तुलसीदास अपने युग के लोकनायक थे तुलसीदास हिंदी साहित्य के महानतम कवियों में से एक थे उनकी रचनाओं विशेष रूप से रामचरितमानस ने समाज पर गहरा प्रभाव डाला
तुलसीदास अपने युग के लोकनायक थे
तुलसीदास अपने युग के लोकनायक थे जब कोई समाज अपनी उन्नति का मार्ग नहीं ढूँढ़ पाता तब उसे जो व्यक्ति वास्तविक मार्ग दिखाता है वह समाज का लोकनायक माना जाता है। जिस युग में तुलसीदास ने 'रामचरितमानस' की रचना की थी उस युग में भारतीय समाज अपने प्राचीन गौरव, भारतीय प्राचीन आदर्श परम्परा और उस दर्शन को भूल चुका था, जिसका प्रकाश भारत के प्राचीन ऋषियों ने फैलाया था। आपसी द्वेषभाव एवं विदेशी आक्रमण के कारण यहाँ की परम्परागत शिक्षा-व्यवस्था नष्ट हो चुकी थी। देश की राज्य व्यवस्था तथा सामाजिक व्यवस्था भी आदर्श रूप में नहीं थी। भारत विदेशी शासकों का गुलाम हो चुका था। समाज में कोई दिशा नहीं दिख रही थी। सामान्य कविताओं में भक्ति की जो धारा बह रही थी, वह भारतीयों को आध्यात्मिक मार्ग पर तो ले जा रही थी, लेकिन एक आदर्श व्यवस्था से परिचय कराने में वह सक्षम नहीं थी। ऐसे समय में तुलसीदास ने 'रामचरितमानस' नामक एक ऐसे ग्रन्थ की रचना की जो राज्य-व्यवस्था, सामाजिक व्यवस्था, नीति व्यवस्था और मानव चरित्र की उत्कृष्ट छवि प्रस्तुत करने में समर्थ था ।
आध्यात्मिक ग्रन्थ होने के साथ-साथ इसमें दर्शन, सामाजिक व्यवस्था शिष्टता, राजा प्रजा, भाई-भाई, पिता-पुत्र एवं पति-पत्नी के आदर्श रूप की अभिव्यक्ति भी थी। इन्होंने अंधकार में भटकते भारतीय समाज को जीवन के उस आदर्श से परिचित कराया, जो वास्तव में भारतीय समाज का मौलिक जीवन दर्शन था और उसे भारतीय समाज भूल चुका था। जब मुगल-संस्कृति राज्य एवं सम्पत्ति के लिए छल-प्रपंच, हिंसा एवं अत्याचार का मार्ग अपनाने हेतु जनमानस को प्रेरित कर रही थी, उस समय तुलसीदास ने राम और भरत के रूप में एक आदर्श प्रस्तुत किया। इसमें भाई-भाई का प्रेम, पिता-पुत्र का प्रेम, राजा का आदर्श और प्रजा का कर्त्तव्य श्रेष्ठ रूप में प्रस्तुत किया गया है। राम एक आदर्श राजा हुए जिनके राज्य में पूरी प्रजा सुखी थी। राम के चरित्र में तुलसीदास ने मानव व्यक्तित्व के सभी आदर्श गुणों को समाविष्ट कर दिया। उन्होंने गुरु-शिष्य, पिता-पुत्र, माता-पुत्र के सम्बन्ध और सामाजिक शिष्टता के आदर्श का चित्रण किया। इसके साथ ही तुलसीदास ने विश्व-मानवता के लिए आध्यात्मिक आदर्श प्रस्तुत किया।
तुलसीदास ने अपने ग्रन्थ में दिशाहीन भारतीय समाज को प्रत्येक क्षेत्र में मार्ग दिखाया और उसके सामने मानव जीवन के एक ऐसे आदर्श को रखा, जो वास्तव में संसार के प्रत्येक मनुष्य और प्रत्येक समाज के लिए आदर्श हो सकता है। तुलसी का यह ग्रन्थ भारतीय समाज के घर-घर में पूजा की वस्तु बन गया। इस ग्रन्थ के साथ उन्होंने कवितावली, गीतावली, हनुमान बाहुक, विनय पत्रिका आदि पुस्तकें लिखकर मनुष्य को धर्म के मार्ग पर चलने को प्रेरित किया। विनय पत्रिका में तो उन्होंने कलियुग के पापों और मोहमाया से बचते हुए भगवान राम की शरणागति के लिए मनुष्य को प्रेरित किया। इन्होंने भारतीय समाज के बिखरते आदर्शों को फिर से संगठित कर दिया और सम्पूर्ण मानव-समाज के लिए आदर्श भावात्मक समाज की रूपरेखा प्रस्तुत की। इसी कारण तुलसीदास को अपने युग का लोकनायक कहा जाता है।
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