परीक्षा मुंशी प्रेमचंद की कहानी

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परीक्षा कहानी मुंशी प्रेमचंद 


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परीक्षा कहानी का सारांश 

रीक्षा कहानी मुंशी प्रेमचंद जी की लिखी प्रसिद्ध कहानी है।दीवान सुजान सिंह जब बूढ़े हुए तो उन्होंने बाकी जीवन प्रभु स्मरण में गुजारना चाहा। वे महाराज के पास गए और उनसे दीवान जी ने उन्हें सेवा निवृत्त करने की प्रार्थना की। महाराजा ऐसे अनुभवी और कुशल दीवान को छोड़ना नहीं चाहते थे। किन्तु दीवान जी के अनुरोध पर वे उन्हें सेवा निवृत्त करने पर सहमत हुए। किन्तु शर्त यह रखी कि नए दीवान का चयन भी वे ही करके जायेंगे।
 
अगले दिन दीवान के पद को भरने के सम्बन्ध में देश के प्रसिद्ध समाचार पत्रों में विज्ञापन छप गए। विज्ञापन में पढ़ाई से अधिक आचार - विचार ,रहन - सहन ,कर्त्तव्य परायणता और अभ्यर्थी हष्ट - पुष्ट होने सम्बन्धी गुणों को प्राथमिकता देने के बात कही गयी थी। 

परीक्षा मुंशी प्रेमचंद की कहानी
इस ऊँचे पद के लिए सभी अपना - अपना भाग्य आजमाने के लिए चल पड़े। क्षेत्र में हलचल मच गयी। तरह - तरह के कपड़े पहन कर विभिन्न प्रदेशों से लोग पहुँचने लगे। गेरुज्येतों की संख्या अधिक थी हालाँकि यह अनिवार्य योग्यता नहीं थी। 

लोगों के रहने और उनके समुचित आदर सत्कार का प्रबंध किया गया था। हर कोई अपने कमरे में बैठा महीने के दिन गिनता और अपने आप को हर तरह से अच्छे से अच्छा प्रदर्शित करने का प्रयास करता। लोग अपने स्वभाव और तौर तरीके बदल रहे थे। 

श्रीमान अ नौ बजे उठते थे। इन दिनों वे उषाकाल में ही उठने लगे। श्रीमान द ,स और ज घर के नौकरों से बुरा व्यवहार करते थे। किन्तु आजकल आप और जनाब के बिना नौकरों से बोलते नहीं थे। नास्तिक ,आस्तिक बन चुके थे। हर कोई नम्रता और सदाचार की मूर्ति दीखता था। 

युवकों को सूझी कि हाकी का खेल हो जाए। अतः खेल शुरू हो गया। रियासत में यह खेल नया था। खिलाड़ी खेलते - खेलते थक गए ,किन्तु हार - जीत का निर्णय नहीं हो पाया। अँधेरा हो गया था। 

मैदान से थोड़ी दूर तक नाला था। किन्तु इस पर पुल नहीं था। लोगों को नाले में से चलकर आना पड़ता था। उसी समय एक किसान अनाज से भरी हुई गाड़ी लेकर आया और नाले को पार करना चाहा। किन्तु गाड़ी नाले में फंस गयी। कीचड़ बहुत ज्यादा था। वह बहुत प्रयास कर रहा था - बैलों को बार - बार मार रहा था किन्तु गाड़ी नाले से निकल ही नहीं रही थी। वह विपत्ति में था। किन्तु कोई उसकी सहायता के लिए नहीं आया। हाकी के खिलाड़ी भी वहां से गुजरे। किन्तु किसी के ह्रदय में से उसके लिए दया और सहानुभूति नहीं थी। 

उसी समूह में एक व्यक्ति निकला जिसके ह्रदय में दया भी थी और साहस भी था। हाकी खेलते उसके पावों में चोट लगी थी और वह लंगड़ाता हुआ चल रहा था। उसने जब किसान से सहायता का प्रस्ताव किया तो किसान को आशा बंधी। अँधा क्या माँगे दो आँखे। उस युवक ने किसान को गाड़ी पर जाकर बैलों को साधने के लिए कहा ताकि वह स्वयं पहियों को धकेलकर गाड़ी ऊपर चढ़ा सके। किसान ने वैसा ही किया। किन्तु नाले में कीचड़ बहुत ज्यादा था। गाडी निकल नहीं रही थी। युवक ने हिम्मत नहीं हारी। जोर लगाया ,किसान ने बैलों को साधा। गाडी नाले के बाहर हो गयी। युवक ने हँसी में किसान से कहा कि अब वह उसे क्या इनाम देगा। युवक ने किसान का बहुत उपकार किया था। गाड़ी न निकालता तो वह सारी रात वहां फँसा रहता। अतः उत्तर में किसान ने युवक से कहा कि यदि भगवान् चाहेंगे तो दीवानी उसे ही मिलेगी। युवक को संदेह हुआ कि कहीं वही दीवान सुजान सिंह तो नहीं। सब कुछ तो उससे मिलता था। किसान ने भी उसकी ओर तीव्र दृष्टि से देखा। 

