मधुआ कहानी की समीक्षा सारांश उद्देश्य प्रश्न उत्तर | जयशंकर प्रसाद

SHARE:

मधुआ कहानी की समीक्षा सारांश उद्देश्य प्रश्न उत्तर जयशंकर प्रसाद मधुआ कहानी के पात्र Jaishankar Prasad madhua kahani madhua kahani ka charitra chitran

मधुआ कहानी जयशंकर प्रसाद


धुआ कहानी मधुआ कहानी का सारांश मधुआ कहानी की समीक्षा मधुआ कहानी के पात्र मधुआ कहानी का summary मधुआ कहानी का प्रकाशन वर्ष मधुआ कहानी का उद्देश्य Jaishankar Prasad madhua kahani jaishankar prasad madhua kahani ka charitra chitran karen मधुआ कहानी से महत्वपूर्ण प्रश्रोत्तर madhua kahani Sambandhit prashn 

मधुआ कहानी का सारांश

ठाकुर सरदार सिंह का लड़का लखनऊ में पढ़ता था। ठाकुर साहब कभी-कभी यहाँ आ जाते थे। उनको कहानी सुनने का चसका था। खोजने पर एक शराबी मिला। वह रात को, दोपहर में, कभी-कभी सबेरे आ जाता और अपनी लच्छेदार कहानी सुनाकर ठाकुर साहब का मनोरंजन करता। ठाकुर साहब ने कहा " तो आज पियोगे न ?" वह बोला कि आज तो खूब पियेगा। उसने बताया कि वह ग्यारह बजे तक सोता रहा। जब बारह बजे धूप निकली तो उठा, हाथ-मुँह धोए। पास में पैसे बचे थे। चना चबाने से दाँत भाग रहे थे। पराँठे वाले के यहाँ पहुँचा, धीरे-धीरे खाता रहा और अपने को सेंकता भी रहा। फिर गोमती के किनारे चला गया। घूमते-घूमते अँधेरा हो गया, बूँदें पड़ने लगीं तब कहीं भाग कर आपके पास आ गया। 

उसने एक दिन कहानी सुनाई थी कि आसफुद्दौला ने गरीब लड़की का आँचल भुने हुए भुट्टे के दानों के स्थान पर मोतियों से भर दिया था सो बेचारी चबाकर थू-थू करती फिरी। ठाकुर साहब उसकी कहानी को सुनकर हँसने लगते। ठाकुर साहब ने कहा कि तुम्हारी कहानियों में टीस छुपी हुई होती है। शाहजादों के दुखड़े, रंगमहल की अभागिन बेगमों के निष्फल प्रेम, करुण कथा और पीड़ा भरी कहानियाँ तो सुनाते ही हो, पर हँसाने वाली कहानी और सुनाओ, तो अपने सामने ही बढ़िया शराब पिला सकता हूँ। शराबी बोला कि मैं लोगों की पीड़ा से रोने लगता हूँ। अमीर कंगाल हो जाते हैं। बड़े-बड़ों के घमंड चूर होकर धूल में मिल जाते हैं। तब भी दुनिया बड़ी पागल है। मैं उनके पागलपन को भुलाने के लिए शराब पीने लगता हूँ। ठाकुर साहब को नींद आने लगी थी। ठाकुर साहब ने उससे कहा कि वहाँ एक रुपया पड़ा है, उठा लो और लल्लू को भेजते जाना ।
 
शराबी रुपया उठाकर चल दिया । लल्लू ठाकुर साहब का जमादार था। वह एक बालक को डाँट रहा था। वह बालक सिसकियाँ भर रहा ता । लल्लू कह रहा था “तो सूअर, रोता क्यो हैं ? कुंवर साहब ने दो लातें लगाई हैं। गोली तो नहीं मार दी ?” शराबी उस बालक को लेकर फाटक के बाहर चला आया। रात के दस बज रहे थे। कड़ाके की सर्दी थी। बालक ने रोते हुए कहा कि उसने आज दिनभर से कुछ खाया नहीं। शराबी ने कहा कि इतने बड़े अमीर के यहाँ रहता है, फिर भी तुझे कुछ खाने को नहीं मिला। शराबी उसके साथ अपनी गन्दी-सी कोठरी में पहुँचा। शराबी ने बालक को एक पराँठे का टुकड़ा दिया। उससे रोने की मना कर बाहर गली में निकल गया। वह सोचने लगा कि क्या ले चलूँ । उसने शराब का अद्धा लेना भूलकर मिठाई-पूरी और नमकीन ली। वापस कोठरी में पहुँच कर उसने सब चीजें बालक के सामने रख दीं। दोनों ने भरपेट खाया। शराबी ने मिट्टी की गगरी से पानी भरा, दोनों सो गए। बालक ने शराबी का कोट ओड़ लिया और शराबी कम्बल ओड़ कर सो गया। 

सुबह उठा तो उस गरीब लड़के को देखा। उसके प्रति शराबी की ममता जाग उठी। बालक उठा तो शराबी ने कहा कि रात का कुछ बचा है- खा पीकर अपनी राह ले । बालक ने कहा कि हाथ-मुँह तो धो लूँ और फिर जाऊँगा कहाँ ? उसका कोई ठिकाना न था। शराबी बाहर चला गया। शराबी गोमती के किनारे धूप में खड़ा था कि किसी आदमी के उससे कहा कि अपनी सान धरने की मशीन को उठा ले जाओ मेरे पास जगह नहीं है। शराबी ने सोचा कि चलो उसे बेच कर कुछ दिन का काम चल जाएगा। 

सान लेकर वह अपनी कोठरी में पहुँचा। उसने बालक से पूछा कि कुछ खाया या नहीं ? बालक ने जवाब दिया कि भरपेट खा चुका हूँ और तुम्हारे लिए रखा है। शराबी चुपचाप जलपान करने लगा। मन ही मन सोच रहा था "यह भाग्य का संकेत नहीं तो और क्या है? चलूँ फिर सान देने का काम चलता करूँ। दोनों का पेट भरेगा।” उसने बालक से पूछा 'क्यों मधुआ, अब तू कहाँ जाएगा ?" वह बोला- "कहीं नहीं"। 

शराबी ने फिर कहा- “तब तो कोई काम करना चाहिए"। 

मधुआ कहानी के लेखक जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय

छायावादी साहित्य के आधार स्तम्भ जयशंकर प्रसाद का जन्म सन 1889 में काशी के अति सम्पन्न परिवार में हुआ था। इनके पूर्वज जिला गाजीपुर (उ.प्र.) के निवासी थे । तम्बाकू के सुगंधित चूर्ण को 'सुघनी' के नाम से बेचने के
मधुआ कहानी की समीक्षा सारांश उद्देश्य प्रश्न उत्तर | जयशंकर प्रसाद
कारण शिवराम शाहू का परिवार 'सुघनी शाहू' के नाम से प्रसिद्ध हो गया। शिवराम शाहू के छः पुत्रों में देवीराम शाहू के पुत्र श्री जयशंकर प्रसाद थे। इनका परिवार शैवमतालम्बी था। इनकी शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई। दस वर्ष की आयु में इन्हें विधिवत शिक्षा के लिए क्वींस कालेज भेजा गया। जब ये सातवीं कक्षा में थे तो इनके पिता की मृत्यु हो गई। आपके बड़े भाई शम्भुरत्न ने सारा व्यवसाय संभाला। कुछ समय बाद इनकी माताजी का भी देहान्त हो गया। शम्भुरत्न ने प्रसाद का पालन पोषण बहुत लाड़-प्यार से किया। सत्रह वर्ष की आयु में इनके बड़े भाई शंभुरत्न की भी मृत्यु हो गई। इसके साथ ही घर और व्यवसाय व्यापार की सारी जिम्मेदारी प्रसाद जी पर आ गई। विषम परिस्थितियों में इन्होंने दायित्वों का निर्वाह किया। बीस वर्ष की अवस्था में इन्होंने प्रथम विवाह किया। किन्तु दस वर्ष बाद पत्नी का देहान्त हो गया। एक वर्ष बाद दूसरा विवाह किया। दूसरी पत्नी से एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जो प्रसूतावस्था में ही अपनी माता के साथ परलोक सिधार गया। तीन वर्षों के विधुर जीवन के बाद इन्होंने तीसरा विवाह किया। प्रसाद जी की एक मात्र सन्तान होने के कारण रत्नशंकर को आरम्भ से ही पिता के कार्यों में सहायता करनी पड़ी।

