21वीं सदी में महिलाएं और समाज

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महिलाएं परिवार बनाती हैं. परिवार घर बनाता है. घर समाज बनाता है और समाज ही देश बनाता है. इसका सीधा अर्थ यही है कि महिलाओं का योगदान हर जगह है.

मर्द और औरत बराबर, फिर औरत कमज़ोर कैसे ?


हिलाएं परिवार बनाती हैं. परिवार घर बनाता है. घर समाज बनाता है और समाज ही देश बनाता है. इसका सीधा अर्थ यही है कि महिलाओं का योगदान हर जगह है. महिलाओं की क्षमता को नजरअंदाज करके सभ्य, शिक्षित और विकसित समाज की कल्पना व्यर्थ है. शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के बिना परिवार, समाज और देश का विकास नहीं हो सकता है. दुनिया की सभी महिलाओं को सम्मानित करने एवं नारी सशक्तिकरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से हर साल 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिला दिवस भी मनाया जाता है. वैश्विक स्तर पर यह दिवस मनाए जाने की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 8 मार्च 1975 को हुई थी. भारत समेत विश्व के सभी देशों में महिलाओं को समर्पित यह दिन उन्हें सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है. इस वर्ष भी बड़े पैमाने पर महिला दिवस मनाया गया. लेकिन प्रश्न उठता है कि क्या हम इसके उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल हो पा रहे हैं ?

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने के पीछे सबसे बड़ा उद्देश्य महिलाओं को सम्मान के साथ समान अधिकार देना तथा उन पर होने वाले अत्याचारों एवं अधिकारों के प्रति उनमें जागरूकता फैलाना है. हर वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के संदर्भ में कोई ना कोई थीम दी जाती है. वर्ष 2022 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की थीम 'जेंडर इक्वलिटी टुडे फॉर ए सस्टेनेबल टूमारो' था. वहीं इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की थीम "डिजिटल: लैंगिक समानता के लिए नवाचार और प्रौद्योगिकी" दी गई थी. इस थीम के पीछे यह विचार था कि लैंगिक समानता प्राप्त करने और सभी महिलाओं और लड़कियों को सशक्तिकरण के लिए डिजिटल युग में नवाचार और तकनीकी परिवर्तन उच्च शिक्षा प्राप्त हो. हकीकत तो यह है कि पिछले कुछ दशकों में महिलाओं की स्थिति में धीरे-धीरे ही सही, लेकिन सुधार हो रहा है. पहले की तुलना में उन्हें उनके अधिकार भी मिल रहे हैं और वह अपने अधिकारों के प्रति जागरूक भी हो रही हैं. लेकिन अभी भी 21वी सदी में महिलाएं पुरुषों के बराबर नहीं हैं. 

बात करें विश्व या राष्ट्रीय स्तर पर, तो महिलाओं की संख्या लगभग आधी है, अर्थात महिलाओं और पुरुषों की जनसंख्या बराबर मानी जाती है. ऐसे में यह माना जा सकता है कि अगर महिलाओं और पुरुषों की संख्या बराबर है तो हर एक क्षेत्र में महिलाओं और पुरुषों की भागीदारी भी बराबर होनी चाहिए. लेकिन अगर बात आंकड़ों के हिसाब से की जाए तो अभी भी महिलाएं पुरुषों के मुकाबले काफी पीछे नज़र आती हैं. अगर बात शिक्षा के क्षेत्र की जाए, तो जहां भारत में पुरुषों की साक्षरता दर 84.7 प्रतिशत है वहीं महिलाओं में साक्षरता दर 70.3 प्रतिशत है, अर्थात शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं और पुरुषों में 14 प्रतिशत का फर्क साफ तौर पर नजर आ रहा है. अगर इंटरनेट यूजर की बात की जाए तो भारत में 57.1 प्रतिशत पुरुष इंटरनेट का यूज करते हैं, वहीं मात्र 33.3 प्रतिशत महिलाएं ही अभी तक इंटरनेट का इस्तेमाल कर रही हैं. लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में यह प्रतिशत और भी कम है. ग्रामीण क्षेत्रों की केवल 20 प्रतिशत महिलाएं ही इंटरनेट का इस्तेमाल कर पा रही हैं, अर्थात इंटरनेट यूज़र के मामले में भी महिलाएं पुरुषों के मुकाबले अभी आधी हैं.

