ज्योतिष विज्ञान विश्व को भारत की देन एक गूढ़ और प्राचीन विषय

SHARE:

ज्योतिष विज्ञान विश्व को भारत की देन एक गूढ़ और प्राचीन विषय ज्योतिष विज्ञान का विषय विश्व के समस्त ज्ञात विषयों में सर्वाधिक प्राचीन विषय है। धीरे-ध

ज्योतिष विज्ञान विश्व को भारत की देन एक गूढ़ और प्राचीन विषय


ज्योतिष विज्ञान का विषय विश्व के समस्त ज्ञात विषयों में सर्वाधिक प्राचीन विषय है। धीरे-धीरे यह स्थापित भी होता जा रहा है कि ज्योतिष ही सबसे पुराना विषय है। आज जिस रूप में ज्योतिष शास्त्र हमारे समक्ष है उससे ऐसा प्रतीत होता है कि यह विकसित हो रहा है वस्तु स्थिति इसके ठीक विपरीत है। यह एक प्राचीनतम गूढ़ और पूर्ण विकसित विज्ञान है, जिसे प्राचीन उन्नत भारतीय सभ्यताओं द्वारा उपयोग में लाया जाता रहा। जैसा कि हमें ज्ञात है कि समय के साथ-साथ सभ्यताएं विलुप्त होती गईं और उन्हीं के साथ-साथ ज्ञान का यह अथाह संसार "ज्योतिष विज्ञान" भी लुप्त होता गया। आज हमारे साथ हमारे सामने उसे प्राचीन ज्योतिष के भव्य और सुसज्जित महल के स्थान पर खंडहर ही शेष रह गए हैं। मानव सभ्यता के इतिहास की आज तक जितनी भी खोजबीन हुई है उसमें कोई भी समय ऐसा नहीं रहा जिस समय ज्योतिष मौजूद नहीं था। ईसा से तकरीबन 25000 वर्ष पूर्व हाल ही में सुमेर में मिले हड्डी के अवशेषों पर ज्योतिष के प्रतीक चिन्ह हैं। पश्चिम में पुरानी से पुरानी जो खोजबीन हुई है वह 25000 वर्ष पूर्व सुमेर की है। यहां हड्डियों पर ज्योतिष के चिन्ह के साथ-साथ चंद्र यात्रा के चिन्ह भी अंकित हैं परंतु इस बात को यदि हम भारत को दृष्टिगत रखते हुए देखें तो भारत में यह बात और भी पुरानी जान पड़ती है।ऋग्वेद में 95 हजार साल पूर्व ग्रह नक्षत्र की स्थिति का उल्लेख मिलता है। इसी आधार पर लोकमान्य तिलक ने आगे जाकर यह निश्चित किया की ज्योतिष कम से कम 90000 वर्ष से ज्यादा पुराने तो निश्चित ही हैं। उस समय जो स्थिति नक्षत्र की थी उसे बाद में जानने का कोई उपाय नहीं था परंतु आज हमारे पास ऐसे वैज्ञानिक साधन उपलब्ध हो सके हैं कि हम जान सके कि अतीत में नक्षत्र की स्थिति कब कैसी रही होगी।

यथा शिखा मयूराणाम नागानां मणयो यथा।
तद्वदेवांग शास्त्रनामम ज्योतिषम मुर्धानी स्थितम,
( जैसे मोरों में शिखा है और सर्पों में मणि इसी प्रकार वेदांग शास्त्रों में ज्योतिष चोटी पर है...यजुर्वेद)