दीवान के चयन का दिन आ पहुंचा। उम्मीदवार तथा धनी लोग रंग बिरंगे वस्त्र पहन कर राजा साहिब के दरबार में आ बिराजे। दीवान ने सबको संबोधित करके कहा कि उन्हें ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी जिसके दिल में दया ,आत्मबल और उदारता हो। ऐसा आत्मबल हो जो विपत्ति का वीरता से सामना करे। दीवान सुजान सिंह ने घोषणा की कि ऐसे गुणों से युक्त उन्हें एक व्यक्ति मिल गया था। उसने पंडित जानकीनाथ जैसा दीवान पाने पर रियासत के लोगों ने बढ़ाई दी। सुजान सिंह का कहना था कि जो पुरुष स्वयं जख्मी होकर भी एक गरीब किसान की भरी हुई गाड़ी दलदल से निकाल दे उसके ह्रदय में साहस ,आत्मबल और उदारता है। ऐसा व्यक्ति गरीबों को नहीं सताएगा। कठिन परिस्थियों में भी दया और धर्म का साथ नहीं छोड़ेगा। 

परीक्षा कहानी का उद्देश्य सन्देश

परीक्षा कहानी के माध्यम से लेखक प्रेमचंद जी कहना चाहते हैं कि मनुष्य की असली पहचान उसकी योग्यताएँ एवं शिक्षा मात्र नहीं है। शारीरिक क्षमता ,मानसिक एवं एवं शिक्षा क्षमता से मनुष्य को आदर तो मिल सकता है लेकिन जनता का प्रतिनिधित्व करने वाला दीवान जैसा पद का असली हकदार केवल वही व्यक्ति हो सकता है जो योग्यताओं का सही समय पर उपयोग करे। मैदान के निकट सभी उम्मीदवार उपस्थित थे जिनमें बुद्धि कुशलता एवं शारीरिक क्षमता विद्यमान थी लेकिन पंडित जानकीनाथ ने स्वयं आहत होने के बाद भी किसान की मदद कर अपने उदार एवं उच्च चरित्र होने का प्रमाण किया है। अतः मनुष्य की असली परीक्षा प्रतिकूल परिस्थिति में ही तय होती है तथा ऐसी परीक्षा में उत्तीर्ण व्यक्ति समाज में अपनी पृथक पहचान बना पाता है। 

पंडित जानकीनाथ का चरित्र चित्रण

पंडित जानकीनाथ दीवानी के एक उम्मीदवार थे। वे सरल ह्रदय ,पाखण्डहीन ,उदार और आत्मबल से संपन्न व्यत्क्तिव के धनी थे। दूसरों के साथ हाकी का खेल खेलते हुए उन्हें टांग पर चोट लग गयी थी ,परन्तु संकटग्रस्त एक किसान की गाड़ी को नाले में धँसा हुआ देखकर उन्होंने अपना कोट उतारकर एक ओर रखा और स्वयं कीचड़ में धँस कर भी उस गाड़ी को नाले के ऊपर चढ़ाने में सफलता प्राप्त की। यह थी उनकी उदारता ,दीनों से प्रेम और सच्चा आत्मबल उनके चरित्र का संबल पक्ष था। 

वे समझदार भी खूब थे। वेश बदले हुए सुजानसिंह को भी वे पहचान गए। वे हँसमुख थे और गाड़ी नाले से ऊपर करने के बाद जब किसान ने कहा - आपने कृपा कर मुझे उबार लिया है। " तो पंडित जानकीनाथ ने निष्काम भाव से मुस्कराते हुए कहा - 'अब मुझे कुछ इनाम दो। "

पंडित जानकीनाथ के गुणों को देखकर ही दीवान सुजानसिंह ने कहा था - ह्रदय वही है जो उदार हो ,आत्मबल वही है जो आपत्ति का वीरता के साथ सामना करे और इस रियासत के सौभाग्य से हमें ऐसा पुरुष मिल गया है। 

सुजान सिंह का चरित्र चित्रण

सरदार सुजान सिंह रियासत के दीवान थे। वे बड़े ही कर्तव्यनिष्ठ ,समर्पित एवं धर्म परायण व्यक्ति थे। वे चालीस वर्षों से इस पद पर थे और अपना कार्य ईमानदारी पूर्वक निभा रहे थे। वयोवृद्ध हो जाने के कारण वे अब इस पद से मुक्ति पाना चाहते थे। वे यह नहीं चाहते थे कि वृद्धावस्था के कारण उनसे कोई भूल चुक हो और उनका नाम खराब हो। इस प्रकार वस्तुतः वे रियासत का भला चाहने वाले एक देशभक्त दीवान थे। वे कुशाग्र बुद्धि के थे तथा साथ ही बुरे व्यक्तियों के बीच से अच्छे व्यक्ति की पहचान करने की उनमें क्षमता विद्यमान थी। अपनी इस प्रवृत्ति के फलस्वरूप उन्होंने पंडित जानकीनाथ जैसे श्रेष्ठ व्यक्ति की परीक्षा ली और उसे योग्य घोषित किया। 

परीक्षा कहानी की शीर्षक की सार्थकता

परीक्षा कहानी का शीर्षक बहुत ही स्पष्ट एवं सार्थक है। सरदार सुजानसिंह एक उच्च चरित्र एवं देशभक्त थे जो चाहते थे कि उनके बाद उन्ही के जैसा दीवान मिले। ऐसा दीवान की खोज का आधार परीक्षा रखा गया जिससे व्यक्ति को परखा जा सके और लोगों तक उसकी उम्मीदवारी की असलीयत भी आ सके। परीक्षा द्वारा ही देवगढ़ को उच्चकोटि का नया दीवान मिल सका। अतः इस कहानी का नाम भी परीक्षा ही रखा गया जो एकदम उपयुक्त एवं सटीक है। 

परीक्षा कहानी के प्रश्न उत्तर 

प्र. दीवान सुजान सिंह जी ने राजा साहिब से सेवा मुक्त करने के लिए क्यों निवेदन किया ?
उ. दीवान सुजान सिंह जी ने राजा साहिब से सेवा मुक्त करने के लिए इसलिए निवेदन किया क्योंकि अब वे बूढ़े हो गए थे। ऐसी स्थिति में भूल चूक हो जाने पर जिंदगी की नेकनामी मिट्टी में मिल सकती थी। इसके अतिरिक्त ,वे प्रभु का स्मरण भी करना चाहते थे। 

प्र. उम्मीदवारों की आदतों और कार्यकलापों का वर्णन पाठ के आधार पर कीजिये।  
उ. उन उम्मीदवारों में कोई नए फैशन का प्रेमी था तो कोई सादगी पसंद। रियासत में पहुँचकर सब अच्छे से अच्छा दिखना चाहते थे। श्रीमान अ सुबह देर से उठते थे। अब वे उषाकाल में ही उठने लगे। ब को हुक्का पीने की आदत थी। वे अब छिपकर सिगार पीते थे। श्रीमान द ,स और ज जो कभी घर में नौकरों से ढंग में बात नहीं करते थे अब नौकरों से भी आप और जनाब कहकर बात करते थे। क नास्तिक थे ,किन्तु अब वे आस्तिक बन चुके थे। ल को पुस्तकों से घृणा थी ,अब वे हर समय पढने में ही खोये रहते थे। हर कोई नम्रता और सदाचार का देवता दिखाई देता था। 

प्र. हाकी के खेल के आयोजन के पीछे उम्मीदवारों का उद्देश्य क्या था ?
उ. हाकी के खेल के आयोजन के पीछे उम्मीदवारों का उद्देश्य यह था कि संभव है खेल में हाथों की सफाई ही कोई काम कर जाए। यह भी तो आखिर एक विद्या है। 

प्र. नाला पार करने में बैलगाड़ी को क्या कठिनाई थी ?
उ. नाला पार करने में बैलगाड़ी को यह कठिनाई थी कि उस पर अनाज का वजन बहुत ज्यादा था तथा नाले में घुटने भर कीचड था। गाडी दलदल में फंस गयी थी। इसी कारण गाडी निकल नहीं पा रही थी। 

प्र. किसान को खिलाड़ियों से सहायता माँगने का साहस क्यों नहीं हुआ ?
उ. किसान को खिलाड़ियों से सहायता माँगने का साहस इस कारण नहीं हुआ क्योंकि उनमें से किसी के भी चेहरे पर दया और सहानुभूति की भावना नहीं दिख रही थी। सभी आँख चुरा चुरा कर निकल रहे थे। 

प्र. आप कैसे कह सकते हैं कि जानकीनाथ के ह्रदय में दया थी और साथ साथ आत्मबल भी ?
उ. जो पुरुष स्वयं जख्मी होकर भी एक गरीब किसान की भरी हुई गाड़ी को दलदल से निकाल कर नाले के ऊपर चढ़ा दे ,हम कह सकते है कि उसके ह्रदय में दया भी थी और साथ साथ आत्मबल भी। यह कार्य किसी और ने न करके जानकीनाथ ने ही किया था। 

प्र. सुजान सिंह ने जानकीनाथ का चुनाव परिणाम घोषित करते हुए क्या आशा प्रकट की ?
उ. सुजान सिंह ने जानकीनाथ का परिणाम घोषित करते हुए कहा कि ऐसा आदमी गरीबों को नहीं सयातेगा। दया धर्म नहीं छोड़ेगा।  

परीक्षा कहानी मुंशी प्रेमचंद के शब्दार्थ 

विनय - प्रार्थना 
दीवान - मंत्री 
दीनबंधु - गरीबों का मित्र 
हष्ट -पुष्ट - स्वथ्य 
मन्दाग्नि - जिसे भूख कम लगे। 
सनद - डिग्री 
उषा - प्रातः 
नाक में दम - परेशान 
तलवाट - झगड़ा 
वात्सल्य - छोटों के प्रति प्रेम 
तीव्र दृष्टि - तेज़ नज़र 
भाप जाना - समझ जाना 
निदान - रोग का कारण और उपचार 
शिखर - चोटी 

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