स्वच्छंदतावाद का अर्थ परिभाषा प्रमुख विशेषताएं

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स्वच्छंदतावाद का अर्थ परिभाषा प्रमुख विशेषताएं स्वच्छन्दतावाद (Romanticism) कला, साहित्य और बौद्धिक क्षेत्रों में 18वीं शताब्दी के अंत में यूरोप में

स्वच्छंदतावाद का अर्थ परिभाषा प्रमुख विशेषताएं


स्वच्छन्दतावाद (Romanticism) कला, साहित्य और बौद्धिक क्षेत्रों में 18वीं शताब्दी के अंत में यूरोप में शुरू हुआ एक क्रांतिकारी आंदोलन था। 1800 से 1850 तक यह अपने चरमोत्कर्ष पर था। इसने सामाजिक, राजनीतिक और बौद्धिक विचारों में व्यापक बदलाव लाए।

स्वच्छंदतावाद का अर्थ और परिभाषा

स्वच्छन्दतावाद अंग्रेजी भाषा के 'रोमैण्टिसिज्म' का हिन्दी रूपान्तर है। सर्वप्रथम जर्मन आलोचक 'फ्रेडरिक श्लेगल' ने इसकी परिभाषा दी। तब से लेकर आज तक इस शब्द की अनेक विद्वानों द्वारा अनेक परिभाषाएँ दी गयीं। 'पेटर' ने इसे सौन्दर्य में अद्भुतता का समावेश कहा। 'वाटसटण्डन' ने इसे अद्भुत के पुनर्जागरण की संज्ञा दी। 'गेटे' ने इसे एक बीमारी बताया। 'ऐबर क्राम्बी' ने इसे वैयक्तिकता के तत्त्व की प्रधानता बताया। प्रमुख आलोचक 'एफ. एल. ल्युकस' ने इसका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया। उसने बताया कि हम अपने आदिम संस्कारों के कारण स्वच्छन्दतावाद की ओर बढ़ते हैं। समीक्षक प्रवर शुक्लजी ने रोमैण्टिक साहित्य को आत्मानुभूति, आवेगधारा एवं कल्पना प्रधान माना है। द्विवेदी जी कल्पना और आवेग को रोमैण्टिक साहित्य का प्रधान तत्त्व मानते हैं।
 

स्वच्छंदतावाद का उद्भव और विकास

स्वच्छंदतावाद का अर्थ परिभाषा प्रमुख विशेषताएं
सामाजिक दृष्टि से स्वच्छन्दतावाद का उदय सामन्ती समाज व्यवस्था के अन्त होने तथा औद्योगीकरण के कारण पूँजीवादी व्यवस्था के उद्भव के साथ माना जा सकता है। इसके उद्भव एवं विकास में अनेक सामाजिक, राजनीतिक, दार्शनिक तथा साहित्यिक कारणों का हाथ रहा है। सन् 1789 की फ्रांसीसी क्रान्ति ने राजनीतिक दृष्टि से स्वच्छन्दतावादी आन्दोलन को प्रेरित किया। स्वतन्त्रता, समानता और भ्रातृत्व फ्रांसीसी क्रान्ति का नारा था। फ्रांस की क्रान्ति ने समस्त यूरोप में संस्कृति को एक नवीन मोड़ प्रदान किया। औद्योगिक क्षेत्र में क्रान्ति के साथ-साथ धार्मिक क्षेत्र में भी परिवर्तन हुए। इस क्रान्ति से प्रभावित होकर रचनाकारों ने साहित्य में स्थापित रूढ़ियों, पुरातन मानदण्डों और अन्धविश्वासों का परित्याग कर रचना में नवीन भावनाओं और मान्यताओं को प्रतिष्ठित किया। उस युग के महान विचारक रूसो ने सामाजिक रूढ़ियों को 'मान' के विकास में बाधक बताया। उसने प्रकृति की ओर लौट आने का नारा दिया। उसके इस नारे से तत्कालीन साहित्यकारों पर पर्याप्त रूप से प्रभाव पड़ा।
 

स्वच्छंदतावाद की विशेषताएं

स्वच्छन्दतावाद में सौन्दर्य भावना, प्रकृति-प्रेम, मानवीय दृष्टिकोण, वैयक्तिक-प्रेमाभिव्यक्ति आदि अनेक विशेषताएँ देखी जाती हैं। इसमें मुक्ति की चेतना निहित है। स्वच्छन्दतावादी रचनाकार अंकुशहीन भावजगत् में विचरण करना चाहता है। अतः इन विशेषताओं का आंकलन इस प्रकार से किया जा सकता है-
 

भाव प्रणवता

स्वच्छन्दतावादी साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में भावों और अनुभूतियों को प्रमुखता के साथ स्थापित किया है। वर्ड्सवर्थ ने कविता में भावों का सहज उच्छलन बताया है। इसी प्रकार शेली की रचनाओं में भी भावोद्गारों के प्रवाह को पूर्णरूप से देखा जा सकता है। छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद और महादेवी वर्मा की रचनाओं में भी भाव-प्रवणता के सहज दर्शन होते हैं।
 

व्यक्तिवाद और आत्मनिष्ठा

स्वच्छन्दतावादी आलोचक व्यक्तिवाद और आत्मनिष्ठा को सर्वाधिक महत्त्व देते हैं। ऐसी रचनाओं में व्यक्तित्व की गहन अनुभूति, निराशा, भावुकता आदि की अभिव्यंजना विद्यमान होती है। यही कारण है कि स्वच्छन्दतावादी कवि व्यक्तिवाद के महत्त्व को सर्वोपरि मानता है। निराला की 'अनामिका', प्रसाद जी की 'आँसू' आदि रचनाओं में व्यक्तिवाद और आत्मनिष्ठा की भावना स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है।
 

कल्पना की अधिकता

स्वच्छन्दतावाद के पोषक रचनाकारों ने रचना करने के लिए कल्पना तत्त्व की उपस्थिति को आवश्यक शर्त के रूप में स्वीकार किया है। वे कल्पना के माध्यम से विविध भावों को सम्पन्नता प्रदान करने में लगे थे। इसका परिणाम यह हुआ कि कल्पना की अधिकता के कारण इनके काव्य में दुरूहता का समावेश हो गया है। 'विलियम ब्लैक' कल्पना लोक को असीम, सत्य एवं चिरन्तन मानते थे तथा वे इस भौतिक जगत् को असीम तथा नाशवान् स्वीकारते थे। हिन्दी के छायावादी कवियों ने कल्पना को काव्य के लिए आवश्यक तत्त्व मानते हुए अपनी रचनाओं में उनका पर्याप्त समावेश किया है।
 

अतीत के प्रति अनुराग

स्वच्छन्दतावादी रचनाकार ज्ञात लोक की अपेक्षा अज्ञात लोक में अधिक विचरण करता है तथा स्पष्टता के स्थान पर अस्पष्टता में उसे सौन्दर्य दिखायी पड़ता है। वह सौन्दर्य की खोज में कल्पना के माध्यम से सुन्दर देश, अज्ञात-लोक, स्वर्णिम अतीत तथा सुमधुर भविष्य की यात्रा करने लगता है। अर्थात् यथार्थ जगत् की अपेक्षा स्वच्छन्दतावादियों के लिए मायावी जगत् अत्यन्त सुन्दर और लुभावना लगता है। वर्ड्सवर्थ, कॉलरिज, शेली, कीट्स आदि की रचनाओं में यह दृष्टि देखी जा सकती है। हिन्दी में प्रसाद की रचनाओं में भी अतीत के प्रति गहरा अनुराग दिखायी पड़ता है।
 

सौन्दर्य दृष्टि

स्वच्छन्दतावादी कवियों एवं साहित्यकारों की दृष्टि सौन्दर्यापूरित होती है। शेली सम्पूर्ण प्रकृति को सौन्दर्य से मण्डित देखते हैं। प्रसिद्ध कवि कीट्स सौन्दर्य को 'सत्य' के रूप में देखते हैं। हिन्दी में छायावाद में यह दृष्टि व्यापकता के साथ दिखायी पड़ती है। प्रसाद और पन्त की रचनाएँ इस दृष्टि से परिपूर्ण हैं।
 

