उसने कहा था कहानी की समीक्षा | चंद्रधर शर्मा गुलेरी

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उसने कहा था कहानी की समीक्षा | चंद्रधर शर्मा गुलेरी


सने कहा था कहानी स्वर्गीय चन्द्रधर शर्मा द्वारा लिखित हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ कहानी है हिन्दी के कथा-क्षेत्र में वह एक महाकाव्य के समान हैं । उसने कहा था कहानी यह सिर्फ एक कहानी नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा अनुभव है जो पाठक को गहराई से प्रभावित करता है। यह कहानी युद्ध के दौरान मानवीय रिश्तों की अहमियत को दर्शाती है और हमें जीवन के मूल्यों को फिर से सोचने पर मजबूर करती है।

कहानी का कथानक

कहानी का कथानक नं. 77 राइफल्स जमादार लहनासिंह के जीवन को लेकर चला है। बचपन में लहनासिंह का परिचय एक सिक्ख बालिका से होता है, जो आगे चलकर उसके सूबेदार हजारासिंह की पत्नी बनती है। जमादार लहनासिंह जब युद्ध-क्षेत्र में लड़ने के लिये जाता है, तब वह अपने सुवेदार हजारासिंह के घर होकर जाता है। यहाँ उसकी भेंट सूबेदारनी से होती है जो लहनासिंह की वही पुरानी परिचित बालिका है। सूबेदारनी लहनासिंह से अपने पुत्र बोधासिंह और पति हजारासिंह के प्राणों की रक्षा के लिये कहती है। लहनासिंह अपने प्राण देकर इस कर्त्तव्य का पालन करता है।
 
कहानी का कथानक तीन भागों में बँटा हुआ है। कथानक का प्रारम्भिक भाग लहनासिंह के बचपन को लेकर चला है, जिसमें उसका परिचय एक सिक्ख बालिका से होता है और बाल स्नेह का सहज अंकुर उसके हृदय में फूटता है। कथानक के दूसरे भाग या मध्य भाग में लहनासिंह सूबेदारनी से भेंट होने और उसके पति और पुत्र के प्राणों की रक्षा के लिए कहने पर मन ही मन अपने कर्त्तव्य का संकल्प करता है। इसके बाद कथानक का तीसरा भाग युद्ध क्षेत्र में घटता है, जहाँ लहनासिंह अपनी चतुरता से जर्मन लैफ्टिनेन्ट को समाप्त कर देता है और सिक्ख रेजिमेन्ट को बचाता है। सूबेदारनी के पुत्र बोधासिंह और पति हजारासिंह की रक्षा करता है और इस प्रकार अपने प्राण देकर सूबेदारनी के कहे वचन का पालन करता है। कथानक में जहाँ मृत्यु-शय्या पर पड़े हुए लहनासिंह की आँखों के सामने जीवन की पुरानी स्मृतियों के चित्र आते हैं, यह कथानक की वस्तुतः चरम सीमा है और इसके बाद लहनासिंह की मृत्यु के साथ कहानी का अन्त हो जाता है।
 
उसने कहा था कहानी की समीक्षा | चंद्रधर शर्मा गुलेरी
जहाँ तक कथानक के क्रम की बात है, दूसरा भाग अन्त में आता है जिसका संकेत हमें मूर्च्छित अवस्था में पड़े लहनासिंह की स्मृतियों के रूप में मिलता है। कथानक को इस क्रम में रखने से कथासूत्र अव्यवस्थित नहीं होने पाया, अपितु उसमें बड़ी कलात्मकता आ गयी है। उसमें कुतूहल की मात्रा बढ़ गयी है, जो एक अच्छी कहानी का आवश्यक गुण है। दूसरा भाग, जो कहानी के अन्त में कहानीकार ने प्रकट किया है, यदि पहिले ही उसे प्रकट किया जाता तो फिर कहानी में कोई कुतूहलता नहीं रहती। उनका विकास कलात्मक नहीं कहा जा सकता था। कथानक की इस क्रम व्यवस्था में सचमुच कहानीकार ने अपनी अपूर्व कुशलता का परिचय दिया है।
 
