प्रेम से सामाजिक तथा राष्ट्रीय सम्बन्ध बढ़ते हैं पर निबंध

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प्रेम से सामाजिक तथा राष्ट्रीय सम्बन्ध बढ़ते हैं पर निबंध prem se samajik tatha rashtriya sambandh badhte hain swadesh prem par Nibandh Relation Socia

प्रेम से सामाजिक तथा राष्ट्रीय सम्बन्ध बढ़ते हैं पर निबंध


प्रेम से सामाजिक तथा राष्ट्रीय सम्बन्ध बढ़ते हैं पर निबंध prem se samajik tatha rashtriya sambandh badhte hain swadesh prem par Nibandh Relation Social Relation - प्रकृति की रचना के साथ ही ईश्वर ने मानव की सृष्टि की और उसमें अनेक भावों का संचार किया। जैसे-हर्ष-शोक, सुख-दुःख, प्रेम-घृणा, चिन्ता आदि। इनमें प्रेम को सर्वोपरि माना गया है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। सामाजिक प्राणी होने के नाते वह समाज में अन्य लोगों के सम्पर्क में आता है और आपस में सम्बन्ध स्थापित करता है, उसके प्रति अपना प्रेम प्रकट करता है। इस प्रेम के अनेक रूप हैं- माता-पिता का सन्तान के प्रति प्रेम, पति-पत्नी का प्रेम, भाई-भाई तथा भाई-बहन का प्रेम, ईश्वर के प्रति प्रेम तथा देश के प्रति प्रेम जिसे देशभक्ति भी कहा जाता है। इसे विद्वानों ने प्रेम का उदात्त रूप कहा है। 

प्रेम एक ऐसा गुण है जो परायों को भी अपना बना लेता है तथा शत्रु को मित्र, यह ऐसा रसायन है जो लोहे को सोना बना देता है तथा एक ऐसी औषधि है जिससे मन के सब विकार दूर हो जाते हैं। तुलसीदास जी ने तो प्रेम को दूसरे को विकार आवश में करने वाला एक मंत्र बताया है - 

'वशीकरण एक मंत्र है, तज दे वचन कठोर । 
तुलसी मीठे वचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर । ।

प्रेम मन की कोमल भावना है

प्रेम से सामाजिक तथा राष्ट्रीय सम्बन्ध बढ़ते हैं पर निबंध
प्रेमयुक्त मीठे वचन बोलने से सामाजिक तथा राष्ट्रीय सम्बन्ध बढ़ते हैं। हम एक दूसरे के हृदय के निकट पहुँचते हैं, दिल की दूरियाँ मिट जाती हैं। प्रेम मन की कोमल भावना है जो मधुर वाणी द्वारा प्रकट होती है। प्रेम पूर्ण मधुर वचन बोलने से श्रोता को सुख पहुँचता है तथा अपनी आत्मा भी प्रसन्न होती है। कबीरदास जी ने कहा है- 

"ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय ।
औरन को शीतल करै आपहुँ शीतल होय ।
 
प्रेमपूर्ण भाषण से हृदय में क्रोध का समावेश नहीं होता। यह क्रोध ही है जो हमें अपनों से दूर करता है, एक राष्ट्र को दूसरे राष्ट्र से अलग कर देता है क्योंकि क्रोध में मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है। वह अपने कटु वचनों के प्रहार से दूसरे को पीड़ित करता है, उसे अपना शत्रु बना लेता है। अतः आवश्यक है कि अपनी वाणी में कोमलता लाएँ । इतिहास गवाह है, जिन शासकों में प्रेम के बल पर प्रजा को जीतने की शक्ति थी उन्होंने वर्षों जनता के दिलों पर शासन किया। समाज में जिन महात्माओं ने उच्च पद प्राप्त किए, मान-सम्मान पाया वे सभी जनता के प्रति प्रेम भाव रखने वाले हुए। आज गांधी जी को विश्व सत्य-अहिंसा व प्रेम का पुजारी कहते हुए उनका यशगान करता रहता है। उन्होंने प्रेम के बल पर ही अंग्रेजों को देश से निकाल बाहर किया। भगवान बुद्ध के विरोध भी अन्त में उनके अनुयायी बन गए। रहीमदास जी ने प्रेम की महत्ता बताते हुए कहा है - 

"मेल प्रीति सब सौं भली, बैर न हित मित गोत । 
रहिमन याही जनम में, बहुरि न संगत होत ।।
 

प्रेम से राष्ट्रीय सम्बन्ध में बढ़ोत्तरी

आज समाज में, राष्ट्र में सर्वत्र हिंसा, घृणा व द्वेष का बोलबाला है। सब एक दूसरे को संदेह की दृष्टि से देख रहे हैं। समाज में सह-अस्तित्व, सद्भावना का तो जैसे लोप हो गया है। ऐसे समय में जब एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर आक्रमण के लिए तैयार बैठा है, सब एक दूसरे के दुश्मन बन गए हैं तब प्रेम ही वह शस्त्र है जो शान्ति की बयार ला सकता है, एक दूसरे की नफ़रत को प्यार में बदल सकता है। आज पूरा विश्व युद्ध की कगार पर खड़ा है इसीलिए सब शान्ति की याचना कर रहे हैं। प्रेम और शान्ति के अग्रदूत गांधी जी सबके वन्दनीय हो गए हैं। उनके प्रेम के अस्त्र द्वारा हम सामाजिक तथा राष्ट्रीय सम्बन्धों को बढ़ा सकते हैं, उन्हें दृढ़ कर सकते हैं। गांधी जी कहा करते थे -
 
"प्रेम और अहिंसा द्वारा विश्व के कठोर से कठोर हृदय को भी कोमल बनाया जा सकता है।" 

यह सत्य है कि हिंसा से हिंसा बढ़ती है और घृणा से घृणा । इसी प्रकार प्रेम से प्रेम की अभिवृद्धि होती है। अतः आज कई राष्ट्र द्वेष-भाव के स्थान पर प्रेम सम्बन्धों को स्थापित करने में प्रयत्नशील हैं। अतः मैं पूर्ण विश्वास से कह सकती हूँ. कि प्रेम ही विश्व-शान्ति का आधार है। इसके द्वारा ही सामाजिक व राष्ट्रीय सम्बन्ध दृढ़ होते हैं।

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