हिंदी साहित्य में अनुवाद का महत्व पश्चिमी साहित्य का अनुवाद साहित्य का विकास में अनुवाद का योगदान पारिभाषिक शब्दों का निर्माण ज्ञान विज्ञान के साहि
हिंदी साहित्य में अनुवाद की भूमिका
आधुनिक हिंदी साहित्य के विकास में अनुवाद का बहुत बड़ा योगदान है। हिंदी गद्य का सर्वाधिक प्रचार ईसाई धर्म प्रचारकों ने बाइबिल के हिंदी अनुवाद द्वारा किया है। इसके बाद इन्ही ईसाई धर्म प्रचारकों ने शिक्षा सम्बन्धी पुस्तकों का लेखन और अनुवाद दोनों कराया। फोर्ट विलियम कॉलेज के हिंदी उर्दू अध्यापक जान गिलक्रिस्ट के प्रत्यनों से हिंदी उर्दू की पाठ्य पुस्तकों के लेखन और अनुवाद की परंपरा शुरू हुई। इसके बाद राजा लक्ष्मण सिंह के कालिदास के कई ग्रंथों का अनुवाद कर हिंदी कार्य को आगे बढ़ाया।
पश्चिमी साहित्य का अनुवाद
भारतेंदु युग में तमाम भारतीय एवं विदेशी कृतियों के हिंदी अनुवाद किये गए। यह युग हिंदी साहित्य की रचना की दृष्टि से तो महत्वपूर्ण है ही ,इस युग में साहित्यकारों व चिंतकों ने पश्चिमी साहित्य के अनुवादों के माध्यम से नवीन ज्ञान और विचारों के आगमन का पथ प्रशस्त किया। भारतीय भाषाओँ की अनेक सुन्दर रचनाओं का अनुवाद प्रस्तुत कर भारतेंदु युगीन साहित्यकारों ने भारतीय इतिहास और वर्तमान दोनों के प्रति अपनी जागरूकता व्यक्त की है।
द्विवेदी युग हिंदी भाषा के परिष्कार का युग था। इस युग में खड़ी बोली हिंदी को एक समर्थ साहित्यिक रूप मिला। इस पुनीत कार्य में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी और उनके द्वारा सम्पादित सरस्वती पत्रिका का महत्वपूर्ण योगदान था। सरस्वती में हिंदी की मूल रचनाओं के साथ साथ कई भारतीय भाषाओँ की प्रतिष्ठित रचनाओं के अनुवाद भी छपते थे। बंगला भाषा के माईकेल मधुसुदन दत्त ,बंकिम चन्द्र ,शरतचंद्र ,रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि प्रबुद्ध लेखकों एवं कवियों की रचनाओं के अनुवाद हुए। हिंदी के भारतेंदु और मैथिलीशरण गुप्त जैसी प्रतिष्ठित रचनाकारों ने अनुवाद कार्य भी किया। अंग्रेजी के उपन्यासों और नाटकों का भी अनुवाद कार्य बहुतायत से हुआ। मौलिक लेखन एवं अनुवाद दोनों दृष्टियों से इस युग का पर्याप्त महत्व है। हिंदी में कहानी और उपन्यास दो सर्जनात्मक गद्य विधाओं की रचना में इनके अंग्रेजी अनुवादों की पर्याप्त प्रेरणा निहित देखी जा सकती है।
साहित्य का विकास में अनुवाद का योगदान
बीसवीं शती का सारा हिंदी साहित्य किसी न किसी रूप में पाश्चात्य साहित्य से प्रेरणा लेता दिखता है। छायावादी काव्यान्दोलन ,प्रगतिवादी कव्यचिन्तन ,प्रयोगवादी या नयी कविता सभी विदेशी विचारधाराओं से प्रभावित है। मार्क्सवाद ,मनोविश्लेषण ,अस्तित्ववाद जैसे पाश्चात्य चिन्तनों ने साहित्य को प्रभावित किया। ये सारे चिंतन भारत में अनुवादों की देन कहे जा सकते हैं। इस प्रकार साहित्य के विकास में अनुवादों का पर्याप्त योगदान रहा है।
रचनात्मक साहित्य के बाद विज्ञान के विषय ,गणित ,दर्शन ,तर्कशास्त्र तथा सामाजिक विज्ञान ,ज्ञान विज्ञान आदि के क्षेत्र में आते हैं। इनका उपयोग जीवन के प्राद्योगिकी कार्यकलापों के लेकर विविध स्तरीय कार्यों तक है। इस ज्ञान विज्ञान के साहित्य का सीधा समबन्ध देश की शिक्षा और सामाजिक विकास से है। सारे विश्व में ज्ञान का विस्फोट हो रहा है। ज्ञान विज्ञान के नित्य नए आयाम प्रकाश में आ रहे हैं। समस्त विश्व में इस सारे साहित्य का आदान - प्रदान अनुवादों के माध्यम से हो रहा है। इसी साहित्य के अंतर्गत धार्मिक एवं दार्शनिक भी आता है। अनुवादों ने सारी विश्व मानवता को जोड़कर एक कर दिया है। धर्म और दर्शन अब देश की सीमाएँ लाँघकर ,मानवीय कल्याण चिंतन में दत्त - चित्त हैं।
पारिभाषिक शब्दों का निर्माण
ज्ञान विज्ञान के साहित्य का महत्व शिक्षा की दृष्टि से बहुत अधिक है। विश्वविद्यालयों और अकादमियों द्वारा शैक्षिक महत्व का विपुल साहित्य अनुदित कराया जा रहा है। क्षेत्रीय भाषाएँ भी शिक्षा का माध्यम बन रही हैं। अतः इनमें भी ज्ञान -विज्ञान साहित्य का अनुवाद पर्याप्त मात्रा में किया जा रहा है। ऐसे अनुवादों की सबसे अहम् समस्या पारिभाषिक शब्द है। उपयुक्त पारिभाषिक शब्द ही ,विषयों का सुष्ठु ज्ञान करा सकते हैं। भारत में इन शब्दों पर बहुत कार्य हुआ है। पारिभाषिक शब्दों के निर्माण में अनुवाद का ही सहारा लिया जा सकता है।
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