निर्मला उपन्यास में रुक्मिणी का चरित्र चित्रण मुंशी प्रेमचंद निर्मला के पति तोताराम की विधवा बहन रुक्मिणी परम्परावादी संकीर्ण मनोवृत्ति भारतीय महिला
निर्मला उपन्यास में रुक्मिणी का चरित्र चित्रण
निर्मला उपन्यास में रुक्मिणी का चरित्र चित्रण - निर्मला उपन्यास मुंशी प्रेमचंद जी का प्रसिद्ध सामाजिक उपन्यास है। इस उपन्यास में रुक्मिणी एक प्रमुख पात्र हैं जो कि निर्मला के पति तोताराम की विधवा बहन है और अपने भाई के यहाँ रहकर ही वैधव्य के दिन बिता रही है।उसके जीवन में किसी प्रकार के सुख की सम्भावना दृष्टिगोचर नहीं होती। इसलिए वह तोताराम की गृहस्थी को सम्भालने में ही अपना समय व्यतीत करती है। परन्तु जब तोताराम ने निर्मला को अपनी कमाई देनी शुरू कर दी तो रुक्मिणी परम्परावादी संकीर्ण मनोवृत्ति की भारतीय महिला की भाँति ही आचरण करने लगती है।घर की स्वामिनी के अघोषित पद से हटने का दंश उसको आहत करता है और वह निर्मला से द्वेष करने लगती है . रुक्मिणी के चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ देख सकते हैं -
स्पष्टवादी
रुक्मिणी किसी भी प्रसंग को, जो उसे अच्छा नहीं लगता, अपने हृदय में दबाकर रखने की अपेक्षा अपनी जिह्वा से रोष सहित प्रकट करने में ही विश्वास करती है। निर्मला के स्वामित्व के कारण और भाई तोताराम के द्वारा निर्मला का पक्ष लेने पर भी वह किसी भी प्रकार उनसे दबती नहीं है और बच्चों की उपेक्षा और घर की अन्य स्थितियों पर निर्भीक होकर वाद-विवाद करती है।
स्नेहिल
रुक्मिणी एक ओर भाई-भावज से अत्यंत कठोर व्यवहार करती है परन्तु मंसाराम, जियाराम और सियाराम के प्रति उसके हृदय में अत्यधिक ममता भी है। बच्चों का दुःख उसे बार-बार भाई-भावज का सामना करने को विवश करता है। इतना ही नहीं जब निर्मला रुक्मिणी के रोकने पर भी मंसाराम को खून देने के लिए अस्पताल चली जाती है तब निर्मला के प्रति भी उसके हृदय में स्नेह और सहानुभूति उमड़ने लगती है। बच्चों को रुक्मिणी से मिलने वाला प्यार उन्हें अपनी माँ की ममता का ही पूरक प्रतीत होता है।
सुख-दुःख की साथी
रुक्मिणी यद्यपि भाई-भावज का घर छोड़कर कहीं अन्यत्र जाने की स्थिति में नहीं है परन्तु अत्यन्त दुःख सहने और उपेक्षित होने के बाद भी ऐसा कोई विचार उसके हृदय में नहीं आता। अपमानित होने के बाद भी वह उसी घर की सेवा में लगी रहती है। निर्मला अपने अन्तिम दिनों में नितांत अकेली और जीवन से निराश हो जाती है। पति, पुत्र, सखी सभी साथ छोड़ देते हैं परन्तु रुक्मिणी न केवल निर्मला का साथ ही देती है वरन् निर्मला के हृदय में जीवन और आशा का संचार करने की चेष्टा भी करती है।
विश्वसनीय सखी
उपन्यास के अंतिम चरण में रुक्मिणी का चरित्र अत्यन्त सशक्त होकर उभरा है। वह निर्मला की निराशा दूर करने की चेष्टा करती है और उसके स्वस्थ होने की कामना करती है। इतना ही नहीं निर्मला की बेटी को रुक्मिणी माँ की कमी खलने नहीं देती और उसके कारण रात-रात भर जागती है। निर्मला को प्रसन्न देखने की कामना रखने के साथ ही वह उसके स्वास्थ्य के प्रति भी चिंतित है और उसे कुछ न कुछ खिलाने का प्रयत्न करती रहती है। अंत में निर्मला उससे ही अपने हृदय की सारी बातें कह कर अपनी पुत्री को सदा के लिए उसे सौंप देती है।
इस प्रकार रुक्मिणी कठोर और रुढ़िवादी होते हुए भी स्पष्टवादी, स्नेहिल और विश्वसनीय सखी के रूप में उभरी है।
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