अदालत में स्वयं को निर्दोष पाकर प्रसन्नता का अनुभव

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अदालत में स्वयं को निर्दोष पाकर प्रसन्नता का अनुभव


दालत में स्वयं को निर्दोष पाकर प्रसन्नता का अनुभव खचाखच भरी अदालत में स्वयं को मुख्य षड्यन्त्रकारी के रूप में उपस्थित पाकर मैं आत्मग्लानि का अनुभव कर रहा था। मुझे ऐसे अपराधी से सम्बद्ध दिखाया गया था जिसका अन्तर्राष्ट्रीय अपराध क्षेत्र में उल्लेखनीय स्थान रहा है। मेरे मित्र, सम्बन्धी तथा परिचित कोई भी इस पर विश्वास करने को तैयार नहीं थे, किन्तु वाह री पुलिस ! निरपराध को अपराधी सिद्ध करना, लिए सामान्य घटना है, तभी न्यायाधीश ने अपना स्थान ग्रहण किया। आज दो वर्ष पुराने मुकदमे के निर्णय का दिन था। न्यायाध् उनके श की आवाज गूँजने लगी। "यह अदालत श्री रामलाल बल्द मोहन को उपर्युक्त सभी आरोपों से बाइज्जत बरी करती है।" मुझे इन शब्दों के अतिरिक्त और कुछ स्मरण नहीं है।

घटित घटना

अदालत में स्वयं को निर्दोष पाकर प्रसन्नता का अनुभव
दो वर्ष पूर्व हमारा परिवार अभी सोकर उठा ही था कि द्वार की घण्टी बजी। मैंने द्वार खोला। पुलिस निरीक्षक 8-10 सिपाहियों के साथ खड़े थे। इससे पहले मैं अथवा घर वाले कुछ समझें, उस अधिकारी ने ये भी नहीं पूछा कि मेरा नाम तथा व्यवसाय क्या है। उसने केवल इतना ही कहा कि- “अन्तर्राष्ट्रीय तस्कर एवं अपराधी के साथ मेरे सम्बन्ध हैं और मेरे नाम गैर जमानती वारण्ट है।" केवल इतना ही अवसर मिला कि अपने वकील से सम्पर्क कर लूँ। मुझे तुरन्त पुलिस स्टेशन ले जाया गया। सौभाग्यवश अधिकारियों से सम्पर्क एवं एक मंत्री के परिचय के आधार पर इतनी सुविधा मिली कि मैं बाहर रहकर भी, हर समय पुलिस की निगरानी में रहूँगा। मुझे 10 दिन में ही अपनी जमानत, उच्च न्यायालय में करानी थी। अपने वकील की सहायता से यह भी सम्भव हो गया ।
 

घटना की जाँच

उस दिन के बाद यद्यपि मेरे अधिकारी और मित्रों ने इस आरोप के सम्बन्ध में मुझसे न घबराने तथा हर सम्भव सहायता का आश्वासन दिया, तथापि कुछ विरोधियों ने प्रसन्नता का अनुभव किया। इसके लिए C.I.D. से जाँच करायी गयी। जाँच रिपोर्ट अदालत में आते ही मुकदमा आरम्भ हुआ। बड़ी तेजी से कार्यवाही चलने लगी। विधि प्रक्रिया हमेशा बहुत ही खर्चीली तथा समय की बर्बादी वाली होती है। इस प्रकार न चाहते हुए भी दो वर्ष व्यतीत हो गये।

अदालती कार्यवाही

अन्त में आज का दिन आया। अदालत में भी रिपोर्ट के आधार पर गवाहियाँ हुई थीं। पुलिसिया कुशलता और आतंक के कारण सभी परिस्थितिजन्य साक्ष्य मेरे विपरीत थे। मैं पूरी तरह हिम्मत खो चुका था। ईश्वर पर ही अब मुझे पूर्ण विश्वास था। उसी के सहारे इस समय मैं भी सर झुकाए अदालत में खड़ा था। परिचित और अपरिचित सभी की दृष्टि से बचने का प्रयास कर रहा था। न्यायाधीश ने निर्णय सुनाना आरम्भ किया। वह बोलते जा रहे थे। उनकी गम्भीर आवाज अदालत की शान्ति को भंग कर रही थी। सब कुछ मेरे विरुद्ध था, किन्तु C.I.D. का एक प्रमाण मेरे पक्ष में था और वह था एक पत्र जिसमें पुलिस द्वारा दायर प्रथम सूचना (F.I.R.) में अपराधी का नाम श्यामलाल और पता भी भिन्न था। मूल प्रति में काटकर अस्पष्ट हस्ताक्षर किये गये थे। इस प्रकार मैं अपराध मुक्ति का अनुभव करते ही कुछ समय शान्ति और निर्विकार भाव में खड़ा रहा। प्रसन्नता से मेरी आँखों में आँसू भर आये। मैंने परमात्मा को कोटि-कोटि धन्यवाद दिया।

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