विद्यानिवास मिश्र का साहित्यिक जीवन परिचय

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विद्यानिवास मिश्र का साहित्यिक जीवन परिचय विद्यानिवास मिश्र हिंदी साहित्य के एक स्तंभ थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया रचनाएं

विद्यानिवास मिश्र का साहित्यिक जीवन परिचय


विद्यानिवास मिश्र हिंदी साहित्य के एक स्तंभ थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया।  1926 में गोरखपुर में जन्मे मिश्र जी ने निबंध, कहानी, नाटक, और सम्पादन जैसे विविध क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया।

विद्यानिवास मिश्र का जीवन परिचय

विद्यानिवास मिश्र का साहित्यिक जीवन परिचय
विद्यानिवास मिश्र का जन्म, जनवरी, 1926 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के पकडडीहा गाँव में हुआ था। इन्होंने 1945 ई. में प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम. ए. करने के पश्चात् हिन्दी साहित्य सम्मेलन में स्व. राहुल सांकृत्यायन के निर्देशन में कोश कार्य किया। प्रो. मिश्र हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार थे। इनकी विद्वता से हिन्दी जगत् का कोना-कोना परिचित है। कुछ वर्ष पश्चात् पं. मिश्र अमेरिका चले गए, जहाँ उन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में हिन्दी साहित्य और तुलनात्मक भाषाविज्ञान का अध्यापन किया। इन्होंने अमेरिका के बर्कले विश्वविद्यालय में भी शोध कार्य किया था। वर्ष 1967- 1968 में वाशिंगटन विश्वविद्यालय में हिन्दी साहित्य के अध्येता रहे थे। कुछ समय मध्य प्रदेश में सूचना विभाग में कार्यरत रहने के पश्चात् इन्होंने अध्यापन के क्षेत्र में कार्य करना प्रारम्भ किया। तदुपरान्त विंध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के सूचना विभागों से सम्बद्ध रहे। वर्ष 1957 में विश्वविद्यालय सेवा से जुड़े डॉ. मिश्र ने गोरखपुर विश्वविद्यालय, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी स्थित सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में भाषाविज्ञान एवं आधुनिक भाषाविज्ञान के आचार्य एवं अध्यक्ष पद पर भी मिश्र जी ने 1968 से 1977 ई. तक कार्य किया। 

कुछ वर्षों बाद ये इसी विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। राष्ट्र ने इनकी साहित्यिक सफलताओं को सम्मान देते हुए सांसद नियुक्त किया। इन्हें 'पद्मभूषण' पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। प्रो. मिश्र भारतीय ज्ञानपीठ के न्यासी बोर्ड के सदस्य थे और मूर्ति देवी पुरस्कार चयन समिति के अध्यक्ष भी रहे। हिन्दी साहित्य सम्मेलन में स्व. राहुल के साथ कोश कार्य किया। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा के निदेशक पद पर कार्यरत रहे। प्रो. विद्यानिवास मिश्र स्वयं को 'भ्रमरानंद' कहते थे, इसी उपनाम से इन्होंने कई रचनाएँ की हैं। हिन्दी के एक प्रसिद्ध समीक्षक एवं ललित निबंध लेखक है। साहित्य की इन दोनों विधाओं में इनका स्थान महत्त्वपूर्ण है और हमेशा रहेगा। निबंध के क्षेत्र में इनका योगदान अविस्मरणीय है। उपलब्धियों की लम्बी श्रृंखला के बावजूद भी हमेशा अपनी कोमल अभिव्यक्ति के कारण सदैव प्रशंसनीय रहे हैं। इनके ललित निबंधों की महक से साहित्य ज्ञान सदैव महकता रहेगा 
प्रो. विद्यानिवास मिश्र के ललित निबंधों की शुरुआत सन् 1956 ई. में हुई। अपनी साहित्यिक सेवाओं के लिए इनको भारत सरकार द्वारा पद्मश्री (1988) भारतीय ज्ञानपीठ के मूर्तिदेवी पुरस्कार (1990) और के. के. बिड़ला फाउंडेशन के शंकर पुरस्कार सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। इनकी मृत्यु 14 फरवरी, 2005 ई. को हुई। 

विद्यानिवास मिश्र का साहित्यिक योगदान

मिश्र जी को 'हिंदी निबंध सम्राट' के नाम से भी जाना जाता है।मिश्र जी ने 'आलोचना' नामक एक पत्रिका भी प्रकाशित की थी।मिश्र जी 'नवभारत टाइम्स' के सम्पादक भी रहे थे।
  • निबंध लेखन - मिश्र जी हिंदी निबंध के क्षेत्र में अग्रणी थे।  'भीग रहा है', 'संस्कृति और साहित्य', 'आलोचना की दिशाएँ' जैसी उनकी रचनाओं ने हिंदी निबंध को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।  उनकी सरल और सहज भाषा, गहरी विचारधारा, और भावनात्मक प्रभाव उनके निबंधों को विशेष बनाते हैं।
  • कहानी लेखन -मिश्र जी ने कहानी के क्षेत्र में भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया।  'छोटे-छोटे हाथ', 'एक टुकड़ा इतिहास', 'बिटिया' जैसी उनकी कहानियां मानवीय भावनाओं का सच्चा चित्रण करती हैं।
  • नाटक लेखन - मिश्र जी ने नाटक के क्षेत्र में भी योगदान दिया।  'अंधेरी नगरी', 'आँखों के आगे', 'यज्ञ' जैसे उनके नाटक सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को उठाते हैं।
  • सम्पादन कर्म -मिश्र जी ने 'नवभारत टाइम्स' और 'नवनीत' जैसे पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया।  उनके सम्पादन में इन पत्र-पत्रिकाओं ने हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

विद्यानिवास मिश्र की साहित्यिक विशेषताएँ

  • सरल और सहज भाषा: मिश्र जी की भाषा सरल और सहज थी, जिससे उनकी रचनाएं सभी के लिए सुगम हो गईं।
  • गहरी विचारधारा: मिश्र जी की रचनाओं में गहरी विचारधारा होती थी, जो पाठकों को सोचने पर मजबूर करती थी।
  • भावनात्मक प्रभाव: मिश्र जी की रचनाओं में भावनात्मक प्रभाव भी होता था, जो पाठकों को भावुक कर देता था।
  • पुरस्कार और सम्मान:मिश्र जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्मश्री, और पद्मभूषण जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

निष्कर्ष

विद्यानिवास मिश्र हिंदी साहित्य के एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे।  उनका निधन 14 फरवरी 2005 को दिल्ली में हुआ। उनकी रचनाएं आज भी पाठकों को प्रेरित करती हैं।विद्यानिवास मिश्र का साहित्य हिंदी साहित्य की एक अमूल्य धरोहर है।

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