मेरे सपनों का समाज पर निबंध

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मेरे सपनों का समाज पर निबंध मानव सभ्यता के विकास के साथ ही, एक आदर्श समाज की कल्पना सदैव से ही मनुष्यों के मन में रही है। विभिन्न विचारकों, दार्शनिको

मेरे सपनों का समाज पर निबंध


मानव सभ्यता के विकास के साथ ही, एक आदर्श समाज की कल्पना सदैव से ही मनुष्यों के मन में रही है। विभिन्न विचारकों, दार्शनिकों और सामाजिक सुधारकों ने अपने-अपने सपनों का समाज का चित्रण किया है।मेरे सपनों का समाज भी एक ऐसा ही समाज है, जो न्याय, समानता, स्वतंत्रता, सुरक्षा, और समृद्धि पर आधारित हो। यह एक ऐसा समाज है जहाँ सभी को अपनी क्षमता का पूर्ण विकास करने का अवसर मिले, और जहाँ हर कोई खुशहाल और सम्मानित जीवन जी सके।

न्याय और समानता

मेरे सपनों का समाज पर निबंध
व्यक्ति के पारस्परिक सहयोग, आदान-प्रदान और सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर संगठित इकाई को समाज कहा जाता है, इसका उत्थान और विकास व्यक्ति के उत्थान और विकास पर निर्भर होता है। वेदों और पुराणों में निर्मित समाज में चार वर्गों की कल्पना की गयी और उनके कार्यों को भी निश्चित किया गया। परन्तु आधुनिक वैज्ञानिक युग में जिस विकसित और अति सभ्य कहे जाने वाले समाज की रचना होती जा रही है उससे तो समाज की परिभाषा ही बाधित जान पड़ती है क्योंकि आधुनिक व्यक्तिवादी समाज में व्यक्ति स्वकेन्द्रित होता जा रहा है। उसमें पारस्परिक सहयोग की भावना का अभाव होता जा रहा है, ऐसे में एक ऐसे समाज की कल्पना करना जो आदर्श, मर्यादित और विकसित हो असम्भव सी बात है फिर भी एक आदर्श समाज की कल्पना ही व्यक्ति का मूल आदर्श है।

सामाजिक व्यक्तिगत स्वतंत्रता

भारत गाँवों का देश है । यहाँ की अधिकांश जनता गांवों में रहती है, स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् आज भी गाँवों में सुधार की योजनाएँ समुचित रूप से एक आदर्श समाज की रचना नहीं कर सकी, क्योंकि सभी सुविधाएँ प्रायः शहरों के विकास में ही झोंक दी गयी। बापू के रामराज्य की कल्पना अभी तक पूरी नहीं हो सकी। यह तब तक सम्भव नहीं होगा जब तक हम हर प्रकार से गाँवों को आत्मनिर्भर नहीं बना पाएँगे। गाँधीजी के अनुसार "विकास का लाभ पहले उसको मिलना चाहिए जो सबसे कमजोर, सबसे पिछड़ा और सबसे गरीब हो।" अर्थात् समाज के पुर्ननिर्माण और विकास की योजना सबसे नीचे से आरम्भ होनी चाहिए। अगर हम चाहते हैं कि सबको समान अवसर मिले, समता बढ़े, शोषण और गरीबी समाप्त हो तो अनिवार्य है कि विकास का काम निम्न स्तर के व्यक्ति से प्रारम्भ करना होगा। यह कार्य पंचायती-राज द्वारा ही हो सकता है। आजादी के बाद महात्मा गांधी ने ऐसे ही पंचायती राज के माध्यम से भारत को विकसित करने के लिए आदर्श समाज की स्थापना करके सम्पूर्ण भारत में रामराज्य की स्थापना की कल्पना की थी।
 

पंचायती राज की स्थापना

भारतीय जनतांत्रिक देश की शासन सत्ता जनता के हाथ में होने के बावजूद क्षुद्र मानसिकता, स्वार्थलोलुपता और अहम् बोध की संकीर्णता के कारण आज का समाज वर्गसंघर्ष और धार्मिक उन्माद की विभीषिका से घिरा हुआ है। यद्यपि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने पंचायती राज की स्थापना को विशेष महत्त्व देते हुए मार्च 1985 ई० में जी०वी० के०राव समिति को मानते हुए सभी विकास कार्यक्रमों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए उन्हें जिम्मेदार बनाया। प्रत्येक राज्य में मुख्य सचिव स्तर के एक विकास आयुक्त के अधीन पूरी तरह से एक और समानान्तर एक प्रशासनिक ढाँचा खड़ा करने का सुझाव दिया। इसके बाद सी.के.फुगन की अध्यक्षता में स्थापित संसदीय समिति 1988 ने पंचायती राज संस्थाओं के विकास के लिए, पंचायतों, पंचायत समितियों और जिला परिषदों के स्वतंत्र अधिकार, साधन व स्वरूप की सिफारिश की थी। वास्तव में गाँव पंचायत को दिये जाने वाले अधिकार गाँव के वयस्क लोगों से बनी ग्रामसभा को ही देना चाहिए। ग्राम-पंचायत को ग्रामसभा की कार्यसमिति के रूप में इसके निर्देशन में काम करना चाहिए। तभी वास्तविक ग्राम गणराज्य की स्थापना हो सकेगी। ग्रामसभा को अपने क्षेत्र की खेती उद्योग, व्यापार, शिक्षा, कलाकौशल आदि सारी गतिविधियों को नियंत्रित करने, रोकने अथवा बढ़ाने के पूरे अधिकार होने चाहिए। तभी ग्राम पंचायतें स्वावलम्बी हो सकेगी और गाँव की गरीबी तथा बेरोजगारी को दूरकर सकेंगी।
 
जिला स्तर पर योजना बनाने का उद्देश्य यह है कि हर जिले का एक बजट हो, एक योजना हो, क्रियान्वयन की एक समिति हो, और उसके जन प्रतिनिधियों व प्रशासनिक अधिकारियों की जिम्मेदारियाँ स्पष्ट और समन्वयशील हो, साथ ही इस बात की गारंटी हो कि समाज के पिछड़े गरीब वर्ग और शोषित वर्ग का कल्याण हो । कभी-कभी ऐसा होता है कि कुछ प्रभावशाली और सम्पन्न लोग जिला प्रशासन और उसके प्रतिनिधियों को किसी भी प्रकार का लालच देकर दूसरों का शोषण करने लग जाते हैं। जिला स्तर पर आवश्यकतानुसार अपने लिए साधन जुटाने की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए। ग्रामीण अंचल में प्राथमिक शिक्षा के संचालन का दायित्व भी उन्हीं पर होना चाहिए। ग्रामीण विकास के समस्त कार्यक्रमों और परियोजनाओं के निर्माण का प्रमुख दायित्व पंचायत समितियों द्वारा वहन किया जाना चाहिए। सरकार की सभी परियोजनाओं में जिससे ग्रामीणों का विकास हो । उनकी पात्रता का चुनाव सरपंच की राय के आधार पर होना चाहिए। अकाल राहत कार्यों जैसे हैण्डपम्प लगाने, चारा वितरण करने, कुँओं को गहरा करने, उसे साफ करवाने, नये कुएँ बनवाने, छोटी-बड़ी कच्ची-पक्की सड़कें बनवाने इत्यादि विकास के कार्यों का दायित्व भी पंचायतों और उनके अधिकारियों को पूर्णतः सौंप देना चाहिए अथवा उन्हें उसका भागीदार बना देना चाहिए। प्रत्येक गाँव के प्राथमिक तथा उच्च माध्यमिक विद्यालयों, अस्पतालों, ग्रामीण विकास के संसाधनों के उचित रख-रखाव का दायित्व कार्य पंचायत समितियों को सुपुर्द कर देना चाहिए। 

आदर्श समाज की स्थापना

इस प्रकार किसी आदर्श समाज की स्थापना तभी संभव हो सकती है जब उस समाज का व्यक्ति, व्यक्ति निर्मित समिति, पंचायत, जिला और प्रशासनिक व्यवस्था आदि में अपने कर्त्तव्य के प्रति ईमानदारी और सहयोग की भावना होगी। जनमत के आधार पर निर्मित सरकार और सरकारी अधिकारियों में अपनी जिम्मेदारी की अनुभूति होगी, साथ ही साथ सहयोग और सफलता को आधार बनाकर ईमानदारी और कार्यकुशलता का परिचय देकर प्रत्येक व्यक्ति अपने आदर्श का निर्वाह करेगा, तभी एक स्वच्छ, सुन्दर, विकासशील और आदर्श समाज की संरचना सम्भव है। 

मेरे सपनों का समाज शायद एक आदर्श समाज है, जिसे प्राप्त करना आसान नहीं होगा। लेकिन हमें इस दिशा में प्रयास करते रहना चाहिए। हमें एक ऐसा समाज बनाने के लिए मिलकर काम करना चाहिए जो सभी के लिए अधिक न्यायपूर्ण, समान, टिकाऊ और खुशहाल हो।


विडियो के रूप मे देखें - 



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