हमारे दैनिक जीवन में स्वच्छता का महत्व निबंध

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हमारे दैनिक जीवन में स्वच्छता का महत्व निबंध स्वच्छता, एक ऐसा शब्द जो हमारे जीवन के हर पहलू को छूता है। व्यक्तिगत स्वच्छता से लेकर सार्वजनिक स्वच्छता

जीवन में स्वच्छता का महत्त्व


स्वच्छता, एक ऐसा शब्द जो हमारे जीवन के हर पहलू को छूता है। व्यक्तिगत स्वच्छता से लेकर सार्वजनिक स्वच्छता तक, यह हमारे स्वास्थ्य, खुशी और समग्र जीवन स्तर को प्रभावित करता है।

एक कहावत है - कुत्ता भी जब बैठता है तो पूँछ झाड़कर बैठता है। इसका अर्थ यह कि जब कुत्ता किसी स्थान पर बैठता है तब सबसे पहले उसे पूँछ से साफ कर लेता है। अर्थात् कुत्ता भी स्वच्छताप्रिय होता है। फिर मनुष्य को तो सफाई का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। वास्तव में, स्वच्छता जीवन में अत्यन्त आवश्यक है। प्रत्येक मनुष्य को चाहिए कि वह सदैव स्वच्छता से रहे। अंग्रेजी में एक कहावत है - सत्य के बाद स्वच्छता का स्थान है

स्वच्छता के प्रकार

जीवन में स्वच्छता का महत्त्व
सफाई दो प्रकार की होती है। बाह्य और आन्तरिक। बाह्य सफाई से प्रयोजन शरीर, वस्त्र, निवास आदि की स्वच्छता से है। आंतरिक स्वच्छता से तात्पर्य मन और हृदय की स्वच्छता से है। 

इन दोनों में श्रेष्ठतर आंतरिक स्वच्छता है। इसमें आचरण की शुद्धता जरूरी है। शुद्ध आचरण से मनुष्य का चेहरा तेजोमय होता है। सब लोग उसको आदर की दृष्टि से देखते हैं। उसके समक्ष प्रत्येक व्यक्ति स्वयं ही अपना मस्तक झुका लेता है। उसके प्रति लोगों में अत्यन्त श्रद्धा होती । बाह्य स्वच्छता में बालों की सफाई, नाखूनों की सफाई, कपड़ों की सफाई इत्यादि शामिल हैं। इसकी अवहेलना करके मनुष्य स्वच्छ नहीं रह सकता। इसकी उपेक्षा करने से बड़े दुष्परिणाम नजर आते हैं। मनुष्य रोगग्रस्त होकर नाना प्रकार के दुःखों से पीड़ित रहता है। वह मनुष्य क्या कभी स्वस्थ रह सकता है, जो सर्वदा स्वच्छ जलवायु से वंचित रहता है? अतः यह स्पष्ट है कि स्वस्थ रहने के लिए स्वच्छता अनिवार्य है। यह प्रायः सभी लोगों का अनुभव है कि जो मनुष्य गंदे रहते हैं, वे दुर्बल और रोगी होते हैं। जो मनुष्य स्वच्छ रहते हैं, वे हृष्ट-पुष्ट और निरोग रहते हैं।
 

स्वच्छता के लाभ

स्वास्थ्य के अतिरिक्त बाह्य सफाई से चित्त को प्रसन्नता भी मिलती है। जब कोई मनुष्य गंदे वस्त्र पहने रहता है तब उसका मन मलिन बना रहता है और उसमें आत्मविश्वास की कमी महसूस होती है, परंतु यदि वही मनुष्य स्वच्छ वस्त्र धारण कर लेता है तो उसमें एक प्रकार की स्फूर्ति और प्रसन्नता का संचरण हो जाता है। आपको यदि ऐसे स्थान पर छोड़ दिया जाए, जहाँ कूड़ा-करकट फैला हो, जहाँ मल-मूत्र पड़ा हो तो क्या आपका चित्त वहाँ प्रसन्न रहेगा? नहीं। क्यों? इसलिए कि आपको वहाँ दुख होगा, घृणा लगेगी।
 
बाह्य स्वच्छता से सौंदर्य में भी वृद्धि होती है। एक स्त्री जो फटे, मैले-कुचैले वस्त्र धारण किए हुए है, उसकी ओर कोई देखता तक नहीं। परन्तु यदि वही स्त्री स्वच्छ वस्त्र धारण कर लेती है तो सुंदर दिखाई देने लगती है। धूल-धूसरित बनने की अपेक्षा स्वच्छ बालक सुंदर तथा प्रिय लगते हैं। 

मनुष्य मात्र में स्वच्छता का विचार उत्पन्न करने के लिए शिक्षा का प्रचार करना अनिवार्य है। शिक्षा पाने से व्यक्ति स्वतः स्वच्छता की ओर प्रवृत हो जाता है। ध्यान रहे, बाह्य स्वच्छता का प्रभाव आंतरिक स्वच्छता पर भी पड़ता है। इसके अतिरिक्त आंतरिक स्वच्छता सत्संगति से मिलती है। सचमुच यह दुर्भाग्य ही है कि हममें से अधिकांश व्यक्ति स्वच्छता पर ध्यान नहीं दे पाते। स्वच्छता उत्तम स्वास्थ्य का मूल है।

स्वस्थ जीवन का आनंद

स्वच्छता हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। यह न केवल हमें स्वस्थ और खुश रहने में मदद करती है, बल्कि यह हमारे समाज और पर्यावरण को भी बेहतर बनाती है। हमें अपनी व्यक्तिगत और सार्वजनिक स्वच्छता की जिम्मेदारी लेनी चाहिए और इसे अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए।स्वच्छता एक आदत है, इसे अपनाएं और स्वस्थ जीवन का आनंद लें।

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