मृत्युपूजकों ने जीवित स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त को कैसा सिला दिया ?

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मेरी चिता की अग्नि वहाँ धधके जहाँ मेरे दोस्त भगत सिंह की चिता जली, ये बोल बट्टू दा ने बीस जुलाई उन्नीस सौ पैंसठ की रात अंतिम सांस ली, रोती बिलखती रह ग

मृत्युपूजकों ने जीवित स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त को कैसा सिला दिया ?


ब्रिटिश कालीन भारत में बंगाल-बिहार प्रांत के 
वर्धमान जिलान्तर्गत औरी/खंडाघोष ग्राम में 
अठारह नवम्बर उन्नीस सौ दस ईस्वी सन में 
बाबू गोष्ठ बिहारी दत्त के आत्मज के रुप में 
महान क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त अवतरित हुए थे!
मृत्युपूजकों ने जीवित स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त को कैसा सिला दिया ?

बचपन में बटुकेश्वर दत्त दोस्तों के बीच में बट्टू दा 
और मोहन के नाम से जाने पहचाने पुकारे जाते थे 
बटुकेश्वर के पिता कानपुर में सरकारी सेवा करते थे!
 
वहीं कानपुर में बटुकेश्वर ने स्कूल व कालेज की शिक्षा पाई, 
वहीं कानपुर शहर में बटुकेश्वर दत्त ने पढ़ाई के दरम्यान में 
कामरेड चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह से मित्रता निभाई, 
हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी की सदस्यता ले ली!

इसी दौरान ब्रिटिश सरकार के द्वारा लाए गए पब्लिक सेफ्टी बील और 
ट्रेड डिस्प्यूट बील के खिलाफ आठ अप्रैल उन्नीस सौ उन्तीस ईस्वी में 
भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेम्बली में दो बम से धुआँ कर दी
दोनों बम पटाका बम था,महात्मा गांधी की अहिंसा का पुजारी निकला,
दोनों वीर बालकों ने अभिमन्यु सा सीना ताने स्वेच्छा से गिरफ्तारी दी!

इन्कलाब जिंदाबाद का नारा लगाया,ब्रिटिश साम्राज्यवाद का खात्मा हो! 
अंधे बहरे क्रूर कौरव धृतराष्ट्र से कहा,सुनो! सुनो! हमारी आवाज सुनो, 
बहुत वर्ष हुए जंगल-जंगल भटके, हम अर्जुन के बच्चे, कृष्ण के भांजे,
हमको मातृभूमि लौटा दो,इंद्रप्रस्थ खाली करो या फाँसी पर लटका दो!

इसपर उन्हें लाहौर फोर्ट जेल में आजीवन कारावास की सजा मिली 
फिर लाला लाजपत राय के हत्यारे पुलिस अधीक्षक सांडर्स हत्या पर 
लाहौर षड्यंत्र केस चला, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी,  
बटुकेश्वर दत्त को अंडमान निकोबार में कालापानी की सजा दी गई!

फिर उन्नीस सौ सैंतीस में बटुकेश्वर दत्त को अंडमान निकोबार जेल से 
बांकीपुर पटना जेल में लाया गया,उन्नीस सौ अड़तीस में मिली रिहाई, 
कालापानी की सजा व उपवास से बटुकेश्वर को यक्ष्मा की बीमारी हुई!
 
फिर भी उन्नीस सौ बयालीस के भारत छोड़ो आंदोलन में वे भाग लिए,
जिससे पुनः जेल की सजा मिली और आजादी मिलने के पहले रिहा हुए, 
आजाद हो बटुकेश्वर ने अंजलि से विवाह रचाकर पटना में घर बसा लिए,
मगर आजाद वतन ने बटुकेश्वर की रोजी-रोटी का कुछ नहीं जुगाड़ किए!

स्वतंत्रता सेनानी होने के नाते जब बस चलाने के परमीट के लिए अर्जी लगाई, 
तो कमिश्नर ने बटुकेश्वर से क्रांतिकारी होने का प्रमाण मांग,किया जग हंसाई,
घर चलाने हेतु ऐसे आजादी के दीवाने ने पटना की गली-गली की खाक छानी, 
कभी सिगरेट कंपनी का एजेंट व टूरिस्ट गाइड,कभी पावरोटी की दुकान चलाई!
  
वाह रे मूर्खों को विधायक सांसद मंत्री बनाने वाले संविधान की दुर्दशा
मृत्युपूजकों ने ग्रैजुएट जीवित स्वतंत्रता सेनानी को कैसा सिला दिया?  
जिन्होंने आजीवन कारावास की जगह अपने दोस्त भगतसिंह की तरह 
फाँसी मांगी पर जज साक्ष्य ना जुटा पाए या फाँसी की रस्सी रो उठी, 
फलतः दोस्त शहीदेआजम की सलाह पर उम्रकैद की कठिन यातना झेली! 

भगत सिंह को हैट बट्टू ने भेंट की थी, भगत की आत्मा बट्टू में समाई,
महज चौवन साल के माँ भारती के लाल पे कैंसर बीमारी ने कहर बरपाई,
भगत सिंह की मां विद्यावती ने पुत्र समझ इलाज में सारी सम्पत्ति दे दी, 
जाहिल गंवार को सरताज पहनानेवाले बिहार को लाज न आई,सुधी ना ली,  
यद्यपि चार माह की बिहार विधान परिषद सदस्यता दे खानापूर्ति की थी!

मगर पंजाब सरकार ने इलाज के लिए अग्रिम राशि दी,अंतिम इच्छा पूछी,  
दम तोड़ते महान क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त ने अंतिम इच्छा जाहिर कर दी,
मेरी चिता की अग्नि वहाँ धधके जहाँ मेरे दोस्त भगत सिंह की चिता जली,
ये बोल बट्टू दा ने बीस जुलाई उन्नीस सौ पैंसठ की रात अंतिम सांस ली,
रोती बिलखती रह गई इकलौती पुत्री भारती बागची और धर्मपत्नी अंजलि, 
भारत पाक सीमा पर हुसैनीवाला में बट्टू दा की ज्योति भगत से जा मिली!




- विनय कुमार विनायक

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