आषाढ़ का एक दिन नाटक में देशकाल और वातावरण का चित्रण

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आषाढ़ का एक दिन नाटक में देशकाल और वातावरण का चित्रण विभिन्न दृश्यों, पात्रों, संवादों और भाषा-शैली के माध्यम से उन्होंने पाठकों को नाटक में प्रस्तुत

आषाढ़ का एक दिन नाटक में देशकाल और वातावरण का चित्रण


साहित्य के सभी रूपों में देशकाल और वातावरण का बहुत महत्व है, परन्तु, नाटक में बाटककार को देशकाल का वर्णन करने में बहुत सावधानी की ज़रूरत होती है। नाटक में समय विशेष के वातावरण में संजीवता लाने के लिए उस समय की परिस्थितियों, रहन-सहन, रीतिरिवाज, परंपरा और वेशभूषा आदि का चित्रण करना बहुत आवश्यक है।आषाढ़ का एक दिन में चित्रित देशकाल एवं वातावरण का वर्णन हम इस प्रकार कर सकते हैं-
 

घटनाओं और परिस्थितियों का चित्रण

मोहन राकेश के नाटक 'आषाढ़ का एक दिन' में अम्बिका की दयनीय पारिवारिक स्थिति, उसके दुःखी जीवन के दृश्य, मल्लिका और कालिदास के प्रेम और उससे उत्पन्न हुआ अम्बिका का दुःख कालिदास का उज्जयिनी जाना आदि कुछ ऐसी घटनाएँ और परिस्थितियाँ हैं, जो नाटक को बड़ा सहज़ और स्वाभाविक बना देती हैं ।

पात्रों की मानसिक स्थिति एवं उनके अन्तर्द्वन्द्व के द्वारा

आषाढ़ का एक दिन नाटक में देशकाल और वातावरण का चित्रण
मोहन राकेश जी ने इस प्रकार का चित्रण 'आषाढ़ का एक दिन' में बहुत कुशलतापूर्वक किया है। इसके द्वारा उन्होंने पात्रों की मानसिक स्थिति और उससे उत्पन्न वातावरण का चित्रण बखूबी किया है। प्रथम अंक में कालिदास और मल्लिका का मिलन, मूसलाधार बारिश होना, बिजली चमकना तथा बादलों का गरजना, सारी स्थितियाँ पात्रों की मनोदशा के अनुसार वातावरण की सृष्टि करती हैं | कुछ ऐसा ही वर्णन नाटक के अंतिम अंक में भी दिखाई देता है। जय थका हारा कालिदास मल्लिका से मिलने आता है। राकेश जी ने पात्रों के मुख से जो संवाद कहलवाए हैं, उनकी विशेषता यह है कि एक पात्र के संवादों का दूसरे पात्रों पर क्या प्रभाव है और क्या प्रतिक्रिया है। इससे पात्रों की आन्तरिक स्थिति का ज्ञान होता है। यही नहीं पात्रों के हाव-भाव और अन्तर्द्वन्द्व का चित्रण अनेक पात्रों के संवादों द्वारा भी हुआ है और पात्रों के अपने कथन द्वारा भी । 

सामाजिक परिस्थितियाँ

उस समय का समाज कैसा था इसकी झलक उस काल के घरों की बनावट और सजावट से पता चलता है। यहाँ के राजसी आवास चिकने पत्थरों से बनाए जाते थे और वहाँ जनता को चलने तक की आज्ञा नहीं थीं दूसरी ओर ग्रामीणों के मकान बहुत साधारण और लकड़ी से बनते थे जिनके फर्श चिकनी मिट्टी से पोते गए हैं, जिन्हें गेरू के स्वास्तिक चिह्नों से सजाया गया है। दीवार में ताक बने हुए हैं। जिनमें रात में प्रकाश के लिए दीपक रखे गए हैं। द्वार भी मिट्टी से पुते हैं, जिन पर गेरू और हल्दी से शंख और कमल बनाए गए हैं। घर में एक चूल्हा है और आसपास मिट्टी तथा काँसे के बर्तन रखे हुए हैं। पानी के लिए बड़े-बड़े घड़े हैं, जिन पर काई जम गई है। बैठने के लिए कुश का आसन है और एक-दो चौकी रखी हुई हैं। खान-पान दृष्टि से पता चलता है कि उस समय के लोग चावल, दूध, शक्कर (चीनी), शहद और घी का प्रयोग भोजन में करते थे। युवतियाँ दुपट्टा ओढ़ा करती थीं। विवाह नाम की सामाजिक संस्था उस समय भी थी और चरित्र पर विशेष ध्यान दिया जाता था ।
 