प्रसाद जी के रचनाओं पर प्रकृति का बहुत प्रभाव है । 

प्रसाद जी की रचनाएँ निम्न हैं- 
काव्य - उर्वशी, वनमिलन, प्रेमराज्य, अयोध्या का उद्धार, आँसू, कामायनी । 1 
नाटक - विशाख, अजातशत्रु, जनमेजय का नागयज्ञ, चन्द्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी । उपन्यास - कंकाल, तितली, इरावती (अधूरा) । 
कहानियां - प्रतिध्वनि, आकाशदीप, आँधी, इन्द्रजाल आदि । 

सन 1937 में इनका निधन हो गया। 

'मधुआ' प्रसाद की भावुकता प्रधान कहानी है। 

मधुआ कहानी के प्रश्न उत्तर

प्रश्न- मधुआ के जीवन के कष्टों का निवारण किस प्रकार हुआ ? 
उत्तर- मधुआ एक छोटा बालक था और ठाकुर साहब के यहाँ काम करता था। एक दिन रात को किसी बात पर ठाकुर साहब ने उसके दो लातें लगा दीं। तो वह फाटक के पास पड़ा हुआ रो रहा था। लल्लू जमादार उसे डाँट रहा था- "तो सूअर, रोता क्यों है? कुंवर साहब ने दो लातें लगाई हैं। गोली तो नहीं मार दी ?” इसके उत्तर में बालक की सिसकियाँ ही निकल रही थीं। शराबी ठाकुर साहब को कहानियाँ सुनाकर एक रुपया लेकर बाहर निकला तो उसे उस बालक पर दया आ गई। वह उसे लेकर अपनी कोठरी में पहुँचा। उसे उस सुकुमार बच्चे पर ममता आ गई। उसने यह जानकर कि वह लड़का दिनभर से भूखा है, अपनी कोठरी में से ढूँढ़ कर एक पराँठे का टुकड़ा खाने को दिया और बाजार से कुछ लाने के लिए चल दिया। यदि वह बालक न होता तो वह उस रुपए से खूब शराब पीता, लेकिन लड़के की ममता ने उसे भोजन खरीदने के लिए विवश कर दिया। उसने पूड़ी, मिठाई और नमकीन खरीदी। वापस आकर सब चीजें लड़के के सामने सजा दीं। दोनों ने भरपेट खाया। कुछ खाना बच गया था वह कल के लिए रख दिया। दिनभर से भूखे लड़के को भरपेट खाना मिल गया तो उसे बड़ा चैन मिला। फिर दोनों सो गए। सुबह होने पर शराबी ने उस लड़के से कहा कि कुछ खा-पीकर चलता बने। लेकिन वह जाता कहाँ, कोई ठिकाना ही नहीं था। उसने स्पष्ट कर दिया कि वह कहीं नहीं जाएगा।

शराबी बाहर चला गया। उसे एक आदमी मिला जिसने उसे उसकी सान धरने की मशीन दे दी जो उसके यहाँ रखीं थी। शराबी उस मशीन को घर ले आया। अब तक लड़के ने खा लिया था और शराबी के लिए रख दिया था। शराबी चुपचाप खाने लगा और सोचने लगा कि वह जब अकेला था तो कहानी-किस्सा सुनाकर अपना पेट भर लेता था, लेकिन अब तो हम दो हैं इसलिए कुछ काम करना चाहिए। यह सोचना ही मधुआ के भाग्य का फैसला होना था। उन्हीं के शब्दों में देखिए- 
शराबी ने कहा - "क्यों रे मधुआ, अब तू कहाँ जाएगा ?" 
मधुआ - "कहीं नहीं"। 
शराबी - "यह लो, फिर क्या यहाँ जमा गड़ी है कि मैं खोद-खोद कर तुझे मिठाई खिलाता रहूंगा। 
मधुआ- "तब तो कोई काम करना चाहिए।" 
इसका तात्पर्य है कि दोनों ने शराबी के यहाँ आने से उसके जीवन के कष्ट दूर हो गए। इसका असर शराबी पर भी पड़ा सोच लिया कि कुछ काम करना चाहिए। मधुआ के कि अब वह न तो ज्यादा शराब पियेगा और न ही आलस्य में अपना समय बिताएगा। लड़के की वजह से वह भी काम करने की सोचने लगा। 