21वीं सदी में महिलाएं और समाज
भारत में सुरक्षा के क्षेत्र में निरंतर प्रयासों के बावजूद महिलाओं को भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा, बलात्कार, तस्करी, जबरन वेश्यावृत्ति और कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न,जैसी विभिन्न स्थितियों का सामना करना पड़ता है. एनसीआरबी की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में साल 2021 में 2020 के मुकाबले महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 15.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी हालिया आंकड़ों के मुताबिक 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के 428278 मामले दर्ज हुए थे जबकि 2020 में 371503 मामले दर्ज हुए थे. एनसीआरबी की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि प्रति एक लाख की आबादी पर महिलाओं के खिलाफ अपराध 2020 में 56.5 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 64.5 प्रतिशत हो गए हैं. इनमें अधिकतर मामले 31.8 फ़ीसदी पति या उनके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता के हैं. इसके बाद 20.8 प्रतिशत मामले महिलाओं की गरिमा को भंग करने इरादे से उन पर हमला करने के हैं. 17.6 प्रतिशत उनके अपहरण के और 7.4 प्रतिशत बलात्कार के हैं. इन आंकड़ों से यह भी साफ हो जाता है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले खत्म होना तो दूर की बात कम होने का नाम ही नहीं ले रहे हैं.

राष्ट्रीय महिला आयोग को पिछले साल महिलाओं के खिलाफ अपराध के करीब 31 हजार शिकायतें मिली थी. जो 2014 के बाद सबसे अधिक है. इसमें से आधे से ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश के थे. राष्ट्रीय महिला आयोग को 2021 में 30864 शिकायतें मिली थी जबकि 2022 में यह संख्या बढ़कर 30957 हो गई, अर्थात आयोग के आंकड़ों के हिसाब से भी महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार के मामलों में कहीं सुधार नजर नहीं आ रहा है. अगर बात की जाए राजनीति की तो, भारतीय चुनाव आयोग द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के आधार पर संसद के कुल सदस्यों में 10.5 प्रतिशत प्रतिनिधित्व महिलाएं करती हैं. राज्य असेंबली में तो महिलाओं की और भी बुरी दशा है. जहां पर उनका नेतृत्व मात्र 9 प्रतिशत ही है. 

स्वतंत्रता के 75 साल बीत जाने के बाद भी लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 प्रतिशत से ज्यादा नहीं बढ़ा है. भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों में महिलाएं कार्यकर्ताओं की भरमार है. परंतु ज्यादातर उन्हें चुनाव लड़ने के लिए जरूरी टिकट नहीं दी जाती है. परंतु एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण जो राजनीति में महिलाओं की सहभागिता में बाधक है, वह है देश के भीतर महिलाओं में राजनीतिक शिक्षा की कमी. राजनीति में जहां महिला साक्षरता दर कम है वहां महिलाओं की कुल भागीदारी भी कम है और उस क्षेत्र में राजनीतिक भागीदारी भी ज्यादा है जहां साक्षरता दर ज्यादा है. राजनीति में महिलाओं का कारवां धीरे-धीरे, बढ़ रहा है. लेकिन विश्व आर्थिक मंच द्वारा जुलाई 2022 की रिपोर्ट कहती है कि लैंगिक समानता की विश्व रैंकिंग में भारत 146 देशों में 135 वें स्थान पर खिसक गया है. विश्व आर्थिक मंच ने इस गिरावट के पीछे भारत के राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति कमजोर होने का कारण बताया है. राजनीति में महिलाओं की भागीदारी के मामले में वर्ष 2016 में भारत विश्व में नौवें स्थान पर था. वर्ष 2022 में 48 वे स्थान पर है. विश्व आर्थिक मंच द्वारा लैंगिक असमानता के लिए राजनीति में महिलाओं की कम भागीदारी का संदर्भ देने पर पूर्व लोकसभा अध्यक्ष और 8 बार सांसद रही सुमित्रा महाजन ने कहा कि सिर्फ चुनाव लड़ना राजनीति नहीं है. राजनीतिक समझ रखना अधिक महत्वपूर्ण है. इस मामले में तो भारतीय महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है. वह चर्चा करने लगी है कि देश राज्य और शहर को कैसे चलाना है?

पीरियड पोवर्टी विश्व के कई देशों, विशेष रूप से भारत में गंभीर चिंता का विषय है. पीरियड पोवर्टी मासिक धर्म को ठीक से प्रबंधित करने के लिए आवश्यक स्वच्छता उत्पादों, मासिक धर्म शिक्षा और स्वच्छता एवं साफ सफाई की सुविधाओं तक पहुंच की कमी को इंगित करती है. स्त्रियों के प्रति इन सारी समस्याओं को देखते हुए तो यही अनुमान लगाया जा सकता है कि आज की 21 वीं सदी में भी महिलाएं पुरुषों के मुकाबले हर फील्ड में कहीं ना कहीं पीछे हैं. जिसे ख़त्म करने की ज़रूरत है. (चरखा फीचर)



- भारती डोगरा
पुंछ, जम्मू

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