कहानी का अर्थ परिभाषा विशेषताएँ और मूल तत्व

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कहानी का अर्थ परिभाषा विशेषताएँ और तत्व

हानी वास्तव में गद्य साहित्य की सबसे लोकप्रिय विधा है। गल्प, आख्यायिका, लघुकथा आदि इसके अनेक पर्यायवाची शब्द हिन्दी में प्रचलित हैं। एडगर एलन पो के अनुसार कहानी एक निश्चित प्रकार का वर्णनात्मक गद्य है जिसके पढ़ने में आधे घण्टे से लेकर एक घण्टे का समय लगता है। 

प्रेमचन्द ने कहानी की परिभाषा करते हुए लिखा है, "कहानी ऐसा उद्यान नहीं जिसमें भाँति-भाँति के फूल और बेल सजे हुए हों बल्कि वह एक गमला है जिसमें एक ही पौधे का माधुर्य अपने समुन्नत रूप में दृष्टिगोचर होता है।" 

पं. रामचन्द्र शुक्ल ने कहानी को इस प्रकार परिभाषित किया है- “सादे ढंग से केवल कुछ अत्यन्त व्यंजक घटनाएँ और थोड़ी बातचीत सामने लाकर क्षित्र गति से किसी एक गम्भीर संवेदना या मनोभाव में पर्यवसित होने वाली गद्य विधा कहानी है।" 

कहानी के मुख्य 6 तत्त्व हैं- 
(1) कथानक, 
(2) पात्र और चरित्र-चित्रण, 
(3) कथोपकथन (वार्त्तालाप), 
(4) वातावरण (देश-काल और परिस्थिति) संकलनत्रय, 
(5) भाषा और शैली, 
(6) उद्देश्य । 

कथानक

कहानी का अर्थ परिभाषा विशेषताएँ और मूल तत्व
कथानक कहानी का मुख्य तत्त्व होता है। आधुनिक कहानियों में धीरे-धीरे कथानक को कम महत्त्व दिया जाने लगा किन्तु इससे कोई प्रयोग विशेष सफल नहीं हो सका है। 

विषय की दृष्टि से कथानक ऐतिहासिक, पौराणिक, सामाजिक, राजनीतिक, समस्यामूलक आदि अनेक प्रकार के होते हैं। घटनाप्रधान कहानियों को घटनाप्रधान, चरित्रप्रधान कहानियों को चरित्रप्रधान तथा समस्याप्रधान कहानियों को समस्यामूलक कहानी कहते हैं।

कथानक के विकास की दृष्टि से कथानक के पाँच अंग होते हैं:- (i) प्रारम्भ, (ii) अन्तर्द्वन्द्व, (iii) चरमोत्कर्ष,  (iv) अवरोह, (v) अन्त । 

पात्र 

कहानी में जितने कम पात्र होते हैं, कहानी उतनी ही उत्कृष्ट कोटि की मानी जाती है। कहानी का मूल भाव चाहे जो भी हो, मानव चरित्र की प्रतिष्ठा ही कहानी का प्रधान विषय होता है, अतः कहानी के पात्रों में स्वाभाविकता का होना आवश्यक है। 

कहानी में पात्रों का चरित्र-चित्रण तीन प्रकार से होता है— (i) कथोपकथन द्वारा, (ii) लेखकीय स्वकथन द्वारा, (iii) पात्रों के पारस्परिक क्रिया-कलापों द्वारा। पात्रों में जीवन संघर्षों का उल्लेख करना कहानी की सफलता है। 

कथोपकथन

कहानी में कथोपकथन के दो उद्देश्य होते हैं— 
i. पात्रों में चरित्र-चित्रण को प्रस्तुत करना, 
ii.कथा- प्रवाह को आगे बढ़ाना। 

कहानी के कथोपकथन में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं— 
(क) कथोपकथन स्वाभाविक और तर्कसंगत हो । 
(ख) कथोपकथन सरल और संक्षिप्त हो । 
(ग) कथोपकथन सशक्त, सार्थक और मार्मिक हो । 
(घ) कथोपकथन कथा के विकास में सहायक हो । 