अपने इस कथानक द्वारा गुलेरी जी ने 'उसने कहा था' शीर्षक के रहस्य को भी अन्त में खोला है, जिससे पाठक के मन में अन्त तक यह प्रश्न बना रहे कि किसने क्या कहा था।
 
'उसने कहा था' कहानी का यह कथानक बड़ा विविधातामय है। वह एक ओर जहाँ अमृतसर की गलियों के बीच दो बालक-बालिकाओं के सहज प्रेम को प्रकट करता है, वहीं फ्रांस और बेल्जियम की युद्ध-भूमि के दृश्यों को हमारे सामने रखता है। इसी प्रकार विषय-वस्तु की दृष्टि से कहानी का क्षेत्र बहुत फैला हुआ है। अमृतसर के दृश्यों के बाद ही कहानी एकदम फ्रांस और बेल्जियम मकी युद्ध-भूमि में पहुँच जाती है। बालक लहनासिंह सैनिक लहनासिंह बन जाता है। इस प्रकार और स्थान की दृष्टि से कहानी का कथानक बहुत विस्तृत रूप लिये हुए है। फिर भी कहानी का रूप कहीं भी उलझने नहीं पाया है। यही इस कहानी की सबसे बड़ी विशेषता है। बड़े मनोवैज्ञानिक ढंग से कहानीकार ने कहानी को हमारे सामने रखा है। कहानी का अन्त भी बड़े मार्मिक ढंग से हुआ है। कहानी को पढ़कर प्रेम और कर्त्तव्य पर प्राण न्यौछावर करने वाले लहनासिंह के प्रति हमारे हृदय की सारी करुणा उमड़ पड़ती है।
 

कहानी के पात्रों का चरित्र चित्रण

चरित्र-चित्रण की दृष्टि से यह कहानी और भी अधिक सफल बन पड़ी है। कहानी के पुरुष पात्रों में लहनासिंह, सूबेदार हजारासिंह, बजीरासिंह और बोधासिंह हैं। ये सभी सिक्ख सैनिक हैं जो फ्रांस और बेल्जियम की भूमि पर जर्मनी के विरुद्ध लड़ रहे हैं। बोधासिंह का चरित्र अधिक उभरने नहीं पाया। वझीरासिंह बड़ा मसखरा सैनिक है। वह पाधा बनकर जर्मन सैनिकों का तर्पण करता है। युद्ध के जीवन में भी मस्ती और आनन्द के गीत गाता है। सूबेदार हजारासिंह भी एक वीर साहसी सैनिक है। एक सूबेदार के सभी गुण उसमें विद्यमान हैं। वह अपने सैनिकों से प्रेमपूर्ण व्यवहार करने वाला है । 

लहनासिंह का चरित्र चित्रण

लहनासिंह का चरित्र इस कहानी का मूल केन्द्र है। वही इस कहानी का नायक है और कहानी के सारे तत्व उसी के चरित्र पर प्रकाश डालते हुए सामने आये हैं।
 
कहानीकार ने लहनासिंह के दो रूप प्रधानतः हमारे सामने रखे हैं- (1) आदर्श प्रेमी, (2) कर्त्तव्यनिष्ठ चतुर वीर सैनिक। लहनासिंह का आदर्श प्रेमी का रूप बचपन से ही हमारे सामने आता है। जब उसका परिचय अमृतसर में सिक्ख बालिका से होता है। बालिका को वह ताँगे के नीचे से बचाता है। आशा के विरुद्ध बालिका के मुँह से कुड़माई की बात सुनकर उसके हृदय में जो प्रतिक्रिया होती है, वह भी उसके प्रेम की तीव्रता का परिचायक है। आगे चलकर भी हमें उसके निःस्वार्थ प्रेमी-हृदय की विशालता का परिचय मिलता है, जब वह सूबेदारनी के पुत्र और पति की रक्षा अपने प्राण देकर करता है। स्वयं शीत में मरता है और अपनी जरसी, कम्बल बोधासिंह को उढ़ा देता है। गहरे घाव लगने पर भी स्वयं अस्पताल नहीं जाता, बल्कि दोनों पिता-पुत्र को अस्पताल भेज देता है। इस प्रकार सूबेदारनी के प्रति वह अपने हृदय के निस्वार्थ और निश्छल प्रेम का परिचय देता है।
 
