डॉ राजेंद्र प्रसाद पर निबंध हिंदी | Dr Rajendra Prasad Essay in Hindi

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डॉ राजेंद्र प्रसाद पर निबंध हिंदी Dr Rajendra Prasad Essay in Hindi डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद, जिन्हें प्यार से राजेन बाबू कहा जाता था भारत के स्वतंत्रता

डॉ राजेंद्र प्रसाद पर निबंध हिंदी | Dr Rajendra Prasad Essay in Hindi


डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद, जिन्हें प्यार से "राजेन बाबू" कहा जाता था, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख स्तंभ थे। वे न केवल एक कुशल वकील और राजनेता थे, बल्कि भारतीय संविधान के निर्माण में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी।

राजेंद्र प्रसाद का जीवन परिचय

देशरत्न राजेन्द्र प्रसाद का जन्म बिहार राज्य के सारन जिला (आजकल का गोपालगंज जिला) अन्तर्गत 'जीरादेई' नामक एक गाँव में सन् 1884 ई० के दिसम्बर मास में हुआ था। इनके पिता का नाम मुन्शी महादेव सहाय था। ये बड़े दयालु एवं परोपकारी थे। इनकी माता भी बड़ी सरल प्रकृति की थीं। माता-पिता दोनों के सुन्दर चरित्र का प्रभाव बचपन से ही राजेन्द्र बाबू के जीवन पर पड़ा । 

डॉ राजेंद्र प्रसाद पर निबंध हिंदी | Dr Rajendra Prasad Essay in Hindi
शिक्षा-
पाँच वर्ष की उम्र में ही इन्हें अक्षर ज्ञान कराकर एक मौलवी साहब की देखरेख में फारसी की शिक्षा दी जाने लगी। नौ वर्ष की अवस्था में ये छपरा हाई स्कूल में प्रविष्ट हुए तथा अपनी तीव्र बुद्धि के कारण 1903 ई० में ही कलकत्ता विश्वविद्यालय की इन्ट्रेन्स की परीक्षा में सर्वप्रथम हुए। इसके पश्चात् एफ० ए० तथा बी० ए० की परीक्षाओं में ये सर्वोच्च रहे तथा छात्रवृत्तियाँ भी प्राप्त की। तत्पश्चात् एम० ए० तथा बी० एल० परीक्षाएँ पास करके इन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय की सर्वोच्च परीक्षा एम० एल० में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया।
 
शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ ये खेल तथा सभा-समितियों में भी हाथ बँटाते रहते थे। उस समय देश में स्वदेशी आन्दोलन जोरों से चल रहा था और राजेन्द्र बाबू पर भी इसका अच्छा प्रभाव पड़ा। बिहार के छात्रों में जागृति लाने का सारा श्रेय राजेन्द्र बाबू को है। देश-प्रेम का अंकुर कालेज-जीवन से ही राजेन्द्र बाबू के हृदय में अंकुरित हो गया जो समय पर विकसित एवं पल्लवित हुआ। । 

डॉ राजेंद्र प्रसाद का देश प्रेम एवं राष्ट्र सेवा  

सर्वप्रथम इन्होंने कलकत्ता हाईकोर्ट में वकालत शुरू की, किन्तु सर आशुतोष ने इन्हें लॉ कालेज में प्रोफेसर नियुक्त कर दिया। कुछ समय बाद पटना हाईकोर्ट खुल जाने पर ये पटना में ही वकालत करने लगे और वहाँ के एक सुप्रसिद्ध वकील हो गये। गाँधी जी ने सन् 1917 में चम्पारण के किसानों की दयनीय दशा की जाँच में राजेन्द्र बाबू को भी साथ में रख लिया था। गाँधी जी का इनके ऊपर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा और वकालत छोड़कर सन् 1920 में चम्पारन सत्याग्रह में इन्होंने सक्रिय भाग लिया। इसमें इन्हें जेल भी जाना पड़ा। जेल से बाहर आने पर इन्होंने 'बिहार विद्यापीठ' नामक एक राष्ट्रीय शिक्षण संस्थान स्थापित किया जिसमें देश-सेवा करने वाले कार्यकर्ता बड़ी संख्या में तैयार किये जाने लगे। इसके बाद ही नमक-कानून-भंग आन्दोलन में भाग लेने के कारण इन्हें पुनः जेल जाना पड़ा। इसी समय बिहार में भयंकर भूकम्प होने पर इन्हें जेल से छोड़ दिया गया और इन्होंने भूकम्प पीड़ितों की बड़ी लगन से सेवा की। 

इनके देश सेवा कार्यों से प्रसन्न होकर सन् 1934 में इन्हें बम्बई कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। इस पद पर रहकर इन्होंने सारे देश का भ्रमण किया और जनता का ध्यान कांग्रेस के कार्यों की ओर आकृष्ट किया। इसके बाद ये कई बार कांग्रेस के अध्यक्ष हुए। जेल जाने का काम भी इनका साथ-साथ चलता रहा और लगभग सात बार जेल गये।
 
सरकार से समझौता होने के बाद सन् 1946 में भारत सरकार के खाद्य मंत्री के पद पर रहकर इन्होंने बड़ी योग्यता से इसका कार्य सम्पादन किया। आगे चलकर ये विधान परिषद के भी अध्यक्ष चुने गये और 1950 ई० की जनवरी को तो ये भारतीय गणतन्त्र के प्रथम राष्ट्रपति ही निर्वाचित हो गये। तब से उसी पद पर मृत्यु के कुछ समय पहले तक रहकर देश-सेवा करते रहे। 

डॉ राजेंद्र प्रसाद का हिन्दी प्रेम 

हिन्दी के प्रति राजेन्द्र बाबू का बड़ा प्रेम रहा और इसी कारण हिन्दी भाषा-भाषी जनता ने दो बार अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन का इन्हें अध्यक्ष बनाया । साहित्य के प्रति भी इनकी पर्याप्त रुचि रहती थी और अवकाश मिलने पर स्वयं भी कुछ लिखने से नहीं चूकते थे। इनके लिखे 'खण्डित भारत' तथा आत्मकथा' नामक पुस्तकें साहित्य की अमूल्य निधियाँ हैं । 

डॉ राजेंद्र प्रसाद की चारित्रिक विशेषताएँ

राजेन्द्र बाबू के गुणों का वर्णन करना सूर्य को दीपक दिखाना है। कौन ऐसा व्यक्ति है जो इनकी सच्चरित्रता, सादगी, उदारता एवं क्षमाशीलता पर न्यौछावर न हो जाय। सादगी के तो ये अवतार ही थे। कष्ट साहिष्णु भी कम न थे। साहस और निर्भीकता भी इनमें कूट-कूट कर भरी थी। इनकी विनम्रता को देखकर इनमें अपार श्रद्धा हो जाती थी। सत्य, प्रेम और अहिंसा तो इनके जन्मजात गुण प्रतीत होते थे। गाँधी जी के स्वप्नों को साकार करने के लिए ये सदा प्रयत्नशील रहे। ऐसा मालूम होता था कि गाँधी जी के सारे गुण इन्हें विरासत के रूप में प्राप्त हो गये हैं। 

उपसंहार

ऐसे सुयोग्य, कर्मनिष्ठ व्यक्ति को राष्ट्रपति के रूप में पाकर हमारा देश गौरवान्वित हुआ और स्वतन्त्रता के शैशव-काल में राष्ट्र का इनसे महान हित हुआ। 

डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद भारत के एक महान राष्ट्रपति थे जिन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम और संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे अपनी विनम्रता, सादगी और समर्पण के लिए जाने जाते थे। आज भी उन्हें भारत के प्रेरणादायी नेताओं में से एक माना जाता है।

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