चप्पल कहानी कमलेश्वर का सारांश चरित्र चित्रण प्रश्न उत्तर

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चप्पल कहानी कमलेश्वर का सारांश चरित्र चित्रण प्रश्न उत्तर


प्पल कहानी का सारांश - चप्पल कहानी कमलेश्वर जी की प्रसिद्ध कहानी है।आपने बड़ी ही मार्मिकता के साथ घटनाओं का वर्णन किया है। प्रस्तुत कहानी मे  लेखक को ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टीट्यूट की सांतवी मंजिल पर संध्या के संगीन ऑपरेशन होने के बाद आइ.सी. यू. में उसे देखने जाना था। लेखक गाड़ी पार्क कर जब अस्पताल से निकला तो वह दार्शनिक हो उठा था। दुनिया भर के कष्टों और दुखों से उसका साक्षात्कार हुआ। वह इस स्थान से गुजरते हुए अनेक कष्टों को महसूस करता है। जीवन की क्षणभंगुरता पर विचार करता लेखक सांतवे तल तक आइ.सी.यू. में पहुँचता है तो लेखक को पता चलता हे कि संध्या को आइ.सी. यू से सांतवे तल के केबिन पर भेज दिया गया है। मेजर आपरेशन में संध्या की बड़ी आंत निकाल दी गई थी। और अगले अड़तालिस घंटे क्रिटिकल बताए थे। लेखक इमरजेंसी वॉर्ड की दर्द भरी चीखों के बीच से निकलते हुए अपने मित्र का ध्यान करता है जिसने संध्या को देख आने की फर्ज अदायगी का उसे स्मरण दिलाया था । लेखक का मित्र दार्शनिकों-सा विचारों वाला अपने भविष्य के प्रति निश्चिंत-सा रहता था।

चप्पल कहानी कमलेश्वर का सारांश चरित्र चित्रण प्रश्न उत्तर
लेखक लिफ्ट के मार्ग से सांतवे तल की ओर बढ़ता है। पांचवी मंजिल पर जब लिफ्ट रुकी तो अनेक लोगों के साथ-साथ एक पाँच साल का बच्चा जिसे एक आदमी ने जो शायद उसका बाप होगा, गोद मे उठा रखा था। उस बच्चे ने छोटी नीली हवाई चप्पलें पहन रखी थी जो कि छोटे-छोटे पैरों में उलझी हुई थी। बच्चे ने चप्पल के उलझने पर पिताजी को कहा 'बाबा! चप्पल' यह सुन उसके पिताजी ने उसकी चप्पल ठीक कर दीं। वार्ड ब्वॉय के कहने पर बच्चा ह्वील चेयर पर बैठ गया जिसे बैठते हुए कुछ तकलीफ अवश्य हुई पर वह कुर्सी को सिंहासन समझ हँसते हुए बैठ गया था। लिफ्ट सात पर रुका था पर लेखक वहाँ न उतरा। आंठवी मंजिल पर वह बालक बाहर निकला और नर्स ने लिफ्ट के बाहर से उसे देखा और वह बालक, वार्ड ब्वॉय आर बालक के पिताजी तीनों नर्स के साथ ऑपरेशन थियेटर की ओर चले गए। तभी अचानक वह बालक बोला-'बाबा चप्पल' उसके पिता जी ने लिफ्ट के पास गिरी चप्पल बच्चे को पहनाई और वे सब चले गए। 

कुछ क्षण बाद लेखक को याद आया कि उसे सांतवे तल पर जाना है। लेखक सीढ़ियों के रास्ते संध्या के कबिन की ओर जाता है। उसे रास्ते में ही संध्या का डाक्टर पति मिल जाता है जिससे संध्या के संबंध में पूछने पर वह बताता है कि, “संध्या को ब्लीडिंग पहले भी हुई थी पर तब कंट्रोल कर ली गयी थी। पंद्रह दिन बाद ब्लीडिंग अधिक मात्रा 
में हो गई। चार घंटे आपरेशन में लगे।” संध्या स्वयं एक डाक्टर थी। उसे आज कृत्रिम सांस के सहारे रखा गया है तथा इस कृत्रिम सांस की मदद से उसके पूरे शरीर को आराम दिया जा रहा है। इसी प्रकार डॉक्टर की लेखक से बातचीत होती रही। डॉक्टर ने यह भी बताया कि संध्या कुछ बोलती नहीं है लेकिन वह अक्सर अपने मन की बात लिखकर बता देती है। लेखक केबिन के बाहर से ही संध्या को देखता है जिसे बिमारी के कारण लाचार-सी नजर आ रही थी जिसे देख लेखक को बहुत आश्चर्य होता है। 

लेखक और डाक्टर साहब आई.सी.यू. से हटकर बरामदे में आ गए। डॉक्टर साहब बताते हैं कि संध्या का अभी एक आपरेशन और होगा जिसमें छोटी आंत को सिस्टम से जोड़ा जाएगा। इसी बातचीत के बाद लेखक सिगरेट पीने के बहाने खिड़की के पास जाकर खड़ा हो गया। खिड़की से उसे अस्पताल का पूरा दृश्य दिखलाई देता है जिसमें मनुष्य की लाचारी, दर्द और पीड़ा-युक्त दृश्य थे। ऐसे में लेखक भी मनुष्यता की भावना से ओत-प्रोत हो ईश्वर से प्रार्थना करने लगता है। अस्पताल को देखते-देखते लेखक दार्शनिक-सा हो जाता है और दर्द, ईश्वर और मनुष्य के बीच अंतः संबंध स्थापित करता जाता है। तभी लू का एक थपेड़ा लेखक को दार्शनिक मनोभूमि से दूर ले जाता है। तभी वह डाक्टरों को चिंताग्रस्त रूप में देखता है जो कि अपने मरीज के प्रति सतर्क थे। डाक्टरों का एक गुच्छ आपस में मरीज की बिगड़ती व्यवस्था पर चिंता व्यक्त करने लगते हैं। जिन्दगी और मौत के बीच जंग शुरू होती है। ऐसे में लेखक को सिगरेट कड़वी लगने लगती है और लू का थपेड़ा मुँह झुलसा देता है। लेखक पीछे मुड़कर लिफ्ट की ओर डाक्टरों को देखता है जो कि राजनीतिज्ञों-सी देश की व्यवस्था पर बात करते जा रहे थे। कुछ क्षणों में एक नर्स चिंताग्रस्त अवस्था में तेजी से गुजर जाती है। लेखक कुछ देर बाद डॉक्टर के साथ लिफ्ट में जाता है। 

लिफ्ट आठवीं मंजिल पर पहुँचती है। इस तल पर अधिक लोग नहीं थे। एक स्ट्रेचर पर लेखक पहले वाले बच्चे को चादर मे लिपटा देखता है। उसके साथ उसके पिताजी भी थे जिनके हाथों में बच्चे की चप्पल थी। बाप के एक हाथ में ग्लूकोज की बोतल थी। लेखक को उसके बाप से पता चलता है कि सड़क पार करते हुए इसे एक कार मार गई थी जिससे इसकी जांघ की हड्डी टूट गयी। और अंततः इसकी टांग काटनी पड़ी। बच्चा बेहोशी की हालत में था। कुछ देर बाद बच्चे के पिता ने बच्चे की हवाई चप्पलें फेंक दी, लकिन बच्चे का ध्यान आते ही उसने वे चप्पलें पुनः हाथ में ले ली। यह दृश्य देख लेखक का दिल पसीजने लगा वह सोचने लगा कि “मुझे नहीं मालूम कि उसका बेटा जब होश में आएगा तो क्या माँगेगा ? चप्पल माँगेगा या चप्पलों को देख कर अपना पैर मांगेगा...” इस कारूणिक बात पर विचार करता हुआ लेखक लिफ्ट के रास्ते नीचे उतरने लगता है। 


चप्पल कहानी के मुख्य पात्र का चरित्र चित्रण

चप्पल एक भावना प्रधान विचारों से परिपूर्ण एवं घटनात्मक कहानी है। इस कहानी में लेखक ने पात्र के चरित्र से अधिक पात्रों की मानसिकता एवं मनुष्यता पर ध्यान केंद्रित रखा है। अतः इस कहानी में लेखक, डाक्टर, संध्या, बालक के पिता आदि पात्र होने के बाद भी उनके चरित्रगत विशिष्टताएँ प्रकट नहीं हो पा रही है। लेखक स्वयं गहन विचारों से युक्त एक दयावान एवं संवेदनशील व्यक्ति है। उस पर अस्पताल की रोजमर्रा की जिंदगी बड़ी गहराई से असर करती है तथा वह बड़े ही श्रेष्ठ ढंग से अपने विचारों को दार्शनिक मनोभूमि प्रदान करता है। डाक्टर का चरित्र एक सामान्य कर्त्तव्यनिष्ठ डाक्टर के रूप में देखा जा सकता है। संध्या इस कहानी में एक बार भी संवाद प्रस्तुत नहीं करती लेकिन फिर भी प्राकारंतर से उसके कर्त्तव्यनिष्ठ डाक्टर होने का रूप व्यक्त हो रहा है।

इस कहानी में व्याख्यायित बालक मूल पात्र कहा जा सकता है जो कि एक दुर्घटना में अपनी जांघ की हड्डी तुड़वा बैठता है और जिससे अंततः उसके पैर काटने पड़ते हैं। कहानी की मूल संवेदना इसी पात्र से संबद्ध है। बालक के मन में अपने चप्पल के प्रति विशेष आकर्षण है और यही चप्पल इस कहानी की भी मूल संवेदना से जुड़ जाती है। बालक के पिता एक बेबस एवं पुत्र के प्रति समर्पित पिता के रूप में देखे जा सकते हैं जो कि पुत्र का पूरा ध्यान रख उसके संरक्षक बने रहते हैं। 

चप्पल कहानी के प्रश्न उत्तर 

प्र. लेखक अस्पताल में क्या सोचता है? 
उत्तर - लेखक अस्पताल में पहुँच दार्शनिक-सा बन जाता है। वह अस्पताल में गूंजते दर्द, पीड़ा को गहराई से महसूस करता है। उसे लगता है दुनिया भर में जितने भी लोग दर्द महसूस कर रहे है। सबका दुख-दर्द एक-सा लगता है। सभी दर्द और यातना एक समान महसूस करते हैं। तथा दर्द-इंसान इंसान के बीच भेद नहीं करती। जिस प्रकार दूध, खून और आँसू का रंग हरेक में एक समान है ठीक वैसे सबमें दुख-दर्द का अहसास एक समान है। दुख, कष्ट और यातना का कभी भी बंटवारा नहीं किया जा सकता। अतः इस दर्द के रिश्ते में लेखक पूरी एक मानवता के दर्शन होते हैं। 

प्र. संध्या का किस रोग के कारण वैसा आपरेशन हुआ था?
उत्तर - संध्या का प्रायः रक्त स्राव होता था और एक दिन यह रक्त स्राव अधिक हो गया जिसके कारण उसकी बड़ी आंत काटकर निकाल दी गई थी। उसके लिए आपरेशन के बाद के अड़तालीस घंटे बहुत संवेदनशील बताए गए थे। डाक्टर के अनुसार उसे आपरेशन के बाद कृत्रिम सांस पर रखा गया और उसके पूरे शरीर को इस कृत्रिमता द्वारा आराम देने की कोशिश की गई। 

प्र. संध्या का पति संध्या की कैसी प्रशंसा करता है? 
उत्तर - संध्या का पति संध्या के संबंध में बताता है कि डाक्टर अपने मरीज के प्रति सतर्क होते हैं लेकिन स्वयं के प्रति नहीं। यही कारण है कि पहले रक्त स्राव होने पर संध्या ने स्वयं का अधिक ध्यान न रखा इसी कारण रक्त स्राव बढ़ गया जिससे आपरेशन करना पड़ा जो कि बहुत गंभीर था । आपरेशन की गंभीरता का ध्यान रखने के बाद भी संध्या ने बड़ी हिम्मत से इस परिस्थिति का सामना किया। 

प्र.चप्पल कहाँ गिर गई थी? उसे किसने उठाकर पुनः पहनाया ? 
उत्तर - बच्चा अपने पिता की गोद में था इसी कारण उसकी चप्पल उसकी उंगलियों से उलझ गई थीं और लिफ्ट में गिरने को हो रही थी। यह देख उसने अपने पिताजी को चप्पल के उलझने की बात कही। उसके पिता ने यह देख चप्पल को पुनः उठाया और उसे ठीक कर दिया। 

प्र.वक्ता का किस प्रकार का आपरेशन हुआ और क्यों ? 
उत्तर - वक्ता छोटे बालक को एक कार मार कर चली गई थी। इस दुर्घटना के कारण उसके जांघ की हड्डी टूट गई थी। इसी टूटी हड्डी का इलाज करने के लिए उसका आपरेशन होता है जिसमें उसकी टांग काटनी पड़ती है । 

प्र.फेंकने वाले ने बाद में पहले एक चप्पल क्यों उठाई ? 
उत्तर - फेंकने वाला आदमी उस बच्चे का पिता था। अपने पुत्र की यह अवस्था देख वह बहुत निराश हो गया था अतः उसने उन चप्पलों को फेंक दिया लेकिन तभी उसे स्मरण आया कि बच्चे में उस चप्पल के प्रति बहुत आकर्षण था अतः यदि वह पुनः चप्पल मांगेगा तो वह क्या जवाब देगा अतः निराश मन से उस बालक के किसी न काम आने वाली चप्पल मानसिक द्वंद के बीच पिता पहले एक ही चप्पल को उठाता है। 

प्र. फेंकने वाले ने दूसरी चप्पल भी क्यों उठा ली? 
उत्तर - फेंकने वाले ने दूसरी चप्पल पहली चप्पल को पूर्णता देने तथा इस आशा से उठाई कि किसी दिन उसका पुत्र शायद पूरा ठीक हो सके तो वह यही चप्पल उसे बड़ी प्रसन्नता के साथ पहनायेगा। यहाँ लेखक ने निराश पिता के मन की आशा-आकांक्षा को वाणी दी है। 

प्र. लेखक उक्त क्रियाएँ देखकर मन में क्या सोचता है और क्यों? 
उत्तर - लेखक उक्त क्रियाएँ देखकर मन में सोचता है कि उसे नहीं मालूम कि उसके बेटा जब होश में आएगा तो क्या मांगेगा वह अपने आकर्षण की वस्तु चप्पल मांगेगा या उस आकर्षण को पूर्णता प्रदान करने वाले पैर की इच्छा करेगा। लेखक ऐसे विचार बालक के दुख की अनुभूत करके ही प्रकट करता है। लेखक के मन में मानो बालक की पीड़ा घूम रही थी । 

कमलेश्वर
प्र. बच्चे और चप्पल का संबंध निर्दिष्ट करें? 
उत्तर - बच्चे और चप्पल में बड़ा गहन संबंध दिखया गया है। लेखक जब पहले-पहल बच्चे को देखता है तो बच्चे में चप्पल के प्रति आकर्षण के कारण वह नीली हवाई चप्पल रंगत लिए नजर आती है। मानो बच्चे के आकर्षण-भाव ने उसमें रंग भर दिया हो। लेकिन जैसे ही बच्चे का ऑपरेशन होता है और पिता द्वारा चप्पल को फेंका जाता है तो बच्चे के चेहरे की उदासी और उसका अधूरापन उस चप्पल में दिखने लगता है। चप्पल अपनी चमक को खोकर शून्य-सी बनकर रही जाती है। 

प्र.बच्चे का चप्पल के प्रति मोह क्या संकेतित करता है? 
उत्तर - अपने भविष्य से अनजान बच्चे का चप्पल के प्रति मोह यह प्रदर्शित करता हे कि उस बच्चे में उस चप्पल के लेकर कई स्वप्न थे। वह इस चप्पल के प्रति विशिष्ट आकर्षण भाव रखता था तथा उस चप्पल को लेकर बड़ा ही सतर्क रहता था। बच्चों का भोलापन, मासूमियत और आकर्षण का भाव चप्पल के प्रति मोह से सांकेतित हो रहे थे।

प्र. डॉक्टर के मित्र ने डॉक्टर से कैसी बात ही? 
उत्तर - डॉक्टर के मित्र ने आते ही राजनीतिज्ञों-सा भाषण शुरू कर दिया और देश के हाल चाल का वृतांत कह सुनाया-"अब तो अग्नि मिसाइल के बाद भारत दुनिया का सबसे शक्तिशाली तीसरा देश हो गया है। आने वाले दस वर्षों में कोई भी उसे महाशक्ति बनने से नहीं रोक सकती। इंग्लैंड और फ्रांस की पूरी जनसंख्या से बड़ा है भारत का मध्यवर्ग... अपनी संपन्नता में... भारतीय मध्यवर्ग जैसी शक्ति और संपन्नता उन देशों के मध्यवर्ग के पास भी नहीं है।" इस प्रकार पूरी राजनीतिक बातें चलीं। 

प्र. लेखक का डॉक्टर मित्र लेखक को संध्या के हालचाल के बारे में क्या बताता है? 
उत्तर - लेखक का डॉक्टर मित्र लेखक को बताता है कि संध्या का रक्त स्राव पहले से हो रहा था। लेकिन एक दिन रक्त स्राव अधिक मात्रा में होने लगा। ऐसे में कोई उपाय न देखकर उसकी बड़ी आंत काटी गई। संध्या ने इस परिस्थिति का बड़ी हिम्मत से सामना किया। लेकिन अभी उसका एक आपरेशन और होगा जिसमें छोटी आंत को सिस्टम से जोड़ा जायेगा। इस पूरे कार्य में तीन महीने का समय लग जाएगा। अतः वह संध्या को अमरीका ले जाने का विचार कर रहा है। 

चप्पल कहानी का उद्देश्य 

चप्पल कमलेश्वर की बहुचर्चित भावना प्रधान कहानी है। अस कहानी में कथा की बुनावट की अपेक्षा विचार को प्रधानता मिली है। लेखक इस कहानी के माध्यम से विविध मानवीय संवेदनाओं को जगाकर मनुष्य में मनुष्यता की स्थापना का इच्छुक है। लेखक मनुष्य की पीड़ा को उजागर कर यह बताना चाहता है कि दुनिया में दुखी सभी हैं तथा दुख का स्वरूप पृथक होने के बाद भी दुख का अहसास सबमें एक समान ही रहता है। लेखक इस कहानी द्वारा पीड़ा, करूणा, परदुखकातरता आदि के भाव पाठक-समाज में जगाना चाहता है जिससे मनुष्य स्वार्थ की परिसीमाओं को त्याग कर मानवता की सम भूमि पर खड़ा हो सके। 

चप्पल कहानी कमलेश्वर शीर्षक की सार्थकता

चप्पल कहानी अत्यंत ही संवेदनशील एवं भावनात्मक कहनी है। इस कहानी के माध्यम से कमलेश्वर ने मानवतावादी एवं परदुखकातरता के भाव को वाणी दी है। 'चप्पल' इस कहानी की मूल घटना का अंग है। लेखक एक बालक में चप्पल के प्रति आकर्षण का भाव देखता है और कुछ क्षणों के बाद वही चप्पल पीड़ा का दुख लिए एवं लाचार पिता का संबल बनती है। चप्पल के माध्यम से लेखक ने पीड़ा, मनुष्य और संबल के अंतः संबंध को बड़ी निःसंगता के साथ प्रदर्शित किया है। यह जीवन इसी तरह कभी आकर्षण से युक्त तो कभी पीड़ा की तीव्रता के कारण शून्य-सा प्रतीत होता है। यही भाव प्रस्तुत शीर्षक से उद्घाटित हो रहे हैं। 

चप्पल कहानी कमलेश्वर शब्दार्थ

विराट - बहुत बड़ा 
विषमता - असमानता 
उदात्त - दयावान 
मुकम्मल - पूरा किया हुआ 
अद्वैत - एक होने का भाव 
द्वंद - झगड़ा 
आध्यात्मिक - अध्यात्म संबंधी 
सम्मिलन - इकट्ठा किया हुआ

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