आदर्श प्रेमी होने के साथ-साथ लहनासिंह एक कर्त्तव्यनिष्ठ, वीर और साहसी सैनिक है। सैनिक के रूप में वह आज्ञा का पालन भी करना जानता है और हुक्म देना भी। वह वीर है, इसीलिये खन्दकों में पड़े रहना उसे अच्छा नहीं लगता, बल्कि खुले मैदान में जर्मनी से लड़ने में अपने उत्साह को अधिक प्रकट करता है। सात जर्मनों को अकेला ही मारने की हिम्मत रखता है। युद्ध क्षेत्र के बीच भी वह बड़ी निर्भीकता और मस्ती भरे जीवन का रूप लिये हुए है। जैसे मृत्यु उसके लिये खिलवाड़ हो और युद्ध भूमि क्रीड़ा क्षेत्र। गहरे है घाव लगने की वह तनिक भी परवाह नहीं करता और अपने कार्य में बराबर जुटा रहता वीर सैनिक होने के साथ-साथ लहनासिंह बड़ा बुद्धिमान और कार्यकुशल है। अपनी बुद्धिमानी से वह जर्मन अफसर के धोखे को पहिचान जाता है और कार्यकुशलता से सिक्ख लेजिमेन्ट को जर्मन सेना के आक्रमण से बचाता है। सूबेदार हजारासिंह भी उसकी कार्य-कुशलता की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करते हैं। 

लहनासिंह को अपने परिवार से भी अत्यन्त प्रेम है। इसीलिए वह अपने भाई कीरतसिंह की गोद में मरना चाहता है। वह एक नमक हलाल सैनिक है। अंग्रेज सरकार की नौकरी करते हुए वह अंग्रेज सरकार का परम मित्र है। इसीलिये अंग्रेजों के विरुद्ध प्रचार करने वाले मौलवी साहब को वह अपने गाँव से बाहर कर देता है।
 
कहानीकार के हाथों लहनासिंह का यह चरित्र-चित्रण सचमुच बड़े मनोवैज्ञानिक ढंग से हुआ है । बालिका द्वारा कुड़माई होने की स्वीकृति देने पर बालक लहनासिंह के बाल हृदय पर जो प्रतिक्रिया होती है उसका बड़ा ही स्वाभाविक चित्रण कहानीकार ने किया है। लहनासिंह का यह चरित्र आदर्शवादी रूप लिये हुए है। प्रेम और कर्त्तव्य-पालन के उच्च आदर्शों का सन्देश ही लहनासिंह के जीवन से हमें मिलता है।
 

स्त्री पात्र 

कहानी के स्त्री- पात्रों में सूबेदारनी जो सूबेदार हजारासिंह की पत्नी है तथा लहनासिंह की पूर्व परिचित बालिका है, का चरित्र प्रमुख है। वह कहानी की नायिका है। बालिका के रूप में जब उसकी भेंट लहनासिंह से होती है तब उसका नटखट, चंचल और लज्जा से भरा रूप हमारे सामने आता है। जब वह सूबेदार हजारासिंह की पत्नी बन जाती है, तब उसका ममतामयी माँ और कर्त्तव्यपरायण पत्नी का रूप हमारे सामने आता है। अपने पति और पुत्र के प्राणों की रक्षा के लिए वह लहनासिंह से आंचल पसार कर भीख माँगती है। वह सचमुच एक आदर्श और वीर नारी है। पुरुषों की भाँति वह भी युद्ध-क्षेत्र में जाकर लड़ना चाहती है।
 

