शिक्षित महिलाओं की बेरोजगारी

SHARE:

गरीबी और सुदूर पहाड़ों में रहने वाले लोग बेहतर जीवन नहीं जी सकते। खासकर चखरीबन के इस क्षेत्र की युवा लड़कियां विज्ञान और तकनीक के इस युग में भी शिक्षा

गरीबी ने शिक्षा से वंचित कर दिया ग्रामीण किशोरियों को


र्तमान युग विज्ञान और प्रौद्योगिकी का युग है। दुनिया एक ग्लोबल विलेज में तब्दील हो चुकी है। अब वही देश दुनिया पर राज कर सकता है जो शिक्षा और टेक्नोलॉजी में आगे है। जिसके सभी नागरिकों को एक समान शिक्षा मिलती हो. यदि किसी देश की आधी जनसंख्या अर्थात महिलाएँ शिक्षा में पिछड़ी हुई हैं तो वह राष्ट्र कभी विकसित नहीं हो सकता है। दुर्भाग्य से, कुछ लोगों की यह गलत धारणा है कि लड़कियों को स्कूल में नहीं पढ़ाया जाना चाहिए, उन्हें शुरू से ही केवल घर के कामों तक ही सीमित कर देना चाहिए। ऐसी संकुचित मानसिकता वालों की नज़र में शिक्षा केवल पुरुषों के लिए है और पुरुषों को ही इस क्षेत्र में प्रवेश करना चाहिए। यही कारण है कि ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी के कारण जब विकल्प सिमित हो जाते हैं तो चाह कर भी लड़कियां शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाती हैं.

इसका एक उदाहरण देश के सीमावर्ती जिला पुंछ के मंडी तहसील स्थित चखरीबन गांव की उल्फत बी है. पंद्रह वर्षीय उल्फत को आठवीं के बाद अपनी शिक्षा छोड़नी पड़ी. क्योंकि घर की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह अपनी शिक्षा को जारी रख सके. हालांकि अन्य किशोरियों की तरह उसके भी सपने थे. वह भी पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ा होना और आत्मनिर्भर बनना चाहती थी. लेकिन कहीं से भी आर्थिक मदद नहीं मिलने के कारण उसे अपनी पढ़ाई आठवीं के बाद छोड़ देनी पड़ी. वह कहती है कि "मैंने जितनी शिक्षा प्राप्त कर ली, वही मेरे लिए काफी है। मैं हमेशा यही सोचती हूं कि मेरे लिए 8वीं कक्षा तक पढ़ना ऐसा है जैसे मैंने स्नातक कर लिया है क्योंकि मेरे माता-पिता के पास मुझे उच्च शिक्षा दिलाने के लिए पर्याप्त आमदनी नहीं है।" स्कूल छोड़ने के बाद उल्फत ने स्वयं को घर के कामों तक सिमित कर लिया है. इसके अलावा घर में अतिरिक्त आमदनी के लिए वह आसपास के लोगों के कपड़े सिलने का भी काम करती है.

शिक्षित महिलाओं की बेरोजगारी
हालांकि उसके अंदर पढ़ने की लालसा आज भी कायम है. वह कहती है कि "यदि मेरी शिक्षा की कुछ व्यवस्था होती तो मैं भी अपने माता-पिता और समाज का नाम रोशन कर पाती। लेकिन दुर्भाग्य से मैं ऐसा नहीं कर सकी." वह कहती है कि केवल गरीबी ही नहीं, बालिका शिक्षा के प्रति समाज के नकारात्मक सोच भी लड़कियों की शिक्षा में एक बड़ी रुकावट है. मेरी जैसी गांव में कई लड़कियां हैं जो अगर गरीबी के कारण नहीं तो लड़कियों की उच्च शिक्षा के विरुद्ध समाज की सोच कारण आगे नहीं पढ़ सकी हैं और आज घर बैठी हुई हैं. जबकि उन्हें अवसर प्राप्त हो तो वह भी गांव और समाज का नाम रौशन कर सकती हैं.

गरीबी और सुदूर पहाड़ों में रहने वाले लोग बेहतर जीवन नहीं जी सकते। खासकर चखरीबन के इस क्षेत्र की युवा लड़कियां विज्ञान और तकनीक के इस युग में भी शिक्षा की लौ से वंचित हैं. जहां उन्हें शिक्षा मिल रही होती है वहां भी उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। आठवीं से आगे की शिक्षा प्राप्त करने के लिए इस गांव की लड़कियों को 10 किमी दूर दूसरे गांव जाना पड़ता है. जिसका रास्ता घने जंगलों से होकर गुज़रता है. उल्फत कहती हैं कि जंगल बहुत घना है, यहां हमेशा जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है. जब हम स्कूल जाते थे तो रास्ते में कई बार घटनाएं हो चुकी हैं, जब स्कूल के छात्रों पर जंगली जानवरों ने हमला कर घायल कर दिया है. कई बार इस हमले में बच्चों की मौत तक हो चुकी है. जिसके कारण भी कई अभिभावकों ने लड़कियों को उच्च शिक्षा के लिए स्कूल भेजना बंद करा दिया है. वह कहती है कि इस क्षेत्र में किशोरियों की शिक्षा जहां गरीबी के कारण अधूरी है तो वहीं अन्य दूसरी सुविधाओं के अभाव के कारण भी प्रमुख हैं. यहां न सड़क है, न पानी की व्यवस्था है और न ही हाई स्कूल है। बालिका शिक्षा से जुड़ी कई योजनाएं तो हैं हमें इससे कोई मदद नहीं मिलती है, इसलिए हम हर तरफ से अधूरे हैं।

हालांकि उल्फत के पिता मोहम्मद अकबर बालिका शिक्षा के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं. उनका कहना है कि लड़कियों के लिए शिक्षा बहुत जरूरी है. इसके बिना इंसान अधूरा है. वह कहते हैं कि स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में बहुत सी बातें कही जाती हैं, आंदोलन किए जाते हैं, दावे किए जाते हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और होती है. वह कहते हैं कि मैं गरीब हूं। दिन रात कड़ी मेहनत करके अपने बच्चों का पेट भरता हूं। मेरे चार बच्चे हैं, दो बेटियां और दो बेटे। हमारा यह क्षेत्र बहुत पिछड़ा हुआ है। यहां कोई भी बच्चा अच्छी तरह से शिक्षा प्राप्त नहीं कर सका है. दुर्भाग्य से इस क्षेत्र में इस युग में भी युवा पीढ़ी शिक्षा से वंचित है। विशेषकर युवतियां जिन्हें शिक्षा रत्न से सुशोभित होना चाहिए, आज अपने घरों में बैठी हैं। मेरी बेटी जो 8वीं कक्षा की छात्रा थी, उसे पढ़ने का बहुत शौक था। लेकिन गरीबी के कारण मैं इसे पढ़ा नहीं पाया। कड़ी मेहनत के बावजूद मुश्किल से हमें दो वक्त की रोटी मिल पाती है। ऐसे में अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने का मेरा भी ख्वाब अधूरा रह गया है.

वो कहते हैं कि आजकल सरकार ने गांव-गांव, मोहल्ले-मोहल्ले में सड़कें, स्कूल और विभिन्न योजनाओं का लाभ पहुंचाने का दावा करती है, लेकिन हमें यहां आज तक इसका कोई लाभ नहीं मिला है। इसलिए यहां के युवा लड़के-लड़कियां शिक्षा से वंचित हैं। वहीं उल्फत की मां रजिया बी कहती हैं कि हमारी लड़की में भी आगे पढ़ने का जुनून था। लेकिन बदकिस्मती से मेरी बेटी उल्फत खराब आर्थिक स्थिति के कारण अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख सकी। वह आज घर के कामों तक सीमित होकर रह गई है.अफ़सोस यह है कि सरकार निःशुल्क शिक्षा व्यवस्था की योजनाएं चला रही है। लेकिन हमारे यहां न तो उचित शिक्षण संस्थान हैं और न ही मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था है। हमारी लड़कियां घर की साफ-सफाई, झाड़ू-पोछा करने और ससुराल जाने तक ही सीमित हैं। यदि हमारी बेटियों को अच्छी शिक्षा मिले तो उन्हें जीवन में किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना न करना पड़े।

इस सिलसिले में मैंने दो स्थानीय लड़कियां 17 वर्षीय नसीमा नसीम अख्तर और 18 वर्षीय जाहिदा बी से बात की. नसीमा ने 8वीं के बाद स्कूल छोड़ दिया जबकि जाहिदा ने 10वीं तक पढ़ाई के बाद शिक्षा को अलविदा कह दिया. इसका कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि हमारे गांव में सभी लोग गरीबी की स्थिति में रहते हैं. हमारी शिक्षा को आगे जारी रखने के लिए अभिभावकों के पास पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। अब हम स्कूल छोड़कर घर के काम में लग जाते हैं। इसके अलावा पारिवारिक रीति-रिवाज, महिलाओं की सुरक्षा के बारे में विशिष्ट दृष्टिकोण, कम उम्र में शादी, आर्थिक रूप से कमजोर स्थिति, शिक्षित महिलाओं की बेरोजगारी, लड़कियों के लिए अलग स्कूल की व्यवस्था का न होना, बेटियों को बराबरी का न मानना और बेटियों की शिक्षा पर पैसे खर्च करने को व्यर्थ मानना, जैसे कारण आम हैं.

वास्तव में, गरीबी और संसाधनों के अभाव में न केवल उल्फत बी, नसीमा अख्तर और जाहिदा बी जैसी किशोरियों ने अपनी शिक्षा अधूरी छोड़ दी है, बल्कि इस देश के ग्रामीण इलाकों में उनके जैसी हजारों लड़कियां हैं जो इन्हीं कारणों से अपने सपनों को पूरा नहीं कर सकी हैं. ऐसे में सरकार, स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों का यह कर्तव्य बनता है कि वे ऐसे संसाधन, परिस्थितियां और वातावरण तैयार करें, जहां लड़कियां आसानी से शिक्षा प्राप्त कर अपने सपनों को पूरा कर सकें। यह लेख संजय घोष मीडिया अवार्ड 2022 के तहत लिखा गया है। (चरखा फीचर)



- रेहाना कौसर ऋषि
मंडी, पुंछ

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका