उसने कहा था कहानी के नायक लहना सिंह का चरित्र चित्रण

SHARE:

उसने कहा था कहानी के नायक लहना सिंह का चरित्र चित्रण लहनासिंह का चरित्र प्रत्येक दृष्टि से आदर्शपूर्ण है। उसके आदर्शपूर्ण महान् चरित्र की अवतारणा से

लहनासिंह का चरित्र चित्रण


चंद्रधर शर्मा गुलेरी की प्रसिद्ध कहानी "उसने कहा था" हिंदी साहित्य की एक ऐसी रचना है जो युद्ध के मैदान में मानवीय भावनाओं और बलिदान को बड़ी खूबसूरती से बयां करती है। यह कहानी युद्ध की भयावहता के बीच भी मानवीय रिश्तों की गहराई को उजागर करती है।

लहनासिंह का चरित्र यथार्थ की पृष्ठभूमि पर आदर्श का प्रतिनिधित्व करता है। उसके मन में वासना का तनिक भी स्थान नहीं है। वह अपनी बात का पक्का है। वह अपने मधुर प्रेम की स्मृति में सहर्ष अपना बलिदान कर देता है। उसके चरित्र का विश्लेषण निम्न शीर्षकों में किया जा सकता है-
 

वीरता

लहनासिंह का चरित्र चित्रण
लहनासिंह में महान् वीरता है। वह जर्मन सेना के आक्रमण को दस सैनिकों की टुकड़ी लेकर ही असफल बना देता है। वह अपने सैनिकों में वह जोश भर देता है कि वे अपने प्राणों का मोह भी नहीं करते। जब बजीरा यह कहता है कि तुम्हारे पास तो केवल दस सैनिक हैं, तुमको यहाँ नहीं रहना चाहिये ? तो वह कहता है कि- “दस नहीं दस लाख। एक-एक अकालिया, सिक्ख सवा लाख के बराबर होता है । चले जाओ।” उसके ये शब्द साहस और वीरता से युक्त हैं। देखिये- “ऐसी-तैसी हुकुम की ? मेरा हुकुम जमादार लहनासिंह जो इस वक्त यहाँ सबसे बड़ा अफसर है, उसका हुकुम है। मैं लपटन की खबर लेता हूँ।” करते समय उसके शरीर में अनेक घाव हो जाते हैं फिर भी वह किसी से नहीं कहता कि मेरे शरीर में चोट लगी है। वह कभी भी उन घावों की चिन्ता नहीं करता। जिस समय वह जर्मन अफसर उसकी जाँघ पर फायर करता है, उस समय वह भी चुप नहीं रह जाता है, बल्कि शीघ्र ही उसका प्रत्युत्तर देता है और उसका काम तमाम कर देता है। 

निर्भयता

लहनासिंह आपत्तियों में भी निर्भय रहता है। जिस समय जर्मन सेना के सत्तर सैनिक उस पर आक्रमण कर देते हैं, उस समय उसके पास दस सैनिक हैं, वह निर्भयता से आगे बढ़ता है और विजय प्राप्त करता है। एक उत्साही युवक होने के कारण वह भयंकर आपत्तियों में भी विचलित नहीं होता।
 

चतुरता

अपनी चतुरता के कारण ही वह सूबेदार हजारासिंह व बोधासिंह और अन्य सैनिकों के प्राण बचाता है। जर्मन अफसर सूबेदार हजारासिंह और अन्य सैनिकों को धोखा देता है। जब लहनासिंह को भी धोखा देने का प्रयत्न करता है तो स्वयं मारा जाता है। उसकी सेना मार दी जाती है। वह अफसर से कहता है “चालाक तो बड़े हो पर माम्मे को लहना इतने वर्ष लपटन के साथ रहा है। उसे चकमा देने के लिये चार आँखें चाहिये ।”
 

प्रत्युत्पन्न बुद्धि

लहनासिंह के चरित्र की यह प्रमुख विशेषता है कि वह आपत्तियों और संकटों में घिर कर शीघ्र ही निश्चय कर लेता है कि उसे क्या करना है? वह नकली अफसर की चाल समझ जाता है और अपनी प्रत्युत्पन्न बुद्धि से संकटों पर विजय प्राप्त कर लेता है।
 

वचन का पालन करने वाला

लहनासिंह अपने दिये हुए वचनों को अपने प्राण देकर भी पूरा करता है। अपने बचपन की परिचित बालिका और युवाकाल की सूबेदारनी को उसके पुत्र और पति की रक्षा का वचन दिया था। इनकी रक्षा के लिये वह अपना सहर्ष बलिदान कर देता है। वह मृत्यु-शय्या पर पड़ा हुआ सूबेदार से कहता है- “सूबेदार जी होरों को चिट्ठी लिखो तो मत्था टेकना कह देना और जब घर जाओ तो कह देना कि मुझसे जो उसने कहा था वह मैंने पूरा किया।”
 
उपर्युक्त कथन से स्पष्ट है कि लहनासिंह का चरित्र प्रत्येक दृष्टि से आदर्शपूर्ण है। उसके आदर्शपूर्ण महान् चरित्र की अवतारणा से यह कहानी हिन्दी के कहानी साहित्य में अपने उच्च विशिष्ट पद की अधिकारिणी हो गई है।

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका