आषाढ़ का एक दिन नाटक की भाषा शैली

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आषाढ़ का एक दिन नाटक की भाषा शैली मोहन राकेश द्वारा रचित नाटक "आषाढ़ का एक दिन" अपनी भाषा शैली के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। यह नाटक भाषा के विभि

आषाढ़ का एक दिन नाटक की भाषा शैली


मोहन राकेश द्वारा रचित नाटक "आषाढ़ का एक दिन" अपनी भाषा शैली के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। यह नाटक भाषा के विभिन्न पहलुओं का कुशलतापूर्वक प्रयोग करता है, जो इसे नाटक के कथानक, पात्रों और भावनाओं को व्यक्त करने में मदद करता है।

प्रत्येक रचना की सफलता में अन्य गुणों के साथ-साथ उसकी भाषा-शैली का भी बहुत बड़ा योगदान होता है। 'आषाढ़ का एक दिन' नाटक की भाषा का अध्ययन करने पर हमें उसमें निम्नलिखित विशेषताएँ दिखाई देती हैं-
 

सरल स्वाभाविक बोलचाल की भाषा

साहित्यकार अपनी रचनाओं में ऐसी भाषा का प्रयोग करते हैं जो सामान्य पाठक आसानी से समझ सके । मोहन राकेश जी ने इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए अपने ऐतिहासिक नाटकों में संस्कृत के कठिन शब्दों की जगह सहज-सरल शब्दों का ही प्रयोग किया है। इसका उदाहरण 'आषाढ़ का एक दिन' नाटक है। इस नाटक की भाषा स्पष्ट और स्वाभाविक भी है। जैसे-मल्लिका-"माँ आज तक का जीवन किसी तरह बीता ही है। आगे का भी बीत जाएगा। आज जब उनका जीवन एक नयी दिशा ग्रहण कर रहा है, मैं उनके सामने अपने स्वार्थ की घोषणा नहीं करना चाहती। ”
 
मोहन राकेश ने उर्दू-फारसी और स्थानीय शब्दों का प्रयोग नहीं किया है, किन्तु उनकी शुद्ध हिन्दी इतनी सरल है कि पाठक आसानी से समझ जाता है। 

शुद्ध खड़ी बोली हिन्दी 

नाटककार ने 'आषाढ़ का एक दिन' में अन्य भाषा के शब्दों का प्रयोग न करके हिन्दी की खड़ी बोली के शुद्ध रूप को ही पूरे नाटक में प्रयुक्त किया है। शुद्ध हिन्दी का एक उदाहरण प्रस्तुत है- “शब्द और अर्थ राजपुरुषों की सम्पत्ति है, जानकर आश्चर्य हुआ । ' 

अलंकृत और काव्यमयी भाषा

आषाढ़ का एक दिन नाटक की भाषा शैली
'आषाढ़ का एक दिन' नाटक में आलंकारिकता सर्वत्र दिखाई देती है। उनकी भाषा कविता का सा आनन्द देती है और भावों को प्रकट करने में सहायता करती है। इसी प्रकार की भाषा का एक उदाहरण इस प्रकार है-नीलकमल की तरह कोमल और आर्द्र, वायु की तरह हल्का और स्वप्न की तरह चित्रमय ! मैं चाहती थी उसे अपने में भर लूँ और आँखें मूँद लूँ। 

प्रसंगानुकूलता एवं प्रवाहमयता

'आषाढ़ का एक दिन' में प्रसंगों के अनुकूल ही नाटककार ने भाषा का प्रयोग किया है। उसमें कहीं काव्यात्मकता है तो कहीं गंभीरता, कहीं हल्का-फुल्का हास्य है, तो कहीं व्यंग्यात्मक भाषा का प्रयोग दिखाई देता है। आम्बिका और विलोम के संवादों में तो यह गुण सभी जगह विद्यमान है । 

पात्रानुकूल भाषा

इस नाटक का प्रत्येक पात्र अपने चरित्र के अनुसार ही भाषा का प्रयोग करता है। ग्राम प्रान्त के निवासी शुद्ध खड़ी बोली का प्रयोग करते दिखाई देते हैं तो राजपुरुषों के द्वारा शुद्ध और संस्कृत के शब्दों का ही प्रयोग किया जाता है। कालिदास और मल्लिका की भाषा गम्भीर है तो अम्बिका और विलोम की भाषा में व्यंग्य हर जगह दिखाई देता है। इस प्रकार 'आषाढ़ का एक दिन' नाटक में प्रत्येक पात्र ने अपने स्तर के अनुकूल भाषा का ही प्रयोग किया है।
 

वाक्य रचना

वाक्य रचना की दृष्टि से देखा जाए तो इस ऐतिहासिक नाटक में ज़रूरत के हिसाब से छोटे और लम्बे दोनों ही प्रकार के वाक्यों का प्रयोग किया गया है। छोटे वाक्यों की अधिकता होते हुए भी इनमें गम्भीरता और नाटकीयता का गुण विद्यमान है। ऐसे वाक्यों का उदाहरण प्रस्तुत है-

निक्षेप-यह एक बहुत परिचित आकृति है, मल्लिका । 
मल्लिका-परिचित आकृति ? 
निक्षेप-मुझे विश्वास है वे स्वयं कालिदास हैं।

छोटे-छोटे वाक्यों के साथ-साथ लम्बे वाक्यों का प्रयोग भी नाटककार ने नाटक में किया है, परन्तु ये कहीं भी बोझिल और नीरस नहीं लगते हैं। 

मोहन राकेश ने 'आषाढ़ का एक दिन' में संस्कृतनिष्ठ शब्दों का प्रयोग किया है परन्तु फिर भी उनकी भाषा-शैली में सरलता बनी रही है। उनकी भाषा में संस्कृत के तत्सम और हिन्दी के तत्सम दोनों ही प्रकार के शब्द देखने को मिलते हैं जो इस प्रकार हैं-
 
हिन्दी के तत्सम शब्द-नीलकमल, आर्द्र, कोमल, घृत, दूर्वा, राजकीय, प्रभुता, वनस्पति आदि । 
संस्कृत के तत्सम शब्द-अंशुक, उपवेश गृह, आस्तरण, उत्सुक, तल्प, प्रकोष्ठ आदि ।
 

संस्कृत श्लोकों का प्रयोग

नाटककार ने उस समय के वातावरण को सजीव बनाने के लिए कुछ संस्कृत श्लोकों का प्रयोग भी नाटक में किया है। मुहावरों का प्रयोग - 'आषाढ़ का एक दिन' नाटक में मुहावरों का प्रयोग नाम मात्र के लिए किया गया है। कुछ प्रमुख मुहावरे इस प्रकार हैं-तीसरा नेत्र खुला रहना, आँखें गीली होना, तिल-तिल कर मरना, ओंठ फड़फड़ाना, नाटक, रचना आदि ।
 

अलंकारों का प्रयोग

अंलकार प्रयोग की दृष्टि से देखा जाए तो मोहन राकेश ने उन्हीं स्थानों पर अलंकारों का अधिक प्रयोग किया है जहाँ भाषा में काव्यात्मकता है। 'आषाढ़ का एक दिन' में उत्प्रेक्षा, उपमा, स्मरण, श्लेष, वक्रोक्ति आदि अलंकारों के सुंदर प्रयोग देखने को मिलते हैं।
 
उपरोक्त विवेचन के आधार पर सार रूप में कहा जा सकता है कि 'आषाढ़ का एक दिन' की भाषा-शैली सुंदर, सरल, कलापूर्ण और प्रवाहपूर्ण है जो नाटक की उत्कृष्टता में चार चाँद लगाती है।

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