हिंदी इंटरव्यू साक्षात्कार का उद्भव और विकास

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हिंदी इंटरव्यू साक्षात्कार का उद्भव और विकास हिंदी इंटरव्यू, जिसे साक्षात्कार या भेंटवार्ता भी कहा जाता है, हिंदी साहित्य की एक लोकप्रिय विधा है।

हिंदी इंटरव्यू साक्षात्कार का उद्भव और विकास


हिंदी इंटरव्यू, जिसे साक्षात्कार या भेंटवार्ता भी कहा जाता है, हिंदी साहित्य की एक लोकप्रिय विधा है। इसमें किसी प्रसिद्ध व्यक्ति, साहित्यकार, कलाकार, वैज्ञानिक, राजनेता, या आम नागरिक से बातचीत करके उनके जीवन, विचारों, अनुभवों और कार्यों के बारे में जानकारी प्राप्त करना और पाठकों को उनके साथ परिचित कराना शामिल होता है।

हिंदी इंटरव्यू का उद्भव 20वीं शताब्दी की शुरुआत में हुआ था। उस समय, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन हो रहे थे, पत्रकारिता का विकास हो रहा था, और साहित्यिक अभिव्यक्ति के नए रूपों की तलाश की जा रही थी। इन सभी कारकों ने मिलकर हिंदी इंटरव्यू को जन्म दिया।

साक्षात्कार का अर्थ एवं परिभाषा

इंटरव्यू साक्षात्कार विधा हिन्दी-साहित्य को पश्चिम की देन है। रेखाचित्र और संस्मरण की अपेक्षा यह हिन्दी के लिए नई विधा है। 'इण्टरव्यू' का अभी कोई सर्वसम्मत हिन्दी पर्यायवाची शब्द प्रचलित नहीं हुआ है। यद्यपि इसके लिए 'भेंट', 'भेंटवार्ता', 'चर्चा', 'परिचर्चा', 'साक्षात्कार', आदि शब्द प्रयुक्त किये गये हैं, किन्तु अधिकांशतः इण्टरव्यू शब्द ही प्रचलित है। इण्टरव्यू उन विशिष्ट एवं ख्यातिलब्ध व्यक्तियों का लिया जाता है जिनके विचारों को जानने की जनसाधारण के हृदय में सहज जिज्ञासा होती है। 'हिन्दीसाहित्य का बृहत इतिहास' में 'इण्टरव्यू' की परिभाषा देते हुए कहा गया है- 'इण्टरव्यू' शब्द से आज एक ऐसी विशिष्ट कोटि की साहित्यिक विधा का बोध होती है, जिसमें एक जिज्ञासु व्यक्ति जीवन के किसी क्षेत्र में विद्यमान अन्य किसी व्यक्ति (विशेषकर प्रख्यात और महत्त्वपूर्ण व्यक्ति) से प्रत्यक्ष मिलकर उसके बारे में सीधे-सीधे जानकारी प्राप्त करता है।” इस विधा के लिए किसी महान् पुरुष से भेंट-वार्ता को ही क्यों महत्त्व दिया जाता है, इसका उत्तर डॉ० रामचन्द्र तिवारी के निम्नलिखित कथन में मिल जाता है : 

“इण्टरव्यू में उत्तर देनेवाले का विख्यात और महिमामय होना आवश्यक है। ऐसी स्थिति में ही उनके उत्तर मूल्यवान् होते हैं और अधिक-से-अधिक लोगों का ध्यान आकृष्ट करते हैं।
 
“इण्टरव्यू कुछ निश्चित प्रश्नों के आधार पर होता है। इण्टरव्यूकार कुछ निश्चित प्रश्नों के माध्यम से व्यक्ति-विशेष का सीधा परिचयात्मक साक्षात्कार पाठकों से करा देता है। यह विधा “पत्रकार - कला के अधिक निकट है। इण्टरव्यू 'महान्' और 'लघु' के मध्य ही अधिक शोभा देता है। 'लघु' के हृदय की श्रद्धाभावना को देखकर 'महान' में सब कुछ कह देने की भावना जाग उठती है। कभी-कभी दो भिन्न क्षेत्रों की विभूतियों के इण्टरव्यू भी अत्यन्त रोचक बन जाते हैं। एक साहित्यकार और एक कलाकार के मध्य का इण्टरव्यू नाना नवीन और रोचक तथ्यों का उद्घाटन करता है। कभी-कभी काल्पनिक इण्टरव्यू भी लिखे जाते हैं। अपनी कल्पना में किसी महान् साहित्यकार, कलाकार अथवा राजनीतिज्ञ को अवतीर्ण करके उससे प्रश्न पूछना और स्वयं ही उसकी ओर से उत्तर देना बड़ा रोचक होता है। डॉ० कमलेश-कृत ‘मैं इनसे मिला' वास्तविक इण्टरव्यू और राजेन्द्र यादव कृत 'चैखवः एक इण्टरव्यू' काल्पनिक इण्टरव्यू के सुन्दर उदाहरण हैं । कभी-कभी सामयिक परिस्थितियों के सन्दर्भ में वृद्धजनों के विचारों से अवगत होने के लिए इण्टरव्यू लियें जाते हैं। इस प्रकार यह विधा उत्तरोत्तर लोकप्रियता प्राप्त कर रही है। 

इण्टरब्यू तीन प्रकार से तैयार किये जाते हैं 
  1. महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों के पास एक निश्चित प्रश्नावली भेजकर उनसे प्राप्त उत्तरों,आधार पर इण्टरब्यू तैयार करना।  
  2. प्रत्यक्ष वार्तालाप द्वारा, 
  3. काल्पनिक । 

इंटरव्यू साक्षात्कार का अन्य विधाओं से अन्तर 

इण्टरव्यू अपनेआप में मौलिक विधा है। यद्यपि इसमें निबन्ध, संस्मरण और रेखाचित्र के तत्त्व भी झलकते नजर आते हैं, परन्तु यह किसी विधा का अंग न होकर एक स्वतन्त्र विधा है। निबन्ध और इंटरब्यू का मौलिक अन्तर तो यही है कि जहाँ निबन्ध में निबन्धकार के व्यक्तित्व की छाप होती है वहीं इण्टरव्यू में लेखक नहीं, बल्कि उस व्यक्ति के व्यक्तित्व की झलक है, जिसका इण्टरव्यू लिया जाता है। इसी तरह इण्टरव्यू में जिस आन्तरिक विश्लेषण, विचारों के विवेचन और सोद्देश्यता का आग्रह होता है वह संस्मरण और रेखाचित्र में नहीं पाया जाता । 

इंटरव्यू साक्षात्कार विधा का इतिहास और विकास

अन्य विधाओं की भाँति इस विधा का विकास भारतेन्दुयुग में हो चुका था। सर्वप्रथम पं० राधाचरण गोस्वामी ने भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से साक्षात्कार करके उनसे साहित्यिक प्रश्न पूछे थे और उन्हें प्रकाशित करवाया था। फिर पं० चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' जी ने प्रख्यात संगीतकार विष्णु दिगम्बर पुलस्कर से भेंट करके संगीत विषयक प्रश्न पूछे थे। यह इंटरव्यू 'समालोचना' पत्रिका के दिसंबर (1905) के अंक में 'संगीत की धुन' शीर्षक से प्रकाशित हुआ। बनारसीदास चतुर्वेदी ने सन् (1931) में जगन्नाथदास 'रत्नाकर' का इंटरव्यू लिया जो 'विशाल भारत' के सितंबर 1931 के अंक में 'रत्नाकर जी से बातचीत' शीर्षक से प्रकाशित हुआ। उन्हीं के द्वारा प्रेमचन्द के साथ इंटरव्यू जनवरी, 1932 के 'विशाल भारत' में 'प्रेमचंद जी के साथ दो दिन' शीर्षक से प्रकाशित हुआ। सन् 1933 में उषादेवी मित्रा ने प्रेमचन्द का इंटरव्यू पत्राचार के माध्यम से लिया। अक्टूबर 1939 में 'वीणा' के अंक में रामचन्द्र शुक्ल का प्रभाकर माचवे द्वारा लिया गया इंटरव्यू प्रकाशित हुआ ।

हिंदी इंटरव्यू साक्षात्कार का उद्भव और विकास


डॉ० सत्येन्द्र के सम्पादकत्व में प्रकाशित 'साधना' पत्रिका के मार्च-अप्रैल, 1941 के अंक का इस विधा के विकास में महत्त्वपूर्ण स्थान है। जगदीशप्रसाद चतुर्वेदी और चिरंजीलाल ‘एकांकी' द्वारा क्रमशः भदन्त आनन्द कोसल्यायन और महादेवी वर्मा से लिये गये इंटरव्यू इस अंक की उल्लेखनीय रचनाएँ है। बेनीमाधव शर्मा की 'कवि-दर्शन' इस विधा की प्रथम स्वतन्त्र कृति है, जिसमें अयोध्यासिंह उपाध्याय, श्यामसुन्दरदास, रामचन्द्र शुक्ल, मैथिलीशरण गुप्त प्रभृति कृतिकारों से लिये गये इंटरव्यू संगृहीत हैं।
 
'इंटरव्यू' के संदर्भ में सर्वाधिक लोकप्रिय कृति डॉ० पद्मसिंह शर्मा 'कमलेश' द्वारा दो भागों में विरचित 'मैं इनसे मिला' (1952) है। 'कमलेश' जी ने जहाँ सम्बद्ध साहित्यकार से कुछ बँधे-बँधायें प्रश्न पूछकर उनके उत्तर सँजोने की शैली अपनायी है, वहाँ स्रष्टा साहित्यकार से बातचीत करने के बाद अपने मन पर पड़े प्रभाव को लिपिबद्ध कर देने की शैली का भी प्रयोग किया है। दिनकर की 'वट पीपल' (1961) और विष्णु प्रभाकर की 'कुछ शब्द कुछ रेखाएँ (1965) में भी अन्यविषयक रचनाओं के साथ कुछ भेंट-वार्त्ताएँ दी गयी हैं। प्रभाकर माचवे, शिवदानसिंह चौहान, रामचरण महेन्द्र कैलाश 'कल्पित' आदि लेखकों ने भी इस विधा की समृद्धि में योग प्रदान किया है। इधर कुछ ऐसे ग्रन्थ भी प्रकाशित हुए हैं जिनमें किसी एक विशिष्ट साहित्यकार से पूछे गये प्रश्नों के उत्तर संकलित हैं। इस दृष्टि से 'समय और हम' तथा 'समय समस्या और सिद्धान्त' विशेषरूपेण उल्लेखनीय हैं। इनमें क्रमशः वीरेन्द्रकुमार गुप्त तथा रामावतार ने जैनेन्द्रजी से भेंट-वार्त्ताओं के आधार पर साहित्यिक, सामाजिक, राजनीतिक आदि क्षेत्रों से सम्बद्ध प्रश्नों के उत्तर सँजोये हैं। इसी प्रकार का एक अन्य संग्रह 'हिन्दी-कहानी और फ़ैशन' है, जिसमें डॉ० सुरेश सिन्हा ने उपेन्द्रनाथ अश्क से अपनी कुछ भेंट-वार्त्ताओं का प्रश्नोत्तर-रूप में संयोजन किया है। 

नई धारा, सारिका, धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान आदि पत्रिकाओं का भी इस दिशा में उल्लेखनीय योग रहा है। 'नई धारा' में 'हम इनसें मिले थे' शीर्षक स्थायी स्तम्भ के अन्तर्गत अनेक रोचक इंटरव्यू प्रकाशित हुए हैं। 'सारिका' के 1963-1965 ई० तक के अंकों में भी अनेक महत्त्वपूर्ण इंटरव्यू प्रकाशित हुए। इसी प्रकार मासिक पत्रिका 'संगीत' में 'संगीत-साधकों से भेंट' शीर्षक के अन्तर्गत प्रसिद्ध संगीतज्ञों के इंटरव्यू प्रकाशित होते रहे हैं। 
इस प्रकार 'इंटरव्यू' विधा प्रगति के पथ पर अग्रसर है। 

साक्षात्कार का महत्व

साक्षात्कार, जिसे इंटरव्यू या भेंटवार्ता भी कहा जाता है, हिंदी साहित्य और समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह केवल जानकारी प्राप्त करने का साधन नहीं है, बल्कि यह मनोरंजन, शिक्षा, सामाजिक जागरूकता और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का भी एक महत्वपूर्ण माध्यम है।

यहां साक्षात्कार के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा की गई है:

1. जानकारी और ज्ञान का स्रोत:साक्षात्कार प्रसिद्ध व्यक्तियों, विशेषज्ञों, और आम लोगों से बातचीत करके हमें विभिन्न विषयों, विचारों, और अनुभवों से परिचित कराते हैं। यह हमें नई जानकारी प्रदान करते हैं और हमारे ज्ञान का आधार बढ़ाते हैं।

2. मनोरंजन का साधन:साक्षात्कार, रोचक और मनोरंजक तरीके से प्रस्तुत किए जाने पर, पाठकों को आनंद और प्रेरणा प्रदान करते हैं। प्रसिद्ध हस्तियों की कहानियां, उनके अनुभव और विचार, पाठकों को प्रेरित करते हैं और उनका मनोरंजन करते हैं।

3. सामाजिक जागरूकता:सामाजिक मुद्दों, समस्याओं, और चुनौतियों पर आधारित साक्षात्कार लोगों को जागरूक करते हैं और सामाजिक परिवर्तन को प्रेरित करते हैं।

4. सांस्कृतिक आदान-प्रदान:विभिन्न क्षेत्रों, समुदायों, और संस्कृतियों के लोगों से बातचीत करके साक्षात्कार सांस्कृतिक समझ और सहिष्णुता को बढ़ावा देते हैं।

5. साहित्यिक विधा के रूप में:साक्षात्कार हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा है। यह रचनात्मकता, कल्पनाशीलता और लेखन कौशल को दर्शाता है।

निष्कर्ष: साक्षात्कार केवल प्रश्नोत्तर तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह एक कला और संवाद का माध्यम है। यह हमें शिक्षित करता है, मनोरंजन करता है, और प्रेरित करता है। साहित्य और समाज में साक्षात्कार का महत्व सदैव बना रहेगा।

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