भारत की खाद्य समस्या पर हिंदी में निबंध

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भारत की खाद्य समस्या पर हिंदी में निबंध भारत, कृषि प्रधान देश होने के बावजूद, खाद्य सुरक्षा की गंभीर चुनौती का सामना कर रहा है। यह विडंबना है कि जहां

भारत की खाद्य समस्या पर हिंदी में निबंध


भारत, कृषि प्रधान देश होने के बावजूद, खाद्य सुरक्षा की गंभीर चुनौती का सामना कर रहा है। यह विडंबना है कि जहां एक ओर अन्न का भंडार भरा हुआ है, वहीं दूसरी ओर लाखों लोग भुखमरी और कुपोषण का शिकार हैं।

गगन पवन पावक जल धरनी। 
निरमल विधि अस अद्भुत करनी ॥
 
यह शरीर पंचभूतों- मिट्टी, पानी, अग्नि, वायु और आकाश-से बना है। अत: इन्हीं तत्त्वों के संपोषण के लिए, शरीर की शक्ति की रक्षा और बुद्धि के विकास के लिए भोजन आवश्यक है। आहार हमारी प्राथमिक आवश्यकता है। खाद्य की समस्या शरीरधारियों की पहली समस्या है। मुँह और पेट दोनों में पेट-पालन पहले। भारत को आजादी जब से मिली है तब से यह समस्या अपने सिर आ गयी है। पहले जब अंग्रेज इस देश के भाग्य-विधाता थे तब यह समस्या भगवान के हाथ थी। कितने अकाल पड़े, कितनी बार भारत के असंख्य लाल काल के गाल में समा गये, गिन नहीं सकते। 

कलि बारहिं बार अकाल परे । 
बिनु अन्न दुःखी सब लोग मरें ॥ 

भारत अंग्रेजों के समय से कलि के इस प्रकोप का भाजन होता रहा है । 

भारत में खाद्य समस्या के कारण

हमारी खाद्य-समस्या के कारण अनेक हैं। धरती सूखी, किसान भूखा, सरकार बेखबर, कर्मचारी अन्धे, खेती-विधि पुरानी, अशिक्षा का अन्धकार घनघोर और सबसे विकट आबादी की तेज वृद्धि। खाने वाले बढ़ते गये और खाद्य कम होता गया।

भारत की खाद्य समस्या पर हिंदी में निबंध


आजाद भारत ने खाद्य-समस्या को सुलझाने के लिए पहला कदम उठाया। खाद के कारखाने बनाये। नदियों में बाँध बाँधकर सूखी धरती को सींचने के लिए नहरें निकाली। अंधेरा दूर करने के लिए बिजली के तार फैलाने का प्रयास किया। स्कूल और कालेज खोले। ग्राम पंचायतें बनायीं। ग्राम विकास योजनायें बनीं। थानों के अन्तर्गत एक-एक प्रखण्ड बनाये, गाँवों की समस्याओं को हल करने में, विशेषकर कृषि को सुधारने के लिए अच्छे बीज, अच्छे हल, तकाबी, लोन, रिलीफ वर्क आदि के लिए ये प्रखण्ड वरदान सिद्ध हुए। कृषि मेले लगाये गये। किसानों में नयी चेतना जगी। नये कुएँ बनाये गये। गाँवों तक सड़कें बनीं। नये बाजार बन गये। परिवहन का संचार दूर-दूर तक फैलाया गया। सारा भारत जैसे अंगड़ाइयाँ लेकर नवयुग की नयी सुबह जाग उठा ।
 
आजाद भारत ने विदेशों से खाद, बीज, खाद्यान्नादि ऋण में भी लिए। विदेशियों को बुलाकर अपने देश की विशाल सम्भावनाओं से परिचित भी कराया। इस शस्य श्यामला धरती की तकदीर बदलने के लिए रूस, अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया आदि अनेक देशों ने यथाशक्ति सहायताएँ भी दी। नये कल-कारखानों के विकास ने नये भारत को सजीव एवं सक्रिय बना दिया। कुछ दोस्त और कुछ दुश्मन भी बने। 

हमारी खाद्य-स्थिति सँभल गयी। 1964 के आसपास हम सप्ताह में कुल छः दिन के भोजन को स्वयं उत्पन्न करने में समर्थ हो गये, और आज हमारी धरती कृषि के मामले में एकदम सक्षम और स्वावलम्बी है। ऊसर आज उर्वर हो चला है। गाँव- गाँव में मोटर पम्प के गाने और टैक्टर के तराने गूँज रहे हैं। उपज चौगुनी से दस गुनी हो गयी। हरियाणा जैसे राज्य अतिरिक्त अन्न उपजाने लगे हैं। किन्तु कहीं-कहीं व्यवस्था की गड़बड़ी हो रही है।
 

भारत की खाद्य समस्या एक जटिल चुनौती

उत्पादन बढ़ गया तो वितरण की समस्या बढ़ गयी। सबके पीछे लोभ की समस्या है। हम विदेशी मुद्रा बढ़ाने के लिए खाद्यान्न बाहर भेज देते हैं। जो घर में रह जाता है उसे व्यापारी खरीद कर गोदामों को भर देते हैं और अपने मनमाने ढंग से दाम बढ़ाकर बेचते हैं। मुनाफाखोरी के दैत्य ने कालाबाजार चला रखा है। भ्रष्टाचार कहाँ नहीं है ? बेईमानी कहाँ नहीं है ? भाई-चारे का, देश-प्रेम का, सहयोग का अभाव हो गया है। रिश्वत का बाजार गर्म है और हम अपनी-अपनी सोच लेकर बेचैन हैं। 

राजनीतिक दलबन्दियाँ जनता की समस्याओं को और भी बढ़ाती जा रही हैं। शरणार्थियों की संख्या, बेहिसाब बढ़ती आबादी हमारी थाली का ग्रास रो-गाकर छीन लेती हैं। धन कमाने का लोभ हमें चाँपता जा रहा है।

अतः हमें आँख खोलकर सच्चाई, ईमानदारी, देश-भक्ति और सर्वोदय की चिन्ता करनी होगी। उपभोग और वितरण की योजना को नया झटका देकर सँभालना होगा। तभी देश की खाद्य समस्या सुधरेगी।

निष्कर्ष

भारत की खाद्य समस्या एक जटिल समस्या है जिसके लिए बहुआयामी समाधान की आवश्यकता है। सरकार, नागरिक समाज और निजी क्षेत्र को मिलकर काम करना होगा ताकि सभी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि खाद्य सुरक्षा केवल भोजन की उपलब्धता तक ही सीमित नहीं है। इसमें पोषण भी शामिल है। सभी लोगों को स्वस्थ और पौष्टिक भोजन तक पहुंच होनी चाहिए, ताकि वे स्वस्थ और उत्पादक जीवन जी सकें।

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