दूर के ढोल सुहावने पर कहानी | Door Ke Dhol Suhavane Hindi Story

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दूर के ढोल सुहावने पर कहानी | Door Ke Dhol Suhavane Hindi Story दूर के ढोल सुहावने एक ऐसा मुहावरा है जिसका प्रयोग अक्सर किया जाता है best hindi kahani

दूर के ढोल सुहावने पर कहानी


दूर के ढोल सुहावने एक हिंदी मुहावरा है जिसका अर्थ है "दूर से सब अच्छा लगना।" इस मुहावरे का प्रयोग अक्सर तब किया जाता है जब कोई व्यक्ति किसी चीज़ के बारे में केवल सुनकर या दूर से देखकर ही उसकी प्रशंसा करता है, लेकिन जब वह उस चीज़ के निकट जाता है या उसमें शामिल होता है, तो उसे पता चलता है कि वह उतनी अच्छी नहीं है जितनी उसे दूर से लग रही थी।

दूर के ढोल सुहावने पर कहानी | Door Ke Dhol Suhavane Hindi Story
दूर के ढोल सुहावने इस उक्ति का आशय है कि दूर से सब आकर्षक और लुभावना महसूस होता है लेकिन उसके व्यवहार से ही उसकी वास्तविकता का पता चलता है। यह मुहावरा हमें यह सीख देता है कि किसी चीज़ के बारे में राय बनाने से पहले उसे अच्छी तरह से समझना चाहिए।अक्सर लोग दूसरे देश के लोगों को सुखी और खुश समझते हैं। उन्हें लगता है दूसरे देश में जाने पर उन्हें परिवार व संस्थान के इस व्यर्थ के नियमों का भी पालन नहीं करना पड़ेगा। कहानी - दस-बारह साल की उम्र से ही मीनल जयपुर या दिल्ली के किसी बड़े, नामी कॉलेज के छात्रावास में रहकर पढ़ने की सोचा करती थी। उसके मन में छात्रावास के लिए एक अलग-सा उत्साह था। उसके परिवार में माँ-पापा के अलावा एक छोटा भाई मोहित था। पिता सरकारी नौकरी करते थे। उनका खुशहाल परिवार था। 

मीनल पढ़ाई में तो ठीक-ठाक थी लेकिन घर के कामों में मदद करने के लिए माँ का टोकना उसे पसंद नहीं आता था। वह स्कूल से घर आने के बाद अपने कपड़े, जूते, किताबें आदि भी उचित स्थान पर नहीं रखती थी। माँ अक्सर उसे समझाया करती लेकिन उसकी समझ में कुछ न आता। न उसे अपनी माँ का महत्त्व समझ में आ रहा था और न ही अपने घर का। मीनल ने स्कूल की पढ़ाई पूरी करके जयपुर के किसी कॉलेज में दाखिले की ज़िद की। उसकी ज़िद पर पिताजी ने जयपुर के एक कॉलेज में उसे दाखिला दिलवाया और वहीं छात्रावास में उसके रहने का सारा इंतज़ाम कर दिया। मीनल जाते समय बहुत खुश थी, उसकी मन की इच्छा जो पूरी हो गई थी। वह सोचती वहाँ वह आज़ाद होगी और माँ की बातें भी सुनने को नहीं मिलेगी लेकिन कुछ ही दिनों में सारी असलियत उसके सामने आ गई। छात्रावास में उसे सुबह उठकर स्वयं चाय बनानी होती, कमरे की सफाई करनी होती और अपने कपड़े भी धोने पड़ते। जबकि घर पर तो माँ कर देती थी। छात्रावास में छात्रों को सुबह जागने, प्रार्थना, कसरत, भोजन आदि के लिए बनाए गए नियमों का भी पालन करना होता । वहाँ मीनल को घर की बहुत याद सताने लगी। वहाँ कॉलेज से भी उसे काफी कार्य मिलता और वहाँ कोई मदद करने वाला भी नहीं था। वह उस बड़े शहर में अनजान थी, अतः कहीं घूमने भी नहीं जा पाती थी और छात्रावास के खाने में भी माँ के हाथ जैसा स्वाद नहीं था तब मीनल को समझ आया कि "दूर के ढोल सुहावने होते हैं।" 

सीख -दूर से अच्छी व लुभावनी लगने वाली हर वस्तु सदैव अच्छी नहीं होती, अतः जो हमारे पास है उसका महत्त्व समझना चाहिए। किसी भी स्थिति पर अपनी दूरदृष्टि से विचार अवश्य करना चाहिए। 

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