ना शब्द क्यों | हिन्दी आलेख

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ना शब्द क्यों ना शब्द जिस भी शब्द के साथ जुड़ जाता है एक उदासी, नाकामी और जीवन को नकारात्मकता के साये में धकेलता सा महसूस कराता है सूरज को ही लो वह हर

ना शब्द क्यों


ना शब्द जिस भी शब्द के साथ जुड़ जाता है एक उदासी, नाकामी और जीवन को नकारात्मकता के साये में धकेलता सा महसूस कराता है.......!!

ना शब्द क्यों | हिन्दी आलेख
लेकिन न के बाद जो उम्मीद है वह कहीं ना कहीं हमारे दिल के ही किसी कोने में दबी होती है जिसको हम हमेशा नज़र अंदाज करते रहते हैं उसी 'ना-उम्मीद' के बीच उम्मीद की लौ को हम अपनी ना समझी नादानी की वजह से महसूस नहीं कर पाते......  और हम उस वक्त़ ख़ुद को हारा, टूटा और नाकाम महसूस करने लगते हैं जबकि उस वक्त हमें कहीं और नहीं अपने मन के द्वार खोलने और समझने की जरूरत होती है, पर हम दुनिया की तरफ देखते हैं और अपने आप को भूल जाते हैं हम मन के अंदर झांकने का तनिक भी प्रयास नहीं करते यदि हम सारी दुविधा सारी नाकामी को एक ओर दर किनार करके जो पतली सी हृदय के अंदर आशा की लौ जलती है उसको जलाए रखने का यदि  प्रयत्न करें, तो वो एक ना एक दिन धीरे-धीरे प्रचंड होकर उस आशा और उम्मीद में तब्दील हो जाएगी जो हमारी सारी नाकामी हमारी सारी ना उम्मीद को खत्म कर कामयाबी की ओर हमें ले जाने में मदद करेगी हो सकता है इसमें थोड़ा वक्त लगे लेकिन संभव है कि जीत तो उम्मीद की ही होगी......... 

'कहावत है कि बूंद बूंद से ही गागर भर जाती है।' यह तो हमारे मन का कोना है फिर क्यों नहीं हम अपनी सारी ऊर्जा को इकट्ठा करके उसे और अपनी सोच को सकारात्मक बनाकर उस दिशा की ओर अग्रसर करे जहां सिर्फ और सिर्फ उगता हुआ सूरज हमारा रास्ता तकता हुआ कामयाबी की एक कहानी कहता हुआ मिलता......।।

सूरज को ही लो वह हर दिन डूबता तो है लेकिन हर दूसरी सुबह नई ऊर्जा, उत्साह और शक्ति के साथ सारे संसार में अपनी रोशनी से लोगों में उत्साह का बढ़ावा दे, जीने और कामयाब होने की हमें सीख सिखाता है कि मैं हर दिन डूबता हूं लेकिन उसके बावजूद मैं अपने आप को एक नए दिन के लिए फिर से तैयार कर सब के सामने एक उम्मीद बनकर जगमगाता हूँ, और इसी तरह बस हमें जरा से प्रयास और हिम्मत की आवश्यकता होती है जो हमारे अंदर भगवान ने अंनत भरकर भेजी है। लेकिन हम उसको और उसकी शक्ति को पहचानने में असमर्थ से रहते हैं, और यहीं पर नादानी कर जाते हैं और ना उम्मीद में घिरे अपने आप को खोजते रहते हैं जबकि ईश्वर हमेशा एक दरवाजा बंद करता है तो दूसरा उम्मीद का दरवाजा कहीं ना कहीं खुला रखता है बस हमारी नज़रों को उठाने की देरी होती है

एक नया अध्याय लिखने की जो हमारे लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ कामयाबी, बुलंदी और ऊंचाइयों पर ले जाता है और "ना शब्द" को वहीं पर हमेशा हमेशा के लिए मिटा देता है। 



- मधु गुप्ता "अपराजिता"

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