टोबा टेक सिंह कहानी की समीक्षा | सआदत हसन मंटो

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टोबा टेक सिंह कहानी की समीक्षा सआदत हसन मंटो टोबा टेक सिंह सआदत हसन मंटो द्वारा रचित एक प्रसिद्ध लघु कथा है, जो भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान लाहौर

टोबा टेक सिंह कहानी की समीक्षा | सआदत हसन मंटो


टोबा टेक सिंह सआदत हसन मंटो द्वारा रचित एक प्रसिद्ध लघु कथा है, जो भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान लाहौर के एक पागलखाने में घटित घटनाओं पर आधारित है।

कहानी का मुख्य पात्र, बिशन सिंह, एक सिख व्यक्ति है जो अपने पैतृक गांव, टोबा टेक सिंह, के प्रति गहरे लगाव रखता है। विभाजन के बाद, टोबा टेक सिंह पाकिस्तान में चला जाता है, और बिशन सिंह, जो भारत में रहने के लिए मजबूर है, अपने गांव लौटने की लालसा में पागल हो जाता है।पागलखाने में, बिशन सिंह अन्य विभाजन पीड़ितों से मिलता है, जो सभी अपने खोए हुए घरों और प्रियजनों के बारे में सोचकर दुखी हैं। धीरे-धीरे, बिशन सिंह का टोबा टेक सिंह का जुनून इतना बढ़ जाता है कि वह बाकी सब कुछ भूल जाता है।

एक दिन, जब भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा का निर्धारण किया जा रहा होता है, बिशन सिंह को पता चलता है कि टोबा टेक सिंह "नो-मैन लैंड" में आ गया है, यानी न तो भारत का हिस्सा है और न ही पाकिस्तान का। यह सुनकर, बिशन सिंह पूरी तरह से टूट जाता है और उसकी मृत्यु हो जाती है।

टोबा टेक सिंह कहानी का सारांश 

सआदत हसन मंटो ने अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा हिंदुस्तान में बिताया। हिंदुस्तान की मिट्टी ही उनकी कर्मभूमि रही। लेकिन बँटवारे के साथ ही उन्हें विस्थापित होकर पाकिस्तान जाना पड़ा। अपनी मिट्टी से उखड़ने और एक नई जगह पर जाकर बसने के लिए संघर्ष करने की पीड़ा को उन्होंने बहुत ही गहराई से अनुभव किया। यही कारण है कि उनकी कहानियों में देश-विभाजन की पीड़ा, घुटते-तड़पते लोगों के दर्द और बँटवारे की कड़वी सच्चाई का चित्रण बहुत ही सूक्ष्मता के साथ मिलता है। 'टोबा टेक सिंह' नामक कहानी में भी उन्होंने 'टोबा टेक सिंह' और अन्य पागल कैदियों के विविध कार्यकलापों, उनके स्थानांतरण और टोबा टेक सिंह की मृत्यु के द्वारा इसी कटु सत्य को उजागर करने की कोशिश की है। 

टोबा टेक सिंह कहानी की समीक्षा | सआदत हसन मंटो
देश के विभाजन के बाद सीमा के आस-पास रहने वाले अधिकांश लोगों को विस्थापित होना पड़ा। हिंदुस्तान की सीमा में रहने वाले मुसलमान पाकिस्तान जाने को बाध्य हुए, जबकि पाकिस्तान की सीमा में रहने वाले हिन्दू हिंदुस्तान चले आयें। कुछ दिनों के बाद कैदियों की अदला-बदली भी हो गई। इसके बाद दोनों देशों की सरकारों को महसूस हुआ कि दोनों देशों के पागलखानों में बंद पागलों की भी अदला-बदली कर दी जाय। अर्थात् हिंदुस्तान के पागलखानों में कैद पाकिस्तानी पागलों को पाकिस्तान के पागलखानों में भेज दिया जाय जहाँ इनके रिश्तदार रहते हों, और पाकिस्तान के पागलखानों में कैद हिंदुस्तानी पागलों को हिंदुस्तान के पागलखानों के हवाले कर दिया जाय। इस निर्णय के बाद पागलखानों में कई तरह की चर्चाएँ होने लगी। पागलों को न तो हिंदुस्तान के बारे में कोई विशेष जानकारी थी और न ही पाकिस्तान के बारे में। वे देश के बँटवारे का भी अर्थ नहीं जानते थे । वे एक- दूसरे से इस संदर्भ में सवाल पूछ रहे थे और बेमतलब के निष्कर्ष निकाल रहें थे। कोई पेड़ पर चढ़कर हिंदुस्तान- (पाकिस्तान के संबंध में भाषण दे रहा था, तो कोई एकांत में शांतभाव से टहल रहा था। कोई खुद को मुहम्मद अली जिन्ना घोषित कर रहा था, तो कोई इस बँटवारे के कारण हुए नुकसान के दर्द में डूबा जा रहा था ।

