मिट्टी की महिमा कविता का भावार्थ व्याख्या | शिवमंगल सिंह सुमन

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मिट्टी की महिमा कविता का भावार्थ व्याख्या शिवमंगल सिंह सुमन कवि ने मिट्टी की महिमा का गुणगान किया है मिट्टी और महिला को समान संसार सुखमय मिट्टी जननी

मिट्टी की महिमा कविता का भावार्थ व्याख्या | शिवमंगल सिंह सुमन


निर्मम कुम्हार की थापी से
कितने रूपों में कुटी-पिटी,
हर बार बिखेरी गई, किंतु
मिट्टी फिर भी तो नहीं मिटी!

आशा में निश्छल पल जाए, छलना में पड़ कर छल जाए
सूरज दमके तो तप जाए, रजनी ठुमकी तो ढल जाए,
यों तो बच्चों की गुडिया सी, भोली मिट्टी की हस्ती क्या
आँधी आये तो उड़ जाए, पानी बरसे तो गल जाए!

मिट्टी की महिमा कविता का भावार्थ व्याख्या | शिवमंगल सिंह सुमन
फसलें उगतीं, फसलें कटती लेकिन धरती चिर उर्वर है
सौ बार बने सौ बर मिटे लेकिन धरती अविनश्वर है।
मिट्टी गल जाती पर उसका विश्वास अमर हो जाता है।

विरचे शिव, विष्णु विरंचि विपुल
अगणित ब्रम्हाण्ड हिलाए हैं।
पलने में प्रलय झुलाया है
गोदी में कल्प खिलाए हैं!

रो दे तो पतझर आ जाए, हँस दे तो मधुरितु छा जाए
झूमे तो नंदन झूम उठे, थिरके तो तांड़व शरमाए
यों मदिरालय के प्याले सी मिट्टी की मोहक मस्ती क्या
अधरों को छू कर सकुचाए, ठोकर लग जाये छहराए!

उनचास मेघ, उनचास पवन, अंबर अवनि कर देते सम
वर्षा थमती, आँधी रुकती, मिट्टी हँसती रहती हरदम,
कोयल उड़ जाती पर उसका निश्वास अमर हो जाता है
मिट्टी गल जाती पर उसका विश्वास अमर हो जाता है!

मिट्टी की महिमा मिटने में
मिट मिट हर बार सँवरती है
मिट्टी मिट्टी पर मिटती है
मिट्टी मिट्टी को रचती है

मिट्टी में स्वर है, संयम है, होनी अनहोनी कह जाए
हँसकर हालाहल पी जाए, छाती पर सब कुछ सह जाए,
यों तो ताशों के महलों सी मिट्टी की वैभव बस्ती क्या
भूकम्प उठे तो ढह जाए, बूड़ा आ जाए, बह जाए!

लेकिन मानव का फूल खिला, अब से आ कर वाणी का वर
विधि का विधान लुट गया स्वर्ग अपवर्ग हो गए निछावर,
कवि मिट जाता लेकिन उसका उच्छ्वास अमर हो जाता है
मिट्टी गल जाती पर उसका विश्वास अमर हो जाता है।


व्याख्या - मिट्टी की महिमा कविता शिवमंगल सिंह सुमन द्वारा लिखी गई है. इस कविता में कवि ने मिट्टी की महिमा का गुणगान किया है. उन्होंने कहा है कि सब कुछ सह कर कुट पिटकर, बिखेरी जाकर भी मिट्टी जीवन ही देती है.. मिट्टी जो निर्दयी कुम्हार के हाथों बार-बार  बनाई और बिगाड़ी जाती है. बार-बार मिटा कर भिन्न-भिन्न रूपों में ढाली जाती है ,आकार सही न बन पाने पर बिखेरी जाती है,बिगाड़ी जाती है, पर फिर भी मिट्टी मिट कर भी नहीं मिटती. वह हर रूप में ढलती है, हर रूप में संवरती है, हर रूप में निखरती है और बिखर कर भी नहीं बिखरती. मिट जाने पर फिर नया रूप लेकर संवर जाती है. जब भी कुम्हार उसे नए रूप में ढालता है.. वह नई आशा से उमग जाती है कि अब शायद उसे तोड़ा नहीं जायेगा . जब कोई विश्वास देता है तो वह विश्वास कर छली भी जाती है.. सूरज के साथ तप जाती है और रात के साथ ढल जाती है.. बच्चों के खिलौनों सी, भोली गुड़िया सी मिट्टी की अपनी कोई हस्ती, कोई इच्छा नहीं है.. आंधी उसे उड़ा ले जाती है और बरसात उसे गला देती है. कवि कहते हैं कि मिट्टी की स्वयं की इच्छा नहीं है ,उसका स्वयं का कुछ अस्तित्व नहीं है .वह सदैव दूसरों पर निर्भर रहती है.उसे कोई भी कैसे भी चाहे इस्तेमाल कर सकता है, तपा सकता है, दुत्कार सकता है या गला सकता है.. सूरज, आंधी, तूफान, बरसात के उदाहरण से कवि ने यह स्पष्ट किया है.. कवि कहते हैं कि हालांकि मिट्टी जननी है,वह फसलें पैदा करती है, फसलें कटती है ..फिर भी मिट्टी अपनी उर्वरक शक्ति को कम नहीं होने देती.. वह कई बार बनती है कई बार मिटती है पर वह जैसे अनश्वर है जो कभी नष्ट नहीं होती वह गल भले जाती है पर विश्वास अमर कर देती है ..

पर साथ ही कवि यह भी संकेत देते हैं कि मिट्टी से ही यह संसार है..यदि मिट्टी रो दे यानी तड़क जाए सूख जाए तो पतझड़ आ जाता है और गीली भुरभुरी रहे तो बाहर छा जाती है.. वह झूमे तो वन जंगल भी झूमने लगते हैं, अगर वह थिरक जाए तो तांडव मचा सकती है भूकंप प्रलय के द्वारा धरती पर भूचाल ला सकती है ..वैसे उसकी मोहक हस्ती कुछ भी नहीं है. यह मिट्टी ही है जो हर मौसम की मार झेलती है, आंधी तूफान का सामना करती है ,पवन वेग के साथ स्वयं भी उड़ती है, बारिश में खुद को गला देती है पर विश्वास अमर कर जाती है ..इस प्रकार इस कविता के माध्यम से कविता ने मिट्टी की महिमा को वर्णित किया है..

विशेष -
वस्तुतः इस कविता में कवि ने मिट्टी के माध्यम से नारी की महिमा को दर्शाया है,महिला गौरव को बढ़ाया है कवि इस कविता के माध्यम से कहना चाहते हैं कि प्रकृति ने किस प्रकार मिट्टी और महिला को समान बनाया है.. मिट्टी की तरह नारी भी हर बार हर सांचे में ढली जाती है छली जाती है,बिखेरी जाती है, पर हर बार स्वयं को समेटकर नए रूप में ढल जाती है.. मिट्टी की तरह नारी भी सृजनशील है, मिट्टी की तरह वह भी जीव का पोषण करती है ,मिट्टी की तरह वह भी धैर्यवान है, सहनशील है, मिट्टी की तरह वह भी हर मार झेलती है.. पर यह भी सच है कि नारी यदि खुश है तो संसार सुखमय है यदि नारी क्रोधित हो तो वह प्रलय भी ला सकती है जिस तरह मिट्टी भूकंप लाती है...


- डॉ. ममता मेहता

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