हिंदी गद्य की विविध विधाओं का परिचय हिंदी गद्य साहित्य की प्रमुख विधाएं Hindi gadya sahitya ki Pramukh vidhayen natak ekanki upnyas nibandh kahani
हिंदी गद्य की विविध विधाओं का परिचय
हिंदी गद्य की विविध विधाओं का परिचय हिंदी गद्य साहित्य की प्रमुख विधाएं Hindi gadya sahitya ki Pramukh vidhayen natak kise kahate Hain ekanki kise kahate Hain upnyas kise kahate Hain nibandh kise kahate Hain kahani kise kahate Hain jivani kise kahate Hain aatmkatha kise kahate Hain - ज्ञान विज्ञान की समृद्धि के साथ ही गद्य की उपादेयता और महत्ता में वृद्धि होती जा रही है। किसी कवि या लेखक के हृदयगत भावों को समझने के लिए ज्ञान की आवश्यकता है और गद्य ज्ञान वृद्धि का एक सफल साधन है। इसीलिए इतिहास ,भूगोल ,राजनीतिशास्त्र ,धर्म ,दर्शन आदि के क्षेत्र में ही नहीं ,अपितु नाटक ,कथा साहित्य आदि में भी इसका एकछत्र प्रभाव स्थापित हो गया है। यदि विचारपूर्वक देखा जाए तो आधुनिक हिंदी साहित्य की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना गद्य का अविष्कार ही है और गद्य का विकास होने पर ही हमारे साहित्य की बहुमुखी उन्नति भी संभव हो सकी है। विषय और परिस्थिति के अनुरूप ही शब्दों का सही स्थान निर्धारण तथा वाक्यों की उचित योजना ही उत्तम गद्य की कसौटी है। हिंदी में गद्य साहित्य की निम्नलिखित विधाएँ हैं -
नाटक
नाटक को परिभाषित करते हुए बाबू गुलाबराय ने लिखा है कि नाटक में जीवन की अनुकृति को शब्दगत संकेतों में संकुचित करके उसको सजीव पात्रों द्वारा एक चलते फिरते सप्राण रूप में अंकित किया जाता है। नाटक जीवन की सांकेतिक नहीं है ,वरन सजीव प्रतिलिपि है। नाटक में फैले हुए जीवन व्यापार को ऐसी व्यवस्था के साथ रखते हैं कि अधिक से अधिक प्रभाव उत्पन्न हो सके। " वस्तुतः नाटक अत्यंत ही प्राचीन विधा है। ईसापूर्व तीसरी शताब्दी में आचार्य भरतमुनि ने इस विधा को आधार बनाकर नाट्यशास्त्र लिखा था।
उपन्यास
उपन्यास शब्द उप अर्थात समीप न्यास अर्थात थाती से बना है। जिसका शाब्दिक अर्थ है - मनुष्य के निकट रखी हुई वस्तु। साहित्य के सन्दर्भ में वह कृति जिसको पढ़कर ऐसा लगे कि यह हमारी ही कहानी है ,उपन्यास कहलाने योग्य है। अंग्रेजी में नावेल शब्द इसके लिए प्रयुक्त होता है। गुजराती में नवलकथा ,मराठी में कादम्बरी और बंगला तथा हिंदी में उपन्यास इसी नावेल के लिए प्रयोग किये जाने वाले शब्द है।
निबंध
यह गद्य की एक प्रमुख विधा है। यह निबंध शब्द के निकटतम पर्यायवाची शब्द लेख ,सन्दर्भ ,रचना ,प्रस्ताव ,आर्टिकल , कम्पोजिसन ,एस्से और आलेख आदि है। प्राचीन संस्कृत परंपरा में तार्किक व्याख्या ,टीका ,भाष्य समीक्षा ,सूत्र आदि से उपजकर निबंध साहित्य का विकसित होना स्वीकार्य किया गया है। लेकिन हिंदी में निबंध संस्कृत की प्राचीन परंपरा से नहीं बल्कि पाश्चात्य साहित्य की प्रेरणा से आया है। इसको परिभाषित करते हुए कहा गया है कि निबंध लेखक के व्यक्तित्व को प्रकाशित करने वाली ललित गद्य रचना है।
कहानी
कहानी क्या है ? इस प्रश्न पर विचार करते हुए कई लेखक भावुक हो जाते हैं। बाणभट्ट ने लिखा है कि " कहानी एक तरह से ऐसी बातचीत का सिलसिला है जो नवदंपत्ति के बीच में अन्तरंग होती है। जैसे - नयी बहु अपने आप अपने भीतर के रंग से रंग कर शैया पर आती है ,वैसे ही कहानी जब कहने के सरस ढंग के कारण ह्रदय तक पहुँचाती है तभी मनोरम होती है। तभी उसमें नवबधू का सा कुतूहल भरा राग होता है और ह्रदयस्पर्शिता होती है। " माखनलाल चतुर्वेदी लिखते हैं - कहानी विश्व का स्वाभाविक साहित्य है। नन्हे से छौने को माँ गोद में लेकर जो पहली वस्तु समझा पाती है ,वह होती है कहानी। "
एकांकी
एकांकी का अर्थ होता है - एक अंक वाला। प्रसिद्ध एकांकीकार उपेन्द्रनाथ अश्क ने एकांकी के लिए तीन बातें आवश्यक बताई है -
- आकार तथा समय की तुलना
- अभिनयशीलता
- रंग संकेतों की स्पष्टा
डॉ.हजारी प्रसाद द्विवेदी के शब्दों में - कहानी की भाँती नाटक भी एक घटना एक परिस्थिति और एक उद्देश्य से बनता है। एकांकी किसी महत्वपूर्ण घटना ,परिस्थिति या समस्या को आधार बनाकर लिखा जाता है और उसकी समाप्ति एक ही अंक में उस घटना के चरम क्षणों को मूर्त करते हुए कर दी जाती है। हिंदी में एकांकी नाटकों का विकास छायावाद युग से माना जाता है। सामान्यतः श्रेष्ठ नाटककारों ने ही श्रेष्ठ एकांकियों की भी रचना की है।
रिपोतार्ज
रिपोतार्ज फ्रांसीसी भाषा का शब्द है। यह गद्य की नवीनतम विधाओं में से एक है। जिस रचना में वर्ण्य विषय का आँखों देखा तथा कानों सुना ऐसा विवरण प्रस्तुत किया जाए कि पाठक की ह्रदय के तार झंकृत हो उठे और वह उन्हें भूल न सके ,उसे रिपोतार्ज कहते हैं। रिपोतार्ज रिपोर्ट नहीं है। रिपोर्ट में केवल यथातथ्य वर्णन होता है। रिपोतार्ज में कथ्यों को कलात्मक एवं भावपूर्ण ढंग से लिखा जाता है। इस रचना विधा का जन्म द्वितीय विश्वयुद्ध के समय हुआ और हिंदी में रिपोतार्ज लेखन की शुरुआत शिवदान सिंह चौहान की रचना लक्ष्मीपुरा से मानी जाती है।
आलोचना
आलोचना का शाब्दिक अर्थ है - किसी वस्तु को भली प्रकार देखना। भली प्रकार देखने से किसी वस्तु के गुण दोष प्रकट होते हैं। आलोचना के लिए समीक्षा शब्द भी प्रचलित है। इसका भी लगभग यही अर्थ है। हिंदी में आलोचना अंग्रेजी के क्रिटिसिज्म शब्द का पर्याय बन गया है। भारतीय काव्य चिंतन के क्षेत्र में सैधांतिक या शास्त्रीय आलोचना का विशेष महत्व रहा है। हमारा यह पक्ष अत्यंत समृद्ध और पुष्ट है। हिंदी में आधुनिक पद्धति की आलोचना का आरम्भ भारतेंदु युग में बालकृष्ण भट्ट और बदरी नारायण चौधरी प्रेमघन द्वारा लाला श्रीनिवासदास कृत संयोगिता स्वयंवर नाटक की आलोचना से माना जाता है। आगे चलकर द्विवेदी युग में महावीर प्रसाद द्विवेदी ,मिश्र बन्धु ,बाबू श्यामसुन्दर दास ,पद्मसिंह शर्मा ,लाला भगवान्दीन आदि ने इस क्षेत्र में विशेष कार्य किया। हिंदी आलोचना का उत्कर्ष आचार्य रामचंद्र शुक्ल की आलोचना कृतियों के प्रकाशन से मान्य है। आचार्य शुक्ल के बाद गुलाब राय ,नंददुलारे वाजपेयी ,आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ,डॉ.नगेन्द्र और डॉ.रामविलास शर्मा की हिंदी आलोचना के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
साक्षात्कार
साक्षात्कार भी प्रतिस्थापित विधा है। इसके लिए इंटरव्यू भेंटवार्ता ,अन्तरंगवार्ता ,परिचर्चा आदि शब्द भी प्रयोग किये जाते हैं। इंटरव्यू में लेखक किसी व्यक्ति से साक्षात्कार करने के बाद किसी निश्चित प्रश्नमाला के आधार पर उसके बारे में पाठकों तक जानकारी पहुंचाता है।
डायरी
साहित्यकार अपने दिन प्रतिदिन के अनुभवों एवं विचारों को लेखनीबद्ध करने के लिए प्रायः डायरी लिखते हैं। डायरी में प्रतिदिन के निरीक्षण ,अनुभवों एवं कार्यों का ब्यौरा लिखा जाता है। इसमें निजी विचारों ,भावों और प्रतिक्रियाओं की प्रधानता होती है। डायरी में अपनापन होता है। इसीलिए इससे उसके लेखक के व्यक्तित्व की झलक मिल जाती है।
यात्रावृतान्त
यात्रावृतांत एक छोर निबंध को ,तो दूसरा छोर संस्मरण को स्पर्श करता है। यात्रावृत्तांत बहुत समय से लिखे जाते रहे हैं। फाहियान ,ह्वेनसांग ,इत्सिंग ,इब्नबतूता ,अलबरूनी ,मार्कोपोलो आदि ने अपनी अपनी यात्राओं के बारे में लिखा है। यात्री को यायावर ,घुमक्कड़ और बंजारा भी कहते हैं। आधुनिक युग में यात्रावृतांत को भी साहित्य में स्थान मिला है। यहाँ यात्री अपने यात्रा विवरण में यात्रा के प्रभावों ,प्रतिक्रियाओं और संवेदनाओं को भी अभिव्यक्त करता चलता है।
गद्य गीत या गद्य काव्य
गद्य गीत में भक्ति ,प्रेम ,करुणा आदि भावनाएँ छोटे छोटे कल्पना चित्रों के माध्यम से अन्योक्ति या प्रतीक पद्धति पर व्यक्त की जाती है। अनुभूति की सघनता ,भावानुकुलता ,संक्षिप्तता ,रहस्यमयता तथा सांकेतिकता श्रेष्ठ गद्यगीत की विशेषताएँ है। हिंदी में गद्य गीतों का आरम्भ राय कृष्णदास के साधना संग्रह के प्रकाशन से हुआ। इसके बाद वियोगी हरि का तरंगिणी संग्रह प्रकाशित हुआ। ये दोनों कृतियाँ द्विवेदी युग की सीमा में आती है। इसके बाद छायावाद युग में गद्य गीतों की रचना अधिक हुई। रायकृष्णदास और वियोगी हरि के अतिरिक्त चतुरसेन शास्त्री ,वृंदावनलाल वर्मा ,अज्ञेय और डॉ रामकुमार वर्मा ने भी गद्यगीतों के क्षेत्र में अच्छे प्रयोग किये।
आत्मकथा
स्वयं लिखी अपनी जीवनी को आत्मकथा कहते हैं अर्थात जब कोई लेखक साहित्यकार या अन्य कोई व्यक्ति कलात्मक एवं साहित्यिक तरीके से स्वयं अपनी जीवनी लिखता है ,तो उसे आत्मकथा कहते हैं। आत्मकथा से यह अपेक्षा की जाती है कि उसमें सत्य का अंश अधिक हो और लेखक ईमानदारी से अपने जीवन में घटित घटनाओं का दर्शन करें।
जीवनी
