दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकता और महत्व

SHARE:

दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकता और महत्व दूरस्थ शिक्षा वह शिक्षा है ,जिसमें शिक्षा देने वाले तथा शिक्षा प्राप्त करने वाले के बीच दूरी बनी दूरस्थ शिक्षा कार्

दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकता और महत्व


दूरस्थ शिक्षा वह शिक्षा है ,जिसमें शिक्षा देने वाले तथा शिक्षा प्राप्त करने वाले के बीच दूरी बनी रहती है। परंपरागत शिक्षा प्रणाली में शिक्षा देने वाले अर्थात शिक्षक तथा शिक्षा प्राप्त करने वाले अर्थात छात्र के बीच प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। इसमें उपस्थिति की अनिवार्यता नहीं रहती है और शिक्षक के सामने बैठकर शिक्षा नहीं ग्रहण करनी होती है। अधिगमकर्ता अपने मनचाहे समय पर सीखने की अपनी गति के साथ अपने ही घर या किसी अन्य स्थान पर शिक्षा ग्रहण कर सकता है। दूरस्थ शिक्षा में अध्यापक तथा छात्र एक दूसरे से विलग रहते हैं। अध्यापक विभिन्न प्रकार के सम्प्रेषण माध्यमों से छात्रों को ज्ञान पहुँचाता है। 

दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकता व महत्व के सम्बन्ध में निम्नलिखित बातें कहीं जा सकती है - 

शैक्षिक माँग की पूर्ति हेतु 

आधुनिक समय में समाज के सभी वर्गों में शिक्षा की माँग बढ़ रही है। एक ओर निरंतर बढ़ती हुई जनसँख्या और दूसरी ओर शिक्षा के प्रति जन सामान्य का सुझाव ,इन बातों के कारण शिक्षा की व्यवस्था करना सरकार का दायित्व हो गया है। परन्तु औपचारिक शिक्षा के द्वारा माँग के अनुरूप शिक्षा की व्यवस्था कर पाना कठिन है। अतः बढ़ती हुई शैक्षिक माँग के कारण दूरस्थ शिक्षण का प्रादुर्भाव हुआ , जिसमें दूर- दराज के लोगों के लिए शिक्षा की व्यवस्था करने की सामर्थ्य है। 

जीवन पर्यन्त शिक्षा हेतु 

दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकता और महत्व
शिक्षा जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। व्यक्ति प्रत्येक क्षण कुछ कुछ सीखता रहता है। अतः विद्वानों का विचार है कि एक सुविचारित शिक्षा की पद्धति विकसित की जाए जो आजीवन चलती रहे। इस दृष्टि से लोगों ने ऐसे व्यवस्था की खोज की ,जिसमें शिक्षण तथा अधिगम की परिस्थितियों भी हों और जिसे इच्छानुसार आजीवन चलाया भी जा सके। इसी प्रकार की शिक्षा व्यवस्था का नाम दूरस्थ रखा गया। 

सार्वभौमिक शिक्षा की व्यवस्था हेतु 

आधुनिक समय में शिक्षा किसी वर्ग विशेष या क्षेत्र विशेष तक ही सीमित नहीं रही है। अब सार्वभौमिक शिक्षा का सिद्धांत स्वीकार किया जाने लगा है। लोकतान्त्रिक देशों में इसी सिद्धान्त को स्वीकारा गया है। देश का कोई भी हिस्सा या किसी हिस्से का कोई क्षेत्र शिक्षा से अछूता नहीं रहना चाहिए। इस प्रकार की शिक्षा व्यवस्था की आवश्यकता ने ही दूरस्थ शिक्षा के प्रसार को जन्म दिया। इसके माध्यम से किसी देश का कोई कोना कोना तथा उसमें रहने वाले लोग शिक्षा से वंचित नहीं रह सकते हैं। 

