हिंदी की शब्द संपदा समृद्ध है पर लेख | हिन्दी शब्द समूह और उसके मूल स्रोत

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हिन्दी शब्द समूह और उसके मूल स्रोत


हिंदी की शब्द संपदा समृद्ध है पर लेख हिंदी की शब्द संपदा शब्द भंडार और शब्द निर्माण हिन्दी शब्द समूह और उसके मूल स्रोत अन्य समस्त भाषाओं के समान हिन्दी - भाषा के शब्द-समूह में भी अनेक देशी, विदेशी, जीवित और मृत भाषाओं के शब्दों का समाहार पाया जाता है। हिन्दी एक संरचनात्मक भाषा है। इसमें संस्कृत, विभिन्न देशी भाषाओं एवं बोलियों तथा विदेशी भाषाओं के शब्द पर्याप्त मात्रा में समाहित हैं। संक्षेप में हिन्दी-शब्दों के प्रेरणा या मूल स्रोत इस प्रकार हैं - 

संस्कृत भाषा के शब्द

हिन्दी वस्तुतः संस्कृत की बेटी है। इसमें संस्कृत के शब्द सदा से अधिक हैं। अब तो नवीन आवश्यकताओं के कारण उनकी संख्या में नित्य निरन्तर वृद्धि होती जा रही है। ये शब्द प्रायः तीन रूपों में पाये जाते हैं- तत्सम, अर्द्ध तत्सम तथा तद्भव । 
  • तत्सम शब्द-तत्सम शब्द दो शब्दों के योग से बना है-तत् + सम । 'तत्' का अर्थ है- उसके और 'सम' का अर्थ होता है 'समान'। उसके 'समान' अर्थात् संस्कृत में प्रयुक्त रूप हिन्दी में प्रयुक्त होता है, तब वह 'तत्सम' कहा जाता है। हिन्दी-भाषा ऐसे शब्दों से भरी पड़ी है; जैसे- परिवेश, परिप्रेक्ष्य, विदित, कृष्ण, यात्रा इत्यादि ।
  •  अर्द्ध तत्सम- जो संस्कृत शब्द विकृत रूप में प्रयुक्त होने लगे हैं, उन्हें 'अर्द्ध तत्सम' शब्द कहते हैं। जैसे- 'कृष्ण' का 'किशन' अर्द्ध तत्सम है। 'कोइल', 'कोकिल' का अर्द्ध तत्सम रूप है। 
  • तद्भव - 'तद्भव' शब्द दो शब्दों के योग से बना है- तत्+भव। 'तत्' का अर्थ है उससे और 'भव' का अर्थ है 'उत्पन्न', अर्थात् वे शब्द जो संस्कृत शब्दों से उत्पन्न हुए हैं। इस प्रकार संस्कृत भाषा प्रसूत शब्द को 'तद्भव' कह सकते हैं। ये शब्द प्राकृत से होकर हिन्दी में आये हैं। काम और सुहाग क्रमशः कार्य और सौभाग्य के अर्द्ध तत्सम रूप हैं। 'कृष्ण' का तद्भव रूप है- 'कन्हैया' और 'कान्हा'। 

अन्य भारतीय भाषाओं के शब्द

भारतवर्ष एक विशाल देश है। इस देश में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। इन विभिन्न भाषाओं के प्रयोक्ता एक-दूसरे से सम्पर्क में आते रहते हैं। यद्यपि अन्य भाषा-भाषी हिन्दी का प्रयोग नहीं करते हैं; तथापि हिन्दी भाषा-भाषी अन्य भाषाओं के प्रचलित एवं सुग्राह्य शब्दों को ग्रहण कर लेते हैं। यथा- 

गुजराती- हड़ताल, गरवा । 
मराठी- चालू, बाजू । 
बंगाली - उन्यास, गल्प, रसगुल्ला । 
पंजाबी- सिक्ख, सरदार, तन्दूर । 

भारतीय अनार्य भाषाओं के शब्द

समय के प्रवाह के साथ हिन्दी में अनार्य भाषाओं के अनेक शब्द प्रयुक्त होने लगे हैं। हिन्दी में बहुत से ऐसे शब्द प्रयुक्त होते हैं, जो प्राचीन काल में अनार्य भाषाओं से तत्कालीन आर्य भाषाओं में ले लिये गये थे। ये शब्द वस्तुतः आर्य भाषाओं के तद्भव शब्दों के ही समान हैं। अनार्य भाषाओं से अवगत शब्दों के उदाहरण इस प्रकार हैं-

तमिल भाषा के शब्द- वीर, अमावसी, उपवास । 
तेलगू भाषा के शब्द- आली, आलि । 
मलयालम भाषा के शब्द - भंगी, साधु, चिलर आदि । 

इस सन्दर्भ में एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि द्रविड़ भाषाओं में (अनार्य भाषाओं से आये हुए शब्दों का प्रयोग हिन्दी में प्राय: अच्छे अर्थ में नहीं होता है। उदाहरण के लिए-'पिल्लै' का अर्थ 'पुत्र' होता है। यहाँ 'पिल्लै' हिन्दी में 'पिल्ला' होकर 'कुत्ते के बच्चे के अर्थ में प्रयुक्त होता है। मूर्द्धन्य वर्णों से युक्त वस्तुत: द्राविड; भाषाओं की हिन्दी को देन है। या तो वे शब्द सीधे द्रविड़ (अनार्य) भाषाओं से आये हैं अथवा उनके ऊपर द्राविड़ भाषाओं का गहरा प्रभाव है। 'हिन्दी' भाषा को कोल भाषाओं ने भी थोड़ा बहुत प्रभावित किया है। हिन्दी में बीस की संख्या का बाचक शब्द 'कौड़ी' सम्भवतः मुण्डा भाषा से आया है। 

हिन्दी प्रदेश की बोलियाँ अथवा उप-भाषाओं के शब्द

हिन्दी में हिन्दी प्रदेश में बोली जाने वाली बोलियों एवं उपभाषाओं के अनेक शब्द आ गये हैं, जो हिन्दी के साथ एक दम घुलमिल कर एकाकार हो गये हैं। इन शब्दों का आगमन पारम्परिक व्यक्तिगत सम्पर्क से भी हुआ है तथा आंचलिक साहित्य के द्वारा भी हुआ है। इसमें ब्रजभाषा, अवधी, बुन्देलखण्डी, भोजपुरी, मैथिली तथा मगही के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। 

विदेशी भाषाओं के शब्द

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हिन्दी भाषा-भाषी लोग सैकड़ों वर्षों से विदेशियों के सम्पर्क में रहते आये हैं। उनके साथ सम्पर्क, विचार-विनिमय आदि के फलस्वरूप यह स्वाभाविक ही रहा कि उनकी भाषाओं के शब्द ग्रहण किये जाते, हुआ भी यही। मुसलमानों और अंग्रेजों ने तो यहाँ अनेक वर्षों तक शासन भी किया।अतएव शासन सम्बन्धी अनेक शब्द उनकी भाषाओं द्वारा ग्रहण किये गये। 

डॉ. भोलानाथ तिवारी ने हिन्दी में प्रयुक्त होने वाले विदेशी शब्दों के सोलह उपवर्ग बनाये हैं। परन्तु यह समझ लेना चाहिये कि सर्वाधिक शब्द इन चार भाषाओं के लिए गये हैं-अरबी, फारसी, तुर्की और अँगरेज़ी। हिन्दी शब्द समूह पर पडने वाले विदेशी प्रभाव को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है- 1. मुसलमानी प्रभाव तथा 2. यूरोपीय प्रभाव । 

यह द्रष्टव्य है मुसलमान और यूरोपियन दोनों ही यहाँ शासक के रूप में रहे। अतः इनके प्रभाव के फलस्वरूप प्राय: एक ही वर्ग का शब्द-समूह हिन्दी में आया है। यह शब्द-समूह दो श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है- 

  • विदेशी संस्थाओं (कचहरी, फौज, धर्म आदि) से सम्बन्ध रखने वाले शब्द। 
  • विदेशियों के साथ आने वाली विभिन्न वस्तुओं (नये पहनावे, वस्त्र, भोजन) के नाम

अरबी फारसी, तुर्की आदि भाषाओं के शब्द

ईसवी सन् 1000 तक पंजाब में मुसलमानों का प्रभुत्व स्थापित हो गया था। उस समय तक फारसी बोलने वाले तुर्कों ने पंजाब पर कब्जा कर लिया था। इसके प्रभाव के फलस्वरूप अनेक विदेशी शब्द हिन्दी में प्रवेश पा गये थे। 1200 ई. के बाद तो लगभग 600 वर्षों तक हिन्दी भाषा-भाषी प्रदेश पर तुर्की, अफगानों और मुगलों का शासन रहा। इनकी भाषाओं के शब्दों ने भारतीय भाषा के शब्दों को खूब प्रभावित किया। इनकी भाषाओं के सैकड़ों विदेशी शब्दों ने गाँव की बोलियों तक को प्रभावित किया है। आदि काल में तो 'पृथ्वीराज रासो 'तक में फारसी के शब्द पाये जाते हैं। मध्यकाल में सूर, तुलसी, केशव, बिहारी आदि कवियों की शुद्ध साहित्यिक हिन्दी में भी इन विदेशी शब्दों के फुटकर प्रयोग पाये जाते हैं। 

इन मुसलमानी शब्दों में सर्वाधिक शब्द फारसी के हैं, क्योंकि मुसलमानी शासन में सदैव ही फारसी को दरबारी एवं साहित्यिक भाषा के रूप में अपनाया गया। तुर्की, अरबी आदि अन्य मुसलमानी भाषाओं के शब्द भी प्राय: फारसी के ही माध्यम से हिन्दी में आये हैं। 

कागज, जरूरत, जिन्दगी आदि फारसी के अनेक शब्द हिन्दी में पूरी तरह से घुल-मिल गये हैं। इसी प्रकार तुर्की-अरबी के भी अनेक शब्द हिन्दी में ऐसे मिल गये हैं, मानों वे तद्भव शब्द ही हों, जैसे- आका, कैंची, काबू, कली, डलिया, चाकू आदि तुर्की के शब्द हैं। अमीर, महल, हलुवा, हलवाई आदि अरबी के शब्द हैं, जिन्हें हिन्दी भाषा-भाषी खुलकर प्रयोग करते हैं। कुछ शब्द पश्तो के भी प्रयुक्त होते हैं, जैसे-पठान, रोहिला (रोह=पहाड़) इत्यादि।
 

यूरोपीय भाषाओं के शब्द

यूरोप के निवासी लगभग सन् 1500 ई. से भारत में आने जाने लगे थे। चूँकि ये लोग समुद्री मार्ग से आये थे, अतएव ये लोग आरम्भ में समुद्र तटवर्ती प्रदेशों में ही बसे और प्रदेश से दूर ही रहे। यही कारण है कि हिन्दी के मध्यकालीन साहित्य में अँगरेजी के शब्दों का प्रभाव मिलता है। 

हिन्दी शब्द-समूह में अँगरेज़ी शब्द-समूह बहुत ही गहरे बैठ गये हैं-यहाँ तक कि हमारे अशिक्षित ग्रामवासी भी अँगरेजी के अनेक शब्दों का प्रयोग करते हैं-यद्यपि इनमें अनेक शब्द के रूप काफी विकृत हो जाते हैं। अंजन (ऐंजिन), सिंगल (सिगनल), अफसर (ऑफीसर), टिकट (टिकिट), अर्दली (आर्डरली), इस्प्रेस (एक्सप्रेस), ठेठर (थियेटर) आदि शब्दों का प्रयोग घर-घर में पाया जाता है। हाँ एक बात अवश्य है कि अँगरेजी के अनेक शब्द ऐसे हैं जिन्हें केवल शहर निवासी अँगरेजी के पढ़े-लिखे व्यक्ति ही प्रयोग करते हैं। इसके द्वारा प्रयुक्त अँगरेजी शब्द प्रायः तत्सम या अर्द्धतत्सम रूप में ही प्रयुक्त होते हैं; यथा-डाक्टर, स्टेशन, थर्ड डिवीजन, सिनेमा, नर्स, टेलीफोन, मिक्चर आदि । 

अँगरेजी के अतिरिक्त अन्य कई यूरोपीय भाषाओं के शब्दों का भी निःसंकोच प्रयोग पाया जाता है। यथा- पुर्तगाली भाषा के शब्द-अनन्नास, अलमारी, आलपीन, अचार, कमीज, कमरा, पीपा, लबादा, सन्तरा इत्यादि । फ्रांसीसी (फ्रेंच) भाषा के शब्द-अंग्रेज, कूपन, कास इत्यादि । डच भाषा के शब्द-तुरुप, (ताश के खेल में प्रयुक्त शब्द), बम (गाड़ी का) । स्पेनी शब्द- सिगरेट, सिगार, कार्क, अलपका इत्यादि । 

दो भाषाओं के योग से बने हुए शब्द

हिन्दी शब्दावली में कुछ ऐसे शब्द प्रयुक्त हो रहे हैं, जो भिन्न भाषाओं से मिलकर बने हैं। इन्हें हम संयुक्त शब्द भी कह सकते हैं। इनमें कई प्रकार के शब्द हैं- दो देशी भाषाओं से बने हुए शब्द तथा एक देशी एवं विदेशी भाषा से बने हुए शब्द, यथा- डाकखाना (डाक हिन्दी, खाना फारसी) । राजमहल (राज संस्कृत्, महल अरबी) । शेयर बाजार (शेयर अँगरेजी, बाजार फारसी) । रेल मन्त्री (रेल अँगरेजी, मन्त्री संस्कृत) । अर्जी नवीस (अर्जी अरबी, नबीस फारसी। 

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नाम

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