ज्योतिष विज्ञान विश्व को भारत की देन एक गूढ़ और प्राचीन विषय
ज्योतिष विज्ञान को समझने के लिए हम विभिन्न पहलुओं से इस पर विचार करेंगे जिससे भली प्रकार से इसके वैज्ञानिक स्वरूप को समझा जा सके। विभिन्न आयामों से किया जाने वाला अध्ययन और मानव सभ्यता पर पड़ रहे इसके स्पष्ट प्रभावों के अध्ययन से ज्योतिष विज्ञान को आसानी से समझा जा सकता है।किसी भी राष्ट्र के लिए यह किसी अभिशाप से कम नही है कि उसकी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को समय समय पर अनेक आघात सहने पड़े हों। मुख्य रूप से यह बात तब तो समझ में आती है जब भारत वर्ष विदेशी आक्रमणकारियों के अधीन रहा परंतु स्वाधीनता के बाद भी भारतीय जनमानस को गौरवशाली भारतीय परंपरा,सभ्यता,संस्कृति, शास्त्र और ग्रंथों और उनकी शिक्षा से वंचित रखा जाना समझ से परे है। कुछ ऐसा ही तिरस्कार हजारों वर्ष प्राचीन भारतीय ज्योतिष विज्ञान के साथ हुआ है। आज भी वह अपने आप को तिरस्कृत ही पाता है। पश्चिमी जगत ने तो वैसे भी कभी भारतीय संस्कृति, सभ्यता ,ज्ञान विज्ञान और तकनीकि को मान्यता नहीं दी। दरअसल वे इस बात को स्वीकार ही नहीं कर पाते थे किसी भी प्रकार का शोध, खोज अथवा आविष्कार पश्चिम के अलावा भी और कहीं पर हो सकता है। यह अलग बात है कि विगत कुछ वर्षों उनकी इस सोच में खासा परिवर्तन भी आ रहा है पर ये नाकाफी हैं। आज विश्वविद्यालयों में एक विषय के रूप में ज्योतिष का पठन पाठन प्रारंभ हुआ है। इसको पाठ्यक्रम में शामिल न करने के पीछे तथाकथित बुद्धिजीवियों का विचार रहा कि ज्योतिष एक अंधविश्वास से ज्यादा और कुछ भी नही है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा वर्ष 2005 में जाकर जब ज्योतिष को एक विषय के रूप में पठन-पाठन के लिए मान्यता प्रदान की तब भी हमारे देश के कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग ने इसका जबरदस्त विरोध किया और कोर्ट में यूजीसी के फैसले को चुनौती दी। न्यायालय द्वारा संपूर्ण प्रकरण पर लंबा विचार विमर्श करने के बाद ज्योतिष के पक्ष में फैसला दिया। उसके बाद से ही इसका पठन पाठन प्रारंभ हो पाया।हमारे देश के चुनिंदा विश्वविद्यालय में आज एक विषय के रूप में इसे पढ़ाया जा रहा है।

विश्व में ज्योतिष विज्ञान की परंपरा का उद्भव और विकास भारतवर्ष में ही हुआ। हमारे ऋषि मुनियों द्वारा अत्यंत ही प्राचीन काल से खगोलीय घटनाओं का अध्ययन किया जाता रहा। खगोलीय पिंडों के अध्ययन के आधार पर मानव जीवन पर पड़ने वाले इसके प्रभाव और भविष्य में झांकने की प्रवृति ज्योतिष के एक मूल तत्व है। दरअसल मानव स्वभाव ही कुछ ऐसा होता है कि वह जिसे देखता है उसे जानने की उसमें उत्कंठा उत्पन्न होती है। आकाश की ओर देखकर उसे उत्सुकता होती है कि - 

तारे क्या है? 
तारे क्यों चमकते हैं?
तारे टूट कर क्यों गिरते हैं? 
सूर्य का उदय और अस्त क्यों होता है? 
चंद्रमा कभी छोटा कभी बड़ा और कभी विलुप्त क्यों हो जाता है? 
इनका संसार पर क्या प्रभाव पड़ता है? इत्यादि इत्यादि।

और इसी जिज्ञासा ने ज्योतिष शास्त्र को जन्म दिया। वस्तुत: मेरा यह मानना है कि ज्योतिष का उद्भव उसी समय हो गया था जब आदिमानव ने सूर्य और चंद्रमा को देखा था। सूर्य के उदय होने से प्रकाश फैला और उससे ऊष्मा मिली अर्थात दिन हुआ और सूर्य के अस्त होने से प्रकाश लुप्त हो गया अर्थात रात्रि हुई। इस प्रकार सूर्य के साथ दिन और रात का संबंध स्थापित किया। उसने देखा कि चंद्रमा कभी किसी रात पूरा दिखाई देता है, कभी थोड़ा सा दिखाई देता है फिर एक समय ऐसा आता है जब चंद्रमा एकदम विलुप्त हो जाता है। जिस रात्रि को बिल्कुल दिखाई नहीं देता उसे अमावस्या, जब पूर्ण दिखाई देता है उसे पूर्णिमा बताया। मनुष्य ने एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या तक और एक पूर्णिया से दूसरी पूर्णिमा तक के समय के बारे में एक मास की कल्पना की। इस प्रकार तारों को लगातार देखते रहने पर महसूस हुआ कि कुछ तारे ऐसे भी हैं जो केवल पूर्व से पश्चिम को ही नहीं बल्कि स्थिर तारों के अपेक्षा चलते भी दिखाई देते हैं। ऋषि मुनियों ने इन्हे ग्रह की संज्ञा दी। ज्योतिष सब विज्ञानों से पहले सीखा गया विज्ञान है। इसके कारण ही समय का ज्ञान हो सका और गणित शास्त्र और उसके विभिन्न अंगों के सूत्रपात हुआ। सूर्य, चंद्र और नक्षत्र के उदय अस्त, सर्दी,गर्मी वर्षा इत्यादि के क्रम से मनुष्य ने जाना कि संसार परिवर्तनशील है और इसके कुछ नियम भी हैं। हम कह सकते हैं कि विज्ञान के अंतर्गत जो कुछ आज हम पढ़ रहे हैं वह किसी ने किसी रूप में हमारे ऋषि मुनियों द्वारा हमारे समक्ष रखा जा चुका है। इस प्रकार यदि हम ज्योतिष शास्त्र को समस्त विज्ञानों का पिता कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। 

यहां भास्कराचार्य जी द्वारा लिखा एक श्लोक उद्धृत करना चाहूंगा... 

रहस्यम परम पुण्यम जिज्ञारसोज्ञान मुत्तमम वेदांगमग्रय्यखिलम ज्योतिषा गति कारणम् 
(अर्थात व्याकरण वेद का मुख है ज्योतिष आंख, निरुक्त कान, कल्प हाथ ,शिक्षा नासिका और छंद पांव हैं। जिस प्रकार अंगों में आंख श्रेष्ठ होती है उसी प्रकार वेदंगों में ज्योतिष शास्त्र श्रेष्ठ है) 

प्राचीन काल में ज्योतिष के तीन भाग माने गए थे। पहला भाग सिद्धांत के नाम से जाना जाता है, दूसरा भाग होरा कहलाता है और तीसरा संहिता के नाम से जाना जाता है। सिद्धांत को ही गणित कहा जाता है। सिद्धांत अथवा गणित ज्योतिष शास्त्र का वह भाग है जिसके अन्तर्गत समय की गणना, आकाशीय पिंडों की दूरी, उनका द्रव्यमान, उनकी गति का ज्ञान प्राप्त होता है। यह शुद्ध वैज्ञानिक है। यहां यह स्पष्ट हो जाता है कि गणित के उद्भव ज्योतिष विज्ञान से ही हुआ है और यह ज्योतिष शास्त्र की ही देन है। ज्योतिष का दूसरा भाग होरा शास्त्र के नाम से जाना जाता है। इसका नामकरण अहोरात्रि शब्द से हुआ है। ज्योतिष शास्त्र का तीसरा भाग संहिता के नाम से जाना जाता है। इस अंग के अंतर्गत मुहूर्त, वर्षा,भूकंप, भूचाल, किसी देश की भविष्यवाणियां, किसी समूह के बारे में भविष्यवाणी है, व्यापार तेजी मंदी, आयुर्वेद संबंधी चर्चाएं इत्यादि शामिल की गई है। विभिन्न ग्रहों,नक्षत्रों व तारों की स्थिति और उसके मानव जीवन के पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन आदिकाल से हमारी सभ्यता और संस्कृति का अंग रहा है। ज्योतिष विज्ञान को हमारा प्राचीन भौतिक शास्त्र कहें तो अतिशयोक्ति न होगी। भारतीय दर्शन में वेदों के छह अंग माने गए हैं। छठे अंग के रूप में ज्योतिष को मान्यता प्राप्त है। ज्योतिष को वेदों का नेत्र माना गया है वास्तव में देखा जाए तो ज्योतिष अध्ययन, अवलोकन, अनुमान, पर्यवेक्षक, शोध और गणना जैसी अनेक विधाओं के द्वारा विभिन्न ग्रह उपग्रह नक्षत्र और तारों का पृथ्वी पर और हमारे जीवन पर पड़ने वाले समग्र प्रभावों का अध्ययन माना जा सकता है। यह एक निर्विवादित सत्य है कि ब्रह्मांड में सभी वस्तुएं गतिशील हैं इस बात का ज्ञान हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों को भली प्रकार से था जिसका उपयोग उन्होंने ज्योतिष के अध्ययन और विकास में लगाया। गोचर शब्द ही ग्रहों की गति विचरण के लिए उपयोग किया जाता है। और मजेदार बात यह है कि अंग्रेजी का शब्द गो जिसका अर्थ जाना होता है यहीं से निकला है।अभी विज्ञान पर दृष्टि डालें तो विज्ञान ऐसा ज्ञान माना जाता है जो सतत प्रयोग, चिंतन, मनन, अन्वेषण की प्रक्रिया से गुजर कर उस रूप में आ जाता है जिसकी पुष्टि हो सके। वि का अर्थ होता है दो अर्थात मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि एक ऐसा ज्ञान जिसे कम से कम दो लोगों ने माना हो विज्ञान कहलाता है और इस श्रेणी में रखा जा सकता है। जहां ज्योतिष एक ओर अत्यंत ही प्राचीन है वहीं दूसरी ओर विज्ञान उसकी तुलना में अपनी शैशव अवस्था से गुजर रहा है। ज्योतिष काफी विकसित, विस्तृत और गूढ़ विषय है। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। किसी व्यक्ति के शरीर में मौजूद स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों की जानकारी हम उसका स्वास्थ्य परीक्षण कर ज्ञात कर पाते हैं। परंतु वहीं दूसरी ओर ज्योतिष विज्ञान के माध्यम से व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के विषय में पूर्व में ही जान सकते हैं। इसके अतिरिक्त व्यक्ति के जीवनकाल के दौरान घटित होने वाली घटनाएं, बीमारियां, उपलब्धियां इत्यादि की जानकारी भी हम ज्योतिष के माध्यम से प्राप्त हो सकती है। 

भारतीय संस्कृति में आदिकाल से किसी भी पर्व त्यौहार अथवा शुभ मांगलिक कार्य प्रारंभ करने के पूर्व नवग्रह शांति के एक श्लोक का पाठ किया जाता है...

ओम ब्रह्मा मुरारित्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधष्च।
गुरुश्च शुक्र: शनि राहु व केतव: सर्वे ग्रहा शांतिकरा भवन्तु।।
(अर्थात हे ब्रह्मा विष्णु महेश सूर्य चंद्र मंगल बुध गुरु शुक्र शनि राहु व केतु शांति करें)

इसका तात्पर्य या यह होता है कि नवग्रह के बारे में आदिकाल से ही भारतीयों को जानकारी थी। और उनके द्वारा समय-समय पर उपयोग भी किया जाता था। अतः यह कहां जाना तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता की ग्रहों की उत्पत्ति, गुण स्वरूप, गति इत्यादि के बारे में पश्चिम जगत से विश्व ने सीखा। 

ज्योतिष हमें ज्ञान की अंतिम अवस्था तक लेकर जाते हैं यहां ज्योतिष हमारा मार्गदर्शन करता है ज्ञान के अंतिम अवस्था को कर्म सन्यास योग कहा जाता है। आज का विज्ञान हमें ज्ञान के एक ऐसे रास्ते की तरफ लेकर जाता है जो अनंत है। ज्योतिष एक ऐसा विज्ञान है जो खगोलीय पिंडों और मानवीय घटनाओं से संबंधों को जोड़ता है। यह ब्रह्मांड और मनुष्य के बीच आपसी संबंधों को जोड़ने का प्रयास करता है। साथ ही साथ यह आकाशगंगा के संसार और जीवित कोशिकाओं के संसार को एक दूसरे से जोड़ने का प्रयास भी करता है और हम जानते हैं की इसे जानने की विद्या ध्यान और योग की प्रमुख अवस्था है। विज्ञान पहले विचार करता है,फिर अध्ययन और अवलोकन करता है उसके बाद भौतिक सत्यापन। प्राचीन ज्योतिष विज्ञान बहुत विकसित अवस्था में था। निश्चित रूप से वह सभ्यता भी अत्यंत ही विकसित रही होगी जिसके पास इतना उन्नत और पूर्ण विकसित ज्योतिष् विज्ञान रहा हो। हम कह सकते हैं कि विज्ञान ज्योतिष शास्त्र के समक्ष बौना है। ज्योतिष शास्त्र को हम परा विज्ञान कहें तो जरा भी अतिशयोक्ति न होगी। जहां विज्ञान की परिधि समाप्त होती है वहीं से ज्योतिष की सीमाएं प्रारंभ होती हैं।

अब हम ज्योतिष के एक और वैज्ञानिक पहलू पर दृष्टि डालते हैं और वह है ग्रह नक्षत्र और तारों की स्थिति और उनकी गणना। हम जानते हैं कि इस प्रकार की किसी भी गणना के लिए गणित विषय का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है। ग्रह नक्षत्र की स्थिति और गणना बिना गणित के संभव नहीं है। सच तो यह है कि ज्योतिष के कारण ही गणित विषय का जन्म हुआ, जिसने ज्योतिष का रास्ता और सुगम बनाया। ज्योतिष की सबसे गहरी मान्यताएं भारत में पैदा हुई हैं।विश्व को अंकगणित भारतीय सभ्यता की देन है। एक से नौ तक के अंक जो गणना में प्रयुक्त किए जाते हैं वे समस्त भाषाओं में भारतीय हैं और सारी दुनिया में 9 तक के अंक स्वीकृत हैं। उदाहरण स्वरूप देखे तो अंग्रेजी का 8 संस्कृत के अष्ट का रूपांतरण है। इसी प्रकार अंग्रेजी का नाइन 9 संस्कृत के नव का रूपांतरण है। जहां तक सुमेर की खुदाई में प्राप्त हड्डियों के विषय में निर्णय का प्रश्न है तो यह स्थिति स्पष्ट होती है कि भारत से ही यह विद्या सुमेर वासियों तक पहुंची और आगे सुमेर वासियों ने सबसे पहले ईसा से 6000 वर्ष पूर्व पश्चिम जगत के लिए ज्योतिष के द्वारा खोले। ईसा से 6000 वर्ष पूर्व हमें इस बात का ज्ञान था कि पृथ्वी पर फैलने वाली बड़ी-बड़ी बीमारियां महामारियां और बड़ी-बड़ी दुर्घटनाओं का सीधा-सीधा संबंध तारों और नक्षत्रों से है। इसी बात को आगे चलकर एक रूसी वैज्ञानिक ने अपने जीवन के अंतिम समय में स्थापित किया। 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में 1920 के आसपास एक महान रूसी वैज्ञानिक हुआ जिसका नाम था चीजेवस्की। यह वैज्ञानिक काफी लंबे समय से सूर्य पर होने वाले आणविक फोटो और पृथ्वी पर पड़ने वाले उसके प्रभावों का अध्ययन कर रहा था। अपनी लंबी खोज यात्रा की उपरांत कुछ नहीं है पता लगाया की सूर्य पर होने वाले आणविक विस्फोट अथवा अथवा टूबर रेडियोएक्टिव घटनाएं एक निश्चित अंतराल के बाद दोबारा घटित होती है। चिकेवास्की ने बताया कि सूर्य के इन आणविक विस्फोटों का वर्तुल 11 वर्षों का है अर्थात प्रत्येक 11 वर्ष के बाद सूर्य में दोबारा तीव्र आणविक विस्फोट होते हैं।और ठीक वही समय है जब पृथ्वी पर बड़े युद्ध, क्रांतियां या विप्लव जैसी घटनाएं घटती हैं। इस प्रकार उसने पिछले 700 सालों का इतिहास निकालकर इस बात की पुष्टि की कि प्रत्येक 11 वर्ष के दौरान जब-जब भी सूर्य पर आणविक विस्फोट हुआ है तब तक पृथ्वी पर युद्ध, क्रांति अथवा इसी प्रकार की घटनाएं घटित होती हैं। तत्कालीन समय में रूस का शासन स्टालिन के हाथों में था और स्टालिन मार्क्स की साम्यवादी विचारधाराओं से प्रेरित था। एक ओर जहां मार्क्स का साम्यवाद यह स्पष्ट करता है कि पृथ्वी पर जो क्रांतियां घटित होती हैं वह मनुष्य और मनुष्य के बीच आर्थिक विषमताओं का परिणाम है, वहीं दूसरी ओर चीजेवास्की की यह साबित करने में लगा है की सूर्य पर प्रत्येक 11 वर्ष में होने वाले आणविक विस्फोट इसकी वजह हैं। वैज्ञानिक की यह विचारधार तत्कालीन साम्यवादी विचारधारा से बिल्कुल भी मिल नहीं खाते थे लिहाजा चीजेवास्की को स्टालिन द्वारा जेल में डाल दिया गया और बाद में साइबेरिया भेज दिया गया। चीजेवास्की के प्रयोग और परिणाम इतने अधिक वैज्ञानिक थे कि उन्हें किसी भी प्रकार से गलत साबित कर पाना नामुमकिन था। बताया गया है कि इस महान वैज्ञानिक ने अपने जीवन के 50 महत्वपूर्ण वर्ष साइबेरिया में काटे बाद में स्टालिन की मौत के बाद ख्रुश्चेव द्वारा इन्हें साइबेरिया से मुक्त कराया गया। वहां से आने के बाद तकरीबन 4 से 6 माह ही वह जीवित रह पाया और उसका निधन हो गया। इन 6 महीना में भी उसने अपनी स्थापना के लिए और नए प्रमाण इकट्ठे किए। पृथ्वी पर जितनी महामारियां फैलती हैं उनका संबंध वह सूर्य से जोड़कर चला गया। कालांतर में इस प्रकार के अनेक प्रयोग हुए जिन्होंने सूर्य पर होने वाली विस्फोटक घटनाओं का संबंध पृथ्वी पर होने वाली क्रांति युद्ध अथवा महामारी से जोड़ा। आज विज्ञान इस बात को पुष्ट करता है सूर्य पर होने वाली इन घटनाओं का सीधा असर पृथ्वी पर पड़ता है। अब क्योंकि पृथ्वी पर मानव सभ्यता और विभिन्न प्रकार के जीव जंतु निवास करते हैं तो वे इन घटनाओं से प्रभावित रह पाए ऐसा कोई कारण समझ नहीं आता।

यहां एक और बात पर ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा की हम सभी ग्रहण से भली प्रकार परिचित हैं। पर क्या आप जानते हैं की सूर्य ग्रहण से ठीक 24 घंटे पहले जंगलों में पक्षी कलरव करना, गीत गाना बंद कर देते हैं। पूरे ग्रहण के समय सारी पृथ्वी मौन हो जाती है। और जंगलों में रहने वाले जानवर भयभीत हो जाते हैं। बंदर वृक्षों को छोड़कर नीचे आ जाते हैं और सुरक्षित रहने के उपाय खोजने लगते हैं। 

सूर्य के विषय में यजुर्वेद में जिक्र आता है कि 
"सूर्य आत्मा जगतस्तस्थूशाश्चा".... । .यजुर्वेद 13/ 46) 
अर्थात सूर्य आत्मा है और इसे स्थूल शरीर का कारक माना गया है। इसी प्रकार अथर्ववेद में चंद्रमा को "चंद्रमा मनसा जात:"....(अथर्ववेद 19/6/7) कहा गया है अर्थात मन से स्थूल शरीर प्रभावित होता है। वैज्ञानिक लोग सूर्य चंद्र और पृथ्वी के बीच के संबंध को अंग्रेजी के शब्द एंपैथी से निरूपित करते हैं। इसका अर्थ होता है अंतर समानुभूति अर्थात सूर्य चंद्रमा और पृथ्वी में एक प्रकार का अंतर समानुभूति का संबंध पाया जाता है इसी वजह से सूर्य पर जो भी घटित होता है इसका सीधा प्रभाव हमारी पृथ्वी और हम पर पड़ता है। एक रूप में सूर्य हमारा महापिता कहा जा सकता है।

हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों द्वारा श्रुति और स्मृति के माध्यम से इस प्राचीनतम ज्ञान को पीढ़ी दर पीढ़ी संरक्षित और सुरक्षित रखा। परंतु कालांतर में यह उन्नत विज्ञान खो गया और हमारे पास इसके खंडहर मात्र अर्थात अवशेष मात्र रह गए। जिन्हें आगे चलकर विस्तार प्रदान किया गया और लिपिबद्ध किया गया। अब धीरे-धीरे संपूर्ण विश्व ज्योतिष के प्रभाव को जानने और समझने लगा है। हाल ही में फ्रांस में एक गणना कराई गई जिसके अंतर्गत यह तथ्य निकाल कर सामने आया कि फ्रांस की करीब 47% जनता ज्योतिष में विश्वास रखती है और ज्योतिष को विज्ञान मानती है। वर्तमान समय में अमेरिका में तकरीबन 7000 बड़े ज्योतिषी दिन-रात काम में लगे हैं और उनके पास इतने ग्राहक है कि वे अपना काम भी नहीं निपटा पाए करोड़ों डॉलर अमेरिका प्रतिवर्ष ज्योतिषों को चुकता है। एक अनुमान है कि पृथ्वी पर कोई 78% लोग ज्योतिष में विश्वास करते हैं। जबकि वैज्ञानिक विचारक, बुद्धिजीवी इत्यादि ज्योतिष की बात सुनकर ही चौंक जाते हैं। भारतीय ज्योतिष शास्त्र का विज्ञान आज धीरे-धीरे ही सही विश्व पटल पर अपना स्थान बनाने में कामयाब हो रहा है। पश्चिमी जगत में भी आज हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों द्वारा ग्रह नक्षत्र तारों के संबंध में की गई अवधारणाओं को और उनका मानव जीवन ,प्रकृति,जीव जंतुओं इत्यादि पर पढ़ने वाले प्रभावों के अध्ययन को मान्यता देना प्रारंभ किया है। खगोलीय पिंडों, नक्षत्र और आकाशीय ग्रहों की स्थिति के परिवर्तन से विश्व परिदृश्य पर होने वाले विभिन्न प्रकार के परिवर्तनों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। ज्योतिष वस्तुत: संभावनाओं और घटनाओं पर प्रकाश डालने का कार्य करता है। भारतीय वेद दर्शन, पुराण और श्रीमद् भागवत गीता में ज्योतिष के सूत्र हजारों साल पहले ही समाविष्ट थे। जो स्पष्ट रूप से इस बात का सूचक है कि भारतीय ज्योतिष शास्त्र की परंपरा कितनी अधिक प्राचीन है।

विगत 300 वर्षों से जहां विश्वविद्यालय के द्वार ज्योतिष के लिए बंद थे, अब धीरे धीरे ही सही खुलना प्रारंभ हो गए हैं। निश्चित रूप से आने वाले 30 वर्षों में ज्योतिष इन बंद दरवाजों को तोड़कर विश्वविद्यालय में एक सम्मानित स्थान पाकर रहेगा।



- इन्जी. संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश
9425825488
sanshri 1234@gmail.com 
*********************************

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका