीवन के अनुभवों को अत्यन्त कलात्मक रूप में प्रस्तुत किया है। हृदयेश का 'सफेद घोड़ा काला सवार' प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार को उद्घाटित करता है।
 

सांस्कृतिक चेतना से अनुप्राणित उपन्यास

इस वर्ग के उपन्यासकारों में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, नरेन्द्र कोहली, एवं वीरेन्द्र कुमार जैन के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने 'अनामदास का पोथा' उपन्यास में उपनिषदों में प्राप्त संकेतों के आधार पर ऋषि रैक्व और राजकुमारी जाबाला के प्रणय का वर्णन किया है। द्विवेदी जी ने उस युग की संस्कृति तथा जीवन पद्धति पर प्रभावशाली प्रकाश डाला है। द्विवेदी जी ने अपने अन्य उपन्यासों के समान इसमें भी प्राचीन भारतीय संस्कृति को सजीव किया है। 

नरेन्द्र कोहली ने परम्परागत रामकथा को अपने चार उपन्यासों में विभक्त किया है- (1) दीक्षा, (2) अवसर, (3) संघर्ष की ओर तथा (4) युद्ध। इन उपन्यासों के माध्यम से कोहली जी ने अपने युग को एक नया सन्देश दिया है। उन्होंने रामकथा का आधुनिकीकरण किया है। वीरन्द्र कुमार जैन ने 'अनुत्तर योगी' में जैन धर्म के तीर्थकर महावीर स्वामी के चरित्र को आधुनिक भाषा बोध के माध्यम से प्रस्तुत किया है। इस उपन्यास में महावीर स्वामी के चरित्र को अत्यधिक क्रान्तिकारी,कल्याणमय एवं उदार रूप में प्रस्तुत किया है। इसमें विषय-वस्तु एवं शैली को अभिव्यंजकता प्रदान की है।

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