वातावरण ,देश-काल और परिस्थिति  

कहानी में विश्वसनीयता लाने के लिए आवश्यक है कि देश-काल और परिस्थितियों का सही-सही चित्रण किया जाय। वातावरण का चित्रण कथ्य की प्रेषणीयता के लिए पाठक के मानस को तैयार करता है। यह कुछ कहानियों में प्रारम्भ में ही कर दिया जाता है, कुछ के मध्य में। 

भाषा-शैली

भाषा में भावों की अभिव्यक्ति होती है और शैली अभिव्यक्ति का स्वरूप होती है। कहानी की भाषा जितनी ही सरल, सुस्पष्ट और बोधगम्य होगी, कहानी उतनी ही सफल होगी। भाषा की क्लिष्टता से कहानी की स्वाभाविकता समाप्त हो जाती है। भाषा समर्थ, प्रभावशाली, चित्रात्मकता और प्रवाहमयता से पूर्ण होनी चाहिए। 

उद्देश्य

मनोरंजन के साथ-साथ कहानी में कोई-न-कोई उद्देश्य भी निहित रहता है, किन्तु कहानी का उद्देश्य उपन्यास के उद्देश्य की भाँति स्पष्ट और विस्तृत नहीं होता। इसमें कहानी के उद्देश्य का संकेत मात्र ही रहता है।
 

अच्छी कहानी की विशेषताएँ क्या है

अच्छी कहानी के अंदर निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए -

  • शीर्षक-कहानी का शीर्षक संक्षिप्त, भावपूर्ण, स्पष्ट और कौतूहलपूर्ण होना चाहिए और कथानक से सम्बद्ध होना चाहिए। 
  • कथानक - कहानी का कथानक स्वाभाविक, स्पष्ट, रोचक और सार्थक होना चाहिए। लम्बे कथानक कहानी में दोष उत्पन्न करते हैं। कहानी इतनी लम्बी होनी चाहिए कि एक बैठक में ही समाप्त हो जाय। 
  • पात्र - कहानी में पात्रों की संख्या जितनी ही कम हो, कहानी पाठकों के लिए उतनी ही बोधगम्य होगी। पात्रों की संख्या बढ़ने से कहानी की बोधगम्यता में कठिनाई आ जाती है। 
  • चरित्र चित्रण - पात्रों के चरित्र-चित्रण में जितनी ही स्वाभाविकता और स्पष्टता का ध्यान रखा जायेगा, कहानी उतनी ही स्पष्ट होगी। 
  • अन्तर्द्वन्द्व - पात्रों के मनोवेगों का चित्रण जितना ही सजीव और मर्मस्पर्शी होगा, कहानी उतनी ही सफल होगी। 
  • घटना-यथा सम्भव कहानी में घटनाएँ कम होनी चाहिए। अनेक प्रासंगिक कथाएँ या घटनाएँ कहानी को असफल बना देती हैं। 
  • कौतूहल- कहानी का प्राण कौतूहल है जिसका आदि से अन्त तक होना आवश्यक है। इससे पाठकों के मन कहानी के प्रति विशेष रुचि पैदा होती है। 1 
  • भाषा-शैली-कहानी की भाषा-शैली अत्यन्त ही सरल, स्वाभाविक, स्पष्ट और प्रभावशाली होनी चाहिए। (9) कथोपकथन-कहानी में आये हुए कथोपकथन संक्षिप्त, स्वाभाविक, अर्थपूर्ण तथा तर्कसंगत होने चाहिए। लम्बे कथोपकथनों से भाषण की नीरसता आने लगती है। 
  • उद्देश्य - कहानी मनोरंजक के साथ-साथ जीवन के किसी पक्ष से सम्बद्ध किसी-न-किसी उद्देश्य का उद्घाटन करने वाली होनी चाहिए। 
  • वातावरण- कहानी में विश्वसनीयता लाने के लिए वातावरण का चित्रण आवश्यक होता है। 
  • कहानी का आदि और अन्त- कहानी का आदि और अन्त अत्यन्त ही कौतूहलपूर्ण होना चाहिए जिससे पाठक की उत्सुकता बराबर बनी रहे। 



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