टेलीविजन लेखन का अर्थ महत्व और विशेषताएं

SHARE:

टेलीविजन लेखन का अर्थ महत्व और विशेषताएं टेलीविजन संचार माध्यम किसी कार्यक्रम को चित्र और ध्वनि द्वारा तुरन्त दूर-दूर तक प्रसारित करने में सक्षम है।

टेलीविजन लेखन का अर्थ महत्व और विशेषताएं


टेलीविजन संचार माध्यम किसी कार्यक्रम को चित्र और ध्वनि द्वारा तुरन्त दूर-दूर तक प्रसारित करने में सक्षम है। 'टेलीविजन' आज दूरदर्शन की संज्ञा पाकर दूरदराज तक की घटनाओं का विश्वसनीयता और प्रामाणिकता के साथ जनता को दर्शन कराता है। वह राष्ट्र की प्रगति का प्रामाणिक व्याख्याता है। टी० वी० द्वारा हम घटना-स्थल तक पहुँचते हैं और 'आँखों-पढ़ी' की जगह 'आँखों-देखी' की बात का अधिक विश्वास करते हैं। आज प्रिन्ट मीडिया की भाँति टेलीविजन का नारा 'हर घटने वाली घटना में हम साथ होते हैं' न होकर 'जहाँ कुछ भी घटता है हम आपको वहाँ ले चलते हैं।' टी० वी० का असली पत्रकार कैमरामैन है। टी० वी० बिम्बों का पुलिन्दा है और असली टी० वी० पत्रकार अर्थात् कैमरामैन बिम्बों की लिपि में लिखता है, जिनमें गत्यात्मकता का आधिक्य एवं त्वरा होती है।
 
भारत में टेलीविजन की विकास-यात्रा यदि महाभारत के युद्ध का सजीव प्रसारण सुनाने वाले संजय और धृष्टराष्ट्र के साक्षात् दृश्य श्रवण से मानी जाय तो अत्युक्ति न होगी । यों, वर्तमान काल में भारत में टी० वी० का प्रथम प्रायोगी केन्द्र 1959 भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद के हाथों उद्घाटित हुआ और 1976 से टेलीविजन 'दूरदर्शन' नाम से आकाशवाणी से अलग होकर स्वतन्त्र अस्तित्व में आया। 15 अगस्त, 1982 से भारत में रंगीन दूरदर्शन का सूत्रपात हुआ ।
 
टेलीविजन लेखन का अर्थ महत्व और विशेषताएं
दूरदर्शन में विविध कार्यक्रमों का उद्देश्य राष्ट्र में सामाजिक-आर्थिक विकास की प्रक्रिया में सहायक होना तथा आम जन तक सूचना, शिक्षा और मनोरंजन पहुँचाना है। मनोरंजन के क्षेत्र में सस्ते मनोरंजन की ओर बढ़ता टी० वी० आज समाज के सभी वर्गों के लिए ग्राह्य बन गया है। टेलीविजन पर प्रसारित किये जाने वाले कार्यक्रमों का यदि हम वर्गीकरण करें, तो हम इन्हें 2 वर्गों में रख सकते हैं 1. वे कार्यक्रम, जिनमें दृश्यों की अपेक्षा शब्दों का अधिक महत्त्व है। 2. वे कार्यक्रम, जिनका लक्ष्य मात्र संगीत और किसी भी प्रकार का मनोरंजन है।
 
प्रथम वर्ग के अन्तर्गत- समाचार, वार्त्ता, नाटक, परिचर्या, साक्षात्कार, खेल-कमेन्ट्री, कवि-सम्मेलन, मुशायरा, किसानों के लिए, वृत्तचित्र, भेंटवार्ता, यू० जी० सी० एन० सी०, ई० आर० टी० के शैक्षणिक प्रसारण तथा आँखों देखा हाल आदि ।
 
द्वितीय वर्ग के अन्तर्गत- फ़िल्मी गीत, संगीत, लोकगीत, पारम्परिक संगीत, शास्त्रीय संगीम, सुगम संगीत, फ़ीचर फिल्म एवं विविध धारावाहिक ।

टेलीविजन-विस्फोट से समस्त भारतीय जनता ही नहीं बल्कि हर देश की युवा पीढ़ी आक्रान्त है। उसके प्रत्येक आचरण में टी० वी० मैनेरिज्म की छाप है। टी० वी० का उद्देश्य शिक्षा अब पीछे रह गया है और संगीत, नृत्य, रंग-बिरंगे देशी-विदेशी दृश्यों के चटखारेदार स्वाद की जनता आदी बन चुकी है। अतः उसे सात्त्विक भोजन रास नहीं आ रहा। दूरदर्शन की विकासयात्रा में उपग्रह 'एम्पल' से 13 अगस्त, 1981 को अभूतपूर्व क्रान्ति हुई, जिससे एक स्थान पर स्थित व्यक्ति कई हज़ार किलोमीटर दूर स्थित व्यक्ति से वैसे ही बात कर सकता है, जैसे वह व्यक्ति प्रत्यक्ष ही खड़ा-बैठा हो ।
 
टी० वी० पत्रकारिता के क्षेत्र में एक नया आयाम लेकर आया है, जिसने रेडियो और प्रिंट मीडिया दोनों को ही पीछे छोड़ दिया है, क्योंकि इन दोनों की अपनी सीमाएँ हैं। चूँकि टी० वी० में घटनाओं का सीधा प्रसारण होता है और देखी हुई घटनाएँ व्यक्ति के अन्तर्मन को तो मथती ही हैं, साथ ही दर्शक को समाचार आदि सुनने के लिए विशेष परिश्रम भी नहीं करना पड़ता। रंगीन दूरदर्शन पर छाये, नेत्रों को सुखद लगने वाले मन-भावन प्राकृतिक, रोमांटिक दृश्यों की ओर दर्शक का स्वाभाविक मन शीघ्रता से आकृष्ट हो जाता है और छूट जाते हैं उसके पूर्व के अन्य संचार माध्यम। समाचारपत्र जहाँ देखकर पढ़ते जाते हैं वहीं रेडियो कान से सुनकर। किन्तु टी० वी० से जुड़ी देखने और सुनने की युगपत् क्रिया मनोमस्तिष्क पर गहराई से प्रभाव डालती है। प्रत्येक संचार माध्यम की अपनी अलग एक प्रकृति होती है और उसी प्रकृति के अनुरूप उस माध्यम के लेखन की क्षमताएँ, सीमाएँ और परिधियाँ होती हैं। दूरदर्शन के दृश्य माध्यम होने के कारण उसमें ध्वनि और चित्र अहम् भूमिका निर्वाह करते हैं। शब्द नहीं दृश्य अधिक बोलते हैं, अधिक प्रभावी होते हैं और शब्द और दृश्यों का पारस्परिक संगुफन वागर्थ की भाँति अपेक्षित होता है।
 
टी० वी० हेतु लेखन में निरत लेखक को मात्र लेखकीय गुण धर्म ही नहीं निर्वाह करना होता है, अपितु इसके अतिरिक्त उसे अपने अन्दर अतिरिक्त विशेषताओं का भी आधान आवश्यक रूप से करना पड़ता है। उसे लेखन के साथ-साथ शब्द-ध्वनि, वीडियो-टेकनीक्स, साउण्ड एवं फ़िल्म-तकनीकों में भी निपुण होना चाहिए। मानचित्र, चार्ट्स आदि जो समाचार एवं वैचारिक गोष्ठी हेतु सहायक उपकरण हैं, उनके दक्षतायुक्त प्रदर्शन के साथ ही साथ माइक्रोफ़ोन, वीडियो टेपरिकार्डिंग, फ़िल्म, आडियो टेल रिकार्डिंग एवं ध्वनि-स्रोतों, चित्र-स्रोतों की जानकारी भी आवश्यक है। चूँकि चित्रों की प्रभाविकी क्षमता शब्दों से 1 हजार गुनी अधिक होती है, अतः टी० वी० लेखक को स्टिल फ़ोटोग्राफ़ी एवं ग्राफ़-सम्बन्धी टेकनिकल ज्ञान की भी आवश्यकता होती है, जबकि समाचार-वाचक (प्रस्तोता) विभिन्न आयामों द्वारा प्रभावपूर्ण प्रस्तुति पर अधिक ध्यान देता है। उसकी शैली ही उसमें जीवन्तता के साथ ही उसकी पहचान का रंग भरती है।
 
