हिंदी का प्रथम कवि किसे माना जाता है?

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हिन्दी का पहला कवि किसे माना जाता है हिंदी का प्रथम कवि किसे माना जाए, यह एक जटिल और विवादास्पद विषय है। विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न मापदंडों के आधार

हिन्दी का पहला कवि किसे माना जाता है


हिन्दी साहित्य का प्रारम्भ कहां से मानें. इस का निर्णय तभी हो सकता है जब कि हम हिन्दी की पहली रचना या हिन्दी के पहले कवि का निर्णय कर सके । हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखने वालों के विचार जानना आवश्यक है। सर्वप्रथम गार्सा-द-तासी का इतिहास आता है परन्त उन्होंने प्रथम रचना या कवि पर विचार ही नहीं किया। शिवसिंह सेंगर तथा मिश्रबन्धुओं ने पुष्य नामक कवि को प्रथम हिन्दी कवि स्वीकार किया है। यह पण्य अव अपभ्रंश का पुष्पदन्त सिद्ध हो चुका है इसलिए उसे हिन्दी का प्रथम कवि कैसे स्वीकारा जा सकता है ? 

हिन्दी का पहला कवि किसे माना जाता है
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने हिन्दी साहित्य का इतिहास ग्रन्थ में अपभ्रंश के कवियों में देवसेन को तथा हिन्दी के कवियों में दलपति विजय को प्रथम कवि माना है । दलपति विजय का समय उन्होंने नवीं-दसवीं शताब्दी माना है । आश्चर्य की बात यह है कि शुक्ल जी ने हिन्दी साहित्य का प्रारम्भ ग्यारहवीं शताब्दी से माना है और हिन्दी का प्रथम कवि दसवीं शताब्दी में स्वीकारा है। अब दलपति विजय अठारहवीं शताब्दी का सिद्ध हो चुका है। डा० रामकुमार वर्मा सिद्ध कवि सरहपाद (817 विक्रमी संवत्) को हिन्दी का प्रथम कवि मानते हैं । राहुल सांकृत्यायन ने भी यह स्वीकार किया है। सिद्धों का साहित्य अपभ्रंश में है इसलिए सरहपाद को हिन्दी का प्रथम कवि नहीं माना जा सकता । आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने समस्त आदिकालीन साहित्य को प्रामाणिक, अर्द्धप्रामाणिक तथा संदिग्ध की श्रेणियां में वांटा है । प्रामाणिक रचनाओं में सर्वप्रथम संदेश रामक' का वर्णन करते हैं तथा उसे अपभ्रंश की रचना भी मानते हैं। अब्दुल रहमान इसका रचयिता है । उसे हिन्दी का प्रथम कवि नहीं माना जा सकता । 

स्वयं हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने यह स्वीकार किया है कि "साहित्य की दृष्टि से यह काल बहुत कुछ अपभ्रंश काल का बढ़ाव ही है, पर भाषा की दृष्टि से यह परिनिष्ठित अपभ्रंश मे आगे बढ़ी हुई भाषा की रचना ले कर आता है । इसमें भावी हिन्दी भाषा और उसके काव्य-रूप अंकुरित हुए हैं। "द्विवेदी जी के कथन से स्पष्ट है कि वे 1000-1400 ईस्वी तक के साहित्य को हिन्दी साहित्य की भूमिका मात्र ही मानते हैं । इस प्रकार विद्यापति ही प्रथम कवि ठहरते हैं जिन का समय पन्द्रहवीं शताब्दी हैं। डा० गणपति चन्द्र गुप्त शालिभद्र सी कृत 'भरतेश्वर बाहुबलगम को जो कि ।। 84 इंस्वी की रचना है, हिन्दी की प्रथम रचना मानते हैं । इस जैन ग्रन्थ की रचना को उन्होंने प्रामाणिक माना है और इस की भाषा को हिन्दी का प्रारम्भिक रूप स्वीकार किया है । 

वास्तव में मूल विवाद ही हिन्दी के प्रारम्भिक रूप को लेकर है । किसी को यह प्रारम्भिक रूप ग्राम्य अपभ्रंश में दिखाई पडा, किसी को सिद्धों की भाषा में तो किसी को गमो साहित्य में । कुछ लोगों ने अपभ्रंश को हिन्दी या परानी हिन्दी मान लिया तो कुछ ने उसे हिन्दी से अलग मान कर भी इस के साहित्य को हिन्दी में गिन लिया। जब तक हिन्दी के प्रारम्भिक रूप का निश्चय नहीं हो जाता तब तक यह निर्णय करना कठिन है कि हिन्दी का प्रथम कवि कौन है । सामान्य रूप से ग्यारहवीं-बारहवीं शताब्दी में हिन्दी माहित्य-लेखन प्रारम्भ हुआ और इसी काल में हिन्दी के प्रथम कवि की खोज की जानी चाहिए ।

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