जब मैंने बिल्ली पाली विषय पर निबंध

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जब मैंने बिल्ली पाली विषय पर निबंध बचपन से ही मेरी इच्छा थी कि मैं बिल्ली पालूँ क्योंकि बिल्ली मुझे बहुत प्रिय है। बचपन से ही मेरे मन में बिल्लियों के

जब मैंने बिल्ली पाली विषय पर निबंध


ब मैंने बिल्ली पाली विषय पर निबंध पशु-पक्षी मनुष्य के बहुत काम आते हैं। उनकी उपयोगिता के कारण हम उन्हें पालते हैं। प्राचीनकाल से ही मनुष्य गाय, बैल, घोड़ा, ऊँट, हाथी आदि पशुओं को पालता आया है। अनेक लोग कुत्तों को पालते हैं। बचपन से ही मेरी इच्छा थी कि मैं बिल्ली पालूँ क्योंकि बिल्ली मुझे बहुत प्रिय है। बचपन से ही मेरे मन में बिल्लियों के लिए एक खास लगाव रहा है। उनकी चंचलता, नाजुकता और रहस्यमयी स्वभाव मुझे हमेशा आकर्षित करते रहे हैं।

बचपन की इच्छा हुई साकार 

जब मैंने बिल्ली पाली विषय पर निबंध
एक दिन मुझे पता चला कि मौसी की बिल्ली ने दो बच्चों को जन्म दिया है तो मुझे लगा कि मेरा स्वप्न साकार होने को है। मैंने माँ को अपनी इच्छा बताई। पहले तो वे सहमत नहीं थीं, पर मेरी ज़िद देखकर मान गईं। मैं माँ के साथ मौसी के घर गई और बिल्ली का एक बच्चा उठा लाई ।
 
मैंने बिल्ली का नाम रखा 'ओस' क्योंकि वह ओस की बूँद की तरह प्यारी थी। उसका रंग सफ़ेद, चमकीली आँखें और छोटे-छोटे पिरामिड जैसे कान थे। गोल चेहरे पर तीखी मूँछें थीं। वह बड़े ही प्यार से मटक मटक कर चलती थी। उसके कोमल और गुदगुदे बदन को छूने में बड़ा आनंद आता था ।

वाह री ! बिल्ली तेरा रूप 

बिल्ली को एक कटोरी में दूध पिलाया जाता। उसी में उसे खाना दिया जाता। सप्ताह में उसे एक बार थोड़ा-सा मांस भी मिलता। उसे जब भूख लगती तो वह पैरों से लिपटकर म्याऊँ म्याऊँ करती। मुझे देखते ही वह मेरे पास आ जाती और अपना सिर मेरे गालों से रगड़कर प्यार जताती थी।
 
हमारे कुत्ते टॉमी को पहले तो ओस पसंद नहीं थी । वह उसे देखकर भौंकने लगता और उसे भगाता था। बाद में जब उसने देखा कि घर के सभी लोग ओस से प्यार करते हैं तो वह भी उसे प्यार करने लगा। दोनों आपस में खेला करते। टॉमी बगीचे में उसे घुमाने ले जाता । फिर जब टॉमी बड़े गेट के पास चौकीदारी करता तो ओस घर के दरवाज़े पर दुबककर बैठ जाती थी । 

कुत्ते से समझौता

एक बार ओस के कारण मुझे कड़ी डाँट खानी पड़ी। वह दरवाज़े पर बैठी धूप सेंक रही थी। मेरे पाँच साल के छोटे भाई ने उसकी पूँछ पकड़कर उसे ज़ोर से खींचना चाहा। ओस उस पर झपट पड़ी और उसके गाल पर पंजा मार दिया । खरोंचों से खून बहने लगा। भाई को तुरंत डॉक्टर के पास ले जाना पड़ा। 

बाद में ओस को भी अपनी भूल पर पछतावा हुआ। उस दिन उसने दूध भी नहीं पिया। तब मैं समझी कि जानवर भी कितने समझदार होते हैं। जब भी मैं होस्टल से घर जाती हूँ तो ओस भागकर मेरी गोद में आ बैठती है। मेरे लिए वह क्षण अपूर्व आनंद का होता है ।


विडियो के रूप मे देखिये - 


 

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