टी० वी० के कार्यक्रमों का निर्माण उसके भाषायी स्तर और कलाकारों के चयन का निर्णय दर्शक वर्ग की कोटि विशेष पर निर्भर करता है। टी० वी० लेखक के लिए यह अनिवार्यतः अपेक्षित है कि उसे जिस वर्ग हेतु लेखन करना है उसकी रुचियों का उसे पूरा अभिज्ञान हो। यही कारण है। कि कई बार बड़े-बड़े साहित्यकार भी बड़े या छोटे पर्दे पर असफल रहे। टी० वी० कार्यक्रमों की संरचना को निम्न शीर्षकों के तहत रखते हैं-
 
1. साक्षात्कार एवं परिचर्चा 
2. टी० वी० रिपोर्ट 
4. प्रश्नोत्तरी, 
3. पत्रिका 
5. टेलीफ़िल्म, 
6. फ़ीचर, 
7. बहुरंगी कार्यक्रम, 
8. वृत्तचित्र, 
9. नाटक, 
10. वितर्क, 
11. सोच-विमर्श ।
 
टेलीविजन-लेखन में एक लेखक को अनेक जानकारियाँ हासिल करना आवश्यक होता है, तभी वह इस क्षेत्र में सफल हो पाता है। टेलीविजन में जीवन को पकड़ने और उसे अति यथार्थ के साथ पुनर्प्रस्तुत करने की क्षमता होती है। वह वाणी, ध्वनियों तथा निःशब्दता का मणिकाञ्चन प्रयोग कर सकता है। टी० वी० लेखक की स्क्रिप्ट तभी स्वीकृत होती है, जब उसमें दृश्यात्मकता के साथ-साथ लचीलापन हो। संवाद सुस्पष्ट और दृश्यानुकूल लिखे गये हों। टी० वी० दृश्यों के अनुसार ही उसे कथा का क्रम बाँटना होता है। यद्यपि अभिनय, संगीत, संपादन एवं फिल्मांकन का सम्बन्ध टी० वी० लेखक से नहीं है, तथापि उससे इन जानकारियों की अपेक्षा की जाती है, क्योंकि वह ही अपने कथा- दृश्यों की अपने मानस के काल्पनिक पटल पर समग्र प्रस्तुति का प्रथम द्रष्टा होता है । कमी लगने पर निर्देशक, कैमरामैन आदि लेखक से परामर्श कर शॉट, सीन और सीक्वेंस तथा फ़िल्मांकन में आने वाले अवरोधों को दूर कर लेते हैं।
 
जहाँ तक टेलीविजन की भाषा का प्रश्न है, तो हर माध्यम अपनी अलग भाषा में बोलता है और वह उसकी अपनी निजता का द्योतक होता है। कोई भी भाषा हो, जब वह जनसंचार माध्यम द्वारा आती है, तो अवश्यरूपेण उसे जनता की वांछा के आधार पर ही प्रयुक्त किया जाना चाहिए अर्थात् भाषा का सहज प्रयोग ही किया जाना चाहिए। भाषा को उसके उच्च स्तर की ओर ले जाना स्तुत्य कर्म है, किन्तु भाषायी छेड़छाड़ सांस्कृतिक धरोहर को नष्ट करने के समान है। दूरदर्शनी भाषा पर ध्वनि के साथ भाषा का जो असर देखा गया है, वही इस मीडिया की अप्रतिम प्रभावी शक्ति है। हिन्दी में तमाम पसन्दीदा धारावाहिकों की श्रृंखला दूरदर्शन पर प्रसारित हो चुकी है, जो भारतीय जीवन, परिवार, विरासत, सांस्कृतिक उत्कर्ष, अवमूल्यन एवं मूल्यक्षरण को लेकर प्रदर्शित किये जा चुके हैं। आम्रपाली, निर्मला, गबन, गोदान, तमस, गली आगे मुड़ती है, मृगनयनी, मिट्टी के रंग (मोहन राकेश), राग दरबारी, हम लोग, नीम का पेड़ आदि धारावाहिकों ने हिन्दी को दूरदर्शन के माध्यम से और निखारा है। अहिन्दी भाषी भी इन सीरियलों के प्रति आकृष्ट होकर हिन्दी पढ़ने और समझने हेतु जिज्ञासु पाये गये हैं।

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका