आधुनिक उपन्यासों की मुख्य विशेषताएँ

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आधुनिक उपन्यासों की मुख्य विशेषताएँ आधुनिक उपन्यास, जो 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध और 20वीं शताब्दी में विकसित हुए, साहित्यिक दुनिया में क्रांतिकारी

आधुनिक उपन्यासों की मुख्य विशेषताएँ


धुनिक उपन्यास, जो 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध और 20वीं शताब्दी में विकसित हुए, साहित्यिक दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव लाए।इन उपन्यासों ने विषयवस्तु, शैली, पात्र चित्रण और सामाजिक संदर्भ में अभूतपूर्व विविधता और प्रयोगों को अपनाया।

आधुनिक उपन्यासों में विस्तार अधिक

प्राचीन उपन्यासों की अपेक्षा आधुनिक उपन्यासों में शब्द तथा अर्थ दोनों ही प्रकार की सामग्री का बड़ी मितव्ययिता से उपयोग किया है । विस्तार जहाँ उचित प्रकार के अन्वित होकर मनोरम प्रतीत होता है, वहाँ अनुचित रूप से फैल कर अव्यवस्था तथा अरसिकता का द्योतक भी बन जाता है । हमारे प्राचीन कला- कारों में विस्तार की यह प्रवृत्ति आवश्यकता से अधिक मिलती है। जहाँ हम महाश्वेता जैसे परम पावन पात्रों के लिए बाणभट्ट को शततः नमस्कार करते हैं, वहीं साथ ही अनेक पृष्ठों को घेरने वाले राज-द्वार के वर्णन को पढ़कर खीझ भी जाते हैं ।
 

कथा की एकता पर अधिक बल

आधुनिक उपन्यासों ने घटना समुद्र में अपनी उपन्यास नौका की एक निर्धारित रेखा पर ले जाना ही श्रेयस्कर समझा है।किन्तु इसका यह आशय नहीं है कि प्राचीन उपन्यासकारों की अपेक्षा वह अपनी रचना को कम कठिन समस्याओं के आधार पर खड़ा करता है। नहीं, प्राचीन उपन्यास की अपेक्षा वह न्यन निदर्शन का उपयोग करता हुआ भी उनसे कहीं अधिक प्रभाविकता के साथ अपने पात्रों का चरित्र-चित्रण करता है । 

आधुनिक उपन्यासों की मुख्य विशेषताएँ

जहाँ वह घटनाओं के विस्तार में अतीत के कलाकारों से पीछे है, वहाँ घटनाओं के उचित निर्वाचन में वह उनसे आगे बढ़ गया है और एक बार हस्तगत की गई कतिपय घटनाओं के माध्यम में से ही अभिलाषित परिणाम लाकर उपस्थित करता है। आधुनिक कलाकार को, उपन्यास को पहले से कहीं अधिक संकुचित सीमा में रखना पड़ता है और बसलिए उसको अधिक बलवती परिभाषा की परिधि में काम करना पड़ता है । इंग्लैंड में 'लिली' के दिन से लेकर और हमारे यहाँ 'कादम्बरी' से आरम्भ करके अब तक कहानी को दार्शनिक टीका, देशीय चित्रण, ऐतिहासिक तथ्य तथा अन्य प्रकार की अनेक बातों से सुसज्जित करके दिखाया जाता रहा है । कथा के चहुँ ओर फैली हुई इस घास को न लाकर, आधु- निक कलाकार ने केवल अपने ध्येय ही को पहले की अपेक्षा कहीं अधिक निर्धारित तथा परिछिन्न बनाया है । साथ ही उससे उद्भूत होने वाली कथा की एकता को भी पहले से कहीं अधिक बलवती कर दिखाया है । 

देशकाल निर्दिष्ट की परिधि में सीमित

इसी उद्देश्य से वह अपनी कला के विकास के लिए किसी प्रान्त को अथवा तहसील को चुनता है। इसमें सन्देह नहीं कि प्राचीन कलाकारों की रचनाओं में भी कहीं-कहीं इस प्रकार का नियन्त्रण दीख पड़ता है किन्तु जहाँ उनकी रचनाओं में यह नियन्त्रण विधिवसात् स्वमेव आ गया है, वहाँ आधुनिक रचनाओं में सिद्धान्त रूप से इसे स्वीकार किया जाता है।

आधुनिक उपन्यासों में मनोविज्ञान का विस्तार

आधुनिक उपन्यासों में देशकाल के बाल की खाल को चीरने वाले विस्तृत वर्णन नहीं मिलते जिनसे प्राचीन उपन्यास आद्योपान्त भरे रहते थे। किन्तु जहाँ आधुनिक कलाकार मनुजत्व के साथ प्रत्यक्ष सम्बन्ध न रखने वाली बाह्य पद्धति के अनावश्यक वर्णन से विमुख हो चुके हैं, वहाँ उनमें मनोवैज्ञानिक दृष्टि से पात्रों का विश्लेषण करने की परिपाटी सी बल पड़ी है। जिस सीमा तक आधुनिक कलाकार मनोवैज्ञानिक द्वारा अपनी कथा को विज्ञान के चक्रव्यूह में डाल रहा है, उसी सीमा तक वह उपन्यास के उन प्रारम्भिक जटिल रचयिताओं का समकक्ष बनता जा रहा है, जो देश और काल की सूक्ष्म पच्चीकारी में पड़ कर अपनी कथा को भला दिया करते थे।

देशकाल निधान घटनाओं का सार

आधुनिक कलाकारों में प्राचीन उपन्यासों में पाई जाने वाली अनावश्यक वृद्धि को काट-छांट कर ही सन्तोष नहीं किया; उन्होंने देशकाल के विधान को अपनी कथा का आंगिक उपकरण ही बना लिया है। यों तो देश और काल दोनों ही प्राचीन उपन्यासों में भी पर्याप्त मात्रा में विद्यमान रहते थे, किन्तु जहाँ प्राचीन उपन्यासों में उनका उपयोग मुख्यतया अलंकारिणी, पार्श्व-भूमि (Background) के रूप में होता था, वहीं आजकल के उपन्यासों में इन दोनों का स्वत्व निकाल कर उपन्यास के पौत्रों को उसमें रंग दिया जाता है। आज देशकाल उपन्यास वर्णित घटनाओं की पावं- भूमि न रहकर उसके पात्रों के अवयव अथवा सार बन कर हमारे समक्ष आते हैं । प्रेमचन्द जी के उपन्यास इस बात के श्रेष्ठ निदर्शन हैं।
 
उपर्युक्त कथन का सार यह है कि आधुनिक कलाकारों ने उपन्यास किया है। जिस प्रकार उसके पात्र चेतन प्रस्फुटित होते चले को चेतन संगठन का रूप देने का प्रयत्न हैं, और घटनाओं के रूप में अपने आप उनकी रचना भी चेतन हैं; वह अनायास ही अपने पटलों में जाते हैं; उसी प्रकार फूटती चली जाती है।
 
संक्षेप में -"आज उपन्यास का ध्येय हो गया है, कथा कहना और उसे परिचित के साथ कहना; उपन्यास डरता है देश काल का निदर्शन करने से, अथवा चित्रपट का फोटोग्राफर बनने से, और मनोविज्ञान का विशेषज्ञ बनने से ।" 

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि आधुनिक उपन्यासों की यह विशेषताएं निश्चित नहीं हैं। अपवाद और विविधताएं हमेशा मौजूद रहती हैं।  आधुनिक उपन्यास साहित्यिक अभिव्यक्ति का एक समृद्ध और गतिशील रूप है जो पाठकों को विचार करने, महसूस करने और कल्पना करने के लिए प्रेरित करता रहता है।

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