लाहौर के पागलखाने में विशन सिंह नाम का एक सिख पागल कैद था। वह खानदानी परिवार से संबंध रखता था। जिसकी एक बहुत बड़ी जागीर पाकिस्तान के टोबा टेक सिंह नामक स्थान पर थी। लेकिन अचानक ही दिमागी हालत खराब होने के कारण उसे पागलखाने लाया गया और अब पन्द्रह वर्षों से यहीं था । इन पंद्रह वर्षों में वह एक क्षण के लिए भी न सोया था और न लेटा था, जिसके कारण उसके पाँव सूज गये थे। हर माह उसके परिवार वाले मिलने आते थे लेकिन वह किसी को पहचानता नहीं था। इसके बावजूद परिवार के लोगों के आने का आभास उसे पहले ही हो जाता था और बदहाल रहने वाला विशन सिंह परिजनों से मिलने के लिए सज- सँवरकर तैयार हो जाता था। बँटवारे के बाद उसके परिजन हिंदुस्तान आ गये और अब वे विशन सिंह से मिलने में असमर्थ थें। इसी वजह से वह उदास रहने लगा था। लेकिन जब पागलों की अदला-बदली की प्रक्रिया जारी हुई तब उसे भी बागाह बॉर्डर पर ले जाया जाने लगा। जब उसे पता चला कि उसका अपना इलाका टोबा टेक सिंह पाकिस्तान में रह गया है, तो उसने हिंदुस्तान जाने से मना कर दिया। वह जाकर बोर्डर के पास वाली दीवार से चिपट गया और काफी कोशिश के बाद भी उसे वहाँ से हटाया न जा सका। उसके एक ओर उसकी अपनी जमीन, अपना मकान, अपनी यादें और अपना बचपन था, जो पाकिस्तान के हिस्से चला गया था। जबकि दूसरी ओर उसके परिवार के अपने लोग और अपनी बेटी रूपकौर थी, जिन्हें वह बेहद चाहता था, जो हिंदुस्तान के हिस्से मैं आ चुके थे। दोनों सीमाओं के बीच खड़ा विशन सिंह का मन भी दो खंडों में बँट रहा था। वह किसे स्वीकारे और किसे छोड़े इसी उधेड़बुन में नीचे गिरा और बँटवारे के दर्द ने उसकी इहलीला समाप्त कर दी । 


टोबा टेक सिंह उर्फ बिशन सिंह का चरित्र चित्रण

बिशन सिंह का संबंध एक खानदानी जमींदारं परिवार से था। इस वजह से उसमें उच्च वर्गीय गुणों का होना लाजिमी था, लेकिन पागलपन के कारण उसके सभी गुण प्रायः लुप्त हो गये थे। इसके बावजूद वह बहुत ही शांत, गंभीर और मितभाषी था। वह गौर से सभी बातों और बहसों को सुनता था, लेकिन बोलता बहुत ही कम था । उसे अपने परिवार वालों और रिश्तेदारों से बहुत लगाव था। इसी कारण जब वे मिलने आते थे, तो वह बन-संवरकर जाता था। इसके अलावा उसे अपनी जमीन, अपना घर और अपने क्षेत्र के प्रति गहरी आत्मीयता थी। इसी कारण वह हिन्दुस्तान नहीं जाता है, भले ही मानसिक चक्र-व्यूह में फँसकर अपनी जान गँवा देता है।

टोबा टेक सिंह एक जटिल और बहुआयामी चरित्र है। वह विभाजन की त्रासदी, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों और आशा का प्रतीक है। मंटो ने इस चरित्र को इतनी कुशलता से चित्रित किया है कि वह पाठकों के मन में गहरा प्रभाव डालता है।

टोबा टेक सिंह कहानी का मूल उद्देश्य 

मनुष्य अपनी सुविधा के लिए देश, राज्य, प्रांत और गाँव बनाता है। एक विशेष स्थान पर रहते हुए, उस स्थान के जर्रे जर्रे से उसका लगाव हो जाता है। उस परिवेश, वहाँ की मिट्टी, वहाँ के लोग और वहाँ के समाज से वह आत्मीयता के साथ जुड़ जाता है। उसके जीवन और जीविका का साधन भी वही जगह बन जाता है। लेकिन जब व्यक्तिगत स्वार्थ और राजनीतिक लाभ के लिए किसी मुल्क को बाँटा जाता है और लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जबरन विस्थापित किया जाता है, तब जो पीड़ा होती है, उससे केवल देश ही नहीं टूटते बल्कि लोगों के दिल, उनकी जीविका के आधार और संबंधों के डोर टूट जाते हैं। विभाजन और विस्थापन की इसी पीड़ा को दर्शाना ही लेखक का उद्देश्य है ।

टोबा टेक सिंह कहानी का महत्व

टोबा टेक सिंह विभाजन की त्रासदी और उसके मानवीय प्रभावों का एक शक्तिशाली चित्रण है। यह कहानी विभाजन के कारण हुए विस्थापन, अलगाव और नुकसान को उजागर करती है।

मंटो ने कुशलतापूर्वक बिशन सिंह के चरित्र के माध्यम से विभाजन के मनोवैज्ञानिक प्रभावों को दर्शाया है। बिशन सिंह का टोबा टेक सिंह का जुनून पाकिस्तान से उसके जबरदस्ती उखाड़ फेंकने और उसकी जड़ों से कटने का प्रतीक है।यह कहानी विभाजन की विडंबनाओं को भी उजागर करती है। कैसे एक सीमा का खींचना हजारों लोगों को उनके घरों और प्रियजनों से अलग कर सकता है, और कैसे यह एक व्यक्ति के लिए इतनी पीड़ा और दुःख का कारण बन सकता है।

टोबा टेक सिंह कहानी के प्रश्न उत्तर


प्र. और यह भी कौन सीने पर हाथ रखकर कह सकता है कि हिन्दुस्तान और पाकिस्तान, दोनों किसी दिन सिरे से गायब ही हो जाएँ ।” भाव स्पष्ट करें। 
उत्तर : हिन्दुस्तान के बँटवारे के बाद जब पागलों के तबादले की प्रक्रिया शुरू हुई, तो सभी पागल एक उलझन में फँस गये। उन्हें लगा कि आखिर यह सब हो क्या रहा है। जब पागलखाने आये थे, तब यह सब हिन्दुस्तान था, आज अचानक पाकिस्तान में हम कैसे आ गये। जो शहर पहले हिन्दुस्तान में हुआ करते थे, अब पाकिस्तान का हिस्सा बन गये। उनकी उलझन इतनी बढ़ गई थी कि उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि क्या-क्या हिन्दुस्तान में है और क्या पाकिस्तान में। उन्हें कोई समझा भी नहीं पा रहा था कि बँटवारे का मतलब क्या होता है। उन्हें इस बात की फ्रिक हो गई थी कि कहीं ऐसा न हो जाए कि हिन्दुस्तान और पाकिस्तान भी गायब हो जाय, जैसे सारे जगहों के मुल्क बदल गये हैं ।
 
प्र. अधिकांश पागल अदला-बदली के पक्ष में क्यों नहीं थे और इस अदला-बदली से उनकी क्या दशा थी? 
उत्तर : इस अदला-बदली से अधिकांश पागल संतुष्ट नहीं थे। उन्हें हिन्दुस्तान-पाकिस्तान का चक्कर नहीं समझ में आ रहा था। वे सोच रहे थे कि जो कल तक यहीं रहते हुए भी हिन्दुस्तान के नागरिक थे, अचानक वे पाकिस्तान के नागरिक कैसे हो गये? कैसे जो शहर कल तक हिन्दुस्तान की शान थे, वे आज पाकिस्तानी शहर बन गयें। इसके अलावा आखिर क्यों उन्हें इस शहर से जाना पड़ रहा है, जहाँ वे सदियों से रहते आये थे। वह भी एक ऐसी जगह जाना पड़ रहा है जहाँ न उन्हें कोई पहचानता है और न ही वे किसी को जानते हैं। इस अदला-बदली ने उनकी इस बिगड़ी मानसिक दशा को और भी बिगाड़ कर रख दिया था ।

प्र. सांप्रदायिक सद्भाव और राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने के उपायों पर अपने विचार लिखिए। 
उत्तर : आज जब चारों ओर सांप्रदायिकता की आग जंगल की आग की तरह देश में फैलती जा रही है और इसे रोकने के सारे प्रयास रेगिस्तान में गिरने वाली कुछ वर्षा की बूँदें ही सिद्ध हो रही हैं वहीं उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जनपद के सादात बाजार का यह विवाह मेला सांप्रदायिक एकता की मिसाल प्रदर्शित कर रहा था। सामूहिक विवाह के लिए विशाल मंडप बना हुआ है। उसे फूलों और कपड़ों से इस प्रकार सजाया गया है कि लगता है किसी बहुत बड़े पूँजीपति की पुत्री के विवाह के लिये बना हो। चारों तरफ दर्शकों, फोटोग्राफरों और पत्रकारों की भीड़ लगी हुई है। लोग उत्साह के साथ इधर-उधर घूमते हुए दिखाई पड़ रहे हैं। रंग-बिरंगे वस्त्र पहने बच्चे और आस-पास के गाँवों की युवतियों की भीड़ लगी है। यह एक अनोखा दृश्य है।
 
विशाल मंडप में एक तरफ संस्कृत के श्लोक पढ़े जा रहे हैं और हिंदू विवाह की सारी पद्धतियों का अनुकरण हो रहा हैं तो दूसरी तरफ कुरान की आयतें पढ़ी जा रही हैं और निकाह का कार्यक्रम चल रहा है। इन दोनों मंचों के निकट ही एक तीसरा मंच भी है, जहाँ बुद्ध के धम्म पद का उच्चारण बड़े भावपूर्ण ढंग से हो रहा है। बाजार का खेल मैदान, खेल मैदान के बजाय अनेकता में एकता की संस्कृति वाले महान भारत का लघु रूप अधिक दिखाई पड़ रहा है। मैदान के चारों तरफ सांप्रदायिक सौहार्द्र का दृश्य है। सभी की आँखों में एक दूसरे के प्रति लगाव और ममत्व का अनोखा संगम, देखकर लगता है कि अपनत्व की इस डोर को कोई साजिश कभी तोड़ पायेगी! एक दर्शक कह रहा है कि श्लोक, आयतें और धम्म पद का उच्चारण एक साथ पढ़ी जाती देख कर वह अभिभूत है। सामूहिक विवाह के कार्यक्रम को सांप्रदायिक एकता की मिसाल मानने वालों में अशिक्षित से लेकर शिक्षाविद्, राजनीतिज्ञ से लेकर समाजसेवी सभी हैं। यह आयोजन सांस्कृतिक संगम का अनोखा रूप है। 

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