विकसित भारत के ख्वाब को पूरा कर रही हैं महिलाएं

SHARE:

विकसित भारत के ख्वाब को पूरा कर रही हैं महिलाएं स्वरोजगार से बदल रही है महिलाओं की आर्थिक स्थिति स्वरोजगार से जुड़कर महिलाएं न केवल आत्मनिर्भर बनेंगी

स्वरोजगार से बदल रही है महिलाओं की आर्थिक स्थिति


हले मुझे हर चीज के लिए पति के सामने हाथ फैलाने पड़ते थे. छोटी से छोटी जरूरतों को पूरा करने के लिए उनसे पैसे मांगने पड़ते थे. इससे मेरे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती थी. लेकिन मेरे पास ऐसा कोई माध्यम नहीं था जिससे मैं अपने पैरों पर खड़ी हो सकती और खुद का रोजगार कर पैसे कमा सकती. लेकिन आज मैं स्वरोज़गार के माध्यम से प्रति वर्ष 40 से 50 हजार रुपए अर्जित कर लेती हूं. इसकी वजह से आज मैं न केवल आत्मनिर्भर बन चुकी हूं बल्कि मेरे अंदर आत्मविश्वास भी बढ़ गया है.” यह कहना है गडसीसर गांव की 30 वर्षीय महिला पूजा का. यह गांव राजस्थान के बीकानेर जिला स्थित लूणकरणसर ब्लॉक से करीब 65 किमी की दूरी पर बसा है. पंचायत में दर्ज आंकड़ों के अनुसार इस गांव की आबादी लगभग 3900 है. यहां पुरुषों की साक्षरता दर 62.73 प्रतिशत महिलाओं में मात्र 38.8 प्रतिशत है. यहां पर सभी जातियों के लोग रहते है, परंतु सबसे अधिक राजपूत जाति की संख्या है.

पूजा बताती हैं कि “दो साल पहले गांव की एक सामाजिक कार्यकर्ता हीरा शर्मा ने मुझे स्थानीय गैर सरकारी संस्था 'उरमूल' द्वारा प्रदान किये जा रहे स्वरोजगार के बारे में बताया. जहां महिलाएं कुरुसिया के माध्यम से उत्पाद तैयार कर आमदनी प्राप्त करती थीं. पहले मैं इससे जुड़ने से झिझक रही थी क्योंकि मुझे यह काम नहीं आता था. लेकिन संस्था द्वारा पहले मुझे इसकी ट्रेनिंग दी गई. जहां मुझे कुरुसिया के माध्यम से टोपी, जैकेट, दस्ताना, जुराब और मफलर इत्यादि बनाना सिखाया गया. संस्था में मेरे साथ साथ गांव की 30 अन्य महिलाओं को भी कुरुसिया के माध्यम से उत्पाद तैयार करने की ट्रेनिंग दी गई. इसके बाद संस्था की ओर से ही हमें सामान बनाने के ऑर्डर मिलने लगे और तैयार करने के बाद भुगतान किया जाने लगा है. अब मुझे पैसों के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है.” वह पूरे आत्मविश्वास के साथ कहती है कि अब तो जरूरत होने पर पति मुझ से पैसे मांगते हैं.  इससे जुड़ने के बाद मुझे अपने अंदर की प्रतिभा का एहसास हुआ है. अब मुझे लगता है कि हम महिलाएं भी बहुत कुछ कर सकती हैं. घर बैठे काम करके हम भी पैसा कमा सकती हैं. पूजा कहती हैं कि संस्था से जुड़कर मैंने जाना कि महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सरकार की ओर से बहुत सारी योजनाएं चलाई जा रही हैं. लेकिन जागरूकता के अभाव में हम इसका लाभ उठाने से वंचित रह जाती हैं.

स्वरोजगार से बदल रही है महिलाओं की आर्थिक स्थिति
दरअसल वर्तमान समय में रोजगार एक प्रमुख मुद्दा बन चुका है. खासकर उन ग्रामीण महिलाओं के लिए जिनके पास शिक्षा और जागरूकता का अभाव है. जिस कारण वे घर की चारदीवारी में बंद रहने को मजबूर हैं. महिलाओं की इस समस्या को दूर करने के लिए उरमूल संस्था द्वारा जिस प्रकार उन्हें ट्रेंनिंग दी जा रही है, वह महिला सशक्तिकरण का एक अच्छा उदाहरण है. कुरुसिया के माध्यम से जुराब बुन रही गांव की एक महिला विद्या कहती है कि “जब से हम उरमूल संस्था के माध्यम से स्वरोजगार से जुड़े हैं हमें अब अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए किसी पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं रह गई है. अब मैं पति के साथ मिलकर घर में बराबर के पैसे खर्च करती हूं. पहले हम सिर्फ घर का ही काम करती थी और पशुओं की देखरेख करती थी. हमारे घर वाले भी हमें घर से बाहर जाने नहीं दिया करते थे. महिलाओं के प्रति समाज की सोच भी संकुचित थी. लेकिन जब से हम इस संस्था से जुड़े हैं, तब से हमें कोई घर से बाहर जाने से भी नहीं रोकता है.

विद्या के बगल में बैठी कुरुसिया पर मफ़लर बुन रही एक अन्य महिला सरस्वती देवी उनकी बातों को आगे बढ़ाते हुए कहती हैं कि “मैंने संस्था को कुरुसिया से सामान बनाकर 25 से 30 हजार रुपए तक का काम करके दिया है. इससे मुझे बहुत लाभ हुआ है. अब न केवल मैं अपने अंदर की प्रतिभा को पहचान गई हूं बल्कि इसकी वजह से अब मैं आर्थिक रूप से सशक्त भी हो चुकी हूं. मैं पूरा दिन इस काम में व्यस्त रहती हूं. अब मैं अपने बच्चों की पढ़ाई का खर्च भी अब खुद उठाने लगी हूं.” गांव की एक अन्य महिला लक्ष्मी का कहना है कि “क्रोशिया के काम से पैसा कमा कर मैंने एक सिलाई मशीन भी खरीदी है. अब मैं बुनने के साथ साथ कपड़े सिलने का काम भी करती हूं. जिससे मेरी आमदनी और बढ़ी है.”

इस संबंध में उरमूल की सदस्या और सामाजिक कार्यकर्ता हीरा शर्मा का कहना है कि “जब हमने घर पर रहने वाली महिलाओं को देखा तो उन्हें रोजगार से जोड़ने की कोशिश की. जिसमें संस्था के माध्यम से उन्हें कुरुसिया से ऊनी कपड़े तैयार करने की ट्रेनिंग दी गई. इसके लिए गांव की 30 महिलाओं का एक ग्रुप बनाया गया. जिसमें से 15 महिलाओं ने बहुत अच्छे से काम को सीखा और फिर रोजगार की मांग की. उन महिलाओं के लिए हमने देसी ऊन खरीदी और उन्हें प्रोडक्ट बनाने के लिए दिया. जिससे उनका आत्मविश्वास और बढ़ा. यह रोजगार मिलने से महिलाओं के जीवन में सकारात्मक प्रभाव पड़ा. जिन महिलाओं को घर वाले घर से बाहर नहीं निकलने देते थे, वह आज सेंटर पर आकर काम करती हैं.” वह बताती हैं कि यहां पर कई ऐसी महिलाएं हैं जिनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि अच्छी नहीं है. उनके पति शराब पीकर उनके साथ शारीरिक हिंसा करते थे और घर में खर्च के लिए पैसा तक नहीं देते थे. आज वे महिलाएं अपना पैसा कमा रही है. अपने बच्चों को पाल रही हैं और उनकी स्कूल की फीस भी जमा कर रही हैं.

संस्था और महिलाओं के बीच काम के बारे में हीरा बताती हैं कि “अधिकतर महिलाएं घर का काम पूरा कर सेंटर पहुंच जाती हैं, जहां सभी मिलकर समय पर ऑर्डर को पूरा करती हैं. जरूरत पड़ने पर कुछ महिलाएं ऑर्डर को घर ले जाकर भी पूरा करती हैं. ऑर्डर पूरा करने के लिए सामान खरीदने से लेकर उससे होने वाली आमदनी आदि की जानकारियां सभी महिलाओं के साथ समान रूप से साझा की जाती है. उत्पाद बेचने से होने वाली आमदनी के कुछ पैसों से जहां अगले प्रोडक्ट के लिए समान खरीदे जाते हैं वहीं बचे हुए पैसों को काम के अनुसार महिलाओं में बांट दिए जाते हैं. यह सब पूरी प्लानिंग के साथ किया जाता है. हीरा बताती हैं कि “महिलाओं द्वारा तैयार प्रोडक्ट को दिल्ली और गुजरात में आयोजित विभिन्न प्रदर्शनियों में बेचा जाता है. जहां लोग न केवल उनके काम को सराहते हैं बल्कि बढ़चढ़ कर खरीदते भी हैं. सबसे पहले दिल्ली स्थित त्रिवेणी कला संगम में उनकी प्रदर्शनी लगाई गई थी जहां उनके सामान को बेचकर 96 हजार का लाभ हुआ था.

पिछले वर्ष संसद में आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत करते समय यह बताया गया कि 2017-18 की तुलना में 2020-21 में स्वरोजगार करने वालों ही हिस्सेदारी बढ़ी है. विशेषकर ग्रामीण इलाकों में महिलाओं के लिए रोजगार में इजाफा हो रहा है. 2018-19 में यह दर 19.7 प्रतिशत थी, जो 2020-21 में बढ़कर 27.7 प्रतिशत हो गई है. 1.2 करोड़ स्वयं सहायता समूहों में 88 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं, जिनकी पहुंच 14.2 करोड़ परिवारों तक है. यह एक सकारात्मक संकेत है. स्वरोजगार से जुड़कर महिलाएं न केवल आत्मनिर्भर बनेंगी बल्कि उनका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा. जो विकसित भारत के ख्वाब को पूरा करने के लिए एक जरूरी आयाम है. (चरखा फीचर)



- मोनिका
लूणकरणसर, राजस्थान

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका