नारीत्व भाव को जागृत करना मनुष्यता है

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नारीत्व भाव को जागृत करना मनुष्यता है भारतवर्ष चाहे विश्व के सभी राष्ट्र एकजुट हो जाएं लेकिन फिर भी एक नारी का वर्णन करना कम ही होगा, चाहे वेद के शब्

नारीत्व भाव को जागृत करना मनुष्यता है


भारतवर्ष चाहे विश्व के सभी राष्ट्र एकजुट हो जाएं लेकिन फिर भी एक नारी का वर्णन करना कम ही होगा, चाहे वेद के शब्दों का चयन करना हो या फिर उपनिषदों का अध्ययन नारीत्व भाव को जागृत करना एक मनुष्यता है, ऋग्वेद की रचनाकार अत्रि मुनि की पुत्री अपाला ने ऋग्वेद के विचारों का वर्णन करने में अत्रि मुनि की मदद की ऐसे महान विदुषी सदैव भारतवर्ष की गरिमा होती है - 

" मैं भारतवर्ष के गद्य - गरिमा
कहीं वेदों की जो साज। 
कहीं प्रेम - रूप ने मुझको परखा
ये  मेरा इतिहास। 
कितनी भव्य - कलाओं का
कितना सुंदर राग। 
कहीं एक रूप से भव्य रूप का
राग बना अनुराग। 
हिमगिरी के उत्तंग शिखर से 
बहती गंगा आज। 
कहीं प्रेम - रूप ने मुझको परखा
ये  मेरा इतिहास। "

एक मान्यता है कि ग्रीस के देवता "क्रोनोश" की माँ स्टबेले को पूजनीय के रूप में एक आदर भाव देता है, वही भारतवर्ष में कहीं सरस्वती के रूप में, कहीं लक्ष्मी के रूप में और कहीं शक्ति के रूप में पूजनीय होती है । नारी चाहे किसी भी राष्ट्र की हों, उसका समस्त रूप एक आदरणीय रूप होता है जो कि समस्त संसार को एक उर्जा रूप प्रदान करता है - 

" कहीं योग ध्यान की मुद्रा में
कहीं पुण्य रूप में आई है। 
कहीं शाक्त रूप परिचायक हैं
नारी वहीं कहलाई हैं। "

अगर विदुषी चाहे राजनैतिक ढंग से या राजनयिक सिद्धांत से अपने राज्य को चला सकती है ऐसे ही एक वीर माता छत्रपति शिवाजी महाराज की माता जीजाबाई थी जिन्होंने अपने पुत्र को एक महान कुशल योद्धा के साथ-साथ सभी सिद्धांतों तथा प्रजा के हृदय में कैसे राज किया जाता है ऐसा संकल्प केवल वीरमाता ही ले सकती है - 

" जीजाबाई के कहने पर
वीर शिवाजी छाए थे। 
उनके स्नेह का वंदन करने
बस वीर - वीर ही छाए थे। 
चतुर्गिनीँ थी सेना जिसकी
अमन हुआ जगसारा|
हाहाकार मचादी जिसने
मुगलोँ को ललकारा|
ऐसे महा स्वराज्य की गाथा
उतरे जिसकी आरत है|
इनके रक्त की पावन मिट्टी
अपना प्यारा भारत है|"
नारीत्व भाव को जागृत करना मनुष्यता है

चाहे राष्ट्रभक्ति या फिर राज भक्ति देखी जाय तो तुम्हें केवल और केवल राजस्थान की माटी की ओर संकेत करूंगा जहां एक माँ ने दूसरे मां के पुत्र को बचाने के लिए अपने पुत्र का बलिदान दे दिया वो थी पन्ना धाय इसलिए इतिहास में उनका नाम और भी आदरणीय हो जाता है -

"इस माटी में खेल निराले
आन- बान और शान की। 
पन्नाधाय की राज - भक्ति से
खुशबू राजस्थान की। "

इस भारतवर्ष के गौरव गाथाओं में से एक महान कीर्ति का स्तंभ स्थापित हुआ था जोकि अलंकारों का अलंकार है वह वीर मेवाड़ पुत्र राजस्थान के मुकुट शिरोमणि महाराणा प्रताप है जिनकी रत्न प्रसूता माता जयंताबाई जोकि एक महान संभ्रांत कुल की महिला थी इनके आदर भाव से एक शेर ने जन्म लिया था -

"यही लड़ाका वीर भूमि सा
मेवाड़ - मुकुट राजस्थानी का। 
सिर मुगलों के काट गिराए
दूध पिया क्षत्राणी का। 
आज देखलो मानवता
मग्न हो जाओ अपने आप|
पन्द्रह छिहत्रह युद्ध हुआ था
हल्दीघाटी मेँ प्रताप|
मुगल की सेना राजपूताने
युद्ध मेँ जाने टँकार थी|
सर-सर मर-मर बाणोँ की वर्षा
चमक उठी तलवार थी|
रामचँद्र की बोली करते
चेतक मे आते है प्रताप
महाराणा की वीर भुजा थी
हल्दीघाटी मे प्रताप|"

नारी भाव को जागृत करने चाहे कितने वर्ष बीत जाए लेकिन भारतवर्ष सदैव महिलाओं के आदर भाव प्रेम भाव मर्यादा भाव सभी को आदर देता है । 

कहीँ मातृ-प्रेम की जननी है
कहीँ रक्षाबँधन भगिनी है|
कहीँ प्रेमरूप की की पावनी है
कहीँ गँगरूप की तारिणी है|

इसी से हम एक महत्वपूर्ण निर्माण करते हैं वो हैं राष्ट्र प्रथम कहीं-कहीं पर अपने मान सम्मान बचाने के लिए नारी को रौद्र रूप मैं भी आना पड़ता है वो थी झांसी की रानी जिन्होंने अपने गढ़ को बचाने के लिए स्वयं युद्ध में कूद गई- 

मान - मर्यादा ,भय लज्जा को
सबको आज निगल डालो
मन को बना लो साहस का 
खुद को आज बदल डालो। 

तुम पावन नदी की तारिणी हो  
कहीं बहन  रूप में चंगा हो । 
कहीं पति रूप में जीवन की
कहीं जमीन रुको मैं गंगा हों। 
दुनिया कहेगी छोड़ दो आज ये
उस आग में थोड़ा जल डालो। 
मन को बना लो साहस का 
खुद को आज बदल डालो। 

खुद तो राह बना कर देखो 
नदी को सागर मिलना है। 
उन कांटों से कह दो तुम
गुलाब कहीं से खिलना है। 
जो दिल में है तेरे आज ये डर
उस डर को आज कुचल डालो
मन को बना लो साहस का 
खुद को आज बदल डालो। 

- नरेंद्र सिंह भाकुनी

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