पढ़ाई कहानी जैनेन्द्र कुमार की समीक्षा उद्देश्य चरित्र चित्रण

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पढ़ाई कहानी जैनेन्द्र कुमार की समीक्षा उद्देश्य चरित्र चित्रण


ढ़ाई कहानी जैनेन्द्र कुमार की समीक्षा उद्देश्य चरित्र चित्रण जैनेंद्र द्वारा लिखी पढ़ाई कहानी में जैनेंद्र ने बेटी की पढ़ाई के लिए मां की चिंता को वक्त किया है। मां को लगता है कि वह लड़की है और उसे शउर और अदब से रहना चाहिए। क्योंकि यह समाज है और समाज में प्रतिष्ठा है, जो लड़की के बिगड़ने से धूल में मिल सकती है। मां को चिंता है कि कल को उसका ब्याह होगा घर में एक सास होगी,एक  ससुर होगा। और जब लड़के वाले लड़की देखने आएंगे तो क्या बताएंगे कि हमारी लड़की बहुत नाजों से पली है उसे कुछ नहीं आता !  तब तो यह बताना ही पड़ेगा कि लड़की ने बहुत काम सीखा है मास्टर से बहुत पढ़ाई सीखी है और पढ़ाई इतनी कक्षा तक की है।आने वाले कल में उनके पास बेटी की खूबियां बताने और उसके गुण गाने के लिए बहुत सी बातें हो,पढ़ी लिखी, सुशिक्षित,सुसंस्कृत,सलीकेदार, शालीन, और गृहकार्य दक्ष कन्या की मां कहलाने का गौरव प्राप्त हो, इसीलिए आज वह 6 साल की नूनी की पढ़ाई के पीछे पड़ी रहती है और उसकी पढ़ाई लिखाई को लेकर चिंतित रहती है।

नूनी की मां का चरित्र चित्रण

पढ़ाई कहानी जैनेन्द्र कुमार की समीक्षा उद्देश्य चरित्र चित्रण
पढ़ाई जैनेंद्र द्वारा रचित एक मनोवैज्ञानिक कहानी है..इसमें मां अपनी छःसाल की बेटी के भविष्य से चिंतित हो उसकी पढ़ाई के पीछे पड़ी रहती है। पर चूंकि वह मां है स्त्री भी है..इसलिए उसमें स्त्री सुलभ गुण भी विद्यमान है..इस आधार पर नूनी की मां की निम्नांकित विशेषताएं परिलक्षित होती है - 

  1. बेटी के भविष्य की चिंता - वह मां है इसलिए उसे बेटी के भविष्य की चिंता है। जब वह बड़ी होगी उसकी शादी होगी ससुराल जायेगी तो उसकी पढ़ाई लिखाई ही काम आयेगी ।
  2. मातृत्व से परिपूर्ण - नूनी को पढ़ाई न करने के लिए वह उसकी पिटाई करती है फिर बाद में दुखी हो जाती है ,उसे प्यार दुलार करती है, मिठाई खिलाती है,और मास्टर जी से विनती करती है कि उसे तस्वीर वाली किताब से पढ़ाएं और आज ज्यादा देर तक नहीं पढ़ाएं।
  3. अपनी बात मनवाने वाली - घर में वह अपनी ही बात मनवाना चाहती है खास तौर पर नूनी और नूनी की पढ़ाई को लेकर। नूनी की बुआ कहती हैं कि अभी बच्ची ही तो है इतनी सख्ती अच्छी नहीं है, पर वह नहीं मानती उसे जबरदस्ती पढ़ाई के लिए बैठाती है। नूनी के पापा भी कहते हैं कि अभी छोटी है ,अभी खेलने के दिन हैं खेलने दो, वह नौकर को कहते हैं कि मत लाओ उसे खेलने दो तो अपनी बात कटने से आग बबूला हो वो स्वयं लेकर आती है और उसे जबरदस्ती पढ़ाई करने बैठाती है। पति के साथ बहस होने पर वो नाराज होकर मायके चली जाती है।और अपनी बात मनवा कर रहती है।
  4. परंपरावादी - लड़कियों की पढ़ाई के पक्षधर होते हुए भी वह परंपरावादी है। लड़कियों को लेकर उसके विचार पुरातनपंथी है। उसे लगता है कि लड़कियों को ज्यादा लाड़ प्यार करने से लड़कियां बिगड़ जाती है।उसके अनुसार लड़कियों को घर के कामकाज आना ही चाहिए। और चूंकि वो लड़की है इसलिए  बचपन से ही उन्हें सलीके से रहना चाहिए।
  5. मध्य वर्गीय मानसिकता - मध्य वर्ग अनेक प्रकार की शंकाओं कुशनकाओं से जकड़ा होता है। भविष्य को लेकर अनेक चिताओं से ग्रस्त रहता है इसलिए वर्तमान को पूरी तरह जी नहीं पाता...नूनी की मां भी मध्यवर्गीय मानसिकता के चलते नूनी के भविष्य की चिंता में उसका बचपन छीन रही है। वह जबरदस्ती उसे नूनी से सुनयना बना उसकी उम्र से बड़ा बना देती है।
इस प्रकार नूनी की मां का चरित्र चित्रण एक साधारण मध्यवर्गीय स्त्री और मां की तरह किया गया है जो भविष्य की चिंता में आज न खुद प्रफुल्लित हो जी पाती हैं न बच्चों को जीने देती हैं।        

पढ़ाई कहानी की मनोवैज्ञानिकता

पढ़ाई मध्य वर्ग के दिखावे की लचर मानसिकता का मनोवैज्ञानिक चित्रण है।इसमें एक छ साल की बच्ची है जिसे खेलना कूदना पसंद है ,पर उसकी मां समाज में दिखावे और भविष्य में ससुराल वालों के अनुरूप बनाने के लिए उसकी पढ़ाई के पीछे पड़ी रहती है। उसे लगता है कि नूनी का भविष्य से पढ़ाई लिखाई से ही सुधरेगा खेल कूद से नहीं, इसी वजह से वह नूनी को बचपन से ही नूनी की बजाय सुनयना बना देती है और अपनी उम्र से बड़ा बना देती है।

हमारे समाज में लड़कियों की पढ़ाई लिखाई उसकी शादी के लिए करवाई जाती है कि शादी के बाजार में उसे अच्छा घर वर मिल सके। जब लड़के वाले पूछे तो वह बता सके कि हमारी लड़की भी पढ़ी लिखी है, गृहकार्य में दक्ष है, सुंदर, सुशील तथा शालीन है।


- डॉ ममता मेहता 'पिंकी'

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