कथोपकथन

कथोपकथन की दृष्टि से भी 'उसने कहा था' कहानी बड़ी कलात्मक है। कहानी में आये कथोपकथन बड़े रोचक और स्वाभाविक हैं। वे एक ओर जहाँ पात्रों के चरित्र पर प्रकाश डालते हैं, वही कहानी की घटनाओं को आगे बढ़ाते हैं। पूर्व घटनाओं की सूचना देते हैं, वातावरण की सृष्टि करते हैं। प्रारम्भ में ही लहनासिंह और बालिका का वार्तालाप बड़े ही मार्मिक और स्वाभाविक रूप से दोनों के बाल-हृदय की भावनां को चित्रित करते हैं। युद्ध-क्षेत्र के दृश्यों को भी कहानीकार ने बड़ी सजीवता से प्रस्तुत किया है। यदि इनका वर्णन कहानीकार स्वयं करता तो वह वर्णन निश्चय ही नीरस और पाठकों के मन को डुबोने वाला हो जाता, कथोपकथनों द्वारा ही हमें सिक्ख सेना की वीरता, साहस, युद्ध-क्षेत्र में उसकी हँसी, विनोद आदि का पता लगता है। कथोपकथन पात्रानुकूल और भावानुकूल भी है। पात्रों के मुख से निकले पंजाबी भाषा के शब्दों में कथोपकथन और अधिक वास्तविक बन गये हैं।
 

देशकाल वातावरण चित्रण

देशकाल का चित्रण भी इस कहानी में बड़े उचित ढंग से किया गया है। यही कारण है कि कहानी में देश और काल के बीच घटित होने वाले चित्र कहानीकार ने हमारे सामने इस प्रकार रखे हैं कि मानो वे हमारी आँखों के सामने ही दिखाई दे रहे हों। अमृतसर के ताँगे वालों का चित्रण, फ्रांस और बेल्जियम की युद्ध-भूमि, खाई, खन्दक वहाँ की कड़ाके की सर्दी सभी कुछ का वर्णन बड़ा यथार्थ और सजीव है ।
 

भाषा शैली

गुलेरी जी हिन्दी के उत्कृष्ट गद्य लेखक हैं. और भाषा पर उनका पूर्ण अधिकार है। 'उसने कहा था' कहानी में गुलेरी जी की भाषा-शैली का बड़ा ही सुन्दर रूप देखने को मिलता है। प्रारम्भ में उन्होंने जो अमृतसर के इक्के-ताँगे वालों का वर्णन किया है, वहाँ भाषा की सजीवता, रवानगी देखते ही बनती। है । कथोपकथनों द्वारा युद्ध-क्षेत्र का वर्णन भी बड़ा प्रभावपूर्ण बन पड़ा है। बीच-बीच में भाषा का व्यंजनात्मक रूप तो और भी चमत्कृत कर देने वाला है । 

उद्देश्य 

प्रेम और कर्त्तव्यपालन से परिपूर्ण लहना सिंह के चरित्र को पाठकों के सामने रखना ही इस कहानी का मुख्य उद्देश्य है। इसी उद्देश्य को लेकर विभिन्न परिस्थितियों में लहनासिंह के हृदय की विविध दशाओं का चित्रण इस कहानी का मुख्य उद्देश्य होते हुए भी अप्रत्यक्ष रूप से इसका एक और उद्देश्य है और वह जीवन के अन्तर्गत प्रेम और कर्तव्य की स्थिति का सुन्दर विश्लेषण है। लहनासिंह के चरित्र विश्लेषण को लेकर कहानीकार ने ऐसा ही किया है। लहनासिंह का चरित्र आदर्श प्रेमी और कर्त्तव्य-निष्ठ वीर व्यक्ति की कहानी है, जिसने प्रेम पर सब कुछ न्यौछावर करते हुए भी विलक्षण रीति से अपने कर्त्तव्य का निर्वाह किया। अतः इस कहानी का वास्तविक उद्देश्य जीवन में आदर्श प्रेम और कर्तव्य के समन्वित रूप का चित्रण करना है । 

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