गृह शिक्षा की व्यवस्था हेतु 

आज भी समाज में अनेक ऐसे लोग हैं , जो औपचारिक शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। प्रायः गृहस्थ महिलाएँ ,अपंग व्यक्ति तथा गरीब परिवारों के बच्चे ,संसाधनों की कमी के कारण अथवा पारिवारिक कार्यों में फँसे होने के कारण पढ़ने की इच्छा होते हुए भी औपचारिक शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। यदि ऐसे लोगों की शिक्षा व्यवस्था न की गयी ,तो सार्वभौमिक शिक्षा का लक्ष्य पूरा नहीं होगा। अतः यह अनुभव किया गया है कि ऐसी शिक्षा प्रणाली विकसित की जाए तो घर बैठे लोगों को उनके समय और सुविधा के अनुसार शिक्षा देने की व्यवस्था कर सके ,इसी दृष्टि से दूरस्थ या सुदूर शिक्षा की आवश्यकता अनुभव की गयी। 

कौशल में अभिवृद्धि करने के लिए 

ऐसे असंख्य लोग हैं ,जो अपनी औपचारिक शिक्षा पूरी करने के पूर्व ही पढ़ाई छोड़ बैठे हैं और किसी भी रोजगार या नौकरी में लग गए हैं ,परन्तु वे लोग आगे अपने ज्ञान में वृद्धि करना चाहते हैं। दूरस्थ शिक्षा इस प्रकार के लोगों के लिए ज्ञानार्जन की व्यवस्था करती है। दूरस्थ शिक्षा के द्वारा ऐसे लोग अपने व्यावसायिक कौशल में अभिवृद्धि कौशल में अभिवृद्धि कर सकते हैं ,उन्हें नित्य नयी जानकारी मिलती है। इस प्रकार समृद्धि सम्बन्धी कौशलों को बढ़ाने के लिए दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकता अनुभव की गयी है। 

शैक्षिक अवसरों में समानता लाने हेतु 

दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकता शैक्षिक अवसरों में समानता लाने के उद्देश्य से भी अनुभव की गयी है। समाज के अपवंचित वर्गों के लोगों को जो गरीबी या अवसरों की सुलभता न होने के कारण शिक्षा से वंचित रह गए हैं ,उनके लिए घर पर शिक्षा के अवसर सुलभ कराना। गरीबी या संसाधनों की कमी शिक्षा के अवसरों में बाधक न बने ,सभी को समान रूप से शिक्षा के अवसर मिल सके। इस दृष्टिकोण से भी दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकता को अनुभव किया गया है। 

प्रौढ़ शिक्षा को गति प्रदान करने हेतु 

निरक्षरता किसी भी देश का सामाजिक कलंक है। भारत में आज भी लगभग ४८ प्रतिशत निरक्षरता विद्यमान है। निरक्षरता उन्मूलन के लिए विभिन्न कार्यक्रम प्रारंभ किये गए हैं ,उन्ही कार्यक्रमों में से एक दूरस्थ शिक्षा भी है। दूरस्थ शिक्षा प्रौढ़ साक्षरता मिशन की कार्य योजना को आगे बढ़ाने में सहायक रही है। उत्तर साक्षरता एवं अनवरत शिक्षा के कार्यक्रम प्रसारित करने में दूरस्थ शिक्षा की सहायता ली जाती है।

औपचारिक शिक्षा के सहायक के रूप में 

औपचारिक शिक्षा या परंपरागत शिक्षा ,शिक्षा संस्थानों में दी जाती है। परन्तु बढ़ती हुई जनसँख्या के कारण सभी के लिए औपचारिक शिक्षा की व्यवस्था सुलभ नहीं होने से अनेक लोग वंचित रह जाते हैं। कक्षाओं में निरंतर छात्रों की भीड़ बढ़ रही है। इस स्थिति से निपटने के लिए दूरस्थ शिक्षा का सहारा लेना आवश्यक हो गया है। 

इस प्रकार कहा जा सकता है कि दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम उन सबके लिए शिक्षा के अवसर सुलभ कराते हैं जो किसी की कारण शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते हैं और जिनमें शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा होती हैं। 

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका