हिंदी के प्रमुख ऐतिहासिक नाटक और नाटककार

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हिंदी के प्रमुख ऐतिहासिक नाटक और नाटककार हिन्दी नाटक का इतिहास अत्यंत समृद्ध और विविधतापूर्ण रहा है हिंदी नाटक साहित्य में ऐतिहासिक नाटकों का विशेष स्

हिन्दी के ऐतिहासिक नाटक एवं नाटककारों पर लेख


हिंदी के प्रमुख ऐतिहासिक नाटक और नाटककार हिन्दी नाटक का इतिहास अत्यंत समृद्ध और विविधतापूर्ण रहा है। नाटक के विभिन्न रूपों, जैसे कि भक्ति नाटक, सामाजिक नाटक, और ऐतिहासिक नाटक ने हिन्दी साहित्य को समृद्ध बनाया है। ऐतिहासिक नाटक, जो प्राचीन या मध्यकालीन घटनाओं पर आधारित होते हैं, हिन्दी नाटक का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

ऐतिहासिक नाटक की विशेषताएं

ऐतिहासिक नाटक में, नाटककार इतिहास की घटनाओं और पात्रों को अपनी कल्पना और रचनात्मकता के साथ पेश करते हैं। इन नाटकों में, ऐतिहासिक सटीकता के साथ-साथ नाटकीयता और मनोरंजन का भी ध्यान रखा जाता है।

ऐतिहासिक नाटकों की परम्परा

हिन्दी के ऐतिहासिक नाटक एवं नाटककारों पर लेख
हिन्दी साहित्य में ऐतिहासिक नाटकों की परम्परा भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से प्रारम्भ होती है। उन्होंने सर्वप्रथम 'नीलदेवी' नामक ऐतिहासिक नाटक की रचना की। यह 'एकांकी' ढंग का नाटक है जिस पर पारसी थियेटर का भी किंचित प्रभाव दिखाई पड़ता है। इसमें आरम्भ में अप्सराओं द्वारा गायन है तथा स्थान-स्थान पर संगीत का प्रयोग है। इस नाटक की नायिका में लेखक ने नारी जाति में शौर्य एवं भारतीय गौरव की अभिव्यक्ति की है। नाटकीय शिल्प की दृष्टि से यह नाटक सामान्य है। भारतेन्दु युग के अन्य ऐतिहासिक नाटककारों में राधाकृष्णदास प्रसिद्ध है। इन्होंने 'पद्मावती' और 'महाराणा प्रताप' शीर्षक से दो ऐतिहासिक नाटक लिखे जो देश-प्रेम एवं बलिदान की भावना से ओतप्रोत हैं। महाराणा प्रताप में ऐतिहासिक वृत्त के साथ ही काल्पनिक वृत्त भी मिश्रित है जिसने इस नाटक को अधिक रोचक और चरित्र-विधायक बना दिया है। यह अपने युग का लोकप्रिय नाटक है। इसका अनेक बार अभिनय हुआ। इस युग के अन्य ऐतिहासिक नाटककारों में काशीनाथ खत्री, श्रीनिवासदास और बैकुण्ठनाथ प्रमुख हैं। बैकुण्ठनाथ का 'श्री हर्ष', श्री निवासदास का 'संयोगिता स्वयंवर' और राधाचरण गोस्वामी का 'अमरसिंह राठौर' नामक ऐतिहासिक नाटक प्रसिद्ध है। गोस्वामी जी का नाटक रस-प्रधान तथा दुःखान्त है।
 

ऐतिहासिक नाटकों का संक्रान्ति काल

भारतेन्दु के बाद और प्रसाद युग के पूर्व संक्रान्ति काल में भी कुछ ऐतिहासिक नाटकों का सृजन हुआ। बद्रीनाथ भट्ट ने 'चन्द्रगुप्त', दुर्गावती नामक ऐतिहासिकनाटकों की रचना की। 'चन्द्रगुप्त' भट्ट जी का लोकप्रिय नाटक है। इन दोनों नाटकों की रचना की। 'चन्द्रगुप्त' भट्ट जी का लोकप्रिय नाटक है। इन दोनों नाटकों की कथावस्तु शिथिल है और चरित्र-चित्रण सामान्य कोटि का है। फिर भी संक्रान्ति काल के ऐतिहासिक नाटककार के रूप में भट्ट जी का अपना विशेष महत्त्व है। 

प्रसाद युग के ऐतिहासिक नाटककार

प्रसाद युग के ऐतिहासिक नाटककारों में प्रसाद जी के अतिरिक्त पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र, मुंशी प्रेमचन्द, जगन्नाथ प्रसाद मिलिन्द, चतुरसेन शास्त्री, मिश्रबन्धु और रूपनारायण पाण्डेय प्रमुख हैं। उग्रजी का सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक नाटक 'महात्मा ईसा' सन् 1925 में प्रकाशित हुआ । इसमें ईसा मसीह का चरित्र नवीन रूप से प्रस्तुत किया है। इस नाटक में सांस्कृतिक और राष्ट्रीय चेतना की अभिव्यक्ति हुई है। मुंशी प्रेमचन्द का — कर्बला' शीर्षक ऐतिहासिक नाटक सन् 1924 ई. में प्रकाशित हुआ। इसमें हुसैन और खलीफा के संघर्ष तथा कर्बला के शत्रुओं द्वारा हुसैन की हत्या का इतिवृत्त प्रस्तुत किया गया है। इस पर पारसी थियेटर की छाप है। मिलिन्द जी ने सन् 1928 में 'प्रताप प्रतिज्ञा' शीर्षक प्रौढ़ ऐतिहासिक नाटक लिखा, इसमें वीरता देश-भक्ति एवं त्याग का अपूर्व चित्र प्रस्तुत किया है। चतुरसेन शास्त्री ने 1930 ई. में 'उत्सर्ग' नाम के ऐतिहासिक नाटक की रचना की। मिश्रबन्धु का 'शिवाजी' और रूपनारायण पाण्डेय का 'पद्मिनी नाटक भी ऐतिहासिक नाटकों की परम्परा में अपना स्थान रखते हैं।
 

प्रसाद के ऐतिहासिक नाटक

हिन्दी नाटकों की ऐतिहासिक धारा को पूर्ण उत्कर्ष प्रदान करने वाले एवं हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ नाटककार जयशंकर प्रसाद ने तो इस क्षेत्र में क्रान्ति ही कर दी। इनके पूर्व भारतेन्दु युग में हिन्दी नाटक अपनी शैशवावस्था में था। संक्रान्ति काल में तो हिन्दी नाटकों की परम्परा एकदम क्षीण हो गई। प्रसाद जी ने हिन्दी नाटकों को प्रौढ़ता एवं प्रांजलता प्रदान की। हिन्दी नाटक साहित्य में प्रसाद जी ने इतिहास और नाटक का सफल समन्वय किया और अपने ऐतिहासिक नाटकों में प्राचीन भारतीय संस्कृति के गौरव तथा वैभव की प्रतिष्ठा के साथ ही समकालीन राजनैतिक और सामाजिक समस्याओं की अप्रत्यक्ष अभिव्यक्ति भी की। उन्होंने बौद्ध युग से हर्षवर्द्धन युग तक के इतिहास की प्रमुख घटनाओं के आधार पर ऐतिहासिक नाटकों की रचना की। इनका रचनाकाल सन् 1910 से 1932 तक है। सन् 1912 में प्रसाद जी ने 'चन्द्रगुप्त' नाटक का पूर्व रूप 'कल्याणी परिणय' के नाम से नागरी प्रचारिणी पत्रिका में प्रकाशित कराया। इसके उपरान्त उन्होंने राज्यश्री, अजातशत्रु, स्कन्दगुप्त, ध्रुवस्वामिनी आदि प्रसिद्ध एवं श्रेष्ठ ऐतिहासिक नाटकों की रचना की। उन्होंने अपने इन ऐतिहासिक नाटकों में सांस्कृतिक चेतना और राष्ट्रीयता की उत्कृष्ट भावना का सुन्दर सम्मिश्रण किया है। प्रसाद जी ने ऐतिहासिक नाटक लिखने के प्रयोजन की अभिव्यक्ति 'विशाख' नाटक की भूमिका में की है, 'मेरी इच्छा भारतीय इतिहास के अप्रकाशित अंश में से उन प्रकाण्ड घटनाओं का दिग्दर्शन कराने की है जिन्होंने हमारी वर्तमान स्थिति को बनाने का बहुत कुछ प्रयत्न किया है।" 

इनके अलावा, अन्य प्रमुख नाटककारों में रामकुमार भ्रमर, लक्ष्मीनारायण मिश्र, जगदीशचंद्र माथुर, मोहन राकेश, धर्मवीर भारती, भवभूति, शूद्रक, कालिदास, विशाखदत्त, सुरेन्द्र वर्मा, भीष्म साहनी, हबीब तनवीर, विजय तेंडुलकर, वृंदावनलाल वर्मा, मैथिलीशरण गुप्त, दया प्रकाश सिन्हा, वसंत शंकर कानेटकर, जगन्नाथ प्रसाद 'मिलिन्द' आदि का नाम उल्लेखनीय है।

हिन्दी ऐतिहासिक नाटक हिन्दी साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा है। ये नाटक न केवल मनोरंजन करते हैं, बल्कि इतिहास के बारे में भी जानकारी और शिक्षा प्रदान करते हैं। हिन्दी ऐतिहासिक नाटकों ने हिन्दी साहित्य और रंगमंच को समृद्ध बनाया है।

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