प्रश्न - दायित्वबोध से व्यक्ति के जीवन में चढ़ाव आता है, मधुआ के दायित्व ने शराबी के जीवन को किस प्रकार बदल दिया ? 
उत्तर - यह बात सत्य है कि दायित्वबोध से व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन आता है। इस कहानी का पात्र शराबी ठाकुर साहब को कहानी सुनाकर एक रुपया लेकर लौट रहा था यह सोचकर कि आज खूब शराब पिएगा। फाटक के पास उसे किसी लड़के की सिसकियों की आवाज सुनाई पड़ी। ठाकुर का जमादार लल्लू उसे डाँट रहा था “तो सूअर, रोता क्यों है? कुंवर साहब ने दो लातें लगाई हैं। गोली तो नहीं मार दी ?" शराबी को उस लड़के पर दया आ गई और अपने घर ले आया। रात के दस बज रहे थे। कड़ाके की सर्दी थी। दोनों चुपचाप चलने लगे। शराबी की मौन सहानुभूति को उस छोटे से सरल हृदय ने स्वीकार कर लिया। लड़के ने बताया कि आज दिनभर से उसने कुछ नहीं खाया है। शराबी ने व्यंग्य किया- "कुछ खाया नहीं । इतने बड़े अमीर के यहाँ रहता है और दिन भर तुझे खाने को नहीं मिला ? अपनी कोठरी में पहुँचकर शराबी ने उसे खाने के लिए एक पराँठे का टुकड़ा दिया और वह भोजन लेने के लिए बाजार की तरफ चल दिया। यदि शराबी के साथ यह लड़का न आया होता तो वह आज खूब डटकर शराब पीता। लेकिन उसकी जिम्मेदारी ने उसे अहसास दिलाया कि उस अनाथ बच्चे के लिए कुछ करना चाहिए। एक रुपया लेकर वह सोचता है कि क्या ले ? उसने शराब का अद्धा नहीं लिया, बल्कि मिठाई, पूड़ी और नमकीन ले ली। अपनी कोठरी में पहुँचकर उसने दोनों की पाँत बालक के सामने सजा दी। उसकी सुगंध से बालक के गले में तरावट पहुँची। दोनों ने, बहुत दिन पर मिलने वाले दो मित्रों की तरह साथ बैठकर खाना खाया। शराबी सोते हुए बड़बड़ाने लगा- “सोचा था, आज सात दिन पर भरपेट पीकर सोऊँगा लेकिन यह छोटा-सा रोना पाजी, न जाने कहाँ से आ धमका। “इस कथन से ज्ञात होता है कि उत्तरदायित्व के मिलने से उसने शराब नहीं पी। इस जिम्मेदारी ने उससे शराब जैसी खराब चीज छुड़वा दी। दूसरा कार्य यह हुआ कि उसके मन में विचार आया कि अब दो जने हो गए हैं इसलिए कुछ काम करना चाहिए। उसने उस निरीह बालक को देखा तो मन में यह विचार आया कि किसने ऐसे सुकुमार फूलों को कष्ट देने के लिए निर्दयता की सृष्टि की ? उसकी इतनी माया-ममता- जिस पर केवल बोतल का पूरा अधिकार था - इसका पक्ष क्यों लेने लगी ? जो ममता बनी वह बालक के प्रति शराबी की करुणा के कारण बनी। उसकी करुणा ने ही उसे उत्तरदायित्व सौंपा कि वह इस बालक की परवरिश करे। निम्न कथन देखिए शराबी मन ही मन सोच रहा था- "यह भाग्य का संकेत नहीं तो और क्या है ? चलूँ फिर सान देने का काम चलता करूँ। दोनों का पेट भरेगा। वही पुराना चरखा फिर सिर पड़ा। नहीं तो, दो बातें, किस्सा-कहानी इधर-उधर की कहकर अपना काम चला ही लेता था। पर अब तो बिना कुछ किए घर नहीं चलने का।" इससे सिद्ध होता है कि दायित्वबोध से व्यक्ति के जीवन में बदलाव आता है। 

प्रश्न. जयशंकर प्रसाद नियति से अधिक कर्म में विश्वास रखने वाले रचनाकार हैं। मधुआ कहानी के माध्यम से स्पष्ट उत्तर दीजिए। 
उत्तर - जयशंकर प्रसाद नियति से अधिक कर्म में विश्वास रखने वाले रचनाकार हैं। मधुआ कहानी में शराबी मुख्य पात्र है। वह कुछ काम नहीं करता है, लेकिन शराब जरूर पीता है। ठाकुर सरदार सिंह का लड़का लखनऊ में पढ़ता है इसलिए वह कभी-कभी वहाँ आ जाते हैं। उन्हें कहानी सुनने का शौक है। तो शराबी उन्हें लच्छेदार कहानी सुनाता है और उनसे एक-आध रुपया प्राप्त होता है। उससे वह कुछ खा लेता है और शराब पी लेता है। उन दोनों का वार्तालाप देखिए- 

ठाकुर ने हँसते हुए कहा - "तो आज पियोगे न ?" 
'झूठ कैसे कहूँ। आज तो जितना मिलेगा, सब पिऊँगा। सात दिन चने चबैने पर बिताए हैं, किसलिए ?" 
अद्भुत! सात दिन पेट काटकर आज अच्छा भोजन न करके तुम्हें पीने की सूझी है। 
वह भी-- " 
"सरकार ! मौज बहार की एक घड़ी, एक लम्बे दुःखपूर्ण जीवन से अच्छी है। उसकी खुमानी में रुखे दिन काट लिए जा सकते हैं।"

जिस व्यक्ति का नजरिया काम से विमुख था उसको प्रसाद जी ने काम की तरफ प्रेरित किया। उसने उत्तरदायित्व आने पर अनुभव किया कि अब तो काम करना पड़ेगा। बिना काम करे दो जनों का गुजारा कैसे चलेगा। जब ठाकुर साहब को कहानी सुनाकर शराबी लौट रहा था तो उनके फाटक पर मधुआ नाम का लड़का रोता हुआ मिला। उसे ठाकुर साहब ने किसी गलती पर दो लात लगा दी थीं। शराबी को उस पर करुणा आ गई और उसे अपने साथ अपनी कोठरी में ले आया। जब उसे पता चला कि उसने पूरे दिन से खाना नहीं खाया है तो वह उसके भोज के प्रबन्ध के लिए बाजार गया। ठाकुर साहब के यहाँ से उसे एक रुपया मिला था। उसने बहुत सोचा कि क्या लेकर चलूँ। आखिर उसने बच्चे के कारण से मिठाई, पूरी और नमकीन लिया। अपने लिए शराब नहीं ली। यदि वह अकेला होता तो थोड़ा बहुत खाता और शराब खूब पीता। जिम्मेदारी ने उसे यह सिखाया कि किस समय पर क्या निर्णय लेना चाहिए। दोनों ने भोजन किया और बचा हुआ कल के लिए रख दिया। फिर दोनों सो गये। सबेरे उठकर शराबी ने उस गरीब बालक को देखा और मन ही मन प्रश्न किया - “किसने ऐसे सुकुमार फूलों को कष्ट देने के लिए निर्दयता की सृष्टि की ? वाह री नियति ! तब इसके लिए मुझे घर-बारी बनना पड़ेगा क्या दुर्भाग्य ! जिसे मैंने कभी सोचा भी न था । मेरी इतनी माया-ममता-जिस पर आज तक केवल बोतल का पूरा अधिकार था इसका पेक्ष क्यों लेने लगी ? देखिए किस प्रकार एक शराबी के विचारों में परिवर्तन आता है और वह काम करने की बात सोचने लगता है। वह घर से बाहर निकल गया। गोमती के पास किसी ने उससे अपनी सान चढ़ाने की मशीन लौटाकर ले जाने को कहा। वह उसे लेकर घर आ गया। घर आकर उसने कुछ खाया। लड़का अब कहीं और नहीं जाना चाहता था। शराबी मन में सोचता है - "यह भाग्य का संकेत नहीं तो और क्या है ? चलूँ फिर सान देने का काम चलता करूँ। दोनों का पेट भरेगा। वही पुराना चरखा फिर सिर पड़ा। नहीं तो, दो बातें, किस्सा-कहानी इधर-उधर की कहकर काम चला ही लेता था। पर अब तो बिना कुछ किए घर नहीं चलने का।" वह लड़का मधुआ भी अन्त में यही कहता है कि तब तो कोई काम करना चाहिए। 

इस प्रकार हम देखते हैं एक शराबी को और लड़के मधुआ को लेखक ने कुछ काम करने की प्रेरणा दी। 


मधुआ कहानी का उद्देश्य

मधुआ जयशंकर प्रसाद की भावुकता प्रधान कहानी है। इसमें उन्होंने दायित्व बोध को व्यक्ति के जीवन और उसके व्यक्तित्व की परीक्षा का साधन माना है। यही कहानी का उद्देश्य है। कर्म करते हुए मनुष्य निरंतर बेहतर होता जाता है। मधुआ के आने से शराबी व्यक्ति का जीवन और चरित्र पूर्णतः बदल जाता है। लेखक ने इस कहानी के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि जब तक मनुष्य अकेला रहता है तब तक वह कुछ करना नहीं चाहता। लेकिन जब उस जिम्मेदारी का भार आकर पड़ता है तो वह कुछ काम करने की सोचता है। शराबी ठाकुर साहब को कहानी सुनाकर जो पैसे मिल जाते, उनकी शराब पी लेता था। सुबह देर तक सोता रहता था और कोई काम नहीं करता था। जब उसकी मुलाकात मधुआ नाम के बालक से हुई तो उसने शराब पीना भी कम कर दिया और काम करना शुरू कर दिया। उसने काम करने का विचार कैसे किया यह शराबी के विचार के अनुसार निम्न पंक्तियाँ देखिए- 

वह मन ही मन सोच रहा था- "यह भाग्य का संकेत नहीं तो और क्या है ? चलूँ फिर सान देने का काम चलता करूँ। दोनों का पेट भरेगा। वही पुराना चरखा फिर सिर पड़ा। नहीं तो दो बातें, किस्सा कहानी इधर-उधर की कहकर अपना काम चला ही लेता था। पर अब तो बिना कुछ किए घर नहीं चलने का"। यही बताना इस कहानी का उद्देश्य है कि उत्तरदायित्व के आने से व्यक्ति के जीवन में बदलाव आता है।

मधुआ पात्र का चरित्र चित्रण

मधुआ का इस कहानी में प्रमुख स्थान है। वह एक गरीब निस्सहाय और अनाथ बालक है। वह ठाकुर साहब के यहाँ नौकरी करता है जहाँ उसे मार भी पड़ती है और कभी-कभी भूखा भी रहना पड़ता है। उसका चरित्र हम निम्न प्रकार से जान सकते हैं- 

1. दुर्भाग्यशाली व गरीब बालक - मधुआ गरीब बालक है जो ठाकुर साहब के यहाँ नौकरी कर कुछ पा लेता है। वह अनाथ है और गरीब है। एक दिन तो उसे बिल्कुल खाने को नहीं मिला। पूरे दिन भूखा रहा। उसी के शब्दों में देखिए- "यही तो कहने गया था जमादार के पास, मार तो रोज ही खाता हूँ। आज तो खाना ही नहीं मिला। कुंवर साहब का ओवरकोट लिए खेल में दिन भर साथ रहा। सात बजे लौटा, तो और भी नौ बजे तक कुछ काम करना पड़ा। आटा रख नहीं सका था। रोटी बनती तो कैसे! जमादार से कहने गया था।" 

2. रहने का कोई ठिकाना नहीं - उसका रहने का कोई ठिकाना नहीं है। जहाँ रहता था, वहाँ दुःखी था। वह शराबी के साथ आ गया, तो वहीं रहने लगा। जब शराबी ने उससे जाने को कहा तो वह बोला कि अब जाऊँगा कहाँ ? अन्त में वह कुछ काम करने को भी तैयार हो जाता है। 

3. धैर्यशाली - गरीब होते हुए भी वह धीरज रखने वाला बालक है। वह अपने तंग हाल पर घबराया नहीं है। परिस्थितियों से मुकाबला करता रहा है। जब ठाकुर साहब ने उसे मारा तो वह शराबी के साथ चला आया और उसके साथ रहने लगा। कहीं भी उसने यह नहीं दिखाया है कि वह निराश है और संसार से दुःखी है। 

4. स्वाभिमानी बालक- मधुआ एक स्वाभिमानी बालक है। ठाकुर साहब के मारने पर वह रोता तो रहा, लेकिन उनके सामने जाकर गिड़गिड़ाया नहीं। उसने भूखे होने की भी शिकायत ठाकुर साहब से नहीं की। वह ठाकुर साहब के यहाँ से शराबी के घर चला आया और वहीं रहने लगा। हर स्थिति में खुश रहने वाला- वह हर स्थिति में अपने को ढाल लेता है। ठाकुर साहब के यहाँ मार खाता था, लेकिन शिकायत नहीं की। अब शराबी के यहाँ आ गया तो यहाँ खुशी से रहने लगा। जब शराबी उससे जाने को कहता है तो उसका जवाब था कि अब जाऊँगा कहाँ! अर्थात अब वह वहीं रहेगा शराबी की कोठरी में। 

5. शराबी का स्नेहपात्र मधुआ - अपने भोलेपन और गरीबी के कारण शराबी का स्नेहपात्र बन गया। शराबी की करुणा ने उसके रहने और खाने का प्रबन्ध किया। जब ठाकुर साहब के फाटक पर पड़ा रो रहा था तो शराबी उसे अपने साथ अपने घर ले आया। शराबी के पास एक रुपया था उसकी मिठाई, पूड़ी और नमकीन ले आया और दोनों ने भरपेट भोजन किया। बचा हुआ कल के लिए रख दिया। लेखक के शब्दों में देखिए- भयभीत बालक बाहर चला आ रहा था। शराबी ने उसके छोटे से सुन्दर गोरे मुँह को देखा। आँसू की बूंदें दुलक रही थीं। बड़े दुलार से उसका मुँह पोंछते हुए उसे लेकर वह फाटक के बाहर से चला आया। दस बज रहे थे। कड़ाके की सर्दी थी। दोनों चुपचाप चलने लगे। शराबी की मौन सहानुभूति को उस छोटे से सरल हृदय ने स्वीकार कर लिया। 

6. कार्य करने में रुचि रखने वाला- जब वह शराबी के घर आ गया और खाना खाकर शरीर में जान आ गई तो काम करने की बात सोचने लगा। 
निम्न वार्तालाप देखिए जिसमें उसने काम करना स्वीकार किया है। 
शराबी - "क्यों रे मधुआ, अब तू कहाँ जाएगा?" 
मधुआ - "कहीं नहीं। " 
शराबी - "यह लो, फिर क्या यहाँ जमा गड़ी है कि मैं खोद-खोदकर तुझे मिठाई खिलाता रहूंगा।" 
मधुआ - "तब तो कोई काम करना चाहिए।" 

उपर्युक्त कथन से हमें ज्ञात होता है कि वह भी शराबी के साथ सान रखने का काम करने लगेगा। इस प्रकार मधुआ का चरित्र निखरा हुआ, पवित्र और सीधा-सादा है। बच्चों की सी चंचलता उसमें नहीं हैं। शराबी के मौन निमंत्रण को स्वीकार कर लेता है।

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका