कहने को तो देश है हमारा आजाद

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एक बार फिर लोगों की आवाज़ है खो सी गई वो देश बनाने की लगन लगता है सो सी गई। सब आपस में कर रहे है एक दूसरे का पीछा क्यों दिखा रहे है एक दूसरे को नीचा।

सबने तो बेच दी है अपनी इंसानियत


क्यूं डरी हुई है वो
कोई तो जाके उससे बात कर लो,
बोलती नहीं है कुछ
लेकिन कहना बहुत कुछ है चाहती।
खौफ है बेचारी को उन दरिन्दो का
लेकिन बेचारी वो खुद को न मानती।
चाहती तो है करना बहुत कुछ,
लेकिन, अपनी ये बात किसी को बता ना पाती।

न कर पाती है किसी पर भी भरोसा,
जो हुआ है उसके साथ सोचकर ही 
काप उठता है उसके शरीर का रेशा रेशा।
सोच रही है वो की कहा आ फसी है वो 
कोई नही अब उसे अपना है लगता,
यहां तो हर कुछ है बिकता।
सबमें कूट कूट कर भरी है हैवानियत,
क्युकी सबने तो बेच खा दी है अपनी इंसानियत।

सबने तो बेच दी है अपनी इंसानियत
हिम्मत करके मां को अपनी
सब कुछ है बताती
सोचती है अब एक मां ही है
जो समझेगी मुझे और करेगी मुझसे प्यार
सुनते ही माँ ने लगा दी उसको फटकार
की वो हो रही सेक्सुअल हैरेसमेंट का शिकार।
माँ ने बोला बेटा आवाज़ अपनी हमेशा 
अब धीरे ही रखना
क्योंकि ये तेरी है जिम्मेदारी 
अपने पापा का मान रखना।
अब बेटी और माँ दोनो है लाचार
सहना ही पड़ेगा अब उसको ये अत्याचार।
बेटी को बेचनी पड़ी अपनी ज़ुबान
उम्र है अभी छोटी लेकिन ये सब सहा 
क्योंकि खानी थी परिवार को दो पल की रोटी।

एक नही, दो नही ,
सारे के सारे आज है मौन
तभी कोई नही जानता 
ये सब सहेने वाला है कौन।
 क्यों रहना पड़ता है चुप
बस इसलिए..
क्योंकि है रखना परिवार का मान।
कब तक सहेगा तू इंसान
बोल अब और खतम कर दे ये हैवान।
ऐ इंसान
क्यो बिक चुकी है तेरी ज़ुबान। 

कहने को तो देश है हमारा आजाद

क्यूं?आज भी एक लड़की नहीं चल पाती
अकेले रात को सूनी सड़क पर होके निडर
न जाने क्यों आज भी उसमे है इतना डर?
बहुत सोचा पर एक बात समज अभी तक न आई
समाज आगे न बड़ पाया या लड़की न बड़ पाई?
अब कोन करेगा इसकी भरपाई?
क्यों हर सफर पर लड़की को लेना पड़ता है सहारा
क्या सचमुच एक लड़की होती है इतनी बेसहारा?
क्या वो अपना खुद नहीं बन सकती सहारा?
क्यों आज भी नही सुलझते वो केस?
इस बात को सोच सोचकर 
मेरे मन में होते बहुत कलेश।
क्यों ये खबर सुनने को मिलती
हर कुछ दिनों बाद,
क्यों कोई कुछ नही बोलता,क्या सब है बेबुनियाद?
अब क्या ही करे हम फरियाद
कहने को तो देश है हमारा आजाद।।

75 साल पहले लोगो ने 
बनाना चाहा एक ऐसा देश
जहा कोई किसको नही देगा आदेश
सब रहेंगे मिलझुलकर
कोई नही करेगा भेदभाव रंग को लेकर
ये ही नही इसमें जुड़ी और भी हजारों बाते।
लेकिन अब लगता है जैसे हो सब अंधेरी राते।
क्यों लोग एक बेसहारा की 
मदद न करके बनाते है बाते।
क्यों लोगों की आवाज़ आज भी है दब रही?
क्यों जनता है डर रही?
एक बार फिर लोगों की आवाज़ है खो सी गई
वो देश बनाने की लगन लगता है सो सी गई।
सब आपस में कर रहे है एक दूसरे का पीछा
क्यों दिखा रहे है एक दूसरे को नीचा।
चारो ओर फैला है आतंकवाद
आज 75 साल पहले के वादे आते है याद,
अब क्या ही करे हम फरियाद
कहने को तो देश है हमारा आजाद।।



- साक्षी भण्डारी
कक्षा १२ 

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