एक सौ चार डिग्री | सुशांत सुप्रिय की कहानी

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एक सौ चार डिग्री शहर में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दंगे हो रहे हैं । मैं , प्रशांत श्रीवास्तव , तेज़ बुख़ार में तप रहा हूँ । एक सौ चार डिग्री । मैं

एक सौ चार डिग्री


हर में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दंगे हो रहे हैं । मैं , प्रशांत श्रीवास्तव , तेज़ बुख़ार में तप रहा हूँ । एक सौ चार डिग्री । मैं आपको जो बताने जा रहा हूँ , उस पर आप यक़ीन नहीं करेंगे । डॉक्टर भी उस पर यक़ीन नहीं करते । दरअसल जब भी शहर में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दंगा-फ़साद होने लगता है , मुझे तेज बुख़ार हो जाता है । यह रोग मुझे बचपन से है।

बचपन का झटका
बचपन में हमारे इलाक़े में हुए दंगों में मैंने अपने जिगरी दोस्त अल्ताफ़ को खो दिया था । शायद अपनी आँखों के सामने हुई अल्ताफ़ की हत्या के आघात की वजह से मुझे पहली बार तब तेज बुख़ार हो गया था । उस के बाद तो जब भी कहीं से हिंदू-मुस्लिम दंगों की खबर आती , मुझे एक सौ चार डिग्री बुख़ार हो जाता । जब स्थिति सामान्य होती , तब जा कर मेरा बुख़ार उतरता ।

क्या प्यार करना गुनाह है ?
एक सौ चार डिग्री
मैं हमेशा यही सोचता था कि हम लोग एक लिबरल , धर्म-निरपेक्ष देश में जी रहे हैं जहाँ हर धर्म , हर मज़हब को फलने-फूलने की इजाज़त है । क्या मैं ग़लत सोचताथा ? मैं इंसानियत में यक़ीन रखता था । क्या ऐसा करना अपराध था ?

कॉलेज में मैं एक मुसलमान लड़की फ़ीरोज़ा को जी-जान से चाहने लगा । धीरे-धीरे उसे भी मुझसे बेइंतहा प्यार हो गया । हम जानते थे कि आगे की राह मुश्किल है , लेकिन हमें भरोसा था कि इक्कीसवीं सदी में हमारे पढ़े-लिखे परिवार इस मसले का हल निकाल लेंगे । समाज हमें अपना लेगा । क्या हम ग़लत थे ? क्या हमारा आपस में प्यार करना गुनाह था ?

प्रशांत श्रीवास्तव का सपना टूटा
मैंने सबसे पहले अपने परिवार वालों को फ़ीरोज़ा के बारे में मनाना चाहा । पर मेरे पिता ने कहा — “ तुम दोनों यह शादी निभा नहीं पाओगे । आजकल की स्थिति से तुम अनभिज्ञ नहीं हो । “ माँ बोली , “ वह लड़की हमारे यहाँ ज़्यादा दिन टिक नहीं पाएगी । हमारे पर्व-त्योहार , रीति-रिवाज़ , सब अलग हैं । “ भाइयों ने कहा , “ भैया , ऐसा करके आप मुसीबत मोल ले रहे हो । देश के हालात आप देख ही रहे हो । ऐसे में एक मुसलमान लड़की से शादी करने का आपका फ़ैसला सही नहीं है ।“

मुझे उम्मीद थी कि मेरी बहन मेरा साथ देगी । पर उसने भी वही राग आलापा , “ भैया , अगर ऐसा हुआ तो हमारे यहाँ रमज़ान के रोज़े रखे जाएँगे । ईद मनाई जाएगी । पाँच वक़्त की नमाज़ पढ़ी जाएगी । सिर्फ़ हलाल मीट आएगा । होली , दीवाली तो अब भूल ही जाओ , भैया । “

अपने परिवार वालों की बातें सुनकर मेरा दिल खट्टा हो गया । सोचा था , मेरा परिवार मान गया तो फिर फ़ीरोज़ा के घरवालों को मनाने की कोशिश करूँगा । एक सपना था कि हर मज़हब के लोग आपस में मिल-जुल कर रहें । वह सपना टूट गया ।

फ़ीरोज़ा का ख़्वाब भी चकनाचूर हुआ 
मैं प्रशांत से बहुत प्यार करती हूँ । वह भी मुझसे बेइंतहा प्यार करता है । मेरे अब्बू आइ. ए. एस. ऑफ़िसर हैं । अम्मी कॉलेज में पढ़ाती हैं । मुझे उम्मीद थी कि मैं उन दोनों को हमारी शादी के लिए मना लूँगी । लेकिन मुझे झटका लगा । 2014 के चुनाव के बाद मुल्क़ में निज़ाम बदल गया था । काउ-ब्रिगेड लिंचिंग पर उतारू था । माहौल ख़राब हो रहा था । ऐसे में मेरे अब्बू ने जब मेरी प्रेम-कहानी सुनी तो वे कहने लगे , “ फ़ीरोज़ा , मुल्क़ के हालात तो तू देख ही रही है । कहीं तुम दोनों की शादी की वजह से मुज़फ़्फ़रनगर दंगों जैसा कोई नया फ़साद न शुरू हो जाए । मैं तुम्हें यह शादी करने की सलाह नहीं दूँगा । “