धार्मिक परिस्थितियाँ

'आषाढ़ का एक दिन' नाटक में धार्मिक परिस्थितियों के विषय में कोई जानकारी नहीं मिलती। एक-दो स्थान पर केवल जगदम्बा के मंदिर का वर्णन किया गया है। अंतिम अंक से यह सूचना मिलती है कि उस समय धार्मिक स्थान के रूप में काशी का महत्वपूर्ण स्थान था और वहाँ लोग तीर्थ यात्रा करने, संन्यासी के रूप में रहने तथा धर्म की दीक्षा लेने के लिए जाते थे ।
 

राजनीतिक परिस्थितियाँ

मोहन राकेश ने इस नाटक में राजनीतिक परिस्थितियों का बहुत कम वर्णन किया है। नाटक में यह नहीं बताया गया है कि उस समय गुप्तवंश का सम्राट कौन था ? जबकि गुप्त वंश की राजधानी उज्जयिनी को बताया गया है। यह तो स्पष्ट है कि सम्राट कला प्रेमी थे और इसीलिए उन्होंने कालिदास को राजकवि के रूप में सम्मान दिया था। कालिदास ने भी अधिकांश रचनाओं को उज्जयिनी में ही रचा था। उस समय ग्रामीण राजपुरुषों से डरा करते थे और ये राजपुरुष ग्रामीणों के साथ कैसा भी व्यवहार करने को आज़ाद थे । 

गुप्त सम्राट ने कालिदास का विवाह अपनी पुत्री प्रियंगुमंजरी से किया था और उसे मातृगुप्त का नाम देकर काश्मीर का राजा नियुक्त किया था, परन्तु सम्राट की मृत्यु के बाद से ही विरोधी शक्तियाँ सिर उठाने लगीं और राज्य में राजनैतिक अस्थिरता फैल गई।
 

कला और संस्कृति

'आषाढ़ का एक दिन' नाटक से उस समय की कला और संस्कृति के विषय में थोड़ी बहुत जानकारी मिलती है। इस नाटक से पता चलता है कि उज्जयिनी उस समय साहित्य, कला, नाटक, रंगशालाओं एवं नृत्य-संगीत आदि का केन्द्र थी। कालिदास के नाटकों का मंचन इन्हीं रंगशालाओं में होता था । उस समय की युवतियाँ शोध कार्य भी करती थीं, जो रंगिनी और संगिनी के प्रसंग से ज्ञात होता है।
 
मोहन राकेश जी ने नाटक में जिस भाषा का प्रयोग किया है उससे पता चलता है कि उस समय संस्कृत शब्दों का अधिक प्रयोग किया जाता था। जैसे तल्प, अंशुक, आस्तरण, उपवेशगृह आदि । भूमि को नापने में अंगुलियों का प्रयोग किया जाता था । काव्य रचना भोजपत्रों पर की जाती थी ।
 
भवन निर्माण की कला उस समय चरम पर थी । उज्जयिनी के वास्तुकार (मकान डिजायन करने वाले) बहुत कुशल थे। यही नहीं अनेक प्रसंगों से पता चलता है कि उस काल में चित्रकला, मूर्तिकला और ज्योतिष विद्या का भी बहुत विकास हुआ था ।

उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि नाटक में देशकाल और वातावरण का वर्णन संक्षेप में ही सही किन्तु मुख्य कथानक के अनुरूप ही हुआ है ।मोहन राकेश ने "आषाढ़ का एक दिन" नाटक में देशकाल और वातावरण का अत्यंत प्रभावशाली चित्रण किया है। विभिन्न दृश्यों, पात्रों, संवादों और भाषा-शैली के माध्यम से उन्होंने पाठकों को नाटक में प्रस्तुत घटनाओं और पात्रों की भावनाओं से जोड़ने में सफलता हासिल की है।

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