समाज निर्माण में विद्यार्थी वर्ग की भूमिका

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समाज निर्माण में विद्यार्थी वर्ग की भूमिका विद्यार्थी वर्ग समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इनमें देश और समाज के भविष्य को संवारने की अपार क्षमता होत

समाज निर्माण में विद्यार्थी वर्ग की भूमिका


विद्यार्थी वर्ग समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इनमें देश और समाज के भविष्य को संवारने की अपार क्षमता होती है। शिक्षा ग्रहण कर, नैतिक मूल्यों को आत्मसात कर, और रचनात्मक सोच विकसित कर विद्यार्थी समाज निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

संस्कार का अर्थ है सम् + कार अर्थात् जो सबको समान बनाएँ। संस्कार जन्मजात प्राप्त वस्तु नहीं है, वह समय और परिस्थिति के अनुकूल जीवन को सुव्यवस्थित चलाने की वस्तु है। संस्कार, माता-पिता, घर-परिवार और समाज से सीखी-समझी भावना है जो व्यक्ति में एक बार अपनी जगह बना लेने पर फिर मिटायी नहीं जा सकती है। इसी को दूसरे अर्थ में प्रवृत्ति कहा जाता है। प्रवृत्ति स्थायी और परिवर्तनशील दो प्रकार की होती है। किन्तु जो प्रवृत्ति स्थायी होती है उसे प्रवृति कहा गया है।
 

नैतिक मूल्य और चरित्र निर्माण

ऐसी प्रवृति के लोगों को संस्कारहीन कहा जाता है। हमारे समाज में ऐसे बहुत से लोग मिल जाएँगे, जिनके स्वभाव, संस्कार, प्रवृत्ति या प्रवृति का दुष्प्रभाव लोगों पर पड़े बिना नहीं रहता, जैसे चोरी करने वाले, जुआ, शराब, धोखाखोड़ी और व्यभिचार में लिप्त रहने वाले। समाज ऐसी पाठशाला है जिससे उसमें रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति परोक्ष रूप में जो शिक्षा प्राप्त करता है उससे समाज का प्रत्येक घर और परिवार प्रभावित होता है, ऐसे समाज को भ्रष्ट का कुसंस्कार वाला समाज कहा गया है।
 
भारत सर्वधर्म सम्पन्न राष्ट है, इसमें हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई सभी एक साथ रहते हैं। इनके द्वारा निर्मित समाज को न तो हिन्दू समाज कहा जा सकता है न अन्य धर्माश्रित क्योंकि सभी जातियों और धर्मों को मानने वाले लोग एक साथ ही रहते हैं। उनके रहन-सहन, वेश-भूषा, रीति- रिवाजों और त्योहारों में भी भिन्नताएँ होती हैं। इसी अर्थ में उनकी मनोवृत्तियाँ भी एक जैसी नहीं होतीं। परिणामस्वरूप सभी में भेद और समानता का होना आवश्यक है किन्तु उनमें यदि शिक्षा और सद्भावना का अभाव होगा तो अनेक दुर्वृत्तियाँ पनपने लगेंगी, आए दिन लड़ाई-झगड़ा, लूट-पाट होने लगेगा।
 

ज्ञान और शिक्षा

समाज निर्माण में विद्यार्थी वर्ग की भूमिका
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् जिस आदर्श समाज को परिकल्पना की गई उसके लिए शिक्षा की व्यवस्था और विद्यार्थियों के महत्त्व को समझा गया। इससे पूर्व सैकड़ों वर्षों के मुगल शासन तथा अंग्रेजी शासन में इसका प्रायः अभाव ही रहा जिससे देश की अधिकांश जनता निरक्षर ही रह गई। संस्कारहीन और पथभ्रष्ट समाज के सामने अन्य बहुत सी ऐसी समस्याएँ थीं जिनका उद्देश्य या तो किसी प्रकार पेट-पालना या धन संग्रह करना था। ऐसी स्थिति आज भी बनी हुई है, क्योंकि शिक्षा के जिस स्वरूप को अपनाया गया, उसमें विद्यार्थियों के दायित्वबोध की कमी रह गयी है, शिक्षा का उद्देश्य जन-जन में व्याप्त कुसंस्कारों को दूर करने के बजाय किसी भी प्रकार जीविकोपार्जन करना है। जीवन और शिक्षण पाठ में विद्यार्थी के इसी महत्त्व को समझाते हुए लेखक ने कहा है कि - "विद्यार्थी जीवन के पहले 25 वर्षो में जो शिक्षा प्राप्त करता है उसे बस्ते में लपेटकर मरने तक के लिए जीता है। अर्थात् इस शिक्षा का जीवन के लिये कोई महत्त्व नहीं होता है क्योंकि इसके बाद जब वह नून, तेल, लकड़ी जुटाने में लग जाता है तो उसके लिए जीवन हनुमान कूद की तरह हो जाता है। 

वह विद्यार्थी जो जीवन के लिए शिक्षा ग्रहण करता है वही समाज का कर्णधार होता है और वही समाज को कुसंस्कारों से मुक्ति दिला सकता है। उसके सामने दहेज की प्रथा जो समाज का ऐसा संस्कार बन गई है कि इसका दूरगामी प्रभाव समाज में नारी जाति के लिए घृणास्पद हैं। किसी भी परिवार की गाड़ी को चलाने के लिए स्त्री और पुरुष के समान सहयोग की आवश्यकता पड़ती है किन्तु ONSPE के दानव ने समाज की शांति को निगल लिया है। दहेज के रूप में मोटी रकम अदा करने वाली नारी कभी भी सेवा जैसे सीमेंट से परिवार के भव्य भवन को मजबूती प्रदान नहीं कर सकती। जब परिवार के ऐसे महत्त्वपूर्ण सम्बन्धों का यह स्वरूप है तो समाज का क्या स्वरूप हो सकता है? यहाँ तो घर और परिवार के टूटते सम्बन्धों को देखने से स्पष्ट ही पता चल जाता है। ऐसे में देश के प्रत्येक विद्यार्थी का यह कर्त्तव्य हो जाता है कि वह शिक्षा के बिकाऊ स्वरूप को त्यागकर जनहित और समाज सेवा में अर्पित करें। शिक्षित होने के कारण वह अपने को ऊँचा या अलग न समझकर बल्कि सबको साथ रखकर आगे बढ़ें।

नेतृत्व और सामाजिक परिवर्तन

विद्यार्थी समाज का एक ऐसा अटूट हिस्सा है, जिसपर पूरे समाज के विकास की सम्पूर्ण जिम्मेदारी है। वह समाज में रहने वाले सभी वर्गों के विद्यार्थियों का एक ऐसा संगठन निर्मित करे जो समाज के त्यौहारों, उत्सवों, मांगलिक कार्यों में संगठित होकर सहयोग करें। अशिक्षित पिछड़े वर्ग के लोगों को भी शिक्षित बनाने का प्रयत्न करें। सरकार और सरकारी सहायता को उस तक पहुँचाने में उसकी सहायता करें। बेरोजगारी की समस्या से जूझते अशिक्षितों को पेट चलाने के सुअवसर प्रदान करायें। किसी संगठन अथवा संस्था के अधीन छोटे-मोटे कारबार या साधन प्राप्त करने में उसकी सहायता करें।
 
विद्यार्थी जीवन वह साँचा है जिसमें नागरिक ढलते हैं। यह वह जीवन है जिसमें मानसिक तथा आत्मिक उत्थान का सूत्रपात होता है जिसमें सुधार और संस्कृति का श्रीगणेश होता है। अर्थात् विद्यार्थी समाज के कुसंस्कारों को दूर करने का एक सशक्त स्रोत है जो समाज से ही पैदा होता है, सीखता, बढ़ता है और उसके विकास की चिंता और उपाय करता है। विद्यार्थी यदि अपने पाँचों लक्षणों को समाज में भरपाई करें तो उसकी सभी कमियाँ दूर हो सकती हैं वह समाज के प्रत्येक व्यक्ति को चेष्टा, ध्यान, कर्मनिष्ठा, त्याग और शोषण के विरुद्ध जागरूक होने को प्रेरित करें।' 

विद्यार्थी वर्ग समाज का भविष्य है। शिक्षा, नैतिक मूल्यों, रचनात्मकता और सामाजिक कार्यों के माध्यम से वे समाज निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। अपनी क्षमताओं का सदुपयोग कर वे देश और समाज को प्रगति के पथ पर ले जा सकते हैं।

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