जीवनी आत्मकथा से थोड़ी भिन्न है। जीवनी को अंग्रेजी में बायोग्राफी कहते हैं। आत्मकथा लेखक की अपनी कथा होती है। जबकि जीवनी किसी दूसरे व्यक्ति के जीवन की कथा होती है अर्थात व्यक्ति विशेष के जीवन की घटनाओं का लिखा गया वर्णन जीवनी है। जीवनी लेखक को आत्मकथा लेखक से अधिक सावधानी बरतनी होती है,क्योंकि आत्मकथा की चूक को केवल लेखक ही पकड़ पाता है ,पर जीवनी की चूक को बहुत से लोग जान जाते हैं।
पत्र साहित्य
जब लेखक अपने किसी मित्र ,परिचित या अल्प परिचित व्यक्ति को अपने सम्बन्ध में या किसी महत्वपूर्ण समस्या के सम्बन्ध में उसकी और अपनी सामाजिक स्थिति को ध्यान में रखकर उचित आदर ,सम्मान या स्नेह का भाव प्रकट करते हुए निजी तौर पर मात्र सूचना ,जिज्ञासा या समाधान लिखकर भेजता है और उत्तर की अपेक्षा रखता है तो वह पत्र साहित्य का सृजन करता है। पत्र नितांत निजी हो सकते हैं और सार्वजनिक भी। पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशनार्थ भेजे जाने वाले पत्र प्रायः सार्वजानिक प्रश्नों को लेकर लिखे जाते हैं। साहित्यिक दृष्टि से वे पत्र अधिक महत्वपूर्ण होते हैं ,जो प्रकाशनार्थ नहीं लिखे जाते और मात्र दो व्यक्तियों के बीच की वस्तु होते हैं।
संस्मरण एवं रेखाचित्र
संस्मरण ,रेखाचित्र और आत्मचरित इन तीनों का एक दूसरे से इतना घनिष्ठ सम्बन्ध है कि एक की सीमा दूसरी से कहाँ जा मिलती है और कहाँ अलग हो जाती है ,कहा नहीं जा सकता है। संस्मरणात्मक रेखाचित्र भी मिलते हैं और रेखाचित्रात्मक संस्मरण भी। उदाहरण के लिए ,महादेवी के गद्य लेखन में कभी कभी यह नियत करना कठिन होता है कि उनकी अमुक रचना रेखाचित्र है या संस्मरण ,फिर भी दोनों में अंतर है। रेखाचित्र में जहाँ चित्र का महत्व अधिक होता है ,संस्मरण में स्मृति का। संस्मरण में अतीत की घटनाओं को देखा जाता है। रेखाचित्र में अतीत की अनिवार्यता नहीं। संस्मरण लेखक निजी संबंधों एवं अनुभवों को आधार बनाता है ,रेखाचित्र में ऐसे आधार की आवश्यकता नहीं है।
व्यंग्य
हिंदी की इस विधा को अंग्रेजी में सेटायर कहते हैं। मानव चरित्र की दुर्बलताओं को उजागर करते हुए उन पर प्रहार करना तथा समाज के खोखलेपन का पर्दाफाश करना ही व्यंग्य का मुख्य उद्देश्य है। प्रसिद्ध व्यंग्य लेखक जोनाथन शिफ्ट ने व्यंग्य के विषय में लिखा है - व्यंग्य ऐसा आइना है जिसमें दूसरों को देखते हुए लेखक अपने मुख को भी प्रतिबिंबित होते हुए देखता है और एकांत में मुस्करा उठता है। "
आज जीवन की संकुलता और मानवीय संबंधों की जटिलता के कारण अनेक छोटी छोटी गद्य विधाओं के विकसित होने की संभावना बढ़ गयी है। इसके साथ ही गद्य शैली में विविधता और उसकी अभिव्यक्ति भंगिमा में अनेकरूपता आई है। हिंदी गद्य यथार्थवादी हुआ है।उसकी शब्द संपदा में निरंतर वृद्धि हो रही है। वाक्य रचना में लचीलापन आया है। आज वह ब्राह्य की विराटता और आन्तरिक जीवन की गहनता ,जटिलता और सूक्ष्मता को व्यक्त करने में समर्थ है। यह हिंदी गद्य के सशक्त और समृद्ध होने का शुभ लक्षण है।
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