प्रकृति प्रेम

इस विचारधारा के रचनाकारों ने प्रकृति के प्रति अपना गहन अनुराग व्यक्त किया है। ऐसे रचनाकार प्रकृति को एक सचेतन सत्ता के रूप में देखते हैं। उनके अनुसार प्रकृति ही विश्वात्मा है। ये लोग अपने काव्य में प्रकृति का बहु-आयामी, बहुरंगी एवं बहु-विधि चित्रण किये हैं। अंग्रेजी कवि वर्डसवर्थ तथा शेली इस दृष्टि से उल्लेखनीय हैं। हिन्दी में तो पन्त को प्रकृति का सुकुमार कवि कहा जाता है। इनके अतिरिक्त प्रसाद, निराला तथा महादेवी वर्मा आदि लगभग समस्त छायावादी कवियों ने अपनी रचनाओं में प्रकृति का बहुवर्णी रेखांकन किया है।
 

निराशावादी प्रवृत्ति

स्वच्छन्दतावादी कवि कभी अपने जीवन की परिस्थितियों को लेकर तो कभी युगीन परिस्थितियों से ऊबकर रोमांस का अवलम्बन लेता है। फलतः उसके काव्य में निराशा की अभिव्यक्ति दिखायी पड़ती है। अंग्रेजी कवि शेली और कीट्स की रचनाओं में यह प्रवृत्ति प्रमुखता के साथ प्राप्त होती है। हिन्दी के छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध कविता "ले चल मुझे भुलावा देकर, मेरे नाविक धीरे-धीरे" में घोर निराशावाद की अभिव्यक्ति दर्शनीय है।
 

मानवतावादी दृष्टिकोण और राष्ट्र प्रेम

ऐसे रचनाकारों को देश के निवासियों का मानवतावाद सम्पूर्ण विश्व को एक राष्ट्र के रूप में देखना है। अर्थात् वह'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना से प्रेरित होता है। वर्ड्सवर्थ और प्रसाद की रचनाओं में मानवतावादी दृष्टिकोण छिपा हुआ है। उनमें राष्ट्र प्रेम का दर्शन सहजतापूर्वक किया जा सकता है।
 

नवीन अभिव्यंजना

स्वच्छन्दतावादियों ने प्राचीन शास्त्रवादी समस्त सिद्धान्तों को अस्वीकार कर दिया, क्योंकि स्वच्छन्दतावाद का जन्म ही प्राचीन साहित्यिक परम्पराओं, रीतिबद्धताओं और शास्त्रीय नियमों के विरुद्ध हुआ। इन लोगों ने काव्य-विषय एवं काव्य-भाषा सम्बन्धी नवीन दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है।
 

विराट् के प्रति आकर्षण

इस विचारधारा के कवि प्रकृति और मनुष्य के विराट पहलुओं को उद्घाटित करने में लगे रहते हैं। इस विचारधारा से प्रेरित होकर रचनाओं में स्पष्ट रूप से रहस्यवाद दिखायी पड़ता है। इसमें आध्यात्मिक पक्ष का प्रकाशन प्रमुखता के साथ होता है। प्रसाद की कामायनी इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रचना है। 

उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि स्वच्छन्दतावाद भाव और भाषा के क्षेत्र में एक क्रान्ति ले करके उपस्थित हुआ। इसने परम्परागत रीतिबद्धता और शास्त्रीय सिद्धान्तों को नकारा तथा अभिव्यक्ति को नवीनता से मण्डित किया। हिन्दी का छायावादी साहित्य पूर्णरूपेण स्वच्छन्दतावादी विचारधारा से प्रेरित प्रभावित दिखायी पड़ता है।

स्वच्छन्दतावाद ने कला, साहित्य, संगीत, दर्शन और राजनीति सहित विभिन्न क्षेत्रों को गहराई से प्रभावित किया। इसने व्यक्तिगत स्वतंत्रता, रचनात्मक अभिव्यक्ति और कल्पना के महत्व पर बल दिया। स्वच्छन्दतावाद का प्रभाव आज भी महसूस किया जा सकता है, और यह कलाकारों और विचारकों को प्रेरित करना जारी रखता है।

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