निर्मला उपन्यास की प्रमुख समस्याएं nirmala upanyas ki pramukh samasya निर्मला उपन्यास की मूल समस्या पर विचार दहेज प्रथा अनमेल विवाह सामाजिक उपन्यास
निर्मला उपन्यास की प्रमुख समस्याएं मुंशी प्रेमचंद
निर्मला उपन्यास की प्रमुख समस्याएं nirmala upanyas ki pramukh samasya निर्मला उपन्यास की मूल समस्या पर विचार - निर्मला उपन्यास मुंशी प्रेमचंद जी का प्रसिद्ध सामाजिक उपन्यास है।उपन्यास रचना में देशकाल और वातावरण के साथ-साथ तत्कालीन परिस्थितियों का भी बहुत महत्त्व है।उपन्यासकार तत्कालीन परिस्थितियों से प्रभावित होता है और उस युग में जन्म लेने वाली किसी भी लहर, समस्या, परिस्थिति और विचारधारा से वह अछूता नहीं रहता। उपन्यासकार अपने युग को कोई न कोई संदेश भी देना चाहता है।
फिजूलखर्ची की समस्या
निर्मला उपन्यास का रचनाकाल सन् 1923 ई. का है। उस समय भारत परतन्त्र था। निर्मला उपन्यास में प्रेमचन्द ने उस काल की सामाजिक और पारिवारिक हलचलों और स्थितियों का वर्णन किया है। उपन्यास के आरम्भिक भाग में लेखक ने मध्यवर्गीय समाज की प्रदर्शन की प्रवृत्ति का यथार्थ रूप चित्रित किया है। बाबू उदयभानु लाल धन अधिक न होते हुए भी अपनी पुत्री के विवाह के अवसर पर अपनी शान दिखाने के लिए क्षमता से अधिक व्यय करना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि बारातियों का ऐसा सत्कार किया जाए कि किसी को जबान हिलाने का मौका न मिले। वे लोग भी याद करें कि किसी के यहाँ बारात में गए थे। भालचन्द सिन्हा भी अपनी दिखावे की प्रवृत्ति के कारण पुरोहित मोटेराम के सामने कई नौकरों को आवाजें लगा-लगाकर पुकारते हैं जबकि वास्तव में उनके यहाँ एक ही नौकर है । अत्यंत कंजूस होने पर भी वे झूठी शान के कारण पुरोहित मोटेराम को दस रुपए दे देते हैं।
दहेज प्रथा के बुरे प्रभाव की समस्या
निर्मला उपन्यास में मुख्यतः दहेज प्रथा तथा अनमेल विवाह की समस्या को उठाया गया है। उस समय भारतीय समाज में बेमेल विवाह आम बात थी क्योंकि समाज में दहेज का दानव अपना मुँह फैलाए चारों ओर घूम रहा था। जो माता-पिता पर्याप्त धन नहीं जुटा पाते थे वे अधेड़ आयु के लोगों से पुत्री का विवाह कर देते। नवयुवतियों में इतनी शक्ति नहीं थी कि वे इस बात का विरोध कर सकें। प्रेमचन्द ने निर्मला उपन्यास के माध्यम से समाज की उस समय की समस्या को दिखाया है। निर्मला अपने जीवन से समझौता करने पर विवश हो जाती है। माँ अपनी सामाजिक जिम्मेदारी निभाकर निर्मला के भविष्य से खिलवाड़ करती है।
अनमेल विवाह की समस्या
तोताराम और निर्मला के संवाद तथा घटनाएँ उस युग की परिस्थितियों का चित्रण करते हैं। अधेड़ आयु का व्यक्ति तोताराम निर्मला को रिझाने का प्रयास करता है। लेकिन निर्मला पर उसके पौरुष का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। अपने पति, रुक्मिणी, जियाराम, सियाराम और मंसाराम के प्रति दायित्व निभाती निर्मला चिड़चिड़ेपन का शिकार बन जाती है। इनके साथ जुड़ी घटनाएँ यथार्थ के निकट, स्वाभाविक और प्रभावशाली हैं। निर्मला का अन्त दुखदायी है।
निर्मला उपन्यास में रुक्मिणी के हृदय परिवर्तन तथा सुधा के चरित्र द्वारा एक ऐसा आदर्श भी दिखाया गया है जिसमें नारी का नारी के प्रति सम्मान है।
इस प्रकार निर्मला युग पीड़ित नारी की कथा है जिसे तत्कालीन परिस्थितियों और सामाजिक सन्दर्भों में चित्रित किया गया है।
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