अम्मी बोली , “ मेरी बच्ची , आजकल के हालात के मद्देनज़र तुम्हारा हिंदू लड़के से ब्याह करना ठीक नहीं होगा । यह शादी मत कर । “ मेरे भाई तो और कट्टर थे । हमारी शादी की बात सुनकर वे आग-बबूला हो गए ।मैंने एक ख़्वाब देखा था जिसमें हम दोनों के परिवार वाले आपस में मिल-जुल कर रहते और भाईचारे की मिसाल पेश करते । पर मेरा वह ख़्वाब चकनाचूर हो गया ।

कोर्ट-मैरेज
दोनों परिवार वालों के विरोध के बावजूद हम आपस में शादी करने के फ़ैसले पर कायम रहे । बात धीरे-धीरे फैल रही थी । हमें दोनों ओर के गुंडों ने मार देने की धमकी भी दी । पर हमें प्यार की ताक़त पर यक़ीन था । हमने पुलिस से सुरक्षा माँग ली । अपने दोस्तों की मदद से हमने कोर्ट-मैरेज कर ली । इसके बाद हम शहर के इलाक़े ग्रीन-पार्क में रहने लगे । इस बीच लॉ करने के बाद मैंने एम. बी. ए. कर ली थी और इंडिया बुल्स कम्पनी में मुझे अच्छी नौकरी मिल गई थी । फ़ीरोज़ा ने भी यू. जी. सी. की नेट परीक्षा पास कर ली और उसकी नियुक्ति शहर के एक कॉलेज में लेक्चरर के रूप में हो गई । दुख की बात यह थी कि हम दोनों के परिवार वालों ने इस शादी की वजह से हमसे सारे रिश्ते तोड़ लिए ।

मुसीबत शुरू
शुरू में सब कुछ ठीक-ठाक रहा । पर डेढ़-दो महीने के बाद इलाक़े का एक हिंदू नेता मुझसे मिलने हमारे घर आया । वह मुझ पर दबाव बनाने लगा कि मैं फ़ीरोज़ा का धर्मांतरण करके उसे हिंदू बनाऊँ । मैंने उसे समझाना-बुझाना चाहा कि यह हमारा आपसी मामला है और अब तो हमारी शादी भी हो गई है । पर वह नहीं माना । धमकी देकर चला गया ।

दूसरी ओर कुछ दिनों बाद इलाक़े का एक मुसलमान नेता ज़हर उगलने के लिए हमारे घर आ धमका । उसने फ़ीरोज़ा को भड़काया कि उसका शौहर एक काफ़िर है । इस्लाम इसकी इजाज़त नहीं देता । इसलिए या तो वह मेरा मज़हब बदल कर मुझे मुसलमान बनाए या यह शादी तोड़ ले । फ़ीरोज़ा ने जब उसकी बात नहीं मानी तो वह भी हमें धमकी दे कर चला गया ।

अब क्या होगा ?
धीरे-धीरे दोनों ओर के कट्टरपंथियों ने पूरे इलाक़े में तनाव फैला दिया । आए दिन दोनों ओर से भड़काऊ बयानबाज़ी होती । दोनों धर्मों के ठेकेदारों के द्वारा जुलूस निकाले जाते । ज़हरीले भाषण और तक़रीरें होतीं ।फिर शहर के मंदिरों में गायों के कटे सिर और मस्जिदों में सूअर का मांस फेंका जाने लगा । धार्मिक पर्व-त्योहारों के मौक़े पर पथराव और आगज़नी होने लगी ।

काला दिन
छब्बीस जनवरी वाले दिन शहर में दोनों ओर से दंगे-फ़साद शुरू हो गए । आज सत्ताइस जनवरी है ।दंगाई हमारे इलाक़े में भी आ पहुँचे हैं । हमारे घर के सामने दोनों ओर के दंगाइयों की भीड़ जमा है । दंगाई एक-दूसरे पर पेट्रोल-बम फेंक रहे हैं और देसी कट्टों से फ़ायरिंग कर रहे हैं । घरों और दुकानों में आग लगाई जा रही है । हवा में ‘हर-हर महादेव ‘ और ‘ अल्लाह-ओ-अक़बर ‘ के नारों की गूँज है । चारों ओर दहशत का आलम है ।फ़ीरोज़ा ने पुलिस को फ़ोन किया है । पर दंगाइयों की संख्या ज़्यादा है । पुलिस यहाँ तक पहुँचने की भरपूर कोशिश कर रही है ।

घर के भीतर मैं एक सौ चार डिग्री बुख़ार में तप रहा हूँ । फ़ीरोज़ा मेरे माथे पर ठंडे पानी की पट्टियाँ बदल रही है । मैं उसके हाथ अपने हाथों में ले लेता हूँ । उसकी आँखों में आँसू हैं । तभी वहशी दंगाइयों द्वारा घर का बाहरी दरवाज़ा तोड़े जाने की आवाज़ आती है । काश , इसी पल पुलिस आ जाती या ऐसा कोई चमत्कार हो जाता जिससे वहशी भीड़ तितर-बितर-बितर हो जाती , मेरा तेज बुख़ार उतर जाता और फिर कभी नहीं चढ़ता ...

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प्रेषक : सुशांत सुप्रिय
A-5001 ,
गौड़ ग्रीन सिटी,
वैभव खंड,
इंदिरापुरम् ,
ग़ाज़ियाबाद-201014
( उ.प्र. )
मो : 8512070086
ई-मेल : sushant1968@gmail.com
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